[vc_row][vc_column][vc_column_text]केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक रहे रामविलास पासवान के बाद बिहार की राजनीति में एक शुन्य की स्थिति बन गई है। वहीं दलित राजनीति की आवाज बुलंद करने वाला एक रहनुमा भी चला गया। यानि बिहार की राजनीति का यह एक जगह जिसपर रामविलास का चेहरा था वो अब उनके जाने के बाद सूना हो चुका है। ऐसे में अब इस सूने जगह को भरने की जिम्मेदारी उनके बेटे चिराग पासवान पर आ गई है।
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साल 1990 के पिछड़ा उभार के दौर से आगे निकल रामविलास ने जिस तरह समाज के हर वर्ग से तालमेल बिठाया और दलित राजनीति को अपना आधार बनाए रखा, उसी तरह क्या चिराग कर पाएंगे यह देखनेवाली बात है। ऐसे वक्त में जब पिता का साया सिर से उठ गया तो सियासत की उस विरासत को कैसे चिराग बररकार रखेंगे यह बड़ी चुनौती है। इसके अलावे भी चिराग के सामने कई सारी और चुनौतियां हैं। आइए ऐसी ही पांच चुनौतियों के बारे में जानते हैं-
पहली चुनौती: रामविलास पासवान के निधन के बाद अब चिराग के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि जिस तरह से रामविलास पासवान अपने पूरे परिवार को जिनमें उनके भाई-भतीजे और तमाम सगे-संबंधी शामिल हैं, उन्हें एकजुट रखा था और अधिकतर लोगों को राजनीति में एंट्री कराई थी. इस स्थिति में चिराग पासवान अपने परिवार को कैसे समेट और सहेज पाते हैं, यह देखने वाली बात होगी.
दूसरी चुनौती: चिराग पासवान के पास दूसरी सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को एकजुट रखने की होगी. इसके साथ ही पार्टी कार्यकर्ताओं को मोटिवेट करने की अब पूरी जिम्मेदारी चिराग पर होगी। अपने पिता की तरह संतुलन बिठाकर चलने वाले नेता के तौर पर अपनी पहचान क्या चिराग बना सकेंगे? यह बड़ा सवाल है।अब तक ऐसा माना जाता रहा है कि चिराग पासवान अपने कार्यकर्ताओं से अधिक घुलते-मिलते नहीं हैं, लेकिन पिता के चले जाने के बाद और उनके लोजपा अध्यक्ष रहने के बाद उनकी अतिरिक्त जिम्मेदारी बन जाती है।
तीसरी चुनौती: चिराग पासवान के समक्ष तीसरी बड़ी चुनौती यह है कि जिस तरह हाल में ही उन्होंने सीएम नीतीश पर हमला बोलते हुए बिहार एनडीए से अलग होने का फैसला लिया। इससे सीएम नीतीश और चिराग के बीच काफी खटास पैदा हो चुकी है। सीएम नीतीश की हाल में कही गई बातों से लगता है कि आने वाले समय में वह केंद्र पर यह दबाव भी बना सकते हैं कि चिराग की पार्टी को केंद्र में भी एनडीए से निकाला जाए। हालांकि, यह कयास हैं, लेकिन राजनीतिक जानकार मानते हैं कि ऐसी किसी भी आशंका से निपटने के लिए भी चिराग को तैयार रहना होगा जो उनके लिए चुनौती है।
चौथी चुनौती: जिस तरह से रामविलास पासवान बिहार की राजनीति की हर नब्ज से परिचित थे, ऐसी ही अपेक्षा लोजपा के कार्यकर्ता चिराग पासवान से भी करते हैं। जिस तरीके से रामविलास पासवान ने बिहार की राजनीति और केंद्र की सियासत के साथ तालमेल बिठाया और दोनों को एक साथ साधा वह शायद ही कोई और नेता कर सके, ऐसे में अब चिराग के सामने अपने पिता की इस छवि को बरकरार रखने की भी चुनौती होगी।
पांचवीं चुनौती: जब से चिराग पासवान अपनी पार्टी के अध्यक्ष बने हैं, उन्होंने 2 बड़े फैसले किए हैं. पहला झारखंड चुनाव में एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ने का और दूसरा बिहार में सीएम नीतीश के कार्यकाल में भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर उनके खिलाफ आवाज बुलंद की।
बिहार एनडीए से अलग होना भी चिराग का एक साहसिक कदम है। जाहिर तौर पर रामविलास पासवान भी उनके इस निर्णय के साथ थे। लेकिन, अब जब रामविलास नहीं रहे तो सियासत का संतुलन चिराग कैसे बिठा सकेंगे, यह उनके लिए बड़ी चुनौती है। साथ ही उनके लिए चुनौती है कि बिहार विधानसभा चुनाव में जिस नए तेवर और कलेवर के साथ उन्होंने पार्टी को उतारा है उससे पार्टी को नए आयाम पर ले जा सकें।
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