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पिता का सपना, बेटी का संकल्प: BPSC परीक्षा में सफल होने वाली पहली मुस्लिम सुरजापुरी महिला

बाप के सपने और बेटी की मेहनत की अनूठी दास्तान है किशनगंज से बीपीएससी परीक्षा में सफल होने वाली पहली मुस्लिम लड़की नरगिस की कहानी।

Tanzil Asif is founder and CEO of Main Media Reported By Tanzil Asif |
Published On :
First Muslim Surjapuri Woman To Qualify BPSC

बाप के सपने और बेटी की मेहनत की अनूठी दास्तान है किशनगंज से बीपीएससी परीक्षा में सफल होने वाली पहली मुस्लिम लड़की नरगिस की कहानी। और उसके पास है सुरजापुरी बिरादरी के लिए एक अहम् सन्देश।

पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।
अनगिनत राही गए
इस राह से उनका पता क्या
पर गए कुछ लोग इस पर
छोड़ पैरों की निशानी

हरिवंश राय बच्चन की ‘पथ की पहचान’ उसे प्रेरणा देती है, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ उसके प्रिय कवि हैं और इन्हे प्रेमचंद, इलाचंद्र जोशी और मन्नू भंडारी और कई अन्य लेखकों की कहानियाँ पसंद है l उनकी कभी न खत्म होने वाली हिंदी लेखकों की फेहरिस्त में मोहन राकेश एक खास स्थान रखते हैं, अपनी लेखनी में मध्यम वर्ग और निम्न-मध्यम वर्ग का जीवंत वर्णन करने के लिएl इनका दावा है कि इन्होने अपने कॉलेज के पुस्तकालय की हिंदी की सारी किताबें पढ़ी है, और घर में जगह की कमी एकमात्र वजह है जो इन्हे घर को पुस्तकालय में तब्दील करने से रोक रही है।


नरगिस मुस्लिम बहुल क्षेत्र किशनगंज की बिहार लोक सेवा आयोग की परीक्षा में सफलता पाने वाली पहली मुस्लिम महिला है। किशनगंज का सुरजापुरी समुदाय, जहाँ लड़कियों की स्कूली शिक्षा सिर्फ उनके लिए एक अच्छा पति या सरकारी विद्यालय में शिक्षिका पद पाने का माध्यम मात्र है, वहां नरगिस एक अनोखी मिसाल है l वो जल्द ही वाणिज्य कर अधिकारी बनने जा रही है।

एक सैनिक की पुत्री होने के कारण वो शुरू से ही बिहार की गिरती शिक्षा व्यवस्था से बची रही, उसकी पढ़ाई मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा स्थापित केंद्रीय विद्यालय में हुईl केंद्रीय विद्यालय उनके जीवन में बना रहा, बदलते रहे तो बस उनके शहर क्योंकि भारतीय सेना में होने के कारण उसके पिता मोहम्मद अकबर अलग-अलग जगह तैनात होते रहे l साम्बा (जम्मू कश्मीर), सिकन्दराबाद (आंध्र प्रदेश), बिन्नागुड़ी (पश्चिम बंगाल), किशनगंज (बिहार), जालंधर (पंजाब) से अपना स्कूली जीवन ख़त्म करते-करते इन्हे भारत की सांस्कृतिक और विविधिता का बहुत अनुभव मिल चुका था।

नरगिस कहती है

जितना ज़्यादा आप घूमते हैं, उतना ज़्यादा आप सीखते हैं”, वो अपनी सेना वाली ज़िन्दगी को अपने व्यक्तित्व निर्माण का बहुत अहम कारण मानती और शायद इसी वजह से उनका बिहार लोक सेवा आयोग के साक्षात्कार बहुत आसान रहे और पहले प्रयास में ही सफलता प्राप्त कर ली l

नरगिस कहती है “ये मेरे पापा का सपना थाl अगर मेरा बस चलता तो मैं फ़ौज में जाती, यूनिफार्म में महिलाएं ख़ूबसूरत लगती हैं l” इनकी कहानी एक पिता के सपने और एक बेटी की मेहनत की कहानी है l राजस्थान के भरतपुर से उनके पिता की सेवानिवृति के बाद उनका परिवार उनके मास्टर्स की पढ़ाई के लिए जालंधर वापस चला आयेl अपनी पेंशन की प्रक्रिया पूरी होने के इंतज़ार में और आमदनी का कोई जरिया न होने के कारण इनके पिता अकबर पहले एक इस्पात कारखाने में और उसके बाद एक शोरूम में भी काम करना पड़ा। जब मेहनत रंग नहीं लाई तो वो घर वापस आ गए l नरगिस दिल्ली जाकर लोक सेवा परीक्षाओं की तैयारी करना चाहती थी, पर उसके परिवार को ये सुरक्षित नहीं लगा, और उन्होंने नरगिस को पटना भेज दिया l वो हँसते हुए कहती है “नहीं मामा से काना मामा भला” होता हैl

