बिहार के कोसी प्रमंडल के तीनों जिलों में किसानों द्वारा मक्के की खेती वृहद पैमाने पर की जाती है। इस बार भी सहरसा, सुपौल और मधेपुरा में मक्के की अच्छी उपज हुई है। गुणवत्तापूर्ण और मांग अधिक होने के कारण यहां के किसान देश के अन्य राज्यों के साथ-साथ विदेशों में भी मक्का भेज रहे हैं। इस वजह से किसानों को अपनी फसल की अच्छी कीमत मिल जाती है।
कोसी में पैदा होने वाला मक्का गुणवत्तापूर्ण होता है, जिस कारण यहां के मक्के की मांग पंजाब, महाराष्ट्र, कर्नाटक सहित अन्य राज्यों में भी होती है। साथ ही यहां से मक्का पड़ोसी देश नेपाल, बंग्लादेश और भूटान भी भेजा जाता है।
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सहरसा के जिला कृषि पदाधिकारी ज्ञानचंद्र शर्मा बताते हैं कि यहां का मक्का काफी गुणवत्तापूर्ण होता है, जिस कारण इसकी मांग अन्य प्रदेशों में भी होती है। उन्होंने बताया कि सहरसा में मक्के की खेती क़रीब 36 हजार हेक्टेयर में होती है और इस बार प्रति हेक्टेयर तक़रीबन 90 क्विंटल मक्का उत्पादन हुआ है।
“इस इलाक़े में मक्का का उत्पादन राष्ट्रीय उत्पादन से भी अधिक होने के कारण किसान ज़्यादा लाभान्वित होते हैं। क़रीब 90 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन होता है। यहां से मक्के की आपूर्ति अन्य ज़िलों के साथ अन्य राज्यों में भी की जाती है। पंजाब, तेलंगाना, हरियाणा में यहां का मक्का जाता है। साथ ही दूसरे देशों की बात करें तो भूटान और नेपाल भी यहां का मक्का जाता है,” उन्होंने कहा।
उन्होंने आगे कहा, “अधिक गुणवत्तापूर्ण होने के कारण यहां के मक्के की मांग ज़्यादा है। मक्का से काऊ फीड (गाय को खिलाया जाने वाला चारा), पोल्ट्री फीड (मुर्ग़ी को खिलाया जाने वाले चारा), पिग फीड आदि बनाये जाते हैं। साथ ही मानव के लिये कॉर्नफ्लेक्स भी इससे तैयार किया जाता है।”
ज्ञानचंद्र शर्मा ने आगे बताया कि रबी फसल में गेहूं के उत्पादन और ख़रीफ़ फसल में धान के उत्पादन से ज़्यादा लाभ किसानों को मक्का की खेती में होता है, इसलिये यहां के किसान मक्के की फसल अधिक लगाते हैं।
‘कोसी में लगे मक्का आधारित उद्योग’
इलाक़े में मक्का की फसल बहुत अच्छी होती है, लेकिन, यहां पर कोई मक्का आधारित उद्योग-धंधा नहीं होने से किसानों में मायूसी है। किसानों का कहना है कि यहां का मक्का दूसरे राज्यों में जाता है और वहां पर उद्योग होने से लोगों को रोज़गार मिलता है, अगर यहां भी उद्योग लग जाये तो बिहार में भी रोज़गार के अवसर पैदा होंगे।
मक्का लगाने वाले किसान आजाद कुमार इस क्षेत्र में मक्का आधारित उद्योग की मांग करते हुए कहते हैं कि अगर इस इलाके में मक्के की एक फैक्टरी लगा दी जायेगी तो किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी और इससे हजारों लोगों को रोजगार भी मिलेगा।
“इस इलाक़े में मक्का की ज़्यादा उपज है। देश के साथ विदेश में भी डिमांड है यहां के मक्के की। यहां बाहर से व्यापारी लोग आते हैं और मक्का ख़रीद कर जाते हैं। यहां के लोगों के लिये मक्का तो खरा सोना है। मक्का लगाने से फायदा अच्छा होता है। हमलोग सरकार से दरख़्वास्त करेंगे कि यहां पर एक फैक्ट्री खोले, इससे हज़ारों लोगों को रोज़गार मिल जायेगा,” उन्होंने कहा।
एक अन्य किसान इंद्रदेव भगत बताते हैं कि कोसी में मक्का का उत्पादन ज्यादा होने और यहां के मक्का के गुणवत्तापूर्ण होने के कारण बाहर इसकी मांग काफी ज़्यादा है, जिस कारण किसानों को इसका लाभ भी अच्छा हो रहा है। उन्होंने कहा कि यहां पर सिर्फ एक फैक्टरी की आवश्यकता है, जिससे लोगों को रोजगार और किसानों को मक्के की उचित कीमत भी मिलेगी।
