बिहार की राजधानी पटना से ढाई सौ किलोमीटर दूर सुपौल जिले (Supaul News) की लाउढ़ पंचायत में 19 मार्च की देर रात मोहम्मद मुर्तजा की बेटी आसमीन परवीन को बाल पकड़ कर घसीटते हुए मारा गया। फिर भाला से हमला कर उसकी नाक काट दी गई। जिस वक्त इस घिनौने काम को अंजाम दिया जा रहा था, उस वक्त घटनास्थल पर 40 से 50 लोग मौजूद थे।
बताया जाता है कि ये सब सिर्फ़ इसलिए किया गया कि पीड़ित महिला के परिवार ने छेड़खानी का विरोध किया था।
पीड़िता आसमीन परवीन ‘मैं मीडिया’ को घटना के बारे में विस्तार से बताती हैं, “उस समय घर में सिर्फ महिलाएं थीं। अब्बा और चाचा बगल में ही एक दावत में शामिल होने गए थे। रात के 9-10 बजे अचानक घर में लाठी और भाला लेकर 30-35 लोग घुस आए और तोड़फोड़ मचाने लगे। भीड़ का नेतृत्व सरपंच मो. मुस्तकीन और उसका भाई नौशाद कर रहा था। भीड़ में शामिल लोगों ने हम लोगों से छेड़खानी और दुष्कर्म का प्रयास करने लगा। हम सहमे थे, इसके बावजूद हमने विरोध किया। उन्होंने मेरे बाल पकड़ कर घसीटना शुरू कर दिया। तभी अब्बा भी आ गए। उन पर फरसा से हमला कर हाथ काट दिया। इसके बाद फिर हम भागने का प्रयास करने लगे, तो सरपंच ने भाला से मेरी नाक काट दी।”

“मैं इंटर में पढ़ती हूं। मेरी छोटी बहन नवमी क्लास में पढ़ती है। कुछ दिन पहले सरपंच के गोतिया इलियास का बेटा मेरी छोटी बहन के चरित्र को लेकर अफवाह फैला रहा था। मेरी अम्मा ने इसका विरोध किया था। इसके बाद दोनों घर की महिलाओं में कहासुनी हुई थी। इसी को लेकर सरपंच ने हमारे और हमारे परिवार के साथ ऐसी बेरहमी की है” आगे पीड़िता बताती हैं।
क्या जमीन विवाद है घटना की वजह?
पीड़िता के पिता मोहम्मद मुर्तजा बताते हैं, “उस भीड़ का मकसद मेरी बेटी का इज्जत लूटना था। हो-हल्ला होने पर ग्रामीण जुटने लगे, इसलिए सब भाग गए। जाते-जाते भी वे लोग घर से नगद 50 हजार और बक्शा लेकर फरार हो गये। हम लोग न्याय की उम्मीद लिए बैठे हुए हैं।” पूरे मामले में लड़की के पिता ने सरपंच मो. मुस्तकीम सहित सात लोगों को नामजद किया है।

लड़की के परिवार के गोतिया जाकिर बताते हैं, “सच बात यह है कि दोनों परिवारों के बीच जमीन विवाद का मसला चल रहा है। लेकिन उस दिन तो ऐसी कोई बात नहीं थी। औरतों के बीच लड़ाई हो रही थी। इसमें भीड़ लाकर किसी दूसरे के घर पर हमला करना कौन सी मर्दानगी है। पता नहीं उस दिन की लड़ाई को क्यों जमीन विवाद से जोड़ा जा रहा?”
इस घटना के बाद आसमीन के भविष्य को लेकर अनिश्चितता बढ़ गई है। नाक कट जाने के चलते वह और उसका परिवार सदमे में है कि अब उससे शादी कौन करेगा और इस स्थिति में वह सार्वजनिक जगहों पर कैसे जा सकेगी।
पीड़िता की चाची रोते हुए बताती हैं, “इस सारी लड़ाई में उस लड़की की क्या गलती है? लड़ाई पहले भी होती थी, लेकिन इस तरह 30-40 लोग लेकर किसी के घर चले जाना और बच्ची का नाक काट देना काफी शर्मनाक है। क्या सरपंच अब अपने बेटे या भतीजा से इस लड़की की शादी कराएगा?”
क्या कहते हैं सरपंच व पुलिस
लगातार चार बार से पंचायत के सरपंच मो. मुस्तकीम खुद पर लगे आरोपों को खारिज करते हुए ‘मैं मीडिया’ को बताते हैं, “वे लोग मेरी छवि खराब करने की कोशिश कर रहे हैं। यह सारी घटना चुनावी रंजिश और जमीन विवाद को लेकर है ना कि रेप और लूटपाट को लेकर। मेरे विरोध में खड़ा हुआ सरपंच प्रत्याशी फिरोज आलम और पंचायत समिति प्रत्याशी भी इस सारे कांड में शामिल हैं। चुनाव के बाद गांव का माहौल ही बदल चुका है। लड़की का पिता मोहम्मद मुर्तजा सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा कर दीवार बना रहा था। इस बात की शिकायत मैंने सीओ से भी की थी।”

