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किशनगंज: नशे से हारती ज़िंदगी और सुनसान सरकारी नशा मुक्ति केंद्र

बिहार के किशनगंज की भारती देवी का बेटा रमेश (बदला हुआ नाम) नशे की चपेट में है। स्मैक की लत में उसकी सेहत दिन ब दिन खराब हो रही है। भारती देवी के अनुसार वह नशे की तलाश में दिनभर घर से बाहर रहता है। उसे न भूख लगती है न प्यास का एहसास होता है।

syed jaffer imam Reported By Syed Jaffer Imam |
Published On :
drug addiction taking lives in kishanganj while rehab center remains empty

बिहार के किशनगंज की भारती देवी का बेटा रमेश (बदला हुआ नाम) नशे की चपेट में है। स्मैक की लत में उसकी सेहत दिन ब दिन खराब हो रही है। भारती देवी के अनुसार वह नशे की तलाश में दिनभर घर से बाहर रहता है। उसे न भूख लगती है न प्यास का एहसास होता है।


किशनगंज नगर परिषद् क्षेत्र के वार्ड संख्या 26 स्थित पासवान टोला में रहने वाली भारती भीख मांग कर अपना गुज़र बसर करती हैं।

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पिछले दिनों रमेश को पुलिस रेलवे ट्रैक पर लोहे की चोरी के आरोप में घर से उठाकर ले गई थी। भारती देवी ने किसी तरह मांग कर पैसे इकट्ठे किये और 5,000 रुपये के एवज़ बेटे की ज़मानत कराई।


“पुलिस बहुत मारा उसको। चोरी कोई और किया और मेरा बेटा को लेकर गया और बोला की यही लोग नशा के लिए चोरी करता है। सरकार नशा बंद क्यों नहीं करता है? भीख मांग के यहां वहाँ से 5,000 देकर उसको जेल से छुड़ाए। हम तो बहुत साल से यहां रह रहे हैं। यहाँ का जवान लड़का लोग नशे में पड़ गया है,” वह कहती हैं।

वह आगे बोलीं, “मेरा बेटा लगभग 10 साल से नशा कर रहा है। पहले ठीक था। जब वह 16 साल का था तब ही काम करने चेन्नई गया था। राज मिस्त्री का काम करता था। वहाँ डेढ़ साल काम किया फिर यहां आ गया। आ गया तो फिर बर्बाद हो गया और अब नशे में चूर रहता है। नशा करने नहीं मिलता है तो चोरी करता है। इस एरिया में 5-6 लड़का है जो नशा करता है। 2-3 लड़का ख़त्म हो गया इसी नशे के चलते।”

भारती देवी की पांच संतानें थीं जिनमें एक बेटी का कैंसर से निधन हो गया। “जवान बेटी मर गई। पैसा के चलते इलाज नहीं करा सके। उसको बच्चादानी में कैंसर हो गया था। बगल में अस्पताल है लेकिन कहाँ इलाज करता है। किसी को बीमारी होने से बोलता है एमजीएम (अस्पताल) जाओ। भाड़ा 80 रुपया लगता है, कहाँ से लाएंगे, हम भीख मांगते हैं,” वह रोते हुए बोलीं।

अस्पताल के पास वाली बस्तियों में नशे का बढ़ता प्रकोप

वार्ड संख्या 26 स्थित पासवान टोला, किशनगंज सदर अस्पताल के सामने है। वहां अस्पताल का स्टाफ क्वार्टर भी बना हुआ है। उसके नीचे ही एक व्यक्ति नशे की हालत में हमें सोया हुआ दिखा। बस्ती में पिछले कुछ महीनों में कई जवान लड़के बीमार हुए हैं जबकि एक की मृत्यु भी हुई है। मृतक के घर वालों से हमने बात करने का प्रयास किया लेकिन वे बात करने में असहज दिखे।

पास में ही वार्ड संख्या 25 हॉस्पिटल रोड पर नगर परिषद द्वारा निर्मित सार्वजनिक शौचालय व स्नानागार है। वहां छोटी सी एक बस्ती है जहां रिक्शा चालक नीमूधन पासवान रहते हैं। बीते 5 मार्च को उनके 35 वर्षीय बेटे का निधन हो गया। नीमूधन ने बताया कि उनका बेटा पंजाब के जालंधर में मज़दूरी करता था। वहां शराब की लत लग गई जिसने देखते देखते उसके शरीर को खोखला कर दिया।

