सलमान (बदला हुआ नाम) किशनगंज के नगर क्षेत्र का निवासी है। वह आजकल पश्चिम बंगाल स्थित रायगंज के एक नशा मुक्ति केंद्र में अपने नशे की लत को छोड़ने की जद्दोजहद में लगा है।
24 वर्षीय सलमान की ढाई साल पहले शादी हुई थी, लेकिन नशे की आदत के कारण अक्सर घर में लड़ाई झगड़े होते थे। सलमान की मां कहती हैं कि उनका बेटा लॉकडाउन से पहले ठीक कमाता था। वह एक दुकान में नौकरी करता था और जल्द ही अपनी एक दुकान शुरू करने वाला था, लेकिन लॉकडाउन आने से काम बंद हो गया। उस दौरान मोहल्ले में उठना बैठना बढ़ा और लॉकडाउन खुलते खुलते वह स्मैक के नशे का शिकार हो चुका था।
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नशीला पदार्थ नहीं मिलने पर मारपीट करता था और अक्सर ज़ख़्मी हालत में घर लौटता था। “मेरा बेटा यह सब में नहीं था, अच्छा खासा काम करता था। यह सब बस्ती का खराब लड़का लोग उसको कहाँ कहाँ लेके जाता था। पूरा माहौल खराब कर दिया है। सलमान को हम लोग किसी तरह 4 महीने पहले सेंटर भेजे हैं। ग़रीब आदमी हैं फिर भी किसी तरह पेट काट कर उसको पैसा भेजते हैं,” सलमान की मां कहती हैं।
सलमान की मां ने आगे कहा कि उन्होंने आसपास के नशा मुक्ति केंद्र में भी पता किया था, लेकिन वहां की मासिक फीस काफी अधिक थी इसलिए पश्चिम बंगाल के सस्ते पुनर्वास केंद्र में उन्होंने अपने बेटे को भर्ती कराया। उन्होंने बताया कि 21 साल पहले उनके पति का देहांत हो गया था और वह दूसरों के घर काम करने जाती हैं। उसमें से किसी तरह हर महीने 5 हज़ार की रकम बेटे के इलाज के लिए नशा मुक्ति केंद्र में देती हैं।
सलमान की तरह शहर में दर्जनों युवा नशे का शिकार हैं और उनमें से अधिकतर कम से कम एक बार नशा मुक्ति केंद्र होकर आ चुके हैं।
इलाज के बाद भी नशे की गिरफ्त में पहुंच रहे युवा
23 वर्षीय हशमत (बदला हुआ नाम) 2 बार नशा मुक्ति केंद्र की अवधि पूरी करके आया है लेकिन जब भी वह घर वापस आता है नशे की लत उसे अपनी चपेट में ले लेती है।
अमेरिकी लेखक जेम्स क्लेयर अपनी पुस्तक “एटॉमिक हैबिट्स” में लिखते हैं कि लत जैसी आदतों को बदलने के लिए वातावरण यानी आसपास का माहौल बहुत निर्णायक होता है। पुनर्वास केंद्र में माहौल बदलते ही नशे की लत कम होने की संभावना अधिक होती है, लेकिन पुराने माहौल में लौटने से पुरानी आदतों का लौटना लगभग तय रहता है। उन्होंने लिखा, “वातावरण ही मानव व्यवहार को आकार देता है।”
हशमत के घर वालों ने बताया कि वे लोग अब थक चुके हैं और उनके पास अब पैसा भी नहीं कि तीसरी बार उसे पुनर्वास केंद्र भेज सकें। हशमत के पिता भी कई सालों से नशे की चपेट में हैं। फिलहाल, वह बंगाल के एक नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती हैं।
अब्दुल्लाह (बदला हुआ नाम) 21 वर्ष का था जब पिछले साल सितंबर में उसकी मृत्यु हो गई। सालों से स्मैक और दूसरे पदार्थों के सेवन के कारण उसके शरीर के अहम अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। अब्दुल्लाह की मां ने इस बारे में कोई भी बात करने से मना कर दिया। आसपास के लोगों ने बताया कि मृत्यु से पहले अब्दुल्लाह की हालत बेहद खराब थी। अस्पताल वालों ने बड़े अस्पताल ले जाने को कहा था, लेकिन पैसों के अभाव के कारण परिवार वाले उसको बड़े अस्पताल तक नहीं ले जा सके। लोगों ने बताया कि अब्दुल्लाह की तरह कुछ महीने पहले पास के मोहल्ले में भी नशे में लत से जूझ रहे एक लड़के की मौत हो गई थी।
