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गाँधी जयंती – बिहार से क्या है महात्मा गाँधी का सम्बन्ध

बिहार का चंपारण (Champaran) ही वह भूमि है जहाँ गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह (Satyagrah) और अहिंसा के अपने आजमाए हुए अस्र का भारत में पहला प्रयोग किया था। यहीं उन्होंने यह भी तय किया कि वे आगे से केवल एक कपड़े पर ही गुजर-बसर करेंगे। इसी आंदोलन के बाद उन्हें 'महात्मा' की उपाधि से नवाजा गया था।

Seemanchal Library Foundation founder Saquib Ahmed Reported By Saquib Ahmed |
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पूरी दुनिया को अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले महात्मा गाँधी (Mahatma Gandhi) की कल्पना क्या बिहार के बिना संभव है? अगर आपके दिमाग में ऐसा ही कोई सवाल घूम रहा है तो इसका जवाब है ” बिलकुल भी नही।” क्योंकि बिहार का चंपारण ही वह भूमि है जहाँ “मोहनदास करमचन्द गांधी” (Mohandas Karmchand Gandhi) लोगों के सामने “महात्मा गाँधी” बन कर सामने आये।


बिहार का चंपारण (Champaran) ही वह भूमि है जहाँ गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह (Satyagrah) और अहिंसा के अपने आजमाए हुए अस्र का भारत में पहला प्रयोग किया था। यहीं उन्होंने यह भी तय किया कि वे आगे से केवल एक कपड़े पर ही गुजर-बसर करेंगे। इसी आंदोलन के बाद उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि से नवाजा गया था।

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बिहार में महात्मा गाँधी

साल 1916 का दिसंबर महीना कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में गाँधी जी की मुलाकात एक सीधे-सादे लेकिन जिद्दी आदमी राजकुमार शुक्ल (Rajkumar Shukl) से होती है। राजकुमार शुक्ल गाँधी जी को चंपारण के किसानों की पीड़ा और अंग्रेजों द्वारा उनके शोषण की दास्तान सुनाते है उनसे इसे दूर करने का आग्रह करते है। गांधी जी पहली मुलाकात में इस कम-पढ़े लिखे शख्स से प्रभावित नहीं हुए और उन्होंने उसे टाल दिया। लेकिन राजकुमार शुक्ल के जिद्द और अपने गुरु राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले (Gopal Krishn Gokhale) के कहने पर 10 अप्रैल 1917 को बांकीपुर जंक्शन जिसे अब पटना जंक्शन के नाम से जाना जाता है पर उतरे। बिहार में यह उनका पहला कदम था। 15 अप्रैल को चंपारण पहुंचे। और, अगले दो ही दिन में चंपारण की गांधी-यात्रा संघर्ष के निर्णायक मोड़ पर आ गई। हालाँकि औपचारिक रूप से चंपारण सत्याग्रह 19 अप्रैल, 1917 से शुरू हुई।


चंपारण सत्याग्रह (Champaran Satyagrah) के अलावा बिहार से उनका सम्बन्ध बना रहा। बिहार विद्यापीठ की स्थापना गाँधी जी ने ही की थी। आजादी की घोषणा के बाद बिहार में हुए दंगे आदि को लेकर बापू का लगातार पटना आना-जाना लगा रहा। गांधीजी पटना में कई दिनों तक रुके। आजादी के वर्ष में तो लगभग 40 दिनों तक वह बिहार में रहे थे।

मुंगेर की लाठी

आज प्रतीक के रूप में मशहूर हो चुकी महात्मा गांधी की लाठी मुंगेर में बनी थी। गांधी जी की वो लाठी जो अंतिम समय तक उनके साथ रही, वो उन्हें अप्रैल 1934 में बिहार के मुंगेर जो आज घोरघाट के नाम से जाना जाता है में मिली थी। उस वक्त गांधी जी बिहार में आए भूकंप के बाद पीड़ितों से मिलने गए थे।

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स्वभाव से घुमंतू और कला का समाज के प्रति प्रतिबद्धता पर यकीन। कुछ दिनों तक मैं मीडिया में काम। अभी वर्तमान में सीमांचल लाइब्रेरी फाउंडेशन के माध्यम से किताबों को गांव-गांव में सक्रिय भूमिका।

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