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सरकारी उदासीनता से सदियों पुराना जलालगढ़ किला खंडहर में तब्दील

कोसी नदी के किनारे बना जलालगढ़ किला जहां स्थित है, वह जगह पहले एक टापू नुमा ज़मीन थी। धीरे धीरे नदी के सिमटने से सूखी रेतीली ज़मीन उभर आई और फिर सत्रहवीं सदी में यहां इस विशाल किले का निर्माण करवाया गया।

syed jaffer imam Reported By Syed Jaffer Imam | Purnea |
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जलालगढ़ किला बिहार के पूर्णिया के जलालगढ़ प्रखंड के जलालगढ़ गाँव में एक 300 साल पुराना ढांचा समय का पहिया घुमाकर इतिहास में झांकने पर मजबूर करता है। पूर्णिया शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूर जलालगढ़ गाँव में आज खंडहर बन चुकी इस पुरानी इमारत में सालों पहले 15 से 20 हज़ार सैनिकों की छावनी हुआ करती थी। जलालगढ़ किला नाम से प्रसिद्ध यह इमारत आज भी इतिहास के पन्नों के वेंटिलेटर और कुछ सुर्ख ईंटों पर ज़िंदा है।

Jalalgarh fort satellite image

‘मैं मीडिया’ की टीम जब जलालगढ़ किले के परिसर में पहुंची, तो वहां खेत खलिहान के बीच एक पुराना खंडहर दिखा। खंडहर देख अनुमान लगाना मुश्किल है कि ढाई- तीन सदी पहले यहाँ एक विशाल किला हुआ करता था। किले का बचाखुचा हिस्सा लगातार ज़मीन में धस रहा है। जंगलों ने उस पर बसेरा कर लिया है। एक स्थानीय व्यक्ति की मदद से जब हम किले के एक छोटे से द्वार पर गए, तो पता चला कि इसी रास्ते में किला के अंदर जाने का एक द्वार हुआ करता था, जो सालों पहले बंद हो गया। किले के कई ज़ीने अभी भी बाकी हैं, हालांकि वो जिस हालत में हैं, उन्हें देख कर यह बता पाना कि किला के कौन से कोने का किस लिए उपयोग होता था, लगभग असंभव है।


हमने आस-पास खड़े लोगों से किले के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि इसका इतिहास तो हमारे पूर्वज जानते होंगे, हमें तो कुछ भी अंदाज़ा नहीं है।

पूर्णिया गजेटियर में किले का ज़िक्र

कोसी नदी के किनारे बना जलालगढ़ किला जहां स्थित है, वह जगह पहले एक टापू नुमा ज़मीन थी। धीरे धीरे नदी के सिमटने से सूखी रेतीली ज़मीन उभर आई और फिर सत्रहवीं सदी में यहां इस विशाल किले का निर्माण करवाया गया। सन् 1911 के पूर्णिया जिले के आखिरी गज़ेटियर में एल.एस.एस ओ’मैली ने जलालगढ़ किले का इतिहास दर्ज किया है। उनके अनुसार, जलालगढ़ किला मुस्लिम शासकों द्वारा नेपाल सीमा से आक्रमण से बचने के उद्देश्य से साल 1605 से 1627 के बीच बनाया गया था। गज़ेटियर में आगे बताया गया है कि जलालगढ़ किला मुग़ल शासक जहांगीर द्वारा चुने गए किशनगंज खगड़ा के पहले राजा सैयद मोहम्मद जलालुद्दीन ने बनवाया था। जानकारों का मानना है कि किला जहां बनाया गया था, उस गाँव का नाम राजा मोहम्मद जलालुद्दीन के नाम पर ही ‘जलालगढ़’ रखा गया था।

कुछ दूसरे इतिहासकरों की मानें, तो जलालगढ़ किला पूर्णिया के नवाब सैफ खान ने 1722 में बनवाया था, लेकिन ज़्यादातर मान्यता यही है कि जलालगढ़ किला सत्रवीं सदी की शुरुआत में ही वजूद में आ गया था।

