बीते दिनों कसबा निवासी अशोक कुमार की 8.14 एकड़ भूमि पर कुछ लोग जबरन घुस गए। बकौल अशोक कुमार ये लोग उनकी भूमि पर जबरन कब्ज़ा करने की नीयत से घुसे। नजदीकी थाने की पुलिस के साथ अंचलाधिकारी (सीओ) कसबा के मौके पर पहुँच जाने व उनके कड़े रूख के कारण असामाजिक तत्वों को वहाँ से बैरंग वापस लौटना पड़ा।
इस घटना से कुछ महीने पहले से अशोक कुमार परेशान चल रहे हैं। शिक्षा के पेशे से सेवानिवृत्त अशोक कुमार अपने जीवन अवस्था के ढलान पर हैं। सालों मेहनत करते हुए परिवार चलाया, धन व भूमि अर्जित की। एक गृहस्थ का हर कर्तव्य निभाया। अपनी जिन्दगी की हर अवस्था को सुखद बनाने के लिए वो सब कुछ किया, जिसकी अपेक्षा किसी सामान्य गृहस्थ से की जाती है। लेकिन, बीते कुछ महीनों से परेशानी हाथ धोकर उन्हें अपने पीछे दौड़ा रही है। सम्पन्न हैं, परेशानियों से लड़ रहे हैं। आगे-आगे परेशानी चल रही है, पीछे-पीछे अशोक कुमार।
Also Read Story
अशोक कुमार के पीछे पड़ी परेशानी उम्र जन्य है न पारिवारिक। उनकी समस्या किसी लिहाज से स्वाभाविक न होकर कृत्रिम है। कतिपय भू-माफियाओं के गठजोड़ से उपजी अशोक कुमार की परेशानी के पोषक सीओ कसबा फहिमुद्दीन और डीसीएलआर पूर्णिया परमानंद साह का आदेश है। यह आदेश ‘बिहार भूमि दाखिल खारिज अधिनियम (दाखिल खारिज कानून)’ के तहत पारित किया गया है। इस आदेश में सच्चाई की भनक रहते हुए गलत कर जाने का स्वार्थ है, भू-माफियाओं के फर्जी कामों का पोषण है, अविवेक व अर्द्ध-न्यायिक अधिकारी होने के कारण मनमाना आदेश पारित कर बच जाने की हनक का भौंडा प्रदर्शन है।
दरअसल, कसबा के रहने वाले अशोक कुमार की माता का देहांत साल 2016 में हो गया। उत्तराधिकार में अशोक सहित सभी संतानों को 8.14 एकड़ भूमि मिली। साल 2019-20 तक उन्होंने उत्तराधिकार में मिली भूमि का लगान कसबा अंचल कार्यालय में अदा किया और बदले में लगान रसीद प्राप्त की। हालांकि, तब तक अशोक कुमार व उनके सहोदरों ने उत्तराधिकार में मिली जमीन का नामांतरण (दाखिल खारिज) नहीं कराया।
बीते साल जब वह अपनी भूमि का दाखिल खारिज कराने अंचल कार्यालय, कसबा पहुँचे तो उन्हें मालूम हुआ कि उनकी भूमि का दाखिल खारिज विवेकानंद कॉलोनी, पूर्णिया के रहने वाले किसी विजय सिंह के नाम हो गया है। यह जानकारी मिलते ही उनके पाँव के नीचे से जमीन खिसक गई। परेशान अशोक ने अपने परिवार के सदस्यों से यह बात साझा की।
विजय सिंह के पक्ष में किया गया दाखिल खारिज
उनके परिवार के सदस्यों ने सीओ कसबा फहिमुद्दीन के कार्यालय से जानकारी व दस्तावेज जुटाना शुरू किया। व्यक्तिगत स्तर पर जानकारी जुटाने की कवायद में मिली जानकारी के अनुसार, उन्हें व उनके सहोदरों को उत्तराधिकार में मिलने वाली 8.14 एकड़ भूमि का दाखिल खारिज सीओ कसबा फहिमुद्दीन ने अंचल के कर्मचारी व अंचल निरीक्षक (सीआई) की जाँच रिपोर्ट और अनुशंसा पर विजय सिंह के पक्ष में उसके द्वारा प्रस्तुत किए गए जाली केबाला (विक्रय पत्र) के आधार पर कर दिया।
