अररिया का ग्रामीण कार्य विभाग इन दिनों सड़क के शिलान्यास के कई साल बीत जाने के बाद भी निर्माण कार्य पूरा नहीं किए जाने को लेकर चर्चा में है। ऐसी ही एक महत्पूर्ण सड़क है, जो दो प्रखंडों को जोड़ती है, पिछले 6 वर्षों से अधूरी पड़ी है। यह है अररिया प्रखंड की दियारी पंचायत के मजगामा से जोकीहाट के महजाली तक जाने वाली 3.67 किलोमीटर लंबी सड़क।
इसका शिलान्यास तत्कालीन सांसद मो तस्लीमुद्दीन ने वर्ष 2017 के जनवरी में किया था। करीब 2 करोड़ 56 लाख की लागत से बनने वाली इस सड़क का निर्माण वर्ष 2018 के जनवरी में ही पूरा किया जाना था, लेकिन 6 साल बाद भी इस सड़क का निर्माण नहीं हो पाया। निर्माण कार्य पूरा करने के बजाय संवेदक सड़क पर गिट्टी बिछाकर भूल गया। इस कारण क्षेत्र के लोगों को आवागमन के लिए टूटी-फूटी सड़क का इस्तेमाल करना पड़ता है। इस सड़क पर तीन छोटी छोटी पुलिया भी हैं, जो लगभग पूरी तरह से क्षतिग्रस्त नजर आती है।
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सड़क बनाने के लिए सिर्फ गिट्टी बालू ही गिराए गए
दियारी पंचायत के मुखिया प्रतिनिधि अमित कुमार मंडल ने बताया, “जब सड़क का शिलान्यास हुआ, तो हम लोगों को काफी आस जगी थी कि अब जोकीहाट के इस इलाके में आवागमन सुचारू रूप से हो पाएगा। 2017 के जनवरी में तत्कालीन सांसद तस्लीमुद्दीन ने सड़क का शिलान्यास किया और कुछ महीने तक तेजी से काम भी हुआ। गिट्टी बालू गिराए भी गए। लेकिन किस कारण से इस सड़क का काम छोड़ दिया गया आज तक पता नहीं चल पाया।” उन्होंने आगे कहा, “हम लोगों ने कई बार इस बात को लेकर विभागीय लोगों से पूछताछ भी की लेकिन कोई उचित जवाब नहीं मिल पाया। साल 2017 में ही सांसद तस्लीम उद्दीन का देहांत हो गया। तब से इस सड़क की किसी ने सुध नहीं ली।”
25 हजार की आबादी प्रभावित
सड़क नहीं रहने के कारण इस क्षेत्र जोकीहाट प्रखंड की भंसिया पंचायत का झौआरी, कोलटोल महजाली और महजाली तापूटोल गांव की लगभग 25 हजार की आबादी को तीन महीनों तक आवाजाही के लिए नाव पर ही निर्भर रहना पड़ता है। इन गांवों को बरसात के दिनों में परमान नदी चारों ओर से घेरे रहती है। स्थानीय ग्रामीण एखलाख, इसराईल, महफूज, हाशिम आदि ने बताया कि तीन महीनों तक हमलोगों की जिंदगी नर्क में बीतती है। गांव की चारों ओर पानी ही पानी रहता है। आवागमन के लिए नाव ही एक मात्र सहारा होती है। अगर कोई बीमार पड़ जाए तो उसका भगवान ही मालिक होता है।
ग्रामीणों ने बताया कि इस सड़क पर गांव तक पहुंचने के लिए तीन छोटे-छोटे पुलिया भी हैं, जो लगभग पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई हैं। सूखे के दिनों में इन रास्ते से जाया तो जा सकता है लेकिन बारिश के दिनों में यह नरक में तब्दील हो जाता है। “सड़क निर्माण से हम लोगों में काफी आस जगी थी कि इन पुलियों का भी निर्माण अच्छी तरह से हो जाएगा। लेकिन 2017 के बाद से आज तक यह सड़क उसी स्थिति में पड़ी है। अब इस सड़क को ना तो कोई पदाधिकारी देखते हैं, ना ही कोई जनप्रतिनिधि,” उन्होंने कहा।
