कटिहार जिले के आजमनगर प्रखंड अंतर्गत मध्य विद्यालय शीतलमणी के बावर्ची खाने में मध्याह्न भोजन पकाया जा रहा है। बावर्ची खाने की छत एस्बेस्टस से बनी है जो बीच में से टूट चुकी है, जिससे सूरज की रोशनी सीधे चूल्हे के पास आ रही है।
एक बड़ी सी मिट्टी के चूल्हे में सब्जी बनाई जा रही है और चावल बनकर तैयार हो चुका है। आज सरकारी मेनू के हिसाब से अंडा दिया जाना है। हेड मास्टर साहब अंडा लाने के लिए बाज़ार गए हुए हैं।
बावर्ची खाने में एलुमिनियम के कुछ बहुत पुराने बर्तन रखे हैं जो जगह-जगह से पिचक गए हैं। फर्श की कंक्रीट पूरी तरह टूट चुकी है जिसे एमडीएम बनाने वाली महिलाओं ने मिट्टी से समतल बनाया है। दीवारों के प्लास्टर झड़ चुके हैं।
रुखसाना खातून, निमोला और बदरुन्निशा दशकों से विद्यालय के इस बावर्ची खाने में एमडीएम पकाती हैं। कुछ महिलाएं 10 वर्षों से ज्यादा समय से वहां खाना पका रही हैं।
एमडीएम पकाने वाली सभी महिलाओं ने मैं मीडिया को बताया, “बर्तन आर घर दखे ले इला बर्तनत हमरा केन्ने खाना पकामू, दस साल स यैला बर्तन लारेछी। उपरे टीन भंगे गेलछे बरसातेर दिनत हमसार मोरन हैं जाछे, चुल्हा नी जलछे (आप लोग इन बर्तनों को और इस घर को देखिए, हमें कुछ कहने की जरूरत नहीं है। इन बर्तनों में हम लोग कैसे खाना पकाएंगे! कुछ बर्तन तो 10 साल से ज्यादा पुराने हैं, जो पूरी तरह से पिचक गए हैं और घिस गए हैं। इनको साफ करते यह डर लगा रहता है कि कहीं हाथ ही ना कट जाए। बावर्ची खाने की छत जगह-जगह से टूट गयी है। बरसात के दिनों में किन मुश्किलों में हम लोग खाना पकाते हैं, यह हम ही लोग जानते हैं। अंदर बारिश का पानी गिर जाता है तो चूल्हा भीग जाता है फिर उसे जलाकर बच्चों के लिए खाना पकाना बहुत मुश्किल भरा होता है),” उन्होंने कहा।
स्कूल की दीवारों पर अभद्र चित्रण और अभद्र शब्द लिखे गए हैं। एक कमरे में टूटे फूटे बेंच और जम चुके सीमेंट की बोरी भी पड़ी है।
चौथी कक्षा में हम पहुंचे, तो एक शिक्षिका कक्षा में उपस्थित थी, लेकिन उनकी उपस्थिति में दो छात्र कक्षा में किताब रखने के लिए बने ताक पर बैठे खेल रहे थे।
ग्रामीण मो. इफ्तेखार ने बताया, “स्कूल का शौचालय में ताला बंद रहता है। बच्चे इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं। इसके अलावा विद्यालय की बाउंड्री जगह जगह से टूट गयी है। विद्यालय की बाउंड्री में गेट नहीं लगा है। सामने से मुख्य सड़क गुजरती है, जो प्रखंड मुख्यालय तक जाती है। इस सड़क में ट्रक और कई भारी वाहन चलते हैं। कभी भी कोई छात्र दुर्घटना का शिकार हो सकते हैं,” उन्होंने कहा।
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क्या कहते हैं हेडमास्टर
इस मामले पर जब हमने मध्य विद्यालय शीतलमणी के हेड मास्टर साकिब जमाली से फोन पर बात की, तो उन्होंने कहा कि स्कूल के पीछे की बाउंड्री पहले ही गिर चुकी है और जहां तक मेन गेट का सवाल है, उसको हमने तत्काल बच्चों की सुविधा और सुरक्षा के हिसाब से व्यवस्थित कर दिया है।
पुराने बर्तन और बावर्ची खाने के खस्ताहाल के बारे में उन्होंने कहा कि हमने एमडीएम डीपीओ को इस संबंध में सूचित कर दिया है।
आगे वह कहते हैं, “यह स्कूल गांव में है और गांव में हेड मास्टर के तौर पर किसी स्कूल को चलाना अब काफी मुश्किल हो चुका है। गांव में बहुत सारे लड़के होते हैं, जो क्लब और बाकी ग्रुप से भी जुड़े होते हैं। हमें सब का ख्याल रखना पड़ता है और बैलेंस करते हुए स्कूल चलाना पड़ता है। लेकिन, अब सब ठीक है, मैनेज हो गया है। गांव के सभी लड़के स्कूल चलाने में सहयोग करने लगे हैं।
कदवा के विद्यालयों की भी हालत जर्जर
