अंतर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस के मौके पर बिहार के सहरसा जिले में दिव्यांगजन अपने अधिकारों की मांग को लेकर सड़कों पर उतरे। महंगाई के कारण आर्थिक संकट से जूझ रहे ये लोग सरकार से बेहतर पेंशन और रोज़गार के अवसरों की मांग कर रहे हैं। शारीरिक सीमाओं के चलते कई दिव्यांगजन अपनी और अपने परिवार की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने में असमर्थ हैं।
कोसी क्षेत्रीय विकलांग, विधवा व वृद्ध कल्याण समिति के नेतृत्व में मंगलवार को सैकड़ों दिव्यां सहरसा समाहरणालय पहुंचे और सरकार और प्रशासन के सामने अपनी मांगें रखीं।
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प्रदर्शन में शामिल कई दिव्यांगजन ग्रेजुएट हैं और कुछ ने कौशल विकास योजना के तहत प्रशिक्षण भी लिया है लेकिन उनकी शिकायत है कि सरकार से उन्हें किसी तरह का लाभ नहीं मिल रहा है। मासिक पेंशन के तौर पर उन्हें केवल 400 रुपये मिलते हैं जो बेहद कम है। इसके अलावा दिव्यांगजनों को बैंक से लोन भी नहीं मिल पाता है। लोन मांगने पर कर्मचारी कई तरह के कागज़ात और सरकारी गारंटर की मांग करते हैं जिस कारण वे छोटा मोटा व्यवसाय भी शुरू नहीं कर पाते।
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि बिहार सरकार के अधीन दिव्यांगों के लिए जो योजनाएं हैं, जमीनी स्तर पर उन्हें उनका लाभ नहीं मिल रहा है। सहरसा जिले के मूक बधिर और मानसिक दिव्यांगों का सर्टिफिकेट भी नहीं बन पाता है जिससे वे सरकारी लाभों से वंचित रह जाते हैं। अन्नपूर्णा योजना के तहत दिव्यांगों को 35 किलोग्राम अनाज देने का प्रावधान है लेकिन उन्हें इस योजना का भी लाभ नहीं मिल रहा है।
सरकारी अस्पतालों में जांच या इलाज करने के बजाय दिव्यांगों को सीधे बड़े अस्पतालों में रेफर कर दिया जाता है। दिव्यांग बच्चों के अभिभावकों के पास इतने पैसे नहीं होते कि वे पटना एम्स जैसे बड़े अस्पतालों में जांच और इलाज करा सकें।
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