पूर्णिया में राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय और अस्पताल (जीएमसीएच) निर्माणाधीन है। लाइन बाजार के रास्ते गुजरते हुए ऊँचे-ऊँचे नवनिर्मित भवनों को देखा जा सकता है। मुख्य प्रवेश द्वार से चंद कदमों की दूरी पर स्थित ऑक्सीजन प्लांट, बदल रहे सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतरी का आभास करा सकते हैं। इससे इतर जीएमसीएच की कुछ सच्चाई बेहतरी के सरकारी प्रयासों पर बट्टा लगाती दिखती है।
राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय और अस्पताल (जीएमसीएच) में सुरक्षा, सफाई व अन्य सेवा मुहैया कराने के लिए निविदा जारी की गई। जीएमसीएच की चयन समिति ने सामनन्ता सिक्योरिटी एंड इंटेलिजेंस सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड को सुरक्षा, सफाई व अन्य सेवा मुहैया कराने के लिए अन्य सभी निविदाकर्ताओं से बेहतर माना।
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दरअसल, निविदा हासिल करने के लिए सामनन्ता सिक्योरिटी एंड इंटेलिजेंस सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड ने 0.0001 रुपए के सेवा शुल्क का प्रस्ताव दिया था। इसके विरोध में प्रतिस्पर्धी कंपनी निशांत सिक्योरिटी एंड अलाइड सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड ने चयन समिति द्वारा गलत ढंग से किसी कम्पनी को लाभ पहुंचाने की शिकायत की। उनकी शिकायत का आधार निविदा हासिल करने वाली कम्पनी द्वारा प्रस्तावित और चयन समिति द्वारा स्वीकृत 0.0001 रुपए का सेवा शुल्क था। उनका मानना है कि प्रस्तावित राशि की न तो गणना की जा सकती है, ना ही उसे अक्षरों में लिखा जा सकता है।
बचाव में जीएमसीएच, पूर्णिया के अधीक्षक डॉ. अरुण कुमार ठाकुर ने बताया, “निविदा हासिल करने वाली कम्पनी के द्वारा प्रस्तावित सेवा शुल्क, दैनिक पारिश्रमिक (डेली वेजेस) आधारित है, जिसकी गणना मासिक आधार पर की जाएगी। सरकार को अधिक नुकसान न हो, इसके लिए न्यूनतम दर की बोली लगाने वाली कम्पनी को निविदा दी गयी।”
जीएमसीएच, पूर्णिया में निविदा जारी होने, रद्द होने और सफलतापूर्वक संचालित होने की कहानी में हास्य, व्यंग्य, विनोद और विस्मय के अंश की मौजूदगी रहती है। पूर्व सिविल सर्जन एसके वर्मा ने अपने रिश्तेदार को निविदा के लिए योग्य मान खूब सुर्खियां बटोरी। इससे अलग निविदा प्राप्त करने वाली संस्थाओं के कामकाज की सतत निगरानी, निविदा के शर्तों के अनुपालन के प्रति प्रतिबद्धता बेहद जरूरी लेकिन उपेक्षित मुद्दा है।
मौजूदा वक्त में जीएमसीएच के पास मरीजों के बेड की चादर, तकिया-खोल, पर्दों आदि की धुलाई के लिए न्यूनतम मानदंडों तक का पालन नहीं हो पा रहा है। जीएमसीएच, पूर्णिया आज भी सफाई के लिए धोबी खाना, मशीन, इस्त्री जैसी न्यूनतम जरूरतों की आपूर्ति की बाट जोह रहा है। बोली लगाने वाली संस्थाएं निविदा पाने के लिए न्यूनतम दर ऑफर करती हैं, लेकिन सेवा आपूर्ति में कोताही, बदइंतजामी, लापरवाही के जरिये मुनाफा अर्जित कर फारिग हो जाती है।