Jalalgarh fort in Purnea district

मशहूर इतिहासकार ग़ुलाम हुसैन ज़ैदपुरी 1788 में प्रकाशित अपनी किताब ‘रियाजुस सलातीन’ में लिखते हैं कि बीरनगर के राजा के पास 15 हज़ार का लश्कर था और उसके साथ-साथ चकवार कबीला से ताल्लुक रखने वाले कुछ लोग राहगीरों को लूट लिया करते थे। यही कारण था कि मोरंग इलाके की सीमा पर जलालगढ़ किले का निर्माण कराया गया था। सैफ खान पूर्णिया के फौजदार थे। उस नाते उन्हें जलालगढ़ किले का सेनानायक बना दिया गया था। कई वर्षों बाद खगड़ा के सातवें राजा सैयद मोहम्मद जलील इस किले के जागीरदर बने। उन्होंने बंगाल के नवाब सौलत जंग को टैक्स देने से मना कर दिया जिसके बाद उन्हें सौलत जंग द्वारा क़ैद करवा दिया गया। तब से जलालगढ़ किला पर बंगाल के नवाब का कब्ज़ा हो गया।

19वीं सदी की शुरुआत में पूर्णिया के मजिस्ट्रेट ने पूर्णिया शहर की अस्वास्थ्यकरता को देखते हुए जलालगढ़ किले को जिला मुख्यालय बनाने की इक्छा ज़ाहिर की थी, लेकिन किसी कारणवश ऐसा हो न सका। जलालगढ़ किला पूर्णिया अररिया-रोड के दक्षिण-पूर्व ड़ेढ़ किलोमीटर की दूरी पर है। ऐसी मान्यता है कि इस किले को सैनिक छावनी के उद्देश्य से ही बनाया गया था। एल.एस.एस ओ’मैली के अनुसार उस समय गोरखाओं की बग़ावत का बहुत खतरा रहता था, शायद इसीलिए किले का निर्माण भी उस विशिष्ट जगह पर किया गया था।

A boy in Jalalgarh fort

जलालगढ़ किले की बनावट

जलालगढ़ किला पहले एक सौ एकड़ ज़मीन पर दीवारों से घिरा एक विशाल परिसर हुआ करता था। उस समय यह किला इंडो-इस्लामिक वास्तुकला पर निर्धारित एक भव्य ईमारत के तौर पर पूर्णिया की सबसे चर्चित इमारतों में से एक था। पूरब से पश्चिम की तरफ दीवार की लम्बाई 550 फ़ीट थी तथा दक्षिण से उत्तर की तरफ की लम्बाई 400 हुआ करती थी। दीवारों की चौड़ाई लगभग 7 फ़ीट थी और ये दीवारें 22 फ़ीट ऊंची बताई जाती हैं।

किले का मुख्य द्वार पूर्व की तरफ खुलता था, जो करीब 9 फ़ीट ऊंचा और 13 फ़ीट चौड़ा था। किले का एक निकास द्वार भी था, जो 7 फ़ीट ऊंचा और 5 फ़ीट चौड़ा हुआ करता था। यह द्वार दक्षिण की तरफ खुलता था।

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किले की द्वार पर काठ का भारी चौकठ-किबाड़ साल 1962 तक देखा गया था।

किले की चारों ओर अर्धचंद्राकार कमरे हुआ करते थे। हम जब किले में पहुंचे, तो हमें अर्धचंद्राकार कमरे जैसी बनावट नज़र आई। जलालगढ़ किला पूर्वी तरफ कोसी नदी से निकट है और ऐसा माना जाता है कि इस नदी के द्वारा जलालगढ़ किले के शासक मुर्शिदाबाद के शासकों से संपर्क साधते और संचार लाभ उठाते थे। किंवदंती है कि परमान नदी खाता से इस किले तक एक सुरंग बनाई गई थी।

Abandoned Jalalgarh fort in Purnea

लगभग 300 वर्ष बाद आज इस किले की न तो स्थानीय लोगों को खास जानकारी है, न ही बिहार राज्य के पुरातत्व विभाग की वेबसाइट पर जलालगढ़ किले का कोई ज़िक्र मिलता है।

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सैयद जाफ़र इमाम किशनगंज से तालुक़ रखते हैं। इन्होंने हिमालयन यूनिवर्सिटी से जन संचार एवं पत्रकारिता में ग्रैजूएशन करने के बाद जामिया मिलिया इस्लामिया से हिंदी पत्रकारिता (पीजी) की पढ़ाई की। 'मैं मीडिया' के लिए सीमांचल के खेल-कूद और ऐतिहासिक इतिवृत्त पर खबरें लिख रहे हैं। इससे पहले इन्होंने Opoyi, Scribblers India, Swantree Foundation, Public Vichar जैसे संस्थानों में काम किया है। इनकी पुस्तक "A Panic Attack on The Subway" जुलाई 2021 में प्रकाशित हुई थी। यह जाफ़र के तखल्लूस के साथ 'हिंदुस्तानी' भाषा में ग़ज़ल कहते हैं और समय मिलने पर इंटरनेट पर शॉर्ट फिल्में बनाना पसंद करते हैं।

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