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सुपौल पुल हादसे पर ग्राउंड रिपोर्ट – ‘पलटू राम का पुल भी पलट रहा है’

बीपी मंडल के गांव के दलितों तक कब पहुंचेगा सामाजिक न्याय?

सुपौल: घूरन गांव में अचानक क्यों तेज हो गई है तबाही की आग?

Ground Report की अन्य ख़बरें

क़र्ज़, जुआ या गरीबी: कटिहार में एक पिता ने अपने तीनों बच्चों को क्यों जला कर मार डाला

ग्रामीणों का कहना है कि दिनेश सिंह ने पत्नी से विवाद और तनाव के कारण खुद को और अपने बच्चों को पेट्रोल छिड़क कर आग के हवाले कर दिया। शुक्रवार देर रात लोगों को घटना की जानकारी मिली लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

त्रिपुरा से सिलीगुड़ी आये शेर ‘अकबर’ और शेरनी ‘सीता’ की ‘जोड़ी’ पर विवाद, हाईकोर्ट पहुंचा विश्व हिंदू परिषद

'बंगाल सफारी' में 'शेर-शेरनी' की 'जोड़ी' का नाम 'अकबर-सीता' होने को लेकर ही हिंदुत्ववादी संगठनों ने आपत्ति जताई है। इसे लेकर विश्व हिंदू परिषद ने‌ जलपाईगुड़ी स्थित कलकत्ता हाईकोर्ट की सर्किट बेंच में बीते 16 फरवरी को मुकदमा दायर किया है जिसे स्वीकृत भी कर लिया गया है। अब 20 फरवरी 2024 को जस्टिस सौगत भट्टाचार्य की पीठ इस मुकदमे की सुनवाई करेगी।

फूस के कमरे, ज़मीन पर बच्चे, कोई शिक्षक नहीं – बिहार के सरकारी मदरसे क्यों हैं बदहाल?

पिछले तीन महीनों में हमने government aid से चल रहे 1128, 205 और 609 केटेगरी के करीब एक दर्जन मदरसों को दौरा किया। इन मदरसों की हालत इतनी दयनीय है की राज्य में अगर कोई सरकारी स्कूल इस हालत में दिख जाए तो मेनस्ट्रीम मीडिया से लेकर सरकारी महकमे में हलचल मच जायेगी।

आपके कपड़े रंगने वाले रंगरेज़ कैसे काम करते हैं?

बिहार के कटिहार में कई लोग आज भी ऐसे हैं, जो कपड़ों को रंगने काम करते हैं। कपड़ों में रंगाई करने वाले ये लोग रंगरेज़ कहलाते हैं। रंगरेज़ रंगों और केमिकल से कपड़ों को रंगने का काम करते हैं।

‘हमारा बच्चा लोग ये नहीं करेगा’ – बिहार में भेड़ पालने वाले पाल समुदाय की कहानी

डोरिया गांव में एक नहर के किनारे रह रहे चरवाहों ने बताया कि वे साल में 6 महीने अररिया जिले के आसपास के इलाके व सुपौल के सीमावर्ती इलाकों में भेड़ चराने निकल जाते हैं। अमूमन ये लोग नदी किनारे मैदानों में भेड़ चराते हैं और 4 से 5 लोगों झुंड में एक जगह अस्थाई टेंट बनाकर निवास करते है।

पूर्णिया के इस गांव में दर्जनों ग्रामीण साइबर फ्रॉड का शिकार, पीड़ितों में मजदूर अधिक

साइबर चोरी में पैसे खोने वालों में अधिकतर बैंक खाते महिलाओं के हैं। जालसाज़ों ने उन लोगों को शिकार बनाया है, जो सीएसपी यानी ग्राहक सेवा केन्द्रों पर जाकर अपना पैसा निकलवाते हैं, इनमें से अधिकतर खाता धारकों के पास डेबिट कार्ड भी नहीं है।

किशनगंज में हाईवे बना मुसीबत, MP MLA के पास भी हल नहीं

किशनगंज के ठाकुरगंज प्रखंड अंतर्गत पौआखाली नगर पंचायत के मीरभिट्टा गांव के वार्ड संख्या 1 और 2 का रास्ता फ्लाईओवर बनने से बंद हो गया है। गांव के लोगों को हाईवे पर चढ़ने के लिए ढलान वाले रास्ते का इस्तेमाल करना पड़ता है। ग्रामीणों का कहना है कि इतने ऊंचे रास्ते से चढ़ने और उतरने में काफी दिक्कतें पेश आती हैं जिसके लिए सर्विस रोड की आवश्यकता है।

कम मजदूरी, भुगतान में देरी – मजदूरों के काम नहीं आ रही मनरेगा स्कीम, कर रहे पलायन

मनरेगा मजदूरों को इस योजना से फायदे के बजाय नुकसान ज्यादा हो रहा है। काम करने के बाद वे महीनों भुगतान के इंतजार में बैठे रहते हैं जिससे उन्हें और उनके परिवारों को आर्थिक तंगी से गुजरना पड़ता है। इसी वजह से ज्यादातर मजदूर प्रदेश पलायन कर रहे हैं।

शराब की गंध से सराबोर बिहार का भूत मेला: “आदमी गेल चांद पर, आ गांव में डायन है”

बलि के लिए स्थानीय लोग सूअर के पिल्लों, मुर्गियों, अंडों और शराब लेकर मेले में पहुंचे थे। यह आयोजन उनके लिए रोजगार था। मैदान में चाकू लेकर एक दर्जन से अधिक डोम और मुसहर समुदाय के लोग भी पहुंचे थे, जो कुछ पैसा लेकर बलि देते थे। इनमें 14-15 साल के बच्चे से लेकर 40 साल के अधेड़ शामिल थे।

‘मखाना का मारा हैं, हमलोग को होश थोड़े होगा’ – बिहार के किसानों का छलका दर्द

बिहार में मखाना का सबसे ज़्यादा उत्पादन आज सीमांचल के चार जिलों पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज और अररिया में हो रहा है। इसी को देखते हुए अगस्त 2020 में भारत सरकार ने 'मिथिला मखाना' को GI टैग दिया है।

बिहार रेल हादसे में मरा अबू ज़ैद घर का एकलौता बेटा था, घर पर अब सिर्फ मां-बहन हैं

दिल्ली से किशनगंज लौटने के लिए वह बुधवार को नार्थ ईस्ट एक्सप्रेस ट्रेन पर सवार हो गया, लेकिन अपनी मंज़िल से करीब 460 किलोमीटर दूर रघुनाथपुर रेलवे स्टेशन के पास ट्रेन हादसे का शिकार हो गया।

कटिहार: 2017 की बाढ़ में टूटी सड़क, रोज़ नांव से रेलवे स्टेशन जाते हैं सैकड़ों लोग

बलरामपुर अनुमंडल अंतर्गत अझरैल रेलवे स्टेशन को मुख्य मार्ग से जोड़ने वाली सड़क 2017 के सैलाब में बह गई थी लेकिन अब तक सड़क नहीं बनायी गयी। जहां सड़क हुआ करती थी, वह बरसात के मौसम में तालाब में तब्दील हो जाती है। ग्रामीण नांव पर बैठकर स्टेशन और दूसरे स्थानों तक पहुंचते हैं।

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