नरगिस के कोचिंग संस्थान के शिक्षक उन्हें लेकर बहुत आश्वस्त थे, पर जैसा हमेशा होता है, कुछ लड़के ये बर्दाश्त नहीं पाते की एक लड़की उनसे आगे निकल जाएl नरगिस याद करती है कि कैसे पिछली सीटों में बैठने वाले लड़के इन पर फब्तियां कसते और किशनगंज के पारंपरिक खान-पान और कपड़ों के कारण उन्हें ‘आदिवासी’ और ‘रिफ्यूजी’ जैसे आपत्तिजनक शब्दों से मनोबल तोड़ने की कोशिश करते थे।

उसकी माँ शहनाज़ कक्षा 6 तक पढ़ी हुई है और एक घरेलू महिला है l जब भी नरगिस रात तक पढ़ाई करती तो वो कुरान लेकर रात भर उसके साथ बैठतीं l जब नरगिस पटना चली गयी तो वो इनसे फ़ोन पे बातें करतीं, उसे हिम्मत देती और उनका दुःख-दर्द बांटती l नरगिस अपनी माँ के बारे में कहती है “वो मेरी प्रिय सहेली है”l शहनाज़ को लोग अक्सर परेशान करते, पूछते “बेटी की शादी कब करा रही हो?” “बेटी की कमाई खाना चाहती हो?” पर शहनाज़ पे इन रूखी बातों का कोई असर नहीं होता और वो अपनी बेटी के लिए दुआएं मांगती रहती l

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दो साल तक तैयारी करने के बाद नरगिस ने मार्च 2015 में प्रारंभिक परीक्षा दी l उसी वर्ष नवंबर में उनका परिणाम आयाl मुख्य परीक्षा जुलाई 2016 में हुई और उसका परिणाम दो वर्ष बाद फरवरी 2018 में आयाl नरगिस कहती है “ये बहुत मुश्किल वक्त था पर मेरे अम्मी-अब्बू मेरे साथ थे l”

नरगिस याद करती है कि एक बार उसने अपनी माँ को फ़ोन पे कहा कि परिणामों को लेकर वो डरी हुई है l उनके पिता 386 किलोमीटर का किशनगंज से पटना का फासला तय करते हुए अगली सुबह उनके सामने थे, और शिक्षकों के माना करने के बावजूद भी वो उसे घर वापस ले आये l अंतिम परिणामों के आने के बाद उन्होंने अपने अब्बू से मज़ाक करते हुए कहा कि वो असफल हो गयी है। उनके पिता अकबर तुरंत घर वापस आये और उनसे कहा “कोई बात नहीं, तुम फिर से कोशिश करना l”

हर सफल पंथी यही
विश्वास ले इसपर बढ़ा है
तू इसी पर आज अपने
चित का अवधान कर ले

इस सफलता के बाद नरगिस ने अपने समुदाय में खुद को एक मिसाल के तौर पर स्थापित किया है l एक बारहवीं कक्षा की टॉपर इनके नक़्शेकदम पर चलना चाहती हैl कुछ लड़के जो अपनी कोचिंग की पढ़ाई में लगने वाले पैसों के लिए चिंतित थे, वो भी इनसे मिलेl वे लड़कियां जिनकी शादी बहुत जल्दी हो गई, इस बात पर पछताती हैं कि वो अपने अभिभावकों के सामने अपने सपनों को पूरा करने के लिए खड़ी नहीं हो पाईं l वे दोस्त जिन्होंने बीच में सब कुछ छोड़ दिया था, उन्होनें एक बार फिर से लोक सेवा परीक्षाओं की तैयारी शुरू कर दी है। वो गाँव वाले जो प्रतियोगी परीक्षाओं से बिल्कुल अनजान थे, अब अपने बच्चों के साथ उनसे मिलने आते हैं।

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तंजील आसिफ एक मल्टीमीडिया पत्रकार-सह-उद्यमी हैं। वह 'मैं मीडिया' के संस्थापक और सीईओ हैं। समय-समय पर अन्य प्रकाशनों के लिए भी सीमांचल से ख़बरें लिखते रहे हैं। उनकी ख़बरें The Wire, The Quint, Outlook Magazine, Two Circles, the Milli Gazette आदि में छप चुकी हैं। तंज़ील एक Josh Talks स्पीकर, एक इंजीनियर और एक पार्ट टाइम कवि भी हैं। उन्होंने दिल्ली के भारतीय जन संचार संस्थान (IIMC) से मीडिया की पढ़ाई और जामिआ मिलिया इस्लामिआ से B.Tech की पढ़ाई की है।

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