बिहार के स्कूलों में 2024 में पहले से बेहतर नामांकन दर देखने को मिली है। हालांकि, सामान्य पढ़ने लिखने की क्षमता और मूलभूत सुविधाओं में राज्य के विद्यालयों में काफी सुधार की ज़रूरत है। ऐसा कहना है एनुअल स्टेटस ऑफ़ एजुकेशन रिपोर्ट “असर” (ग्रामीण) रिपोर्ट का।
देश के 605 जिलों के 17,997 गांवों के 649,491 बच्चों पर हुए सर्वे के बाद यह द्विवार्षिक रिपोर्ट जारी की गईं हैं। “असर” 2024 रिपोर्ट में स्कूली छात्रों को तीन समूह में बांटा गया है। पहला समूह पूर्व प्राथमिक है जिसमें 3 से 5 वर्षीय बच्चे हैं। दूसरा समूह प्राथमिक है, जिसमें 6 से 14 वर्ष के बच्चों को रखा गया है। आखिरी समूह में 15 और 16 वर्ष के बच्चे हैं।
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रिपोर्ट के अनुसार देश में पूर्व प्राथमिक समूह के बच्चों की स्कूल में पंजीकरण संख्या बढ़ रही है। 3 ओर 4 साल के 80% बच्चे ग्रामीण इलाकों में किसी न किसी पूर्व प्राथमिक शिक्षा संस्थान से जुड़े पाए गए।
रिपोर्ट में बिहार राज्य के सभी 38 जिलों के कुल 1,140 गांवों से आंकड़े लिए गए। इसमें 3 से 16 वर्ष के 51,677 और 5 से 16 वर्ष के 39,335 बच्चों का सर्वे किया गया। ये बच्चे राज्य के 1,114 अलग अलग स्कूलों के थे।
पूर्व प्राथमिक में बढ़े छोटे बच्चे
भारत में 5 साल या उससे कम आयु के बच्चों का पहली कक्षा में पंजीकरण पहले से कम हुआ है। 2022 के 22.7% के मुकाबले 2024 में केवल 16.7% बच्चे जिनकी आयु 5 वर्ष या उससे कम है, पहली कक्षा में पाए गए।
देश भर में तीन साल के 67% और चार साल के 58% बच्चे आंगनबाड़ी में नामांकित हैं जबकि इसके मुकाबले बिहार में ज़्यादा बच्चे आंगनबाड़ी में हैं। राज्य के तीन साल के 68.9% और चार साल के 66.9% बच्चे आंगनबाड़ी में नामांकित हैं।
बिहार में 3 वर्ष के 74.2% बच्चे किसी न किसी पूर्व प्राथमिक शिक्षा संस्था में नामांकित हैं। यह आंकड़ा देश भर के औसतन आंकड़े 77.4% से थोड़ा कम है। 4 वर्ष के 79.0% बच्चे पूर्व प्राथमिक शिक्षा संस्था में नामांकित हैं जो कि राष्ट्रीय औसत (83.3%) से 4.3% कम है। 5 वर्ष के 67.1% पबच्चे प्री-प्राइमरी में नामांकित हैं, जबकि देश का औसत 71.4% है।
राज्य भर में पहली कक्षा में पढ़ने वाले 5 वर्ष या उससे कम आयु के बच्चों की संख्या पहले से कम हुई है। पहले के मुकाबले अब बिहार के छोटे बच्चे पहली कक्षा की जगह पूर्व प्राथमिक संस्था में नामांकित हैं। 2024 में 5 वर्ष या उससे कम आयु के सिर्फ 19.4% बच्चे पहली कक्षा में नामांकित पाए गए जबकि 2022 में यह आंकड़ा 23.2% और 2018 में 27.1% था। ये सरकारी और निजी स्कूलों के सम्मिलित आंकड़े हैं। बिहार में सरकारी स्कूलों के मुकाबले निजी स्कूलों में पहली कक्षा में पढ़ने वाले 5 वर्ष या उससे छोटे बच्चों की संख्या कम है।
बिहार में 6 से 14 वर्ष के 20% बच्चे स्कूल से दूर
प्राथमिक समूह जिसमें 6 से 14 वर्ष बच्चों को रखा गया है, में अधिकतर बच्चे स्कूल में पंजीकृत हैं। भारत में 2022 से 2024 तक इस समूह के 98% बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं। 2022 की रिपोर्ट के मुकाबले 2024 में सभी राज्यों में इन बच्चों का पढ़ने और अंकगणित करने की क्षमता में बेहतरी देखने को मिली है। 15 और 16 वर्षों के बच्चों में स्कूल न जाने वालों की संख्या कम हुई है। देश में इस आयु के केवल 7% ही बच्चे ऐसे हैं जो स्कूल नहीं जा रहे।
