सात एकड़ में फैला अररिया जिले का ऐतिहासिक संस्कृत महाविद्यालय (काॅलेज) अपना अस्तित्व खो चुका है। कभी इस विद्यालय में सैकड़ों की संख्या में छात्र शिक्षा ग्रहण करते थे, लेकिन अब यह बेजान पड़ा हुआ है।
फारबिसगंज अनुमंडल की मटियारी पंचायत के भट्टाबाड़ी स्थित इस महाविद्यालय का भवन पूरी तरह से खंडहर हो चुका है। अब इसकी जमीन पर लोगों ने कब्जा करना भी शुरू कर दिया है। लेकिन, फिर भी स्थानीय लोगों की मांग है कि इस विद्यालय को पुनर्जीवित किया जाए और यहां संस्कृत की पढ़ाई पहले की तरह ही शुरू हो, ताकि लोग अपनी सबसे पुरानी भाषा को जीवित रख सकें।
इस दिशा में निजी संस्था एक पहल के संस्थापक आयुष अग्रवाल ने बंद पड़े संस्कृत महाविद्यालय का दौरा करने के उपरांत एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर एमएलसी राजेंद्र प्रसाद गुप्ता को भेजी है। उन्होंने कहा, “मैंने स्थानीय लोगों से इस महाविद्यालय से संबंधित जानकारियां इकट्ठा की है।”
आयुष अग्रवाल ने बताया कि देश की सभ्यता और संस्कृति को बचाने की दिशा में बिहार सरकार और केंद्र सरकार कई सार्थक पहल कर रही है। अलग अलग सरकारों द्वारा अलग अलग राज्यों में ऐतिहासिक धरोहरों को बचाने की पहल की जा रही है। लेकिन, फारबिसगंज का संस्कृत महाविद्यालय पिछले कई दशकों से विकास की बाट जोह रहा है। उन्होंने बताया कि अगर संस्कृत महाविद्यालय सही मायने में फिर से संचालित हो जाता है तो यहां के लोगों के साथ-साथ सीमांचल के लोगों को भी इसका काफी लाभ मिलेगा। संस्कृत भाषा पढ़ने वाले कम होते जा रहे हैं, अगर यह महाविद्यालय फिर चालू होता है, तो उनकी संख्या में बढ़ोतरी होगी।
पिछले साल विधानसभा में उठा था यह मुद्दा
संस्कृत महाविद्यालय की स्थिति को लेकर फारबिसगंज विधायक विद्यासागर केसरी ने वर्ष 2021 में विधानसभा में सवाल उठाया था। उन्होंने शिक्षा मंत्री से जानकारी मांगी थी कि साल 1990 – 92 तक पठन-पाठन का कार्य चल रहा था, फिर अचानक पठन-पाठन क्यों बंद हो गया। उन्होंने यह भी पूछा था कि शिक्षा विभाग ने इस ओर किस तरह के कदम उठाए हैं।
उन्होंने महाविद्यालय में पुनः पठन-पाठन बहाल करने की मांग की थी। इसके बाद शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने विद्यालय परिसर का निरीक्षण भी किया था और जानकारियां इकट्ठा की थीं।
लेकिन, अभी भी उसकी स्थिति जस की तस बनी हुई है। पूर्णिया प्रमंडल का ऐतिहासिक संस्कृत महाविद्यालय जनप्रतिनिधियों और सरकार की उदासीनता के कारण आज इतिहास के पन्नों में दफन होने के कगार पर है।
स्थानीय विधायक ने बताया कि उनका प्रयास होगा कि इस विद्यालय को फिर से पुनर्जीवित किया जाए और यहां पठन-पाठन फिर से बहाल हो, ताकि सीमांचल की यह ऐतिहासिक धरोहर अपने पुराने अस्तित्व में फिर से लौट सके।
साल 1945 में हुई थी इसकी स्थापना