अशोक व उनके परिवार ने कागजों को अतिरिक्त गहनता से खंगालना शुरू किया। इस क्रम में यह बात खुली कि सीओ कसबा ने किसी विजय सिंह द्वारा दायर नामांतरण वाद संख्या में जारी अपने आदेश के आदेश-फलक पर विजय सिंह द्वारा प्रस्तुत केबाला पर पहले संदेह प्रकट किया, लेकिन बाद में अज्ञात कारणों से उसी केबाला के आधार पर अशोक कुमार की माँ के नाम की भूमि का विजय सिंह के पक्ष में दाखिल खारिज कर दिया।
सीओ कसबा फहिमुद्दीन द्वारा विजय सिंह के पक्ष में पारित दाखिल खारिज आदेश के खिलाफ अशोक कुमार ने दाखिल खारिज कानून के तहत भूमि सुधार उप समाहर्ता (डीसीएलआर), पूर्णिया परमानंद साह के न्यायालय में नामांतरण अपील वाद दायर किया। अपील वाद की सुनवाई के दौरान डीसीएलआर पूर्णिया परमानंद साह ने दोनों पक्षों को सुना और उनके द्वारा उपलब्ध कराये दस्तावेजों को देखा। अपने न्यायालय में दायर सन्दर्भित नामांतरण अपील वाद में दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद डीसीएलआर, पूर्णिया ने अशोक कुमार बनाम विजय सिंह व अन्य मामले में अपना आदेश पारित कर दिया।
अपने आदेश में डीसीएलआर, पूर्णिया ने अशोक कुमार द्वारा दायर नामांतरण अपील वाद को अस्वीकृत कर दिया। इस तरह से डीसीएलआर, पूर्णिया ने विजय सिंह व अन्य के पक्ष में आदेश दिया।
न्यायिक प्रकृति के कारण सीओ कसबा फहिमुद्दीन व डीसीएलआर पूर्णिया परमानंद साह द्वारा पारित आदेश को संरक्षण (इम्युनिटी) प्राप्त है। लेकिन, सीओ कसबा व डीसीएलआर पूर्णिया द्वारा नामांतरण अपील वाद अशोक कुमार बनाम विजय सिंह व अन्य में पारित आदेश, भूमि से जुड़े विवादों को कम करने के बजाय बढ़ाने और दाखिल खारिज कानून को बनाने व लागू करने की बिहार सरकार की मंशा पर कुठाराघात का बेहतरीन उदाहरण है। यह इम्युनिटी प्राप्त न्यायिक आदेशों की आड़ में पदाधिकारियों व कर्मचारियों की स्वेच्छाचारिता का भंडा फोड़ता है।
विजय सिंह द्वारा प्रस्तुत केबाला के आधार पर भूमि उसके पक्ष में दाखिल खारिज करने वाले सीओ कसबा ने बाद में अपनी रिपोर्ट में विजय सिंह के केबाला को फर्जी बताते हुए उसे निरस्त करने की अनुशंसा डीसीएलआर, पूर्णिया से की। अपनी रिपोर्ट के पक्ष में सीओ कसबा ने अवर निबंधक, पूर्णिया से प्राप्त सूचना-पत्र शामिल किया।
दरअसल, सीओ कसबा ने नामांतरण करने के बाद अशोक कुमार व उसके परिवार के सक्रिय हो जाने से उपजी परिस्थितियों को भांपते हुए जिला अवर निबंधक, पूर्णिया को एक पत्र भेजकर विजय सिंह द्वारा प्रस्तुत केबाला की जानकारी माँगी। जिला अवर निबंधक, पूर्णिया ने सीओ कसबा को प्रेषित अपने पत्र में जानकारी दी कि विजय सिंह द्वारा दाखिल खारिज के लिए प्रस्तुत केबाला संख्या 5672 साल 1985, उनके कार्यालय में कभी निबंधित हुआ ही नहीं। साल 1985 की केबाला संख्या 5672 के तहत किसी मनोरमा ने अपनी तीन कट्ठा ढाई धुर जमीन यशोवर्द्धन के नाम की थी।