बीते साल, ग्रामीण विकास व समाज कल्याण समिति के नाम से जानी जानेवाली संस्था ने निविदा हासिल करने के बाद बदइंतजामी के साथ कपड़ों की धुलाई का काम किया था। जीएमसीएच में एफएस वार्ड, एमएस वार्ड, बर्न वार्ड, एसएनसीयू, बच्चा वार्ड, पीओपी, लेबर रूम, एफएम वार्ड, एमएम वार्ड, ईआर वार्ड, ऑर्थो व ओटी, जीओटी, ब्लड बैंक, ट्रॉमा केंद्र, एनआरसी की चादर, परदे व तकिया-खोल की धुलाई की जाती है। हितधारकों द्वारा इसका दैनिक हिसाब रखा जाता है और मास के अंत में विभिन्न वार्डों के धुले कपड़ों की कुल संख्या की गिनती कर ‘धुले कपड़ों की मासिक रिपोर्ट’ तैयार की जाती है। इस पर कुछ नर्स अथवा अटेंडेंट के हस्ताक्षर के बाद ठेका प्राप्त करने वाली संस्था पारिश्रमिक भुगतान के लिए जीएमसीएच के संबंधित प्राधिकार को अग्रसारित कर भुगतान प्राप्त करती है।
ग्रामीण विकास व समाज कल्याण समिति ने अक्टूबर 2022 की पारिश्रमिक के भुगतान के लिए जिस ‘मासिक धुले कपड़ों की रिपोर्ट’ सौंपी, वह त्रुटियुक्त, वास्तविकता से परे व अतिरंजित है।
तालिका: माह अक्टूबर, 2022 में वास्तविक धुले कपड़ों व धुले कपड़ों की मासिक रिपोर्ट में अंकित कपड़ों की अतिरंजित संख्या की तुलना
जीएमसीएच में वार्ड – धुले कपड़ों की वास्तविक संख्या(धोबी के रिकॉर्ड से) –
जीएमसीएच में वार्ड – धुले कपड़ों की अतिरंजित संख्या(ठेका पाने वाली संस्था के रिकॉर्ड से) –
इस तरह अक्टूबर, 2022 में धुले कपड़ों की वास्तविक संख्या 3071 है, जबकि पारिश्रमिक भुगतान के लिए सौंपी गयी धुले कपड़ों की मासिक रिपोर्ट में कपड़ों की संख्या 10382 अंकित की गयी है, जिस पर 07 नवम्बर, 2022 की तारीख में चार व्यक्तियों (कुछ नर्स सहित) के हस्ताक्षर हैं। वर्तमान प्रति कपड़ा धुलाई की बाजार लागत 10 रुपए है। मान लेते हैं कि जीएमसीएच में कपड़ों की धुलाई लेने वाली संस्था ने 7 रुपए प्रति कपड़े की दर से बोली लगायी व प्राप्त की हो, तो अक्टूबर 2022 में वास्तविक धुले कपड़ों की लागत 3071 गुना 7 यानी 21497 रुपए होती है। वहीं, पारिश्रमिक के लिए सौंपे गए मांग-पत्र के अनुसार यह लागत 10382 गुना 7 यानी 72674 रुपए हो जाती है। यह वास्तविक लागत से 51177 रुपए ज्यादा बैठती है।
इस बाबत पूछे जाने पर पीओपी वार्ड की नर्स रीता बताती हैं, “मुझे याद नहीं कि धुले कपड़ों की संख्या कितनी थी। हम लोगों की रिपोर्ट ऑफिस में जमा है। यह रिपोर्ट अधीक्षक कार्यालय में जमा हो जाती है।”
वहीं, ग्रामीण विकास कल्याण समिति से जुड़े और सफाई कर्मियों, सुरक्षा गार्ड के बीच बाबा के नाम से मशहूर व्यक्ति ने रिपोर्ट बनाने के काम से अपना पल्ला झाड़ते हुए कहा, “यह रिपोर्ट हम लोग नहीं बनाते हैं। रिपोर्ट वहाँ(जीएमसीएच, पूर्णिया) की नर्स व अटेन्डेंट बनाती हैं। बिना उनकी सहमति के हम लोग एक लाइन कम-बेसी नहीं कर सकते हैं।” बिल क्लीयरेंस के सवाल पर वह कहते हैं कि अभी अलॉटमेंट नहीं है।
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