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सुपौल: ठेकेदार ने बेच दिया सरकारी पुल का लोहा!

जनवरी महीने में सुपौल के छातापुर प्रखंड की लक्ष्मीनिया पंचायत स्थित गेंडा नदी पर बने लोहे के पुल की चोरी की घटना सामने आई है।

Rahul Kr Gaurav Reported By Rahul Kumar Gaurav |
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बिहार में अजीबोगरीब चोरियों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस साल जनवरी महीने में सुपौल के छातापुर प्रखंड की लक्ष्मीनिया पंचायत स्थित गेंडा नदी पर बने लोहे के पुल की चोरी की घटना सामने आई है। हालांकि इस मामले पर लोहा बेचने वाले ठेकेदार का कहना है कि पुल को तोड़कर बेचने का उन्हें बाकायदा टेंडर मिला था।

गौरतलब हो कि लक्ष्मीनिया पंचायत के बीचो-बीच गेंडा नदी में फाइव स्पेन आरसीसी पुल का निर्माण किया जा रहा है, जिसका शिलान्यास स्थानीय सांसद दिलेश्वर कामत और विधायक नीरज सिंह बबलू ने किया था। इस नदी पर करीब 40 साल पहले साल 1980 के दशक में लोहे का ब्रिज बना था। इसी पुल के समानांतर नया पुल बन रहा है। ऐसे में पुराने पुल को हटाया जाना था।

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बताया जा रहा है कि ठेकेदार के द्वारा 30 लाख रुपए कीमत का यह पुल सिर्फ 1.50 लाख रुपए में बेच दिया गया। प्रशासन को अभी तक इस बात की खबर नहीं है। 13 जनवरी को लक्ष्मीनिया पंचायत के ग्रामीणों के स्थल पर पहुंचने के बाद मामला उजागर हुआ।


30 लाख का लोहा डेढ़ लाख में बेचा, फिर हंगामा

लक्ष्मीनिया पंचायत के मुखिया प्रतिनिधि और समाजसेवी रोशन झा बताते हैं, “फाइव स्पेन आरसीसी पुल के निर्माण की वजह से पुराने पुल को तोड़ने की जिम्मेदारी ठेकेदार को दी गई है। लेकिन ठेकेदार ने विभाग से अनुमति लिए बिना ही 30 लाख के लोहे को डेढ़ लाख की मामूली कीमत में बेच दिया। मैंने खुद ग्रामीण कार्य विभाग के अभियंता अवधेश सिंह को फोन किया था, तो उन्होंने कहा कि एक ठेकेदार को अप्रूवल मिला था लेकिन कागजी कार्रवाई पूरी नहीं हुई है।”

उन्होंने कहा कि पुल में 50 टन से ज्यादा लोहा था, लेकिन जेई साहब के मुताबिक सिर्फ डेढ़ से दो लाख में यह टेंडर निकला था। इसके बाद भी विभाग के द्वारा लोहा को बेचने की अनुमति नहीं मिली हैं, लेकिन ठेकेदार के द्वारा 90 फीसदी से ज्यादा लोहा उठ चुका है। “हम जनप्रतिनिधियों को भी कोई जानकारी नहीं थी। 13 जनवरी की सुबह कुछ ग्रामीणों ने फोन किया तो मैं गया था। उसके बाद भी ग्रामीणों के विरोध करने पर ट्रक लेकर भाग निकला,” उन्होंने कहा।

dilapidated bridge

विरोध प्रदर्शन में शामिल लक्ष्मीनिया गांव के सुनील कुमार बताते हैं, “ठेकेदार के द्वारा तीन ट्रक से ज्यादा लोहा बाहर भेजा जा चुका है। चौथा ट्रक 12 तारीख की सुबह आया था। उसके बाद ग्रामीणों की भीड़ जमा होने लगी। ग्रामीणों ने लोहा ले जाने को लेकर कागज दिखाने को कहा, तो पूरा मामला उजागर हुआ। ग्रामीणों ने सिर्फ लोहा बेचने संबंधी अनुमति पत्र की मांग की, लेकिन ठेकेदार और मुंशी ने पत्र दिखाने से मना किया, तो भीड़ बढी और प्रदर्शन शुरू हो गया।”

ग्रामीणों के मुताबिक, लोहे के पुल का अधिकतर सामान रात के अंधेरे में ट्रक के द्वारा भेजा जाता था।

क्या टेंडर प्रक्रिया पूरा होने से पहले ही बेचा गया लोहा?

छातापुर प्रखंड की लक्ष्मीनिया पंचायत स्थित गेंडा नदी से लक्ष्मीनिया पंचायत के वार्ड-2, 4, 11, 13, 14 और मधुबनी पंचायत के वार्ड-3, 5 ज्यादा प्रभावित होते हैं। वहां के लगभग 20 से 25 विभिन्न जाति और धर्म समूह के ग्रामीणों से मैं मीडिया ने बात की। किसी ने पुल के लोहे की कीमत 50 लाख तो किसी ने 20 लाख तो किसी ने 15 लाख बताई। नए पुल का टेंडर होने पर पुराने पुल को ग्रामीण कार्य विभाग त्रिवेणीगंज द्वारा अररिया जिले के ठेकेदार तौसीफ को केवल डेढ़ लाख रुपए में बेच दिया गया है। जबकि अभी तक पुल के सभी पुराने लोहे को उठाने की कागजी प्रक्रिया को भी पूरी नहीं की गई है।