हमें किशनगंज के पशिमपाली के मुख्य सड़क पर एक ठेला चलाने वाला लड़का अंकित (बलदा हुआ नाम) दिखा। जानकारी मिली थी कि अंकित कई महीनों से स्मैक की नशे की गिरफ्त में हैं। हम ने उससे स्मैक के लिए पूछा तो उसने कहा, “टूटन (स्मैक) तो यही पास में मिलता है। हमको भी तलब लगा हुआ है, पिजिएगा क्या? घर का टेंशन होता है तो चल जाते हैं पी लेते हैं और सोकर रहते हैं। मेरे पास 100 रुपया है आप भी कुछ दीजिए तो दोनों जाकर पिएंगे,” अंकित कहता है।
उसने आगे कहा कि खगड़ा में स्मैक मिलता है, 250 का छोटा पैकेट और 500 का बड़ा पैकेट मिलता है। उसके अनुसार, वह लगभग रोज़ाना 100 रुपए का खरीदकर लाता है।
अंकित जैसे दर्जनों लड़के स्मैक, गांजा, डेन्ड्राइट जैसे न जाने कितने प्रकार के नशे का शिकार हैं। दिहाड़ी मज़दूर से लेकर कॉलेज और काम करने वाले लोगों तक यह नशे की बीमारी पहुँच चुकी है। ऐसे अनगिनत मिसालें केवल किशनगंज से जैसे छोटे शहर में मौजूद हैं। सीमांचल के बाकी शहरों समेत पूरे राज्य बल्कि पूरे देश में यह बीमारी संक्रमण की तरह फैल रही है।
क्या कहते हैं आंकड़े
प्रोजेक्ट उदया नामक एक वेबसाइट के आंकड़ों की मानें, तो बिहार में 15 से 19 वर्ष के 20% किशोर तंबाकू, शराब या किसी और नशे में ग्रस्त हैं। बिहार देशभर में उत्तर प्रदेश (22%) के बाद एकलौता राज्य है जहां के 20% या उससे अधिक लड़के (15-19 वर्ष) नशे की लत से जूझ रहे हैं। बिहार की शहरी आबादी के मुकाबले ग्रामीण इलाकों में नशे के मरीज़ अधिक पाए जा रहे हैं। शहरी इलाकों में बड़ी उम्र के 17% लड़के नशे के मरीज़ हैं, वहीं, ग्रामीण इलाकों में यह आंकड़ा 21% पहुँच चुका है।
14 दिसंबर 2022 को भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कुछ चौंकाने वाले आंकड़े पेश किए। एक सर्वे के आधार पर पेश किए उन आकंड़ों में कहा गया कि देश में 1 करोड़ 58 लाख बच्चे जिनकी उम्र 10 से लेकर 17 वर्ष है, नशीली पदार्थ की लत से दोचार हैं। इसके अलावा 3.1 करोड़ भारतीय मारिजुआना और गांजा जैसे कई प्रतिबंधित पदार्थों का नियमित सेवन कर रहे हैं।
2020 में केंद्र सरकार द्वारा ‘नशा मुक्त भारत अभियान’ की शुरुआत की गई थी। इसके आंकड़ों के अनुसार 2020-21 और 2021-22 में बिहार के 2,895 मरीज़ों को इस अभियान का लाभार्थी बताया गया है। इसमें राज्य में नशे से ग्रस्त लोगों के आंकड़ें नहीं दिए गए हैं।
सीमांचल में नशा मुक्ति केंद्र
पूर्णिया में आनंद नशा मुक्ति केंद्र नाम से एक निजी पुनर्वास केंद्र चला रहे प्रीतम आनंद ने ‘मैं मीडिया’ से बताया कि 3 साल पहले उन्होंने यह सेंटर खोला था। उनके सेंटर पर आस पास के जिलों के अलावा असम और सिक्किम से भी मरीज़ आते हैं जिसमें अधिकतर मरीज़ों की आयु 18 वर्ष से 25 वर्ष तक होती है। “यहां 18 से 50 वर्ष के आयु के मरीज़ों का इलाज होता है। ज़्यादातर यहाँ 18 से 25 वर्ष आयु के मरीज़ आते हैं। शराब बंद होने के बाद यहां बंगाल के एरिया से (नशीला पदार्थ) आता है। छोटी छोटी उम्र के लड़के जो 17 साल के, 16 साल के हैं, वे स्मैक पी रहे हैं। एक बार तो हमारे यहां 13 साल के बच्चे को भी लेकर आए थे उसके घर वाले। हमलोग 18 से काम आयु के लड़कों को कानूनी तौर पर सेंटर पर नहीं रख सकते इसलिए हमने उन्हें मना कर दिया।”
प्रीतम ने आगे बताया कि ज़्यादातर मरीज़ बहुत काम आयु के होते हैं। अक्सर स्कूल और कॉलेज के दिनों में अपने दोस्तों में एक दूसरे को देख कर नशे की शुरुआत करने वाले लड़के इसका शिकार हो जाते हैं। आनंद नशा मुक्ति केंद्र में स्वयंसेवक के अलावा मनोचिकित्स्क और मनोविज्ञानिक की एक टीम नशे से जूझ रहे मरीज़ों की देख रेख करती है।