उन्होंने आगे बताया कि अगर कोसी में मक्का आधारित प्रोसेसिंग यूनिट लग जाती है तो किसानों को दुगुना लाभ तो मिलेगा ही, साथ ही इलाक़े के लोगों को रोज़गार भी मिलेगा
वहीं, किसान मंजय कुमार कहते हैं कि ज़्यादातर मक्का बड़े व्यापारी ख़रीदते हैं और यहां से दूसरे राज्यों में सप्लाई कर देते हैं, जिससे किसानों को अधिक मुनाफा नहीं हो पाता है।
किसी भी सरकार ने नहीं लगाया उद्योग
इस इलाक़े में मक्का आधारित उद्योग-धंधा लगाने का प्रयास किसी भी सरकार की तरफ़ से नहीं किया गया। किसान कुंदन यादव बताते हैं कि अगर यहां पर मक्का आधारित उद्योग लग जायेगा तो फसल की और भी अच्छी क़ीमत मिलेगी। उन्होंने कहा कि अच्छी पैदावार होने की वजह से बिहार का यह इलाक़ा मक्का की खेती का हब बनता जा रहा है, लेकिन सरकार की निष्क्रियता की वजह से यहां के किसान निराश हैं।
“कोसी का इलाक़ा ख़ास कर सहरसा, सुपौल, मधेपुरा के साथ-साथ खगड़िया भी मक्का (की खेती) का हब बनता जा रहा है। यहां मक्का उत्पादक किसानों की संख्या अधिक है। लेकिन, सरकार की निष्क्रियता के चलते यहां के किसान लगातार निराश इसलिये हो रहे हैं कि जितनी भी सरकार आई है किसी ने भी मक्का आधारित उद्योग लगाने का प्रयास नहीं किया है,” उन्होंने कहा।
उन्होंने आगे कहा, “इस वजह से किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल पाता है। यहां के किसानों की खेती घाटे में जा रही है। यह सरकार पूरी तरह निष्क्रिय है। इस क्षेत्र में अगर उद्योग-धंधा लगता तो निश्चित रूप से किसानों को इसका फायदा होता।”
“बिचौलियों को हो रहा फायदा”
इस इलाक़े में मक्का आधारित उद्योग नहीं होने से यहां पर उपज होने वाला अधिकतर मक्का बाहर चला जाता है। बिचौलिये और बड़े व्यापारी कम दाम में मक्का ख़रीद कर यहां से मक्का सप्लाई कर देते हैं, जिससे कई बार किसानों को उचित दाम नहीं मिल पाता है।
किसान कुन्दन यादव कहते हैं, “पीएम मोदी 2014 में बोले थे कि किसानों की आय दुगुनी होगी। लेकिन, हम मक्का उत्पादक किसानों को लगता है कि खेती महंगी हुई है और मुनाफ़ा घटता जा रहा है। कोसी क्षेत्र में कोई भी मक्का आधारित उद्योग धंधा नहीं है तो निश्चित रूप से बिचौलियों को और यहां की कंपनियों (बड़े व्यापारियों) को फ़ायदा होगा ही।”
उन्होंने आगे कहा, “हमको लग रहा है कि जितना किसानों को घाटा हो रहा है, उससे दस-बीस गुना ज़्यादा फायदा बिचौलियों को हो रहा है। मक्का विदेश भी जाता है। पूरे एरिया में मक्का को पीला सोना के नाम से जाना जाता है, लेकिन, यहां के मक्का उपजाने वाले किसान पूरी तरीक़े से निराश हैं उद्योग-धंधा नहीं रहने के कारण। सरकार एक दम पूरा इस एरिया को चौपट कर दिया है।”
कुन्दन यादव ने मक्का को जियो टैग भी देने की मांग की। उन्होंने कहा कि अगर मक्का को जियो टैग मिल जायेगा तो इससे यहां के किसान लाभान्वित होंगे, और जो फायदा बिचौलियों और निजी कंपनियों को हो रहा है, उसका फायदा किसानों को भी मिलने लगेगा।
उद्योग विभाग को करना होगा प्रयास: ज़िला कृषि पदाधिकारी
‘मैं मीडिया’ ने सहरसा के ज़िला कृषि पदाधिकारी ज्ञानचंद्र शर्मा से बात की। उन्होंने मैं मीडिया को बताया कि मक्का के उत्पादन को बढ़ाने के लिये कृषि विभाग की तरफ़ से कई योजनाएं तैयार की गई हैं और किसानों को अनुदानित दर पर मक्का का बीज उपलब्ध कराया जा रहा है। ज़िला कृषि पदाधिकारी ने भी माना कि यदि इस इलाक़े में कोई मक्का आधारित उद्योग होता तो, किसानों को और भी लाभ मिलता।
वहीं, यह पूछने पर कि इसके लिये कृषि विभाग की तरफ से क्या पहल की जा रही है? वह कहते हैं कि किसी भी तरह का मक्का प्रोसेसिंग यूनिट बनाने की योजना कृषि विभाग की तरफ़ से नहीं, बल्कि उद्योग विभाग की तरफ से बनानी होगी।
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