बिहार में 6 से 14 वर्ष आयु के समूह में 80% ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चे सरकारी विद्यालयों में नामांकित हैं। यानी इस आयु समूह के 20% बच्चे अभी भी स्कूल से दूर हैं। इस मामले में बिहार का आंकड़ा राष्ट्रीय औसत से बेहतर है। राष्ट्रीय स्तर पर 66.8% ग्रामीण बच्चे सरकारी स्कूलों में नामांकित हैं। बिहार में निजी स्कूलों में नामांकन दर 15.7% है जो पहले के मुकाबले अधिक है।
तीसरी कक्षा के 74% बच्चे नहीं पढ़ सके दूसरी कक्षा की पुस्तक
वर्ष 2018 में देश भर में तीसरी कक्षा के 20.9% बच्चे दूसरी कक्षा की पुस्तक का पाठन कर सकते थे, जो 2022 में गिरकर 16.3% पर आ गया था, लेकिन 2024 में इसमें सुधार देखने को मिला। आंकड़े बताते हैं कि 2024 में 23.4% बच्चे दूसरी कक्षा की पुस्तक का पाठन करने योग्य पाए गए।
वर्ष 2018 के मुकाबले 2022 में देश के ग्रामीण छात्रों की पढ़ने लिखने की क्षमता में गिरावट देखने को मिली थी। 2024 में अधिकतर जगहों पर सुधार देखने को मिला है। हालांकि, आंकड़े बहुत ज़्यादा खुश करने वाले नहीं है। देश के ग्रामीण क्षेत्रों की तीसरी कक्षा के 77% बच्चे दूसरी कक्षा की पुस्तक पढ़ने में असमर्थ पाए गए। वहीं, पांचवीं के 55% बच्चे दूसरी कक्षा की पुस्तक नहीं पढ़ सके।
अंकगणित हल करने के मामले में देश भर से जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार, 2024 के सर्वे में तीसरी कक्षा के 33.7% बच्चे घटाव के सामान्य सवाल हल कर सके। 2022 में यह आंकड़ा 25.9% और 2018 में 28.2% था।
बिहार की बात करें तो तीसरी कक्षा के ऐसे 26.3% बच्चे मिले जो दूसरी कक्षा की पुस्तक पढ़ सकते थे। 2022 में यह आंकड़ा 19.8% था। इसी तरह सामान्य अंकगणित जैसे घटाव के प्रश्नों को हल करने के मामले में तीसरी कक्षा के 37.5% बच्चे सफल रहे। 2022 में यह आंकड़ा 28.8% था।
इन आंकड़ों का एक दूसरा पहलु यह है कि तीसरी कक्षा के 74% बच्चे दूसरी कक्षा की पुस्तक नहीं पढ़ सके और 62.5% बच्चे सामान्य घटाव का प्रश्न हल नहीं कर सके।
बिहार के सरकारी स्कूलों में प्राइवेट से अधिक सुधार
ताज़ा सर्वे के अनुसार देशभर में पांचवीं कक्षा के 44.8% बच्चे कम से कम दूसरी कक्षा की पुस्तकें पढ़ सकते हैं। 2022 में यह आंकड़ा 38.5% था। वहीं आठवीं कक्षा के बच्चों की पाठन क्षमता 2022 के 66.2% के मुकाबले 2024 में 67.5% रही।
बिहार में पांचवीं कक्षा के 43.8% बच्चे दूसरी कक्षा की पुस्तक पढ़ सके जबकि 36.2% बच्चे कम से कम भाग (3 अंक भाग 1 अंक) के प्रश्नों के जवाब दे सके। रिपोर्ट में सरकारी और निजी स्कूलों एक अलग अलग आंकड़े पेश किये गए हैं।
बिहार में सरकारी स्कूलों में पांचवीं कक्षा के 41.2% बच्चे दूसरी कक्षा की पुस्तक पढ़ने में सफल रहे जबकि निजी स्कूलों में यह आंकड़ा 66.2% रहा। इसमें एक अहम बात यह है कि 2022 की रिपोर्ट के मुकाबले में सरकारी स्कूलों के बच्चों ने निजी स्कूल के बच्चों से अधिक सुधार दिखाया है। 2022 में 73.4% बच्चे दूसरी कक्षा की पुस्तक पढ़ सकते थे हालंकि इस बार यह आंकड़ा 7.2% गिर गया, वहीं, सरकारी स्कूलों के बच्चों ने 4.1% का सुधार दर्ज किया है।