बड़े वाहनों का नहीं होता परिचालन
अररिया प्रखंड की दियारी पंचायत के ग्रामीणों ने बताया कि यह सड़क पहले कुछ चलने के लायक भी था, लेकिन 2017 के अगस्त में आई प्रलयंकारी बाढ़ ने इस सड़क के साथ पुल पुलिया को भी पूरी तरह से क्षतिग्रस्त कर दिया। अब तो इस सड़क पर वाहन भी नहीं के बराबर चलते हैं, सिर्फ बाइक या साइकिल से ही आवागमन हो सकता है।
बांस के सहारे टिकी है पुलिया
इसी सड़क पर एक पुलिया का हाल देखकर शायद कोई भी आश्चर्यचकित होगा। बाढ़ के दिनों में इस छोटी सी पुलिया का किनारा क्षतिग्रस्त हो गया था, तो ग्रामीणों ने इसके बीम में बांस लगा दिया। अब उसी बांस से इस पुलिया का किनारा टिका हुआ है।
इसे देखकर डर भी लगता है और अचरज भी होता है। क्या इस पुलिया की स्थिति को देखने वाला कोई नहीं। अगर यह पुलिया कभी गिर गई तो हो सकता है आने-जाने वालों को काफी नुकसान भी पहुंचा दे।
चचरी पुल बनाना संभव नहीं
यह सड़क जिन गांवों को जोड़ती है, वहां 2 स्कूल हैं। पहला स्कूल उत्क्रमित मध्य विद्यालय वार्ड नंबर 10 के महजली जोकीहाट में है और दूसरा स्कूल प्राथमिक विद्यालय टापू टोल महजली जोकीहाट में स्थित है। अररिया प्रखंड के करीब होने के कारण इस दूसरे प्राथमिक विद्यालय में वहां के बच्चे भी पढ़ने जाते हैं। लेकिन इस स्कूल और अररिया प्रखंड की दियारी पंचायत को जोड़ने वाली सड़क पर बनी पुलिया का हाल बयां करना काफी मुश्किल है, क्योंकि यहां पुलिया है ही नहीं।
पुलिया साल 2017 की बाढ़ में पूरी तरह से बह गया। अब स्कूल के बच्चे पास के खेतों से होकर सूखे के दिनों में जाते हैं। बारिश के दिनों में यह रास्ता लगभग बंद हो जाता है। स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि यहां नाव की भी कोई व्यवस्था नहीं होने के कारण लोगों का आवागमन तीन से चार महीने पूरी तरह से ठप हो जाता है।
“अगर अररिया जिला मुख्यालय या जोकीहाट जाना हो तो मुश्किल से हम लोग जा पाते हैं, क्योंकि दूसरे रास्ते नहीं होने के कारण हम लोगों की जिंदगी नर्क जैसी हो जाती है। अगर यहां कोई बीमार पड़ जाए तो उसको अस्पताल तक ले जाने की भी व्यवस्था नहीं हो पाती है। ऐसे में बच्चों को स्कूल भेजने के लिए जोखिम लेने का सवाल ही नहीं उठता,” उन्होंने कहा।
“यह समस्या हम लोगों ने लगातार स्थानीय मुखिया, विधायक सभी के सामने उठाई। हम लोगों ने कहा कि कम से कम पुलिया का निर्माण कर दिया जाए, ताकि हम लोग किसी तरह आवागमन तो कर लें।”
ग्रामीणों ने बताया कि अगर टूटी हुई सड़क की दूरी कम होती तो हम लोग बांस की चचरी का पुल ही बना लेते। लेकिन, यह हिस्सा काफी लंबा और गहरा है इसलिए यहां चचरी पुल बनाना संभव नहीं, इसलिए दूसरे के खेतों से होकर ही आवागमन किया जाता है।
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