करीब 30-35 लाख रुपए कीमत वाले पुल के कबाड़ को मात्र एक से डेढ़ लाख के टेंडर के मुद्दे पर निजी ठेकेदार और संबंधित विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत की बात भी सामने आ रही है। कोसी प्रोजेक्ट पर काम कर चुके एक अधिकारी नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं,”तटबंध के भीतर पुल निर्माण और बाढ़ के बाद पुल की चोरी के नाम पर खूब घोटाला होता है। आजकल सब कुछ ऑनलाइन होने की वजह से लोगों को पता चल जाता है। पहले की स्थिति और भी खराब थी। कोई नया मामला नहीं है, पुल चोरी का इस क्षेत्र में।”

क्या कहते हैं मुंशी, ठेकेदार और अधिकारी

पुल का कबाड़ बेचने वाले ठेकेदार साहब तौसीफ पूरे मामले को लेकर कहते हैं, “1,90,100 रुपए में मैंने पूरा पुल खरीदा है। मेरे पास पूरा कागज है। जिसको जो कहना है, कहने दीजिए। मेरे पास अनुमति है।” क्या आप मुझे अनुमति का पेपर दिखा सकते हैं? इतना बड़ा पुल का ठेका सिर्फ इतने कम रुपए में आपको कैसे मिला? इस सवाल के जवाब में तौसीफ बताते हैं,” ऐसे हम क्यों किसी को कागज दिखाएंगे। जरूरत पड़ेगा, तो दिखा देंगे। इतना कम रुपयों पर क्यों ठेका मिला, इसका जवाब तो सरकारी बाबू से लीजिए।”

वहीं, मुंशी आसिफ बताते हैं, “स्थानीय मीडिया हमारी बात को नहीं दिखा रहा है। कुछ ग्रामीणों से पैसों के मामले में नोकझोंक हुई थी, इसलिए इस मामले को बढ़ा चढ़ाकर दिखाया जा रहा है। कोई चोरी नहीं हुई है। सब आरोप बेबुनियाद है।”

अनुमंडल पदाधिकारी (त्रिवेणीगंज) मो. शेख जियाउल हसन बताते हैं, “अभी तक मेरे संज्ञान में ऐसा कोई मामला नहीं आया है।”

प्रखंड विकास पदाधिकारी आशा कुमारी से उनके दफ्तर में मुलाकात नहीं हो पाई और संपर्क नंबर से भी बात नहीं हो पाई। हालांकि ग्रामीणों के प्रदर्शन के बाद विभाग के द्वारा

लोहा के पुल को बेचने की प्रक्रिया को रोक दी गई है। जांच प्रक्रिया खत्म होने के बाद आगे काम किया जाएगा।

रेल इंजन और मोबाइल टावर तक की हो चुकी चोरी

बिहार में अजीबोगरीब चोरियों की यह कोई पहली घटना नहीं है। पिछले कुछ समय में यहां इस तरह की चोरियों की कई घटनाएं हो चुकी हैं। साल 2021 में पूर्णिया जिले के पूर्णिया कोर्ट स्टेशन पर एक स्टीम इंजन कई सालों से रखा हुई थी। एक दिन अचानक वह इंजन गायब हो गई।

मामले की तहकीकात में पता चला कि रेलवे के एक अफसर ने फर्जी ऑर्डर निकलवा कर इंजन को टुकड़ों टुकड़ों में काट स्क्रैप मार्केट में खपा दिया था।

पिछले साल अप्रैल महीने में रोहतास जिले में आरा कनाल पर खड़े पांच दशक पुराने लोहे के पुल को दिनदहाड़े काटकर बेच दिया गया था। इस मामले में भी जब जांच पड़ताल की गई, तो मालूम चला कि सिंचाई विभाग के कर्मचारियों की मिलीभगत से दिनदहाड़े पुल को काटकर बाजार में खपा दिया गया था।

इस घटना के बाद ही जल संसाधन मंत्री संजय झा ने कहा था कि बिहार में जितने भी पुराने और परित्यक्त पुल हैं, उन्हें टेंडर जारी कर ढहा दिया जाएगा ताकि उनकी चोरी न हो जाए।

इसी तरह पिछले दिनों बेगूसराय जिले के गरहारा यार्ड में मरम्मत के लिए लाई गई रेल इंजन को सुरंग बनाकर गायब कर दिया गया था। पुलिस के मुताबिक, चोर रात के अंधेरे में सुरंग के रास्ते इंजन तक पहुंचते थे और उसके कुछ हिस्सों को काटकर बाजार में बेच देते थे। इस चोरी का खुलासा तब हुआ जब मुजफ्फरपुर के एक स्क्रैप मार्केट से पुलिस ने रेल इंजन के कुछ हिस्से बरामद किए।

पिछले ही साल पटना शहर से दिनदहाड़े एक मोबाइल टावर को उखाड़ कर चोर ले गए थे। स्थानीय लोगों को इसकी जानकारी तब लगी, जब मोबाइल कंपनी के अधिकारियों ने मौके पर पहुंच कर देखा कि मोबाइल टावर गायब हो गया है।

इन घटनाओं से पता चलता है कि प्रशासनिक स्तर पर या तो लापरवाही बरती जाती है या फिर सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत होती है।

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एल एन एम आई पटना और माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय से पढ़ा हुआ हूं। फ्रीलांसर के तौर पर बिहार से ग्राउंड स्टोरी करता हूं।

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