पिछले दिनों बिहार सरकार ने कोसी, मसान, बागमती और गंडक नदियों पर पांच बराज बनाने की घोषणा की। ये घोषणा बिहार में भीषण बाढ़ आने से ठीक एक महीने पहले की गई थी और इन प्रस्तावित बराजों को बाढ़ का समाधान बताया गया था।
30 अगस्त को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर जल संसाधन विभाग के मंत्री विजय कुमार चौधरी ने बताया कि बिहार, भौगोलिक रूप से कोई भाग्यशाली प्रदेश नहीं रहा है और सूबे का 73 प्रतिशत क्षेत्र बाढ़ प्रवण है। बिहार को नियमित तौर पर बाढ़ की समस्या झेलनी पड़ती है, ये गंभीर समस्या है और जिसके कारण राज्य की अर्थव्यवस्था पर बहुत असर पड़ता है।
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“बाढ़ नियंत्रण का जो स्वीकार्य तरीका है, यानी कि तटबंधों का निर्माण, वो काम तो हो ही रहा है, लेकिन जब पानी बहुत ज्यादा बढ़ जाता है, तो चुनौती बन जाती है। बिहार हर नदी के निम्न प्रवाह में है, तो हमको कठिनाइयां झेलनी पड़ती है। नेपाल में पानी अधिक होता है, तो वो घूमकर बिहार में आता ही है,” उन्होंने कहा।
आगे उन्होंने कहा कि स्वीकार्य तरीकों के अलावा बिहार सरकार बराज बनाने पर भी काम कर रही है। उन्होंने सरकारी इंजीनियरों के अध्ययन का हवाला देते हुए कहा, “हमारे अभियंताओं ने अध्ययन करके बराज का प्रस्ताव दिया है।”
सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक, सूबे के पूर्वी चम्पारण जिले में अरेराज के निकट गंडक नदी, सुपौल जिले में डगमारा के निकट कोसी नदी, पश्चिम चम्पारण जिले में मसान नदी पर बनबारी गांव के निकट और सीतामढ़ी जिले में बागमती नदी पर ढेंग और कटौझा के निकट बराज बनाने की योजना है।
इन सभी प्रोजेक्ट के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार करने के वास्ते आमंत्रण पत्र जारी किया जा चुका है। दस्तावेज बताते हैं कि बिहार सरकार ने डीपीआर तैयार करने में कंसल्टेंसी सेवा देने वाली कंपनियों से प्रस्ताव मांगा था, जिसे 26 अक्टूबर तक जमा कर दिया जाना था।
विश्व बैंक और केंद्र के पैसे का इस्तेमाल
हालांकि, इन प्रोजेक्ट्स में केंद्र सरकार की कोई भूमिका नहीं है, लेकिन मंत्री विजय कुमार चौधरी ने कहा है कि केंद्र सरकार की तरफ से मिलने वाली आर्थिक मदद का इस्तेमाल बराज बनाने में किया जाएगा।
गौरतलब हो कि केंद्रीय बजट में अन्य बाढ़ नियंत्रण स्कीमों के लिए 11500 करोड़ रुपये के प्रावधान को मंजूरी मिली है। पीआईबी की प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक, बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था, “हमारी सरकार, त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम और अन्य स्रोतों के माध्यम से 11500 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से कोसी-मेची अंतरराज्यीय लिंक और बैराजों, नदी प्रदूषण न्यूनीकरण और सिंचाई परियोजनाओं सहित 20 अन्य चालू और नई परियोजनाओं के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराएगी।”
बिहार सरकार दावा कर रही है कि इन बराज के जरिए बिहार में बाढ़ की विभीषिका को कम किया जा सकता है, लेकिन सवाल है कि क्या सच में ऐसा हो सकता है? और बराज के साथ गाद की एक बड़ी समस्या जो उत्पन्न होती है, उसका समाधान क्या होगा?
