बिहार के दरभंगा जिले में छह साल पहले अमरीकी मूल की नागरिक एक नाबालिग बच्ची से हुए यौन दुर्व्यवहार के मामले की जांच में पुलिस की निराशाजनक भूमिका पर पटना हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है।
पटना हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस बिबेक चौधरी ने कहा, “मामले की जांच से जुड़े रिकॉर्ड के अवलोकन से पता चलता है कि एफआईआर दर्ज करने से लेकर जांच करने व चार्जशीट दाखिल करने तक पुलिस की तरफ से सुस्ती या कहें कि उदासीनता बरती गई व प्रथम दृष्ट्या पता चलता है कि इस मामले में पुलिस की भूमिका ने हमारे देश की छवि को धूमिल किया है, जिसके संविधान की प्रस्तावना में न्याय, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक सुरक्षा का अधिकार दिया गया है।”
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क्या है मामला
मामला वर्ष 2018-2019 के दरम्यान का है। घटना के वक्त 13 वर्ष की रही पीड़ित बच्ची अपने परिजन के साथ दरभंगा टाउन थाना क्षेत्र में रह रही थी। पीड़िता की मां ने देखा कि एक स्थानीय युवक चमन ने उससे यौन दुर्व्यवहार किया और उसका लगातार पीछा करने लगा।
पीड़िता की मां की तरफ से 12 सितंबर 2019 को स्थानीय थाने में दिये गये आवेदन के मुताबिक, चमन नाम के शख्स ने पीड़िता को एक मोबाइल फोन दिया था और उसी मोबाइल फोन पर उसे कॉल कर चमन ने धमकी दी थी कि अगर उसने अपने घर का दरवाजा नहीं खोला, तो वह नस काट लेगा या फिर छत से कूदकर जान दे देगा।
पीड़िता की मां ने आवेदन में लिखा, “चमन ने लगातार बच्ची से यौन दुर्व्यवहार किया था। जब मैंने अपने बेटी की बांह देखी, तो उस पर कटे का निशान था। ये देखकर हमको लगा कि जरूर कुछ न कुछ हुआ है। फिर हमलोग बेटी को थाइलैंड में एक परामर्शदाता के पास लेकर गये। परामर्शदाता को बच्ची ने बताया कि चमन लगातार उससे यौन दुर्व्यवहार करता था।”
“आरोपी ने हमें भी मैसेज भेजा जिसमें उसने बताया कि उसने मेरी बेटी से विवाह कर लिया है और हम उसके सास-ससुर हैं। वह चाकू लेकर हमारे घर आया और कहा कि हमलोग उसे काट दें क्योंकि उसे एहसास हुआ था कि उसने गलत किया है,” पीड़िता की मां ने पुलिस को दिये आवेदन में लिखा। हालांकि, पीड़िता के परिवार ने वर्ष 2018 में ही पहली बार महिला थाने में शिकायत दर्ज कराने की कोशिश की थी, मगर लेकिन उस वक्त थाने में उनकी अनदेखी की और शिकायत नहीं ली।
पुलिस की लगातार लापरवाही
दस्तावेजों से पता चलता है कि दूसरी बार आखिरकार पुलिस ने शिकायत ली, मगर उसने पाॅक्सो एक्ट की धाराएं नहीं लगाईं जबकि पीड़िता नाबालिग थी। इतना ही नहीं, मामले के जांच अधिकारी सीआरपीसी की धारा 164 के तहत पीड़िता का बयान भी दर्ज नहीं करना चाहते थे, जिसको लेकर पीड़िता के परिजनों को पटना हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा। पटना हाईकोर्ट ने जून 2020 में दरभंगा के फर्स्ट क्लास ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए 164 के तहत बयान दर्ज करने का निर्देश दिया।
