बिहार के नालंदा ज़िले का बिहारशरीफ शहर स्मार्ट बनता जा रहा है। इसे स्मार्ट सिटी का तगमा भी मिल चुका है। शहर के विकास पर करोड़ों रुपए खर्च हो चुके हैं। लेकिन, कोसुक इलाके में रहने वाला महादलित समाज अब भी उस विकास से अछूता है। यहां के लोग बदहाली भरी जिंदगी जीने को मजबूर हैं। कई बार इस कचरे में आग लगा दी जाती है, जिससे उठने वाले धुएं और बदबू के कारण लोगों का अपने घरों में रहना तक मुश्किल हो जाता है।
यहां के स्थानीय लोगों ने बार-बार प्रदर्शन किया। यहां से डंपिंग यार्ड हटाने को लेकर लोगों ने अनेकों बार प्रशासन से गुहार लगाई, लेकिन वादों के सिवा कुछ हासिल नहीं हुआ। उनकी मांग है कि डंपिंग यार्ड को तुरंत आबादी से दूर ले जाया जाए और उनके टूटे मकानों के लिए उचित मुआवजा व पुनर्वास की व्यवस्था हो।
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कचरे के ढेर से पांच गांव प्रभावित
बिहारशरीफ नगर निगम का कोसुक क्षेत्र धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए जाना जाता है। लेकिन आज ये कचरे के ढेर की वजह से बदनाम हो रहा है। यहां नगर निगम द्वारा डंप किया जाने बाला कचरा करीब तीन-चार एकड़ में फैला हुआ है। इससे राणाबिगहा, शीपा, लखरामा, पचौड़ी और टाड़ा जैसे गांव प्रभावित हो रहे हैं। गर्मियों में कचरे में लगने वाली आग से जहरीला धुआं फैलता है। बरसात में पानी भरने से बदबू और मच्छरों का प्रकोप बढ़ जाता है। नदी के किनारे होने की वजह से ये कचरा, मिट्टी और जल को दूषित कर रहा है।
बिहारशरीफ नगर निगम के आयुक्त दीपक मिश्रा बताते हैं, “हमने वर्तमान डंप साइट को स्थानांतरित करने की योजना बना ली है और इसके लिए वैकल्पिक स्थानों की तलाश कर रहे हैं। हमारी आवश्यकता लगभग 16 एकड़ सरकारी भूमि की है, लेकिन इतनी बड़ी भूमि अभी उपलब्ध नहीं हो पा रही है। फिलहाल, नकटपुरा में लगभग 4 एकड़ भूमि चिन्हित की गई है, जहाँ एमआरएफ (मटेरियल रिकवरी फैसिलिटी) साइट स्थापित करने की योजना है। इस एमआरएफ साइट की क्षमता प्रतिदिन 10 टन होगी।”
साथ ही, डालमिया सीमेंट्स के साथ हमारी एक व्यवस्था हुई है, जिसके तहत वे बिना किसी लागत के एमआरएफ साइट स्थापित करने के लिए सहमत हुए हैं। हमें केवल संसाधित सामग्री उनकी फैक्टरी तक भेजनी होगी।
‘आस्था और संस्कृति पर चोट’
कूड़ा डंपिंग से पर्यावरण और लोगों की सेहत पर दोहरा खतरा मंडरा रहा है। कोसुक निवासी मुन्ना मांझी बताते हैं, “रात में बदबू इतनी तेज होती है कि सांस लेना मुश्किल हो जाता है। खाना तक नहीं पचता। हवा जिस दिशा में बहती है, उधर के गांवों में परेशानी बढ़ जाती है।”
“बच्चों और बुजुर्गों की सेहत सबसे ज्यादा प्रभावित हो रही है। खांसी, सांस की तकलीफ और त्वचा रोग आम हो गए हैं। आसपास के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे भी इस प्रदूषण की चपेट में हैं, जिससे उनकी पढ़ाई और स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है”, मांझी आगे कहते हैं।
कोसुक घाट पर छठ, गंगा दशहरा और कार्तिक पूर्णिमा जैसे अवसरों पर भक्तों की भीड़ लगती है। मेले में हजारों श्रद्धालु जुटते हैं। लेकिन कचरे की वजह से यहीम की पवित्रता खो रही है। स्थानीय जितेंद्र कुमार कहते हैं, “यहां दूर-दूर से लोग आते हैं, लेकिन कचरे की बदबू और गंदगी की वजह से घाट की छवि खराब हो रही है। यह हमारी आस्था और संस्कृति पर चोट है।”
‘बदबू के बीच कैसे सपने देखें’
