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अररिया के किसानों को सिंचाई में नहीं मिल रहा नहरों का लाभ

अररिया जिले में नहरों का जाल बिछा होने के बावजूद अब इसका लाभ किसानों को नहीं मिल पा रहा है। इस वजह से जिले के किसान अधिक पैसा खर्च कर सिंचाई करने को मजबूर हैं।

ved prakash Reported By Ved Prakash |
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अररिया जिले में नहरों का जाल बिछा होने के बावजूद अब इसका लाभ किसानों को नहीं मिल पा रहा है। इस वजह से जिले के किसान अधिक पैसा खर्च कर सिंचाई करने को मजबूर हैं। कई जगहों पर तो इन नहरों का लोगों ने अतिक्रमण कर लिया है और सालों से घर बनाकर रह भी रहे हैं।

कई जगहों पर नहरों की जुताई कर खेती की जा रही है। इसे सिंचाई विभाग की उदासीनता ही कही जा सकती है क्योंकि इन नहरों की देखरेख करने की जिम्मेदारी सिंचाई विभाग की है।

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1968 में बनाई गई थीं नहरें

गौरतलब हो कि बिहार सरकार ने 1968 में नहरों का निर्माण कराया था। इन नहरों में सुपौल जिले के बीरपुर के बराज से कोसी नदी का पानी उपलब्ध होता था। इन नहरों को बनाने का उद्देश्य था कि अररिया सहित आसपास के जिलों को नहर से पानी उपलब्ध कराया जा सके और इस पानी का इस्तेमाल कर किसान बेहतर खेती कर सकें।


साल 1990 तक तो इन नहरों से किसानों को लाभ मिला भी, लेकिन उसके बाद से आहिस्ता आहिस्ता ये लगभग बंद हो गया।

सरकार ने जब खेती के लिए 1968 में नहरों का जाल बिछाया, तो अररिया जिले में दो डिवीजन – अररिया और बथनाहा, बनाए गए। क्षेत्र काफी बड़ा होने के चलते सिंचाई विभाग ने इनको चार सब-डिविजनों – अररिया, फारबिसगंज, चंद्रदेई और जलालगढ़ में बांट दिया।

बाद में इन सब-डिविजनों को भी सह सब डिविजनों में बांटा गया। बथनाहा के अंदर सह सब-डिविजन के रूप में रानीगंज, पूर्णिया जिले का श्रीनगर, बथनाहा वन, बथनाहा टू चंपानगर बनाया गया। नरपतगंज में सह सब-डिविजन के रूप में नरपतगंज वन, बथनाहा और महथावा बनाया गया।

उद्देश्य था कि इन डिविजनों से ग्रामीण के खेतों तक सिंचाई का पानी सुचारू रूप से पहुंच सके। लेकिन, आज ये सब डिविजन मृत हो गए हैं।

हजारों कर्मचारियों की हुई थी नियुक्ति

इतने बड़े पैमाने पर नहरों को व्यवस्थित करने और किसानों को इसका लाभ देने के उद्देश्य से जिले के अररिया सहित बथनाहा, नरपतगंज, रानीगंज, चंद्रदेई, फारबिसगंज के मानिकपुर में कई एकड़ में कॉलोनियों का निर्माण कराया गया। इन काॅलोनियों में सिंचाई विभाग के कर्मियों को रहने की जगह दी गई, ताकि इन लोगों के द्वारा नहरों की देखरेख की जा सके। कुछ वर्षों तक तो यह सब सही चलता रहा, लेकिन आज ये कॉलोनियां खंडहर में तब्दील हो गई हैं।

जानकार बताते हैं यह सब विभाग की अनदेखी के कारण हुआ है। अगर इन मकानों की देखरेख की जाती, तो आज ये अपने अस्तित्व में होते। स्थिति यह है कि इन कॉलोनियों में अब कोई नहीं रहता। भवनों के दरवाजों, खिड़कियों तक को असामाजिक तत्वों ने चुरा लिया है।

चंद्रदेई पंचायत के पूर्व मुखिया आसिफुर रहमान ने बताया कि हमारी पंचायत में नहरों का जाल बिछा था, जिसे वीसी (वैतरणी कनाल) या छहर कहा जाता था। लेकिन अतिक्रमण का शिकार हो जाने के कारण अब यह नजर भी नहीं आता है।

उन्होंने बताया कि पंचायती राज विभाग द्वारा इन बची-खुची नहरों की साफ-सफाई की जिम्मेदारी पंचायत प्रधान को दी गई और 2018-19 में मनरेगा द्वारा इन नहरों की सफाई कराई गई। पंचायत सरकार की गाइडलाइन के अनुसार, इनका काम किया गया था और इसकी जानकारी विभाग के अधिकारियों को भी दी गई।

Dry canal in araria

उन्होंने कहा कि हमारी पंचायत चंद्रदेई में हयातपुर पंचायत की सीमा से कसबा कनाल के द्वारा वीसी निकाली गई है। इससे पंचायत में नहरों का जाल बिछाया गया। लेकिन आज तक इस ओर देखने वाला कोई नहीं। कई जगह नहर की जमीन का ग्रामीणों ने अतिक्रमण कर लिया। जो नहरें बची हुई हैं, वहां पानी नजर नहीं आता है।