“साथ ही इस घटना से पहले तीन लड़कियाें को गलत हरकत करते मेरे परिवार के लड़कों ने पकड़ा था। इसके बाद से ही साजिश और गुटबाजी का खेल शुरू हो गया था। 19 मार्च को मैं उसके घर पहुंचा तो वे लोग अपशब्द कहने लगे और मारपीट की। उस बच्ची के नाक काटने का आरोप बेबुनियाद है। सब साजिश का एक हिस्सा है। हमारे भी सात लोग घायल हो चुके हैं। लेकिन मीडिया और अखबारों में इस बात को कहीं भी दिखाया नहीं जा रहा है। कोई भी मीडिया मेरा पक्ष नहीं रख रहा है,” सरपंच बताते है।
सदर थानाध्यक्ष मनोज महतो ने घटना के संबंध में कहा, “पीड़िता के पिता की शिकायत पर केस दर्ज कर पुलिस कार्रवाई में जुट गई है। सरपंच की ओर से भी थाने में शिकायत दर्ज कराई गई है। जिसके अनुसार उन पर और उनके समर्थकों पर भाला और लाठियों से हमला किया गया। इस हमले में तीन लोग घायल हो गए हैं। हम लोग सभी पहलुओं की जांच कर रहे हैं। आरोपी जल्द से जल्द सलाखों के भीतर होंगे।”
पंचायत चुनाव के बाद क्या वर्चस्व का संघर्ष बढ़ा है?
गांव के 65 वर्षीय जैबार बताते हैं, “चुनाव के बाद से ही गांव में दो गुट बन चुका है। इस सारी घटना से पहले सरपंच और पीड़िता के परिवार के बीच जमीन विवाद का मामला भी चल रहा था। कुछ दिन पहले ही दोनों गुटों के बीच लड़ाई भी हुई थी, जिसमें 7 लोगों का सर फूट गया था। आज जो हुआ, इस नफरत का बीज चुनाव के बाद ही बोया जा चुका था।”
बिहार में पिछले साल हुए पंचायत चुनावों के बाद अब तक 6 मुखिया की हत्या हो चुकी है। कई वार्ड मेंबर भी मारे गए हैं। वार्ड सचिव के चुनाव को लेकर कई जगह मारपीट का सिलसिला लगातार जारी रहा। वार्ड मेंबर के वित्तीय अधिकारों में हुई बढ़ोतरी के चलते अब तक बेमतलब पद समझे जाने वाले वार्ड मेंबर और पंच के लिए चुनावी संघर्ष तेज हो गये।

सुपौल जिले के सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी आरके मिश्रा भागलपुर पुलिस अधिक्षक और दरभंगा में आईजी पद पर लंबे समय तक कार्य कर चुके हैं। आरके मिश्रा ‘मैं मीडिया’ से बताते हैं, “पंचायत चुनाव में पहले भी बाहुबल और धनबल का खेल होता था। लेकिन इस चुनाव ने सबको पीछे छोड़ दिया है। ग्राम पंचायतों के विकास के लिए सरकार की तरफ से फंड की व्यवस्था पहले से ज्यादा की गई है। साथ ही कोरोनावायरस की वजह से देश में बेरोजगारी चरम पर है। इन दोनों वजहों ने बिहार पंचायत चुनाव को युद्ध मैदान बना कर छोड़ दिया है। इन सब के बावजूद इस बार पंचायत चुनाव में 80 से 90% नए मुखिया बनकर आए हैं।”
वहीं, बिहार की राजनीति को नजदीक से जानने वाले ‘केवल सच’ पत्रिका के संपादक बृजेश मिश्रा कहते हैं,”पहले वार्ड चुनाव में कोई दिलचस्पी नहीं लेता था। लोग निर्वरोध चुने जाते थे, लेकिन इस बार बहुत लोग खड़े हुए। इस सब के बाद वार्ड सचिव का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से कराने के फैसले ने गांवों के माहौल को और बिगाड़ दिया है। आज बिहार का शायद ही कोई ऐसा गांव है, जहां मतभेद अपने चरम सीमा पर नहीं हो।”