छात्रों, कर्मचारियों और प्रोफेसर्स के प्रतिनिधित्व पर सम्बन्धित सक्षम प्राधिकार की चुप्पी। किसी सामान्य सरकारी कार्यालय की तरह चल रहा विश्वविद्यालय कार्यालय।
बिहार विधान परिषद के सभापति ने पूर्णिया विश्वविद्यालय (पीयू) के अधिषद (सीनेट) में रिक्त पदों पर प्रतिनिधित्व के लिए अपने चार सदस्यों को मनोनीत किया है। इन चार सदस्यों में डॉ. संजीव कुमार सिंह, प्रो.(डॉ.) राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता, डॉ. अजय कुमार सिंह (सहरसा, मधेपुरा, सुपौल) व राजीव कुमार शामिल हैं।
बिहार विधान परिषद के कार्यकारी सचिव के अनुसार यह मनोनयन बृहस्पतिवार से प्रभावी मानी जाएगी। पूर्णिया विश्वविद्यालय सहित राज्य के अन्य विश्वविद्यालयों की अधिषद के 47 रिक्त पदों पर परिषद के सदस्यों का मनोनयन करने के साथ विश्वविद्यालयों को इस आशय की अधिसूचना जारी करने को कहा गया है।
महाविद्यालय और विश्वविद्यालय का सबसे महत्वपूर्ण घटक होने के बावज़ूद पूर्णिया विश्वविद्यालय सहित अन्य कई विश्वविद्यालय में छात्रों का प्रतिनिधित्व शून्य अथवा नगण्य है। कुछ विश्वविद्यालयों में ससमय छात्र-संघ चुनाव न होने के कारण अधिषद में छात्र-हित के मुद्दे गौण हो जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप दो मुख्य समस्या उत्पन्न होती है। पहला, परीक्षा व परीक्षापल प्रकाशन में विलम्ब, सत्र विलम्ब से चलना, गुणवत्ता रहित पढ़ाई व शोध और दूसरा, छात्रों में कुशल नेतृत्व के गुणों का समुचित विकास न हो पाना।
बिहार विश्वविद्यालय अधिनियम, 1976 की धारा 18 की उप-धारा 19 में छात्र संघ के पाँच सदस्यों को प्रतिनिधि सदस्य के रूप में चुने जाने का प्रावधान है। इसके अतिरिक्त अधिनियम की धारा 18 के उप-खंड 22 व 23 में एक साल के लिए कुलपति द्वारा मेधावी और खेल-कूद या सांस्कृतिक गतिविधियों में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले एक-एक छात्र या छात्रा को कुलपति द्वारा नामित करने का प्रावधान है।
चार सदस्यों के मनोनयन, अधिषद में छात्रों, कर्मचारियों व प्रोफेसर्स के पदों की रिक्ति के मसले पर पूर्णिया विश्वविद्यालय बनाओ संघर्ष समिति के संस्थापक व राजद जिला प्रवक्ता डॉ. आलोक राज कहते हैं कि, ‘’जिस तरह खिलजी ने बिहार के नालंदा विश्ववविद्यालय को तबाह किया, उसी तरह बिहार के विश्वविद्यालयों को एक बार फिर बर्बाद करने की साजिश रची जा रही है। यह सब बिहार के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा से वंचित रखने की कवायद है। पीयू के कुलपति मुख्यालय में कम, अपने आवास से विश्वविद्यालय का काम ज्यादा देखते हैं। इस मनोनयन के बाद यह देखना होगा कि मनोनीत सदस्य किस प्रकार विश्वविद्यालय में मची लूट-खसोट और अन्य अनियमितताओं पर लगाम लगाते हैं। अधिषद में कर्मचारियों, प्रोफेसर्स, बिहार विधान सभा के सदस्यों और छात्रों का मनोनयन होना शेष है। जब तक अधिनियम में वर्णित प्रक्रिया के तहत सभी तरह के सदस्यों का मनोनयन नहीं हो जाता, विश्वविद्यालय में मची यह लूट-खसोट जारी रहेगी।’’
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बिहार राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम 1976 की धारा 18 के तहत बिहार विधान परिषद के सभापति को विश्वविद्यालयों में चार प्रतिनिधि सदस्य मनोनीत करने की शक्ति देता है। उल्लेखित अधिनियम की धारा 21 अधिषद की शक्तियों और कार्यों से संबंधित है। विश्वविद्यालय से जुड़े सभी मामलों व सम्पत्तियों पर अधिषद का नियंत्रण होने के कारण यह विश्वविद्यालय की शीर्षस्थ निकाय मानी जाती है। महाविद्यालयों को संबद्धता प्रदान करना और छीन लेना, वार्षिक प्रतिवेदन, लेखा, ऑडिट प्रतिवेदन के सन्दर्भ में संकल्प पारित करने की शक्तियाँ अधिषद में निहित होती है।
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