स्थानीय लोगों ने बताया कि फारबिसगंज प्रखंड की मटियारी पंचायत के भट्टाबाड़ी में सात एकड़ में फैले इस महाविद्यालय की स्थापना आजादी के पहले साल 1945 में हुई थी। पहले यहां संस्कृत महाविद्यालय चलता था, बाद में इस जगह संस्कृत हाईस्कूल चलने लगा। इस विद्यालय में वर्ग सात से दस (प्रथमा और मध्यमा) तक की पढ़ाई होती थी।
जानकारों की मानें तो विद्यालय की स्थापना के बाद इस महाविद्यालय की 41 एकड़ जमीन और सारी संपत्ति 24 अप्रैल 1960 को बिहार के राज्यपाल के नाम रजिस्ट्री हो गई। वर्ष 1990-92 तक यहां पढ़ाई भी होती थी। लेकिन, विद्यालय से एक एक कर सारे शिक्षक और कर्मियों के सेवा निवृत्त होने के कारण पढ़ाई-लिखाई बंद हो गई। उसके बाद ना तो शिक्षकों की दोबारा बहाली हुई और ना ही इस ओर कोई ठोस पहल ही की जा सकी। वर्ष 1953-54 में स्वर्गीय भीमराज पेड़ीवाल चेरिटेबल ट्रस्ट ने विद्यालय का दोबारा संचालन शुरू किया और यहां पंचवर्षीय योजना के स्थानीय विकास के अंतर्गत भवन बनाया गया। लेकिन कुछ वर्षों तक चलने के बाद यह किन्हीं कारणों से बंद हुआ, तो आज तक नहीं खुला।
विद्यालय का भवन देखरेख के अभाव में आज खंडहर में तब्दील हो गया है। जब कोई देखने वाला नहीं मिला, तो भवन के छत पर लगाई गई टीन और खिड़की-दरवाजे तक को असामाजिक तत्वों ने नोच लिया। आज यह खंडहर अपने अस्तित्व की आखिरी निशानी लेकर खड़ा है।
महाविद्यालय की जमीन पर भू माफियाओं का कब्जा
इसके परिसर में आज भी दर्जनों पेड़ लगे हैं। विद्यालय के आगे एक बड़ा सा तालाब है। भट्टाबाड़ी के ग्रामीणों ने बताया कि कुछ साल पहले तक इस तालाब का सरकारी डाक (बोली) भी होता था। लेकिन अब यह तालाब दबंगों के कब्जे में है। वे लोग इसमें मछली उत्पादन का काम करते हैं। उन्हें रोकने टोकने वाला अब कोई यहां नहीं है। इस विद्यालय के आगे तीन एकड़ जमीन के अलावा अन्य जगहों पर बाकी जमीन है, जिस पर दबंगों का कब्जा बताया जाता है। उन जमीनों का लेखा जोखा अब किसी आंकड़े में मौजूद नहीं है।
नाम नहीं छापने की शर्त पर एक विद्यार्थी ने बताया कि सरकार सिर्फ भवनों पर ध्यान दे रही है, ना कि पढ़ाई पर। आज भी जिले में कई संस्कृत विद्यालय चल रहे हैं जो सिर्फ कागजों पर ही नजर आते हैं। लेकिन, यहां से हर वर्ष मध्यमा की परीक्षा में छात्र भाग भी लेते हैं और वे पास भी होते हैं। लेकिन पढ़ाई करने वाले छात्र के बारे में अगर पता लगाया जाए, तो एक भी ऐसा छात्र नहीं मिलेगा जो संस्कृत में कुछ बोल पाए या लिख पाए। लेकिन उन्हें डिग्री जरूर मिली हुई रहती है।
उन्होंने आगे कहा कि अगर फारबिसगंज के संस्कृत महाविद्यालय को पुनर्जीवित करना है तो सरकार को ठोस कदम उठाना होगा। यहां बेहतर शिक्षकों के साथ साथ व्यवस्था को भी मजबूत करना होगा, ताकि हमारी संस्कृति से जुड़ी संस्कृत भाषा अपना अस्तित्व ना खोए और जो भी हमारे ग्रंथ हैं, छात्र उन्हें जरूर पढ़ें और ज्ञान अर्जित करें।
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