इससे ज्यादा जर्जर हाल कदवा प्रखंड के प्राथमिक विद्यालय बहादुरपुर का है। इस स्कूल में सिर्फ दो ही कमरे हैं, जो पूरी तरह से जर्जर हो चुके हैं। एक कमरे में रसोई का कुछ सामान है और एक महिला बैठी सब्जी काट रही है।
जब हम अंदर पहुंचे, तो सब्जी काट रही महिला हंसते हुए कहती हैं कि देख लीजिए हमलोग किस तरह खाना पकाते हैं। नीचे फर्श की ईंट तक खत्म हो गयी है। खाना पकाने के लिए हर स्कूल में घर होता है, लेकिन यहां रसोई घर नहीं है।
विद्यालय की प्रधानाध्यापिका बबीता रानी साह ने बताया कि नए भवन के लिए कई बार प्रखंड मुख्यालय और जिला मुख्यालय में आवेदन दिया जा चुका है, लेकिन सालों बीत जाने के बाद भी कुछ नहीं हुआ।
जान हथेली पर रखकर एमडीएम पकाती महिलाएं
कटिहार जिले के कदवा प्रखंड अंतर्गत नया प्राथमिक विद्यालय, दरियापुर की भी हालत कमोवेश ऐसी ही है। स्कूल के रसोई घर में दो महिलाएं अनवरी खातून और समिदन खातून खाना बना रही है। रसोईघर में दो बड़े दरवाजे और दो बड़ी-बड़ी खिड़कियों के लायक जगह छोड़ी गई है, लेकिन निर्माण होने के दशकों बाद भी उनमें दरवाजा नहीं लगाया है और न ही खिड़की लगी है।
रसोईघर के दरवाज़े के पास एक गाय और उसका बछड़ा बंधा हुआ है। स्कूल में बाउंड्री वॉल नहीं होने की वजह से स्थानीय ग्रामीण स्कूल कैंपस का इस्तेमाल करते हैं।
रसोईघर के ऊपर एसबेस्टस टीन की छत है जो बांस के ऊपर टिकी है, लेकिन वह इस तरह टंगा है कि कभी भी बड़े हादसे का कारण बन सकता है।
खाना बना रही समिदन खातून और अनवरी खातून ने कहा, “रसोई घर की छत कभी भी गिर सकती है। हमलोग जान हथेली पर रखकर यहां खाना पकाते हैं। जब भी बारिश होती है, तो रसोई घर के अंदर पानी घुस जाता है, फिर चूल्हा ठीक से नहीं जलता है।”
“गैस चूल्हा खराब हो गया है, जिसे ठीक करवाने के लिए बहुत दिनों से हेडमास्टर को बोल रहे हैं, लेकिन अबतक ठीक नहीं हुआ। बावर्ची खाने में दरवाजा और खिड़कियां नहीं होने की वजह से यहां जानवर घुस जाते हैं और चूल्हे को तोड़ देते ,हैं क्योंकि स्कूल में बाउंड्री वॉल नहीं है,” उन्होंने कहा।
स्थानीय वार्ड सदस्य मो. नजमुल हक़ बताते हैं कि बाउंड्री वॉल नहीं होने की वजह से आए दिन स्कूल का ताला तोड़कर सामान चोरी कर लिया जाता है, कई बार स्कूल का ताला तोड़कर एमडीएम चावल चोरी होने की घटनाएं हुई हैं।
ग्रामीण मो. मिन्नतुल्लाह का कहना है कि स्कूल में लगभग 112 बच्चे पढ़ते हैं। बगल में मेन सड़क है, जो दूसरे प्रखंड को जाती है। “स्कूल में छोटे-छोटे बच्चे रहते हैं। कभी भी कोई हादसा हो सकता है। इसके साथ ही स्कूल के पीछे तालाब है और बाढ़ के दिनों में तालाब में पानी भर जाता है, जिसमें बच्चों के डूबने का खतरा है, इसलिए जल्दी से स्कूल की बाउंड्री करवा देनी चाहिए,” उन्होंने कहा।
इस संबंध में स्कूल के हेडमास्टर मो. नजम-उस-साकिब का कहना है कि स्कूल के निर्माण के लिए जितनी राशि का आवंटन किया गया था, वह कम थी। राशि देने की बात पहले हो गई थी, लेकिन जब राशि मिली तब तक निर्माण सामग्री की कीमत काफी बढ़ गई थी। इस वजह से मैंने अपने पैसे से स्कूल के दोनों शौचालय का निर्माण करवाया है और चांपाकल लगवाया है। फंड की कमी के चलते ही स्कूल का कुछ काम अधूरा पड़ा है। जर्जर रसोईघर के बारे में पूछने पर बताया कि रसोईघर का फॉर्मेट हमारे पास आया हुआ है जिसे भरकर जिला में जमा कर देंगे,” उन्होंने कहा।
खस्ताहाल बावर्चीखाने के बारे में जब हमने कटिहार के जिला एमडीएम डीपीओ से फोन पर बात की, तो उन्होंने कहा कि हमने जिले के सभी स्कूलों के जर्जर हो चुके बावर्चीखानों की सूची मंगवाई है। सूची में जिस विद्यालय का नाम लिखा होगा, उसके लिए फंड दिया जाएगा और बावर्ची खाने की मरम्मत करा दी जाएगी।
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