मैच के आखिरी ढाई मिनट में टीम 7-12 से पिछड़ रही थी तभी 18 वर्षीय एक लड़के ने गेंद हाथ में थामे एक लंबी दौड़ लगाई और गोल लाइन के उस पार गेंद को टच कर ‘ट्राई’ के पांच अंक लेकर स्कोर बराबर कर दिया। यह कोई स्पोर्ट्स फिल्म का क्लाइमेक्स नहीं बल्कि बिहार रग्बी अंडर 18 टीम की ऐतिहासिक जीत की कहानी है। 7-12 से पीछे रहते हुए सागर प्रकाश द्वारा एक बेहतरीन ‘ट्राई’ के बाद टीम के कप्तान गोल्डन कुमार ने एक सफल कन्वर्ज़न किक कर 2 प्वाइंट अर्जित कर लिए।
आखिरी 15 सेकंड में बिहार अंडर 18 को बस ओड़िशा अंडर 18 को कोई और स्कोर करने से रोकना था। मैच के आखिरी सेकंड एक ऐसा ही टैकल आया और आखिरी तीन मिनट में 7-12 से 14-12 तक पहुंच कर बिहार ने खेलो इंडिया यूथ गेम्स में पहला गोल्ड मेडल अपने नाम किया।
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खेलो इंडिया युथ गेम्स के सातवें संस्करण की मेज़बानी इस साल बिहार को मिली। 4 से 15 मई तक हुई इस राष्ट्रीय प्रतियोगिता में बिहार के पटना, गया, बेगूसराय, रजगीर में प्रतियोगिताएं आयोजित की गईं। इसके अलावा शूटिंग, जिम्नास्टिक और ट्रैक साइक्लिंग की प्रतियोगिताएं दिल्ली में आयोजित की गईं। पिछली बार बिहार के खिलाड़ियों ने महज 5 मेडल जीते थे, लेकिन इस बार बिहार के खिलाड़ियों ने कुल 36 मेडल हासिल किये। इनमें 7 स्वर्ण पदक शामिल थे।
इनमें से दो रग्बी में आये, जिसे पहली बार खेलो इंडिया यूथ गेम्स में शामिल किया गया था। पटना के पाटलिपुत्र कॉम्प्लेक्स में बीते 9 मई को बिहार की दो टीमों ने रग्बी में स्वर्ण पदक हासिल किये। रग्बी सेवेंस अंडर 18 गर्ल्स के फाइनल में बिहार ने ओड़िशा को 27-0 से हराया। वहीं, अंडर 18 बॉयज़ की टीम ने ओड़िशा को 14-12 से मात दी।
बिहार में रग्बी का कोई पुराना इतिहास नहीं रहा है। पिछले 5-6 सालों में राज्य में इस खेल को लेकर बड़ा बदलाव आया है। इस बदलाव को गहराई से समझने के लिए ‘मैं मीडिया’ ने खेलो इंडिया यूथ गेम्स 2025 में स्वर्ण पदक जीतने वाले कुछ रग्बी खिलाड़ियों से बात की। उन्होंने बताया कि जब 6-7 साल पहले उन्होंने खेलना शुरू किया था तब बिहार में रग्बी को लेकर कोई खास सुविधाएं नहीं थीं लेकिन अब राज्य में तस्वीर बदल चुकी है।
“खेलो इंडिया युथ गेम्स में हम एक तरह से पुराने खिलाड़ी थे। हमलोग इससे पहले अंतराष्ट्रीय स्तर पर बड़े बड़े लोगों से खेल चुके थे इसलिए थोड़ा आसान लग रहा था। सऊदी अरब, यूएई वाले मोटे-तगड़े खिलाड़ियों के साथ खेल चुके थे तो यहां हमारे लिए थोड़ा आसान रहा,” खेलो इंडिया यूथ गेम्स 2025 में गोल्ड जीतने वाली बिहार रग्बी टीम के खिलाड़ी रितेश रंजन ने कहा।
‘रोज़ घर पर मार खाते थे’
पटना में जन्मे 18 वर्षीय रितेश पिछले सात साल से रग्बी खेल रहे हैं। कुछ वर्ष पहले परिवार नालंदा आकर रहने लगा जहां रितेश ने कड़ी मेहनत से रग्बी में बड़े कदम लिए और भारत अंडर 18 में अपनी जगह बनाई। ताइवान और मलेशिया में जब भारत अंडर 18 दल रवाना हुई तो रितेश भी टीम के साथ थे।
