शहर में एक सरकारी प्लेग्राउंड है, जिसमें U-14 स्टेट चैंपियन लड़कियां फुटबॉल की प्रैक्टिस कर रही हैं। पूरे ग्राउंड में चहलकदमी है और शोर है। ग्राउंड पर कुछ छोटे बच्चे साइकिल चला रहे हैं, कुछ लड़कों का मैच चल रहा है, जिनकी गेंद बार-बार लड़कियों की तरफ आ जाती है। लड़कियां हर बार डिस्टर्ब होती हैं, लेकिन अपने खेल पर ध्यान लगाए रहती हैं।
इतने में ग्राउंड के बीच से शोर मचाता हुआ एक टेम्पो गुजरता है। इस बार लड़कियां परेशान होकर एक दूसरे की तरफ देखती हैं और मायूस होकर टेम्पो के वहां से गुजर जाने का इंतजार करती हैं।
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जैसे ही टेम्पो वहां से गुजर जाता है, लड़कियां दोबारा प्रैक्टिस शुरू करती हैं। एक लड़की गोल करने के लिए फुटबॉल में किक मारती ही है कि उसकी फुटबॉल ग्राउंड से गुजर रहे एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति के पैरों में आ जाती है। गोल कैंसिल हो ही जाता है और वह आदमी लड़कियों को बुरा भला कहकर आगे निकल जाता है। इस बार लड़कियों का मनोबल थोड़ा टूटता है, लेकिन कुछ देर में वे फिर प्रैक्टिस शुरू कर देती हैं।
अभी जो कुछ आपने ऊपर पढ़ा, वह कोई काल्पनिक कहानी नहीं बल्कि कटिहार जिले के अमदाबाद प्रखंड में आदर्श मध्य विद्यालय, अमदाबाद के प्लेग्राउंड में रोज़ाना घटने वाली वास्तविक घटना है।
दरअसल, इस प्लेग्राउंड में पास के ही एक निजी विद्यालय “ईगल इंग्लिश स्कूल” की छात्राएं फुटबॉल की प्रैक्टिस करती हैं। खास बात यह है कि ये छात्राएं केवल शौक़ के लिए फुटबॉल नहीं खेलती हैं, बल्कि वे बिहार की स्टेट चैंपियन बन चुकी हैं और आगे चलकर फुटबॉल में भारत का प्रतिनिधित्व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर करना चाहती हैं।
“हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फुटबॉल खेलना है। हम लोगों का फील्ड बराबर नहीं है। जब हम प्रैक्टिस करते हैं तो फील्ड में से आसपास के लोग गुजरते रहते हैं। कभी उनको चोट लग जाती है, तो हमको ही डांटते हैं।”
यह कहना है फुटबॉल खेलने वाली छात्राओं में से एक खुशबू सोरेन का। खुशबू फिलहाल कटिहार में अहमदाबाद के ईगल इंग्लिश स्कूल में दसवीं क्लास की छात्रा हैं।

“हम चाहते हैं कि प्रैक्टिस के समय हमें कोई डिस्टर्ब न करे, ताकि हम अच्छे से खेल सकें और अमदाबाद का नाम रोशन करें,” खुशबू कहती हैं।
फूटबाल में लड़कों से बेहतर लड़कियां
बता दें कि भारत में फुटबॉल की स्थिति कोई खास अच्छी नहीं है। फेडरेशन इंटरनेशनेल डी फुटबॉल एसोसिएशन (FIFA) द्वारा अगस्त 2022 में की गई रैंकिंग के अनुसार भारत 104वें पायदान पर है।
भारत में भी अगर बात की जाए बिहार की, तो बिहार फुटबॉल टीम ने आखिरी बार साल 2001 में कोई ट्रॉफी जीती थी जिसका नाम मीर इकबाल हुसैन ट्रॉफी है। इसके बाद 2015 में संतोष ट्रॉफी के लिए बिहार फाइनल्स क्वालीफाई नहीं कर पाया था। संतोष ट्रॉफी के इतिहास में बिहार अभी तक विजेता नहीं बन सका है।
जहां एक तरफ बिहार की पुरुष फुटबॉल टीम की हालत खस्ता है, वहीं बिहार की महिला फुटबॉल टीम दिन-ब-दिन उभरती नजर आ रही है। जून-जुलाई 2022 में आयोजित “U-17 जूनियर महिला राष्ट्रीय फुटबॉल चैम्पियनशिप” में बिहार की टीम बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए टूर्नामेंट की उपविजेता बनी। इसके अलावा बिहार के अलग-अलग जिलों में छात्राएं फुटबॉल के मैदान में काफी अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं।
टीम की सफलता
ईगल इंग्लिश स्कूल, कटिहार में छात्राओं को प्रशिक्षण देने वाले कोच इग्निसिस मुर्मू कटिहार जिला फुटबॉल संघ के सदस्य भी हैं।
वह बताते हैं कि उनके स्कूल की बच्चियों ने साल 2019 से तैयारी शुरू की थी और 2019 में ही उनको नेशनल स्कूल गेम्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SGFI) का अंडर U-14 मैच खेलने को मिला, जिसमें टीम विजेता बनी। इसके बाद उन्हे़ राज्य स्तरीय मैच खेलने का मौका मिला, जिसमें उन्होंने जिले का प्रतिनिधित्व किया, लेकिन इस टूर्नामेंट में उनकी टीम हार गई थी।
आगे इग्निसिस ने बताया कि 2021 में फिर से इन लड़कियों का रजिस्ट्रेशन करवाया गया, लेकिन कोरोना के कारण वह मैच 2022 में खेला गया। उनके स्कूल की छात्राओं ने फिर से जिले का प्रतिनिधित्व किया, क्योंकि उस समय पूरे जिले में इनके अलावा और कोई लड़की नहीं थी जो फुटबॉल की प्रैक्टिस कर रही थी।
साल 2022 में इस टूर्नामेंट को जीतकर ये लड़कियां फुटबॉल के अंडर-14 ग्रुप में बिहार की स्टेट चैंपियन बन गईं। एक बार स्टेट चैंपियन होने के नाते इनको U-14 नेशनल चैंपियनशिप खेलने का मौका मिलेगा जो कि इसी साल होने जा रहा है।