देश भर के आंकड़ों को देखें तो भाग गणित के प्रश्न हल करने में ताज़ा सर्वे में पांचवीं कक्षा के 30.7% बच्चे सफल रहे। 2022 में यह आँकड़ा 25.6% था और 2018 में 27.9% बच्चे भाग गणित हल करने में सफल रहे थे। आठवीं कक्षा के छात्रों में 2024 में 45.8% बच्चे सामान्य अंकगणित हल करने में सफल हुए। 2018 और 2022 में आंकड़ा क्रमश 44.1% और 44.7% था।
बिहार में सरकारी विद्यालयों के 32.5% बच्चे भाग के सवालों को हल करने में सफल रहे वहीं निजी स्कूल के 67.7% बच्चों ने सही जवाब दिए। 2022 के मुकाबले 2.5% सरकारी विद्यालयों के बच्चों में सुधार देखा गया। वहीं, निजी स्कूलों में सुधार दर 0.6% रही। इन मामलों में सरकारी स्कूलों में निजी स्कूल के मुकाबले ज़रूर बेहतर प्रगति देखने को मिली है लेकिन अभी भी सरकारी स्कूल के बच्चे निजी स्कूल के बच्चों से काफी पीछे दिखाई देते हैं।
देश के 15-16 वर्ष के स्कूल न जाने वाले ग्रामीण बच्चों की संख्या 2024 में 7.9% रही। 2018 के 13.1% के मुकाबले स्कूल न जाने वाले लड़के-लकड़ियों की संख्या में कमी आई है।
बिहार के आंकड़ों की तरफ देखें तो 15 और 16 वर्षीय किशोर अवस्था वाले बच्चों में ग्रामीण क्षेत्रों के 90% के लड़के और 92% लडकियां स्कूलों में नामांकित हैं। स्कूल से दूर बच्चों में लड़कों की संख्या लड़कों के मुकाबले अधिक है। 2024 में 9.5% लड़के बिहार में स्कूलों से दूर हैं, वहीँ 7.8% लडकियां विद्यालों में नामनाकित नहीं हैं। 2022 में स्कूल ने जाने वाली छात्राओं का प्रतिशत 6.7% था जो 2024 में बढ़कर 7.8% हो गया है। लड़कों के मामले में भी यह आँकड़ा 3.3% बढ़ा है।
डिजिटल लिटरेसी में बिहार देश से आगे
डिजिटल लिटरेसी पर सर्वे में कुछ रोचक आंकड़े पेश किये गए हैं। देश भर में 14 से 16 वर्ष के 90% ग्रामीण बच्चों ने कहा कि उनके पास स्मार्टफोन उपलब्ध है। 85.5% लड़कों ने कहा कि वे स्मार्टफोन उपयोग करना जानते हैं वहीँ लड़कियों में ये आकंड़ा 79.4% रहा। व्यक्तिगत स्मार्टफोन रखने के मामले में 14 से 16 वर्षीय ग्रामीण बच्चों की संख्या कम ही रही। सर्वे में शामिल देश के ग्रामीण इलाकों में 36.2% लड़कों के पास उनका व्यक्तिगत स्मार्टफोन था जबकि 26.9% लड़कियों के पास उनके अपने स्मार्टफोन हैं।
बिहार में 14 से 16 आयु वाले राज्य के 76.6% बच्चे नियमित रूप से स्मार्टफोन का उपयोग करते हैं वहीँ 34.2% बच्चों के पास उनके अपने समार्टफोन हैं और इस मामले में बिहार देश के औसतन आंकड़े से 2.8% बेहतर है।
देशभर के 14-16 आयु के 82.2% लड़के-लड़कियों ने कहा कि वे स्मार्टफोन चलाने में सहज हैं। उनमें से 57% पढ़ाई के काम के लिए फ़ोन का इस्तेमाल करते हैं जबकि सोशल मीडिया का उपयोग करने वाले 76% बताये गए हैं।
बिहार के आंकड़े देखें तो 57.6% बच्चे पढ़ाई के लिए स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं जबकि सोशल मीडिया का प्रयोग करने वाले छात्रों की दर 75.2% रही। इंटरनेट सुरक्षा के मामले में बिहार के बच्चों ने देश के आंकड़ों से बेहतर प्रदर्शन किया है। राज्य के 65.8% बच्चे किसी सोशल मीडिया प्रोफाइल को ब्लॉक या रिपोर्ट करने में सक्षम पाए गए। इस मामले में देश की औसतन दर 62% है जबकि बिहार ने 3.8% बेहतर प्रदर्शन किया।
सर्वे के दौरान बिहार के 57.4% बच्चे अपनी प्रोफाइल प्राइवेट करने में सफल रहे जबकि देश भर में 55.2% प्रोफाइल प्राइवेट बनाने में सक्षम थे। देशभर के 57.7% बच्चे अपने सोशल मीडिया अकाउंट का पासवर्ड बदलने में सफल रहे, वहीं बिहार में 59.7% बच्चों ने ऐसा किया। इस मामले में बिहार में देश के औसत से 2% बेहतर परिणाम देखने को मिला।