किशनगंज में इलाज कराया गया लेकिन सेहत में बेहतरी नहीं आई। एक दिन अचानक तबीयत ज्यादा बिगड़ने पर एमजीएम अस्पताल ले जाया गया, तो डॉक्टरों ने जवाब दे दिया और मरीज़ को घर ले जाने को कहा। परिजनों ने सदर अस्पताल में भर्ती कराया लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका। नीमूधन पासवान ने बताया कि उनके बेटे के फेफड़े और लिवर खराब हो गए थे। टेस्ट में उनकी आंत में भी ज़ख्म पाया गया था।

“एक बार उसको पेट में ट्यूमर का बीमारी हो गया था तो लाइन्स क्लब में इलाज कराये थे। जालंधर से आया तो बहुत तबीयत खराब था, बहुत बुखार था। डॉक्टर को दिखाए, दवा खाने से ठीक हुआ फिर अचानक एक दिन उसको अटैक आया। लाइन्स क्लब में बोला कि इसको ले जाईये, फिर सरकारी अस्पताल ले गए तो ऑक्सीजन लगाया मगर वह नहीं बच सका, दम तोड़ दिया,” नम आँखों से नीमूधन पासवान ने कहा।

नीमूधन के मृत बेटे के तीन बच्चे हैं जिनका भविष्य अनिश्चितताओं के चक्रव्यूह में फंसा है। उन्होंने कहा, “उसकी दो लड़की की शादी हो गई है, एक लड़का 12 साल का है। परिवार जालंधर में ही रहता है। हम उसको बोलते थे नशा छोड़ दो, नहीं छोड़ पाया।”

सरकारी नशा मुक्ति केंद्र में क्यों नहीं हो रही भर्ती

भारती देवी और नीमूधन पासवान किशनगंज सदर अस्पताल से कुछ मीटर की दूरी पर रहते हैं। सदर अस्पताल में नशा मुक्ति केंद्र कई सालों पहले खुल चुका है हालांकि वहां मरीज़ों की भर्ती नहीं हो रही है। ‘मैं मीडिया’ ने अगस्त 2022 और अप्रैल 2023 में किशनगंज में नशे की समस्या को लेकर खबर छापी थी। तब भी सदर अस्पताल के नशा मुक्ति केंद्र में मरीज़ों की भर्ती नहीं हो रही थी। तब अस्पताल की तरफ से कहा गया था कि नशे से ग्रस्त मरीज़ अगर आते हैं तो उनकी भर्ती जरूर की जायेगी।

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इस पर भारती देवी का कहना है कि उन्होंने अपने बेटे को अस्पताल में भर्ती कराने का प्रयास किया था लेकिन अस्पताल वालों ने मना कर दिया।

“अस्पताल ले गए तो बोला कि ये सब यहां नहीं रहेगा, ये यहां रखने लायक नहीं है। अगर सरकारी अस्पताल में नशा केंद्र खोल दे तो आज ही ले जाकर भर्ती करा देंगे। अगर भर्ती कर लेगा तो बहुत अच्छा हो जाएगा,” भारती देवी बोलीं।

भारती जैसे कई परिवारों को इस बात की चिंता है कि उनके परिजन नशे की गिरफ्त में हैं, लेकिन उन्हें नशा छुड़वाने के लिए नशा मुक्ति केंद्र भेजने में काफी खर्च आता है। जिले के सदर अस्पताल में सरकारी सुविधा होने के बावजूद नशे का इलाज नहीं हो पा रहा है।

“सरकार बोलता है दारू बंद है, सरकार आकर बताये दारू कहाँ बंद है? पहले से ज़्यादा बिकता है, घर घर बिकता है। नशा बेचता है, स्मैक, डेन्ड्राइट और सूई भी। सरकार तो यह मौत का उपाय कर दिया है। मेरा बेटा का सेहत भी बहुत खराब है। दिन भर खाना नहीं खाता है। एक नशा केंद्र रुईधासा में है तो वहां पहले 6,000 मांगता है। कहाँ से लाएंगे, मेरा औकात नहीं है,” भारती बोलीं।

नशे की गिरफ्त में फंसे युवाओं की भर्ती प्रक्रिया जानने हम किशनगंज सदर अस्पताल में मौजूद नशा मुक्ति केंद्र पहुंचे। केंद्र में कुछ मरीज़ भर्ती भी दिखे। वहां मौजूद नर्स से बात करने पर पता चला कि केंद्र पर नशे के मरीज़ों की भर्ती नहीं हो रही हालांकि खाली पड़े कुछ कमरों में दूसरे मरीज़ों को रखा गया है। आगे उन्होंने कहा कि नशे से ग्रस्त मरीज़ों की भर्ती क्यों नहीं हो रही इसकी जानकारी डॉक्टर के पास है।