पूर्व मुखिया ने बताया कि 90 के दशक में इन नहरों से लोगों को काफी लाभ मिलता था। कम कीमत पर पानी उपलब्ध होने से फसलों की सिंचाई भी अच्छी तरह से हो पाती थी।

एक एकड़ की सिंचाई के लिए सरकार लेती थी सिर्फ 75 से 88 रुपए

“सिंचाई विभाग की ओर से पटवन के लिए मात्र 88 रुपए प्रति एकड़ ली जाती थी, जो धान की खेती के लिए था। रबी की फसल के लिए प्रति एकड़ 75 रुपए निर्धारित थे। यह राशि किसानों के लिए नहीं के बराबर थी और पटवन भी अच्छी तरह से हो जाता था। लेकिन 1990 के बाद से इन नहरों में पानी आना बंद हो गया, अब लोग महंगी कीमत पर डीजल से सिंचाई करने को मजबूर हैं,” उन्होंने आगे बताया।

अररिया से बहने वाली नहरों की शाखा को एवीसी नहर कहा जाता है यानी अररिया वैतरणी कनाल। जलालगढ़ वैतरणी, महिषाकोल वैतरणी, मटियारी रहिकपुर वैतरणी, डोरिया उप वैतरणी, कुसियारगांव उप वैतरणी, सापा उप वैतरणी, डुमरिया वैतरणी, फारबिसगंज लघु नहर, परवाहा लघु नगर, अमहारा लघु नगर, रमई लघु नहर, कोचगांवा लघु नहर से ग्रामीण क्षेत्रों के छहर में पानी जाता था।

जरूरी पद 2016 में हो गए खत्म

नहरों के जाल को व्यवस्थित करने और उनकी देखरेख के लिए विभाग में गैंगमैन, गेज रीडर, मेट, कार्य दर्शक, बांध खलासी, अमीन, परिभ्रमक जैसे पद शामिल थे। इन पदों पर नियुक्ति भी थी। लेकिन एक जून 2016 को इन पदों को समाप्त कर दिया गया, जबकि नहरों के लिए इन कर्मियों की जमीनी स्तर पर सबसे ज्यादा जरूरत थी।

जानकार बताते हैं यही कारण है कि नहरें आज देखरेख के अभाव में मृतप्राय हो गई हैं। मिली जानकारी के अनुसार, इन जैसे कर्मियों के लिए एक सब-डिविजन में लगभग 125 पद थे। लेकिन अब एक भी ऐसा कर्मी नजर नहीं आता, जो नहर की देखरेख करे। अब अगर नहर की साफ-सफाई या देखरेख करनी हो, तो दैनिक मजदूरी पर मजदूर को रखकर कार्य कराया जाता है

क्या कहते हैं कार्यपालक अभियंता

अररिया सिंचाई विभाग के कार्यपालक अभियंता सुरेंद्र कुमार ने बताया, “हमारे विभाग में नए पदों का सृजन नहीं हो पा रहा है। सिर्फ कार्यालय की बात करें, तो अररिया कार्यालय में कुल 97 पद हैं, लेकिन सिर्फ 47 पदों पर ही नियुक्ति है। इसी तरह कनीय अभियंता के 17 पद हैं, जिनमें से मात्र 3 पदों पर कर्मचारी नियुक्त हैं। सहायक अभियंता के 5 पद हैं, उनमें से सिर्फ 2 पदों पर ही नियुक्ति है।”

“बथनाहा डिविजन की बात करें, तो उनमें स्वीकृत पद 96 हैं। नरपतगंज में 72 पद है। लेकिन इन जगहों पर भी अब कर्मचारी नहीं के बराबर हैं। इसलिए जो अभियंता या कनीय अभियंता हैं, उन पर बड़े क्षेत्र की जिम्मेदारी पड़ गई है। ऐसे में थोड़ी मुश्किल सामने आती है,” उन्होंने कहा।

स्थानीय लोगों ने बताया कि जहां बड़ी नहरें बची हुई हैं, उनका इस्तेमाल सिर्फ छठ पर्व के लिए ही किया जाता है। छठ के मौके पर इन नहरों में पानी छोड़ा जाता है, जहां लोग इस महापर्व को मनाते हैं।

इससे कई बार नहरों के बांध टूटने की भी खबरें आई हैं, जिससे काफी नुकसान भी हुआ है। क्योंकि नहर के किनारे देखरेख के अभाव में कमजोर हो गए हैं। यही वजह है कि छठ के बाद इन नहरों को लगभग बंद कर दिया जाता है।

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अररिया में जन्मे वेद प्रकाश ने सर्वप्रथम दैनिक हिंदुस्तान कार्यालय में 2008 में फोटो भेजने का काम किया हालांकि उस वक्त पत्रकारिता से नहीं जुड़े थे। 2016 में डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में कदम रखा। सीमांचल में आने वाली बाढ़ की समस्या को लेकर मुखर रहे हैं।

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