14 से 16 के लड़के-लड़कियों को अलार्म लगाने, इंटरनेट से एक विशेष जानकारी ढूंढ़ने और एक यूट्यूब वीडियो ढूंढ़कर शेयर करने को कहा गया। इसमें भी बिहार के प्रतिभागियों ने राष्ट्रीय औसत से बेहतर प्रदर्शन किया। सर्वे में बिहार के 75% बच्चे स्मार्टफोन पर अलार्म लगाना जानते थे वहीं इंटरनेट पर किसी विशेष जानकारी को ढूंढ़ने में राज्य के 80.9% बच्चे सफल रहे। देश भर में 79.3% बच्चे यह कार्य कर सके। इंटरनेट पर कोई खास वीडियो ढूंढ़कर साझा करने के मामले में भी बिहार के बच्चे (87.1%) राष्ट्रीय आंकड़े (87%) से सीमांत रूप से बेहतर रहे।
2024 में कैसी है बिहार के स्कूलों की हालत
बिहार के 1,114 स्कूलों में किये गये सर्वे में वहाँ की गुणवत्ता को परखा गया। सर्वे वाले दिन बिहार के 92.9% स्कूलों में मिड-डे मील दिया गया यानी 7% ऐसे स्कूल रहे जहां मध्यांतर भोजन की व्यवस्था नहीं पाई गई। मिड-डे मील के मामले बिहार में बेहतरी देखने को मिली है। 2018 में यह आंकड़ा 84.5% और 2022 में 86.8% था।
सर्वे वाले दिन 88.7% स्कूलों में पानी की व्यवस्था थी जो कि 2018 (89.7%) के मुकाबले कम हुई है। 82.5% स्कूलों में इस्तेमाल करने लायक शौचालय मिले जो कि 2022 की रिपोर्ट (70.9%) के मुकाबले बेहतर है। लड़कियों के उपयोग लायक शौचालय 73.6% स्कूलों में मिले।
बिहार के 32.1% स्कूलों में लाइब्रेरी का अभाव है। बिजली कनेकशन के मामले में बेहतरी देखने को मिली है। 2018 में राज्य के 69.5% स्कूलों में बिजली कनेक्शन थे, अब यह आंकड़ा 96.6% हो चुका है। सर्वे वाले दिन 91.6% स्कूलों में बिजली की सुविधा उपलब्ध पाई गई। मिड-डे मील, साफ़ पानी, शौचालय, बिजली और लाइब्रेरी के मामले में बिहार के स्कूलों में राष्ट्रीय औसत से बेहतर सुविधा दिखी।
नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति का कितना है असर
2020 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू होने के बाद से छोटे बच्चों में पढ़ने-लिखने और गणित सीखने यानी मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता (एफ़एलएन) पर जोर दिया जा रहा है। बिहार के ग्रामीण स्कूलों से मिले नए आंकड़े दर्शाते हैं कि 2024-25 में पिछले साल (2023-24) की तुलना में सुधार हुआ है।
इस साल 89.4% स्कूलों को शुरुआती कक्षाओं के लिए एफ़एलएन गतिविधियों के सरकारी निर्देश मिले, जो पिछले साल 86.1% थे। 92.6% स्कूलों में कम से कम एक शिक्षक ने व्यक्तिगत प्रशिक्षण लिया, जबकि पिछले साल यह संख्या 88.6% थी। हालांकि, ऑनलाइन प्रशिक्षण में गिरावट आई है—इस साल 57.9% स्कूलों में किसी शिक्षक ने ऑनलाइन प्रशिक्षण लिया, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 69.1% था।
शिक्षण-अधिगम सामग्री प्राप्त करने वाले स्कूलों की संख्या 81.2% से घटकर 77.4% हो गई। एफ़एलएन के लिए फंडिंग भी कम हुई है। पिछले साल 19.6% स्कूलों को फंड मिला था, जबकि इस साल केवल 14.5% को मिला। स्कूल रेडीनेस प्रोग्राम में भी मामूली गिरावट देखने को मिली है। पिछले वर्ष 65.1% स्कूलों में पहली कक्षा के लिए स्कूल रेडीनेस प्रोग्राम चलाये गए थे जबकि इस साल यह आंकड़ा 63.4% ही रहा।
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