पुलिस ने मामले की छानबीन कर 7 फरवरी 2021 को कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की, लेकिन चार्जशीट में कई जरूरी सबूतों को शामिल नहीं किया, जिसको लेकर पीड़िता के परिजनों ने फिर एक बार अदालत का दरवाजा खटखटाया और बताया कि आरोपी ने फेसबुक मैसेज में खुद ये स्वीकार किया था कि पीड़िता के साथ आरोपी ने शारीरिक संबंध बनाये थे, जब वह दरभंगा में रह रही थी। जांच अधिकारी को इससे संबंधित दस्तावेज उपलब्ध कराया गया था।
इतना ही नहीं, पीड़िता के परिजन कई बार थाने गये और जांच अधिकारी से आरोपी की तरफ से पीड़िता व उसके परिजनों को भेजे गये इलेक्ट्रॉनिक मैसेज को केस डायरी में दर्ज करने को कहा। मगर, इसके बावजूद पुलिस ने लापरवाह तरीके से चार्जशीट दाखिल की और कई ऐसे सबूत शामिल नहीं किये, जो पीड़िता के बयानों का समर्थन करते थे।
निचली अदालत ने भी कोताही की
पटना हाईकोर्ट ने ये भी पाया कि न केवल पुलिस की तरफ से लापरवाही बरती गयी बल्कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, दरभंगा ने भी कोताही बरती। “चार्जशीट दाखिल करने के बावजूद न्यायिक मजिस्ट्रेट ने चार्जशीट के आधार पर अपराधों का संज्ञान नहीं लिया, जिसके चलते पीड़िता के परिजनों को 2022 में दूसरी बार रिट आवेदन पटना हाईकोर्ट में डालना पड़ा,” पटना हाईकोर्ट ने कहा।
इस रिट आवेदन पर सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (दरभंगा) से रिपोर्ट जमा करने को कहा कि चार्जशीट के आधार पर अपराधों का संज्ञान क्यों नहीं लिया गया। इस पर जिले के डीएम और जिस थाने में एफआईआर दर्ज हुई थी, उसके स्टेशन हाउस अफसर (एसएचओ) ने कोर्ट को बताया कि जांच अधिकारी को कुछ अन्य बिन्दुओं पर जांच कर चार्जशीट में इन्हें शामिल करने को कहा गया है।
इसमें आरोपी का मोबाइल फोन बरामद कर सीडीआर निकाल, पीड़िता का बयान और अन्य स्वतंत्र गवाहों का बयान दर्ज कर इन्हें चार्जशीट में शामिल करना था। लेकिन, फिर भी जांच अधिकारी ने चार्जशीट में इन्हें शामिल नहीं किया, तो पीड़िता के परिजनों को ट्रायल कोर्ट की शरण लेनी पड़ी। पीड़िता के परिजनों ने फेसबुक, वाट्सएप और टेक्स्ट मैसेज कोर्ट में उपलब्ध कराये और इन्हें चार्जशीट में शामिल करने की अपील की, लेकिन ट्रायल कोर्ट ने इन सबूतों ये कहकर स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि ये सेकेंडरी सबूत हैं और ये मैसेज जिन उपकरणों से भेजे गये, उन्हें बरामद नहीं किया गया है।
पटना हाईकोर्ट ने इस पर कहा कि उसका विचार है कि कम्प्यूटर उपकरणों जैसे मोबाइल फोन, लैपटॉप से आरोपी द्वारा भेजे गये मैसेज केस के तार्किक नतीजे पर पहुंचने के लिए अहम हैं।
कोर्ट ने आगे कहा कि इस केस में निचली अदालत के आदेश, कोर्ट की प्रक्रिया के दुरुपयोग के उदाहरण हैं। “नाबालिक से यौन हिंसा के मामले में कोर्ट को असल दोषी को तलाशने में सक्रियता बरतनी चाहिए,” कोर्ट ने आदेश में कहा।
पटना हाईकोर्ट ने आगे पाॅक्सो कोर्ट के विशेष जज को निर्देश दिया कि आवेदक (पीड़िता के परिजन) को कोर्ट में कम्प्यूटर उपकरण पेश करने की इजाजत दी जाए और इसके लिए तारीख तय कर आवेदक को इसकी सूचना दी जाए।
वहीं, ट्रायल कोर्ट को पटना हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि वह एसएचओ की मदद से विशेषज्ञ का इंतजाम करे जो मैसेजों की प्रति लेगा और वैज्ञानिक जांच के लिए भेजेगा। ये सारी प्रक्रिया एक महीने के भीतर पूरी करने का निर्देश दिया गया।
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