जानकार बताते हैं कि बराज कभी भी बाढ़ को नियंत्रिय नहीं कर सकते हैं और कहीं भी बराज को बाढ़ के समाधान के तौर पर नहीं देखा जाता है।
नदी विशेषज्ञ दिनेश मिश्र कहते हैं, “कहने को तो कोई, कुछ भी बोल सकता है, लेकिन सच ये है कि बराज कभी भी बाढ़ को नियंत्रित नहीं कर सकता है और न ही इसका निर्माण बाढ़ नियंत्रण के लिए किया जाता है। नदी से कनाल निकाल कर बराज के जरिए बिजली पैदा की जा सकती है, सिंचाई का इंतजाम हो सकता है, बाढ़ नियंत्रण नहीं हो सकता है।”
“अगर बराज से बाढ़ नियंत्रित हो जाती, तो कोसी बराज से बाढ़ क्यों नहीं रुक गई? सरकार ने पूर्वी और पश्चिम कनाल में कोसी का पानी क्यों नहीं डाल दिया?,” वह पूछते हैं।
फरक्का बराज तोड़ने की मांग, पर खुद बना रहे बराज
गौरतलब हो कि गंगा नदी पर बने फरक्का बराज के चलते बिहार में गंगा नदी में गाद एक बड़ी समस्या बनकर उभरी है क्योंकि बराज के चलते गर्मियों में जब पानी की रफ्तार धीमी होती है तो पानी के साथ गाद बह नहीं पाती है। इससे बिहार में गंगा से बाढ़ का संकट विकराल हुआ है।
फरक्का बराज का निर्माण वर्ष 1975 में हुआ था। इस बराज से होने वाली समस्या को उस समय के इंजीनियर कपिल भट्टाचार्य ने भांप लिया था, जो उस वक्त पश्चिम बंगाल सरकार के सिंचाई निदेशालय में कार्यरत थे। उन्होंने कहा था कि गर्मी के मौसम में हुगली नदी (पश्चिम बंगाल में गंगा नदी को हुगली नदी के नाम से जाना जाता है) का जलस्तर घट जाएगा, जिससे गाद हटने की जगह उल्टा जमेगा, जिससे बिहार में गंगा से बाढ़ का असर बढ़ेगा। कालांतर में उनकी आशंका सही साबित हुई।
साल 2019 के अक्टूबर महीने में राजधानी पटना भीषण बाढ़ की जद में आ गई थी और इसकी एक बड़ी वजह गंगा नदी में गाद का इकट्ठा होना था। बाढ़ के चलते कुछ इलाके कई दिनों तक जलमग्न रहे थे। उस वक्त तत्कालीन जल संसाधन मंत्री संजय झा ने स्पष्ट शब्दों में कहा था, “फरक्का बराज के ऊपरी हिस्से में इतनी गाद जम गई है कि इसकी वजह से पानी की निकासी नहीं हो रही है और वह चारों तरफ फैल रहा है। ये समस्या आगे बढ़ेगी ही इसका समाधान नहीं हुआ, तो बिहार का ये हिस्सा (गंगा से सटा हुआ) पूरी तरह बर्बाद हो जाएगा। इसलिए मेरा मानना है कि या तो फरक्का बराज को पूरी तरह तोड़ दिया जाए या उसे निष्क्रिय कर दिया जाए।”
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी संजय झा की ही तरह फरक्का बराज को ढाह देने की तरफदारी कर चुके हैं।
साल 2016 में जब सूबे के एक दर्जन जिले गंगा की बाढ़ की गिरफ्त में थे, तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि 12 जिलों में बाढ़ की वजह गंगा नदी की तलहटी में गाद का इकट्ठा होना है। उन्होंने कहा था, “गाद जमने की ये स्थिति फरक्का बराज का नतीजा है। गंगा नदी से गाद हटाने का एक ही उपाय है – फरक्का बांध को हटा देना।”
यहां ये भी बता दें कि बिहार में फिलहाल 9 बराज हैं। अगर इनसे बाढ़ नियंत्रण हो पाता तो अभी राज्य का एक बड़ा हिस्सा बाढ़ प्रवण नहीं होता। लेकिन, आंकड़े बताते हैं कि 1954 में बिहार का केवल 25 लाख हेक्टेयर क्षेत्र बाढ़ प्रवण था, जो अब बढ़कर 68 लाख हेक्टेयर यानी लगभग तीन गुना हो गया है।
मुख्यमंत्री खुद भी ये मान रहे हैं कि बराज से बाढ़ का समाधान नहीं हो सका है तो फिर उनकी सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर चार नदियों पर बराज क्यों बना रही है?
कोसी नवनिर्माण मंच के संस्थापक महेंद्र यादव बिहार सरकार के बराज बनाने के फैसले को सरकार की दोहरी नीति बताते हैं।
वह कहते हैं, “यही सरकार फरक्का बराज को तोड़ देने की वकालत करती है और यही सरकार पांच बराज बनाने का फैसला लेती है। ये सरकार की दोहरी नीति है।”
“कोसी तटबंध निर्माण के बाद कोसी नदी की जलग्रहण क्षमता 9.50 लाख क्यूसेक है, लेकिन इस साल 6.80 लाख क्यूसेक पानी से ही कोसी नदी भर गई थी, इसका साफ मतलब है कि कोसी नदी में भारी गाद जमा हुआ है, जिसके चलते उसकी जलग्रहण क्षमता तीन लाख क्यूसेक कम हो गई है। यही हाल उन सभी नदियों का होगा, जहां बराज बनाने का प्रस्तात है,” उन्होंने कहा।
बराज बनाने के प्रस्ताव को नदी और प्रकृति के साथ छेड़छाड़ बताते हुए वह कहते कि केवल ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने के लिए नदियों के साथ सरकार खिलवाड़ कर रही है।
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