“शुरू में हम पहले दो महीने तक घर में रग्बी के बारे में नहीं बताये थे। डेली खेलने जाते थे और घर आकर मार खाते थे। उस समय 11-12 साल के थे, रोड क्रॉस करने पर भी मार पड़ती थी। अब बिहार में रग्बी को लेकर माहौल बहुत बदल गया है। गार्जियन खुद बच्चे को ग्राउंड छोड़ने आते हैं। मेरे घर से कोई इतना दूर नहीं गया था। जब अंडर 18 एशिया रग्बी टूर्नामेंट खेलने मलेशिया गए तो काफी गर्व हुआ।”
रितेश जब पहली बार अंडर 14 प्रतियोगिता खेलने घर से दूर ओड़िशा जा रहे थे तो स्टेशन पर अपने माता पिता से नहीं मिले क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं पिता वापस घर लेकर न चले जाएँ।
“हमको डर था कि पापा मम्मी ट्रेन से उतार देंगे, इसीलिए हम उनसे नहीं मिले और ट्रेन में छिप गए। मेरे कोच गौरव चौहान सर मिलने गए उनसे और बोले कि रितेश नहीं आएगा। उस समय हम 13 वर्ष के थे।”
बिहारशरीफ निवासी रितेश के पिता किसान हैं और मां आंगनबाड़ी में काम करती हैं। घर वाले रितेश को रग्बी छोड़ पढ़ाई पर ज़ोर देने को कहते थे। जब यह पता चला कि खेल में अच्छा प्रदर्शन कर नौकरी भी मिल सकती है तो परिवार मान गया।
“मेरे चाचा इनकम टैक्स में जॉब करते हैं। वह मेरे पापा मम्मी को बताए कि उनके ऑफिस में स्पोर्ट्स वाला जॉब आता है। वह बताये कि पढ़ाई में नहीं हुआ तो खेलकर भी जॉब मिल सकता है,” रितेश ने कहा।
रितेश का सपना है कि वह भारतीय सीनियर टीम और रग्बी प्रीमियर लीग में खेलें। वह आजकल अपने क्लब में छोटे बच्चों को प्रशिक्षण भी दे रहे हैं।
कैसे गोल्डन गर्ल बनी नालंदा की अल्पना
रितेश और अल्पना कुमारी एक ही क्लब में रग्बी का अभ्यास करते हैं। अल्पना, बिहार रग्बी अंडर 18 की कप्तान हैं। उन्होंने 2019 में रग्बी खेलना शुरू किया तब परिवार को मनाना उनके लिए काफी कठिन था। अल्पना के पिता किसान और मां गृहिणी हैं।
अपने सफर के बारे में अल्पना कहती हैं, “हम पहले सिर्फ टच रग्बी खेलना शुरू किये। फिर टैकल भी खेलना शुरू किये तब घर वाले को मनाना बहुत मुश्किल हुआ। टैकल रग्बी का सुनकर घर वाले बोले कि कैसे खेलेगी, लड़की है, चोट लग जायेगी, दिक्कत होगी आगे जाकर। हम बोले कि हर चीज़ में कठिनाई है, अच्छे से खेलेंगे तो आगे जाएंगे तो मम्मी बोली ठीक है खेलो। फिर 2023 में भारत अंडर 18 के लिए खेले तो घर वाले बहुत खुश हुए और बहुत सपोर्ट किये।”
खेलो इंडिया यूथ गेम्स में अपनी कप्तानी में बिहार अंडर 18 गर्ल्स रग्बी टीम को स्वर्ण पदक जिताने वाली अल्पना का सपना है कि वह देश के लिए ओलिंपिक में पदक जीतें।
वह कहती हैं, “बिहार में पहली बार यूथ गेम्स हुआ तो हमलोग बहुत खुश थे। पूरा विश्वास था कि हमलोग मेडल जीतेंगे। फाइनल में ओड़िशा के खिलाफ मैच में 27-0 से जीते। पूरी प्रतियोगिता में एकतरफा ही जीते हमलोग। किसी टीम को स्कोर करने नहीं दिए। पहले ग्राउंड में एक या दो लड़की खेलती थी। हम इंडिया खेलकर आये, पेपर और टीवी में नाम आया तो बहुत बच्चियां फील्ड में आने लगीं हमको देख कर।”
अल्पना के लिए यह सफर उतना आसान नहीं था। उन्हें कई बार गंभीर चोटें भी आईं जिससे उभरने में काफी समय और पैसे भी लगे। पैर में लिगामेंट इंजरी हुई और फिर 2023 में भारत अंडर 18 खेलकर आईं तब कॉलरबोन टूट गया।