इसके बाद हमने किशनगंज सदर अस्पताल के प्रबंधक एम.जे. अशरफ से बात की। उन्होंने बताया कि अस्पताल में डॉक्टर की भारी कमी है। कई विभागों में पीजी डॉक्टरों की भी कमी है। यही हाल मनोरोग विभाग का भी है। मनोचिकित्सक न होने के कारण काफी मुश्किलें होती हैं।

अस्पताल के सिविल सर्जन राजेश कुमार ने बताया कि नशा मुक्ति केंद्र चालू तो है लेकिन वहाँ भर्ती नहीं हो रही है। अगर मरीज़ आये तो भर्ती ज़रूर होगी। राजेश कुमार ने हमें इस बारे में अस्पताल के चिकित्सा उपाधीक्षक से बात करने को कहा।

थाने से लेनी होती है लिखित अनुमति

अस्पताल के उपाधीक्षक अनवर हुसैन ने स्पष्ट किया कि नशा मुक्ति केंद्र चालू है लेकिन मरीज़ों की भर्ती नहीं हो रही है। इसकी वजह बताते हुए वह कहते हैं, “मरीज़ भर्ती होने के लिए शर्त यह है कि मरीज़ आने पर थाने से गार्ड मिलेगा तभी रख पाएंगे। उस तरह के मरीज़ बहुत उत्तेजित रहते हैं, उन लोगों को हमलोग तो नहीं देख पाएंगे। यह नशा मुक्ति केंद्र के गाइडलाइन में है।”

आगे उन्होंने कहा कि अस्पताल में कोई विशेष रूप से मनोचिकित्सक नहीं है हालांकि एक प्रशिक्षित स्टाफ देवेंद्र कुमार हैं, जो ज़रूरत पड़ने पर मरीज़ देखते हैं। भर्ती की ज़रूरत होती है, तो थाने को लिख कर दिया जाता है।

“जैसे कैदी का होता है न वैसे ही भर्ती होगी। अगर कोई घर वाला मरीज़ को लेकर आता है तो घर वाले से तो नियंत्रण नहीं होता है। हमलोग देखे हैं, वो लोग नियंत्रण नहीं कर पाते हैं, मरीज़ उनकी बात भी नहीं मानते हैं। भर्ती के लिए थाने में खुद लिख कर दीजिये या हमलोग देंगे। जबतक थाने से नहीं करेंगे तब तक भर्ती नहीं ले पाएंगे,” अस्पताल उपाधीक्षक अनवर हुसैन बोले।

अस्पताल के नशा मुक्ति केंद्र में दूसरे मरीज़ों को भर्ती करने पर अनवर हुसैन ने बताया कि नशा केंद्र में 16 बेड है। उसमें किसी कैदी आदि को भी रखने की व्यवस्था है। फिलहाल नशा केंद्र बंद पड़ा था इसलिए उसको काम में लाने के लिए कुछ मरीज़ों को वहां रखा गया है। केंद्र में एक तरफ स्टाफ रूम, ड्यूटी रूम, डॉक्टर का चैम्बर है जो कि नशा मुक्ति के लिए है। विपरीत दिशा में पुरुष और महिला के लिए अलग से 2 बड़े कमरे हैं। इनमें कस्टडी वाले मरीज़ों को रखने की व्यवस्था है।

“नशे के मरीज़ खिड़की से भी भाग जाते हैं, उतना रिस्क कैसे लेंगे हमलोग। अभी मरीज़ ओपीडी में दिखाने आते हैं तो देख लिया जाता है। डॉक्टर जैसा बोलते हैं हमलोग वैसा ही करते हैं। दवा भी यहां दी जाती है। भर्ती का मामला लीगल टाइप का है इसलिए वो आसानी से नहीं हो पाता,” अनवर हुसैन ने व्याख्या की।

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सैयद जाफ़र इमाम किशनगंज से तालुक़ रखते हैं। इन्होंने हिमालयन यूनिवर्सिटी से जन संचार एवं पत्रकारिता में ग्रैजूएशन करने के बाद जामिया मिलिया इस्लामिया से हिंदी पत्रकारिता (पीजी) की पढ़ाई की। 'मैं मीडिया' के लिए सीमांचल के खेल-कूद और ऐतिहासिक इतिवृत्त पर खबरें लिख रहे हैं। इससे पहले इन्होंने Opoyi, Scribblers India, Swantree Foundation, Public Vichar जैसे संस्थानों में काम किया है। इनकी पुस्तक "A Panic Attack on The Subway" जुलाई 2021 में प्रकाशित हुई थी। यह जाफ़र के तखल्लूस के साथ 'हिंदुस्तानी' भाषा में ग़ज़ल कहते हैं और समय मिलने पर इंटरनेट पर शॉर्ट फिल्में बनाना पसंद करते हैं।

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