कोच ने आगे बताया कि इन सभी मैचों को खेलने वाली कटिहार की टीम में सभी लड़कियां उनके ही स्कूल से हैं, क्योंकि पूरे जिले में इनके अलावा दूसरी लड़कियां नहीं है जो इस लेवल पर फुटबॉल की प्रैक्टिस कर रही हैं।
ग्राउंड की कमी
वर्तमान में जब बिहार की छात्राएं फुटबॉल के प्रति उत्साह दिखा रही हैं और बेहतरीन प्रदर्शन भी कर रही हैं, तो उनको आगे बढ़ने के लिए अच्छी सुविधाओं की आवश्यकता है।
लेकिन फिलहाल उनके पास प्रैक्टिस करने के लिए एक ऐसा ग्राउंड है, जिसमें गड्ढे हैं और जमीन भी काफी ऊंची नीची है। यह प्लेग्राउंड का कम और राहगीरों के लिए सड़क का काम ज्यादा करता है। यहां तक कि गोल करने के लिए उनके पास गोल पोस्ट तक नहीं है। ग्राउंड में बांस के डंडों का गोल पोस्ट बनाकर वे प्रैक्टिस करती हैं।
एक अन्य छात्रा जोनिता का कहना है, “यहां से बाहर वाले लोगों का आना जाना भी है, जिससे हमें काफी दिक्कत होती है। साथ ही हमारा फुटबॉल फील्ड ऊपर नीचे है, जिसको ठीक किया जाना चाहिए। इसके अलावा यहां गोल पोस्ट भी नहीं बना हुआ है। हम बांस के डंडों से गोल पोस्ट बनाकर खेलते हैं।”
आगे जोनिता कहती हैं, “अगर अच्छा ग्राउंड मिल जाए, तो फायदा होगा कि हम लोग अच्छे से खेलेंगे और यहां कुछ रूल्स बनेंगे। यहां पर सड़क भी है, लेकिन लोग ग्राउंड के अंदर से ही गुजरते हैं जबकि वह सड़क से होकर जा सकते हैं।”
आने वाले दिनों में सुधर सकते हैं हालात
ऑल इंडिया फूटबॉल फ़ेडरेशन (AIFF) की वेबसाइट पर मौजूद डाटा के अनुसार बिहार फूटबॉल एसोसिएशन (BFA) के पास फ़िलहाल सिर्फ एक ग्राउंड है।
साल 2021 में बिहार सरकार ने नालंदा जिले के राजगीर में बिहार स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी के लिए बिहार स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी बिल पास किया है। ऐसी यूनिवर्सिटी बनाने वाला बिहार देश का छठा राज्य है। इसमें 33.3 फीसदी सीटें छात्राओं के लिए आरक्षित रहेंगी।
जून, 2022 में तत्कालीन कला, संस्कृति और युवा मंत्री आलोक रंजन झा ने कहा था, “इस वित्तीय वर्ष के अंत तक इस यूनिवर्सिटी की शुरुआत हो जाएगी।”
पिछले साल अगस्त के महीने में ही बिहार के तत्कालीन उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद ने ‘बिहार खेल सम्मान 2021-22 समारोह’ में कहा था कि मुख्यमंत्री खेल विकास योजना के तहत राज्य सरकार का लक्ष्य प्रत्येक ब्लॉक में एक आउटडोर स्टेडियम बनाना है।
“सरकार ने अब तक 353 स्टेडियमों के निर्माण को मंजूरी दी है। इनमें से 169 स्टेडियम पहले ही बन चुके हैं। प्रदेश में विभिन्न योजनाओं व कार्यक्रमों के माध्यम से खेल संस्कृति को विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है। खिलाड़ियों के लिए 24 आधुनिक प्रशिक्षण सुविधाओं के निर्माण की भी व्यवस्था की जा रही है।”
इसके अलावा उन्होंने बताया था कि राज्य के प्रतिभाशाली स्कूली बच्चों के लिए एकलव्य राज्य आवासीय खेल प्रशिक्षण केंद्र योजना चलाई जा रही है। इसमें अब तक 23 जिलों में 41 केंद्रों को मंजूरी दी गई है। इनमें से, 29 लड़कों के लिए और 12 लड़कियों के लिए हैं। 30 केंद्र पहले से ही चालू हैं।
ज़्यादा लडकियां आदिवासी समुदाय से
कोच इग्निस बताते हैं कि यहां फुटबॉल खेलने वाली ज्यादातर छात्राएं आदिवासी समुदाय से आती हैं, क्योंकि उनके परिवार में खेलने की अनुमति आसानी से मिल जाती है जबकि फुटबॉल का क्रेज यहां के गैर आदिवासी बच्चों को भी खूब है। बाजार की तरफ से (अन्य समुदाय की) भी चार-पांच लड़कियां प्रैक्टिस करने के लिए आती हैं।

वे आगे बताते हैं कि उन्हें समाज में यह परिवर्तन पिछले एक साल से ही ज्यादा देखने को मिल रहा है कि अब गैर आदिवासी समुदायों की लड़कियां भी खेलकूद में भाग ले रही हैं, लेकिन फिर भी अगर तूलना की जाए, तो खेलकूद के क्षेत्र में आदिवासी समुदाय की लड़कियां ज्यादा हैं।
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