“कंधा टूटा तो मम्मी बोली बेटा तुमको बहुत चोट लग रही है तुम आगे मत खेलो, पहले जान ज़रूरी है। हम बोले उतने दिन से खेल रहे हैं तो अब कैसे छोड़ें, अब पढ़ाई में भी उतना फोकस नहीं लग पायेगा। उसमें तीन महीने रेस्ट करना पड़ा। तब लगा था कि हम दोबारा नहीं खेल पाएंगे, खाना पीना भी छोड़ दिए थे,” अल्पना बोलीं।
खेल का जूनून अल्पना को चार महीने बाद दोबारा मैदान में ले आया और उन्होंने फिर से एज ग्रुप रग्बी में बिहार और भारत का प्रतिनिधित्व किया। अल्पना का इलाज पटना के अपोलो अस्पताल में हुआ जिससे परिवार पर आर्थिक बोझ तो आया लेकिन बेटी की लगन देख परिवार उसके सपनों के साथ खड़ा रहा।
‘देश को गोल्ड दिलाना चाहते हैं’
खेलो इंडिया यूथ गेम्स के फाइनल में बेहद महत्वपूर्ण 5 अंक दिलाने वाले सागर प्रकाश को भी कई बार चोट से गुजरना पड़ा। पटना के बाढ़ में रहने वाले 18 वर्षीय सागर प्रकाश सात साल से रग्बी खेल रहे हैं। एक बार उन्हें टखने में चोट आई जिससे छह महीने तक मैदान से बाहर रहना पड़ा था।
सागर ने बताया कि बिहार अंडर 14 से खेलते हुए उन्होंने 2019 में पहली बार स्वर्ण पदक हासिल किया। वह दो बार भारत अंडर 18 के लिए खेल चुके हैं साथ ही बिहार सीनियर के लिए कांस्य पदक भी जीता है।
“पहले एक साल बहुत दिक्कतें हुईं। जब अंडर 14 में स्वर्ण पदक मिला तो घर से समर्थन मिलने लगा। अभी हम स्नातक की पढ़ाई कर रहे हैं। अब इस खेल में भी प्रतिस्पर्धा बहुत बढ़ गई है। शुरू में सफलता नहीं मिले तो छोड़ना नहीं चाहिए, लगे रहना चाहिए,” सागर ने कहा।
रग्बी के खेल में शारीरिक बनावट और खानपान का बहुत अहम रोल होता है। सागर हालांकि बहुत लंबे कद के नहीं हैं लेकिन उनकी लगन और क्षमता ने उन्हें अंडर 18 रग्बी चैंपियन टीम का स्टार खिलाड़ी बना दिया।
“मेरी हाइट 5’5 है। रग्बी में सिर्फ हाइट सबकुछ नहीं होती। मेहनत करेंगे तो कम हाइट वाले भी इसमें अच्छा कर सकते हैं। बाहर के भी ऐसे बहुत खिलाड़ी हैं जो कम हाइट के हैं लेकिन बहुत सफल हैं। अगर आपकी हाइट कम है तो अपना गेम ऐसा कर लें कि हाइट वाला भी वैसा न खेल सके। इस खेल में खाने पीने में बहुत लगता है। इसमें स्पीड चाहिए, शरीर का वज़न बनाये रखना पड़ता है, अच्छा खाना पड़ता है,” सागर ने कहा।
आगे उन्होंने कहा, “मेरा सपना है कि हम भारतीय सीनियर टीम में खेलें। बिहार सीनियर में तो ब्रॉन्ज आ गया है, अब हम चाहते हैं गोल्ड जीतें हमलोग बिहार के लिए।”
खेलो इंडिया यूथ गेम्स 2025 में विजेता बिहार टीम के कप्तान गोल्डन कुमार भी पटना के बाढ़ से आते हैं। 18 वर्षीय गोल्डन कुमार ने 13 साल की आयु में रग्बी खेलना शुरू किया। उन्होंने 2021 में पहली बार बिहार अंडर 18 के लिए खेलते हुए कांस्य पदक जीता, फिर 2022, 2023 में राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में बिहार अंडर 18 के लिए स्वर्ण पदक हासिल किया और पिछले महीने खेलो इंडिया यूथ गेम्स में कप्तान के तौर पर उन्होंने स्वर्ण पदक जीता।
गोल्डन कुमार के पिता किसान और मां गृहिणी हैं। उन्होंने बताया कि रग्बी खेलने के लिए खाने पीने और वर्कआउट के उपकरणों में अच्छा ख़ासा खर्च आता है। लेकिन उनके परिवार ने पूरा समर्थन किया जिससे वह बिहार और भारत अंडर 18 दल के न सिर्फ कप्तान बनें बल्कि बड़ी बड़ी सफलताएं भी हासिल कीं।