प्रीतम ने बताया कि अमूमन मरीज़ 5, 6 महीनों के इलाज के बाद पूरी तरह ठीक हो जाते हैं। हालाँकि कई बार ऐसा भी होता है कि मरीज़ ठीक हो कर घर लौटने के बाद दोबारा नशे की चपेट में आ जाते हैं।
किशनगंज के सरकारी नशा मुक्ति केंद्र खाली क्यों
हाल के दिनों में किशनगंज के शहरी इलाके में कोई निजी नशा मुक्ति केंद्र सक्रिय नहीं है। जिला सदर अस्पताल में एक नशा मुक्ति केंद्र ज़रूर है लेकिन वहां महीनों से किसी मरीज़ की भर्ती नहीं हुई है। इस पर हमने सदर अस्पताल के उप अधीक्षक डॉ अनवर हुसैन से बात की। उन्होंने बताया कि सदर अस्पताल का नशा मुक्ति केंद्र चालु है, जांच कराने कभी कभी यहां लोग आते हैं लेकिन महीनों से किसी मरीज़ की भर्ती नहीं की गई है।
डॉ अनवर हुसैन ने कहा, “हाँ मरीज़ आते हैं, कुछ महीनों से भर्ती वग़ैरह नहीं हुआ है लेकिन केंद्र चालु है, रिपोर्ट रोज़ाना जाती है। जो भी एमबीबीएस डॉक्टर इमरजेंसी में होता है, वह ऐसे मरीज़ों को देखता है, जांच करता है। एक विशेष डॉक्टर भी हैं डॉक्टर देवन्द्र कुमार जो डिस्ट्रिक्ट टीकाकरण अधिकारी हैं अभी।”
किशनगंज सदर अस्पताल के उप अधीक्षक से जब हम ने पूछा कि क्यों शहर के लोग सिलीगुड़ी, रायगंज और पूर्णिया जैसे शहरों के नशा मुक्ति केंद्र में मरीज़ों को भर्ती करा रहे हैं जबकि महीनों से सरकारी नशा मुक्ति केंद्र खाली पड़ा है। उन्होंने इसके जवाब में कहा, “लोग डर से नहीं आते होंगे थाना पुलिस के। मगर ऐसी कोई बात नहीं है, नशा मुक्ति केंद्र तो है ही उनके लिए। कोई होगा तो आप यहां भेजिएगा, कोई दिक्कत नहीं है।”
क्या कर रहा प्रशासन
पिछले कुछ सालों में सीमांचल में नशीली पदार्थ की काला बाज़ारी कई गुना बढ़ी है। जानकार का मानना है कि शराब बंदी के बाद नशे की कालाबाज़ारी में बहुत तेज़ी से बढ़ोतरी हुई है। इसके अलावा कोरोना काल में इस काले बाज़ार को पैर पसारने का और भी अवसर मिलने लगा। कोरोना के दौरान दवाई दुकानों में सर्दी, खांसी, बुखार की दवाइयों की बिक्री कई गुना बढ़ गई थी ऐसे में कफ़ सिरप लेना एक बहुत आम सी बात थी।

पिछले हफ्ते पूर्णिया, कटिहार और किशनगंज में पुलिस ने नशीले पदार्थ और दवाइयों की धर पकड़ की। कटिहार के पोठिया थाना क्षेत्र अंतर्गत कुर्सेला गेड़ाबाड़ी जा रहे स्कॉर्पियो गाड़ी से दो तस्कर समेत प्रतिबंधित कफ़ सिरप के कई कार्टून बरामद किए। पूर्णिया के कसबा इलाके से एक और वाहन में लदे 500 से अधिक सिरप की बोतल बरामद की।

कटिहार के पोठिया थाना क्षेत्र अंतर्गत कुर्सेला – गेड़ाबाड़ी जा रहे स्कॉर्पियो गाड़ी से पुलिस ने प्रतिबंधित कफ़ सिरप के कई कार्टून ले जा रहे दो तस्करों को पकड़ा। पूर्णिया के कसबा इलाके से एक और वाहन में लदे 500 से अधिक सिरप की बोतलें बरामद की।

किशनगंज पुलिस ने भी नशीली दवाइयों के स्मग्लरों के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए दो दिन के अंदर कई गिरफ्तारियां की।
किशनगंज थाने के एएसआई संजय सिंह ने ‘मैं मीडिया’ से एक बातचीत के दौरान में बताया कि पिछले हफ्ते उनकी टीम ने सिलीगुड़ी से आई एक टीम के साथ मिलकर किशनगज रेलवे स्टेशन के निकट तस्करों को धार दबोचा। तस्करों के पास से स्मैक के 40 पुड़िया बरामद हुईं। संजय सिंह ने आगे बताया कि उन्होंने पिछले कुछ सालों में अब तक किए गए दर्जनों छापेमारी में 300 से अधिक तस्करों को पकड़ा है। उन्होंने बताया कि किशनगंज पुलिस ने नशा के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है और भविष्य में भी तस्करों से निपटने के लिए हर संभव कार्य किए जाएंगे।
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