इससे यह बात खुलकर सामने आयी कि 8.14 एकड़ की भूमि का नामांतरण अपने पक्ष में कराने के लिए विजय सिंह द्वारा जाली केबाला प्रस्तुत किया गया।
डीसीएलआर, पूर्णिया ने अपने आदेश में यह सच ही उल्लेखित किया कि केबाला की सत्यता जांचने का अधिकार सिविल कोर्ट को है। उन्होंने यह भी मान लिया कि अशोक कुमार की माँ ने अपने जीवनकाल में अपनी भूमि विजय सिंह को बेच दी थी। वहीं, अशोक कुमार व उनके परिवारों की संजीदगी और गंभीरता से न्यायिक विकल्पों की तलाश से उपजे हालातों में कसबा सीओ फहिमुद्दीन के आदेश से अंचल के राजस्व कर्मचारी सह प्रभारी अंचल निरीक्षक सुमन कुमार यादव ने कसबा थाने में पूर्णिया निवासी विजय सिंह के खिलाफ धोखाधड़ी की प्राथमिकी दर्ज करायी है।
कसबा अंचल के सीओ, सीआई व राजस्व कर्मचारी ने दरकिनार किये तथ्य
बिहार भूमि दाखिल खारिज नियमावली, 2012 (संशोधन नियमावली 2017) के अध्याय 5 में किसी सीओ को नामांतरण याचिका से संबंधित प्रपत्र 11 में आम सूचना व प्रपत्र 12 में खास सूचना निर्गत करने का प्रावधान है।
सामान्यतया, अंचल कार्यालयों में आम सूचना के समुचित प्रदर्शन के लिए सूचना पट्ट नहीं है। कई बार तो आम सूचना प्रदर्शन के लिए रखी भी नहीं जाती। सन्दर्भित मामले में अशोक कुमार व उनके परिवार के सदस्यों को विजय सिंह द्वारा दाखिल-खारिज याचिका दिये जाने की सूचना सीओ कसबा के जरिए मिली ही नहीं।
अंचल कार्यालय, कसबा द्वारा प्रपत्र XI व XII में आम नोटिस व खास नोटिस की सूचना न मिल पाने के कारण अशोक कुमार व उनके सहोदर को सीओ कसबा के राजस्व न्यायालय में आकर अपना पक्ष रखने का युक्तियुक्त अवसर नहीं मिल पाया।
राजस्व कर्मचारी की जाँच रिपोर्ट व सीआई की अनुशंसा
इस मामले में न तो कसबा अंचल के राजस्व कर्मचारी सह प्रभारी सीआई ने दाखिल खारिज कानून में तय प्रावधानों के तहत स्थल जाँच की, न ही सीओ ने अपने स्तर से किसी भी तरह की जाँच करने की जहमत उठाई।
दाखिल-खारिज से पहले भूमि व रैयत के बीच का संबंध जांचे जाने का प्रावधान है। इस प्रावधान के अनुपालन में राजस्व दस्तावेजों की जांच के अतिरिक्त स्थल जांच का भी प्रावधान है, जिसका इस मामले में अंचल कार्यालय, कसबा के सीओ, सीआई व राजस्व कर्मचारी द्वारा अनुपालन नहीं किया गया।
जिन तथ्यों व प्रावधानों को दरकिनार कर गए डीसीएलआर पूर्णिया