गोल्डन कुमार ने 2024 में इंडिया अंडर 18 की भी कप्तानी की थी हालांकि टीम कोई पदक जीतने में कामयाब नहीं हो सकी थी। गोल्डन आगे भारत सीनियर टीम के लिए खेलना चाहते हैं और वह रग्बी प्रीमियर खेलने के लिए भी लगातार मेहनत कर रहे हैं।
राज्य में रग्बी खेलने वाले बच्चों के लिए उन्होंने कहा, “बच्चे अगर रग्बी में आना चाहते हैं तो सबसे ज़रूरी है हार्डवर्क और डिसिप्लीन। किसी चीज़ में आपको आगे बढ़ना है तो उसमें समय देना पड़ेगा। जो भी काम आप कर रहे हैं उसको दिल से करना चाहिए तब सफल होने की ज़्यादा संभावना रहती है।”
राज्य सरकार के कामों की सराहना
हमने जिन चार खिलाड़ियों से बात की उन सब ने बिहार में रग्बी को लेकर बदलती सूरत पर प्रसन्नता जताई। इन खिलाड़ियों ने इसके लिए बिहार सरकार और बिहार रग्बी फूटबॉल एसोसिएशन की मेहनतों की सराहना की।
“बिहार में सर लोग बहुत सपोर्ट करते हैं तभी हमलोग इतने आगे बढे हैं। पंकज सर, डीजी सर (रवीन्द्रण शंकरण), गौरव भैया, इन सबकी वजह से बिहार में रग्बी का आज नाम हो रहा है,” बिहार अंडर 18 के कप्तान गोल्डन कुमार ने कहा।
अल्पना कुमारी, रितेश रंजन और सागर प्रकाश ने भी कहा कि बिहार में पहले के मुकाबले अब राज्य सरकार अधिक सुविधा दे रही है।
बिहार रग्बी फुटबॉल एसोसिएशन के महासचिव पंकज कुमार ज्योति ने हमें बताया कि 2012 में उन्होंने बिहार रग्बी फुटबॉल की शुरुआत की। तब उन्होंने एथलिट्स और फुटबॉल के खिलाड़ियों को जमा कर रग्बी की टीम बनाई। पहले पांच वर्ष अधिक सफलता नहीं मिली। सबसे बड़ी समस्या बच्चों को तकनीकी बारीकियों को सिखाने में आई। इस खेल में चोट लगने का काफी खतरा रहता है जो बच्चों को रग्बी सिखाने में बड़ी रुकावट साबित होती थी।
वह कहते हैं, “इसमें बहुत खराब इंजरी होती है। एक लिगामेंट टूट गया तो ढाई से तीन लाख रुपये का खर्च और एक साल बच्चे का बर्बाद। शुरू शुरू में खिलाड़ियों के माता पिता को मनाना पड़ता था कि इसको जाने दीजिये, खेलने दीजिये। पहले इस खेल में बिहार में कुछ नहीं था अब तो नौकरी मिल रही है। पिछले साल महिला सीनियर टीम की 12 की 12 दरोगा बन गईं। कुछ लड़के जूनियर में सेलेक्ट होकर अभी सचिवालय में क्लर्क के तौर पर नौकरी कर रहे हैं।”
“आज भारतीय टीम में अगर महिला की टीम है तो उसमें भी चार पांच बच्चियां हमारी जाती हैं। अंडर 18 हो या अंडर 20 या सीनियर, महिला रग्बी में बिहार लगातार तीन-चार बार नेशनल चैंपियन हैं। पुरुष रग्बी सीनियर में हम उतने अच्छे नहीं थे लेकिन इस साल हमने कांस्य पदक जीता है। बिहार देश भर में छा रहा है,” पंकज कुमार ने आगे कहा।
बिहार रग्बी फुटबॉल एसोसिएशन के महासचिव की मानें तो बीते कुछ सालों में बिहार में रग्बी के लिए सरकारी स्तर से काफी बेहतरी लाई गई है। “बिहार राज्य खेल प्राधिकरण के महानिदेशक सह मुख्य कार्यकारी अधिकारी रवीन्द्रण शंकरण के आने के बाद काफी सुविधाएं दी गईं, विदेशी कोच भी उपलब्ध कराया गया। दो-दो महीने कैंप लगता है तो बच्चे एक साथ रहते हैं, अच्छा खाना पीना, अच्छा कोच (मिलता है), तो हमलोग अच्छा रिज़ल्ट दे रहे हैं,” उन्होंने कहा।
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