कोसुक मुशहर टोला के 50 महादलित परिवारों की मुश्किलें सिर्फ कचरा तक सीमित नहीं हैं। 2019 में उनके घर तोड़े गए थे और प्रशासन ने पुनर्वास का वादा किया था। डीएम ने जमीन नापकर, बिजली, पानी और मकान की व्यवस्था का आश्वासन दिया था। लेकिन, आज तक ये वादे हवा में हैं। मुन्ना मांझी बताते हैं, “हम तिरपाल के सहारे जी रहे हैं। न बिजली है, न पानी की ठीक व्यवस्था। हमारे बच्चों को न आंगनबाड़ी मिली, न सामुदायिक भवन। हमारा हक छीना जा रहा है। हम अपने टूटे मकान और टूटे सपनों के साथ एक उम्मीद के सहारे जीए जा रहे हैं।
चिंतित मुन्ना मांझी प्रशासन से सवाल पूछते हैं, “इन परिवारों में करीब 300 लोग हैं, जहाँ बच्चे अच्छी शिक्षा से वंचित हैं। कोई आंगनबाड़ी केंद्र नहीं, कोई स्कूल की सुविधा नहीं। गुजर-बसर के लिए ये लोग मेहनत-मजदूरी, खेतों में काम या सड़क निर्माण जैसे छोटे-मोटे कामों पर ही पूरी तरह से निर्भर हैं। हम चाहते हैं कि हमारे बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले, उनका भविष्य बने। लेकिन कचरे की बदबू और टूटे मकानों के बीच कैसे सपने देखें?” वह आगे कहते हैं, “महादलितों की कोई नहीं सुनता है। हम बदहाल हाल में अपना जीवन गुजर-बसर कर रहे हैं।”
मुआवजा व पुनर्वास के सवाल पर नगर आयुक्त ने कहा, “यह मेरे अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। जहां तक मेरी जानकारी है, कोसुक नदी के पास ज़मीन के कब्जे के प्रकार को लेकर कुछ समस्या है। एडीएम (राजस्व) इस पर कुछ जानकारी साझा कर सकते हैं।”
एसबीएम-यू (स्वच्छ भारत मिशन – शहरी) डैशबोर्ड के आंकड़े बताते हैं कि बिहार में शहरी स्वच्छता को लेकर कुछ क्षेत्रों में प्रगति हुई है, लेकिन अभी भी कई चुनौतियां बाकी हैं। राज्य के 262 शहरी निकायों में कुल 5,690 वार्ड हैं, जिनमें से 5,139 वार्डों में 100 प्रतिशत डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण की व्यवस्था की गई है। वहीं, 4,219 वार्डों में स्रोत पर कचरे का पृथक्करण सुनिश्चित किया गया है। हालांकि, राज्य में प्रतिदिन उत्पन्न होने वाले 6,701.29 टन कचरे में से केवल 1,942.52 टन का ही निपटान किया जा रहा है। इसका मतलब है कि केवल 29 प्रतिशत कचरे की ही प्रोसेसिंग हो पा रही है।
गिरियक की भी यही कहानी
नालंदा जिले के गिरियक में भी हालात कुछ अलग नहीं हैं। यहां नगर पंचायत द्वारा पंचाने नदी के किनारे कूड़ा फेंका जा रहा है। गिरियक के 12 वार्डों से ट्रैक्टरों से भरकर कचरा लाया जाता है और नदी किनारे डंप किया जाता है। कचरे में लगने वाली आग से उठने वाला धुआं वायु प्रदूषण फैला रहा है, और नदी में बहता कचरा जल प्रदूषण को बढ़ा रहा है।
चिंताजनक बात यह है कि इन कचरे के ढेरों में आग भी लगाई जा रही है। इससे निकलने वाला जहरीला धुआं न केवल स्थानीय वातावरण को प्रदूषित कर रहा है बल्कि आसपास के लोगों के स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरा बन गया है। यह कचरा डंपिंग गिरियक से राजगीर को जोड़ने वाले पुल के पास हो रहा है। राजगीर एक प्रमुख पर्यटन स्थल है और इस मार्ग से प्रतिदिन सैकड़ों पर्यटक गुजरते हैं।
गिरियक नगर पंचायत की कार्यपालक पदाधिकारी भावना कुमारी ने बताया कि उन्हें प्रभार लिए ज्यादा समय नहीं हुआ है। उन्होंने स्वीकार किया कि यदि नदी में कचरा डंप किया जा रहा है तो यह निश्चित रूप से गलत है।
उन्होंने आश्वासन दिया कि इसकी जानकारी प्राप्त कर कचरा निष्पादन के लिए उपयुक्त जगह की तलाश की जाएगी और वहीं उसे डंप किया जाएगा।
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