डीसीएलआर, पूर्णिया के सामने विजय सिंह के पक्ष में सीओ कसबा का नामांतरण आदेश, सीओ कसबा का ही नामांतरण निरस्त करने की संस्तुति, जिला अवर निबंधक (रजिस्ट्रार), पूर्णिया से विजय सिंह द्वारा प्रस्तुत केबाला उनके कार्यालय में निबंधित नहीं होने की जानकारी थी। अवर निबंधक ‘सक्षम अधिकारी’ के दायरे में आते हैं जिसे बिहार भूमि दाखिल खारिज अधिनियम, 2011 की धारा 2(V) में परिभाषित किया गया है। इस आधार पर उनके पास नामांतरण वाद को सीओ कसबा के पास प्रतिप्रेषित (रिमांड) करने का विकल्प था।
दखल की वास्तविक स्थिति का पता लगाने का विकल्प
न्याय के हित में डीसीएलआर, पूर्णिया के पास 8.14 एकड़ भूमि पर दखल की वास्तविकता का पता लगाने का अधिकार था। बिहार भूमि दाखिल खारिज अधिनियम, 2011 की धारा 5(i) सीओ को यह अधिकार देती है कि वह नामांतरण याचिका प्राप्त होने पर कर्मचारी व सीआई को विस्तृत जांच रिपोर्ट देने का आदेश दे सके। वहीं, अधिनियम की धारा 5 उपधारा (ii), (iii), (iv), (v) यह व्यवस्था करती है कि कर्मचारी तय तरीके से जांच कर अपनी रिपोर्ट सीआई को देगा और कर्मचारी की जांच-रिपोर्ट की सत्यता जांचने के बाद सीआई अपनी रिपोर्ट व अनुशंसा कर्मचारी की जांच रिपोर्ट के साथ सीओ को भेजेगा। अपने अधीनस्थों की रिपोर्ट व अनुशंसा से संतुष्ट होने पर सीओ दाखिल-खारिज की याचिका स्वीकृत करेगा अन्यथा असंतुष्टि की स्थिति में अपने विवेक से खुद जांच कर सकेगा। इस आधार पर डीसीएलआर, पूर्णिया के पास अशोक कुमार बनाम विजय सिंह व अन्य के मामले में खुद से स्थल जाँच कर जमीनी हकीकत का पता लगाने का विकल्प था।
सरकार द्वारा भूमि विवाद को कम करने की दिशा में उठाए गए कदमों में हर शनिवार सभी थानों में जनता दरबार का आयोजन, दाखिल-खारिज की व्यवस्था को ऑनलाइन करना आदि हैं। इसके अतिरिक्त भूमि या उसके किसी भाग को अर्जित करने के बाद रैयत द्वारा संबंधित अंचलों में उसके दाखिल-खारिज की प्रक्रिया को ‘बिहार भूमि दाखिल खारिज अधिनियम व नियमावली’ के रूप में कानून की शक्ल देना एक महती काम है।
इसके बावजूद भूमि विवाद कम नहीं हो रहे हैं। इसकी एक मुख्य वजह दाखिल खारिज कानून के प्रावधानों के अनुरूप उसका अनुपालन करने वालों की लापरवाही, मिलीभगत, निजी स्वार्थ हैं। बिहार भूमि दाखिल खारिज अधिनियम व नियमावली’ की धारा 2 में उल्लेखित अधिकारियों व कर्मचारियों के द्वारा तार्किक व न्यायसंगत जांच रिपोर्ट, अनुशंसा व आदेश पारित करने में विफल रहने के कारण बढ़ रहे भूमि विवादों को रोक पाने में बिहार सरकार के राजस्व व भूमि सुधार विभाग के मंत्री व वरीय पदाधिकारी विफल रहे हैं।
इस बाबत पूछे जाने पर अंचलाधिकारी, कसबा ने कुछ भी कहने से साफ मना कर दिया। वहीं, डीसीएलआर सदर पूर्णिया द्वारा फोन रिसीव न करने के कारण ख़बर लिखे जाने तक उनका पक्ष प्राप्त नहीं हो सका।
सीमांचल की ज़मीनी ख़बरें सामने लाने में सहभागी बनें। ‘मैं मीडिया’ की सदस्यता लेने के लिए Support Us बटन पर क्लिक करें।