बायोगैस एक तरह का प्राकृतिक ईंधन है, जो ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में जैविक कचरे जैसे खाना या गोबर के सड़ने से बनता है। इससे मुख्य रूप से दो गैसें, मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड, निकलती हैं। बायोगैस में 50-65% तक मीथेन होता है, इसीलिए यह ज्वलनशील होता है और एक गहरी नीली लौ उत्पन्न करता है, जिसे ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है।
बायोगैस पर निर्भरता बढ़ाने के लिए भारत सरकार ने गोबरधन योजना की शुरुआत की है। GOBARdhan यानी गैल्वनाइज़िंग ऑर्गेनिक बायो-एग्रो रिसोर्सेज़ धन योजना, स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) और लोहिया स्वच्छ बिहार अभियान के तहत चलायी जा रही है। इस योजना के अंतर्गत जिला स्तर पर बायोगैस प्लांट बनाये जाने हैं। गोबरधन की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, अक्टूबर 2024 तक कुल 1340 प्लांट रजिस्टर किये जा चुके हैं। इनमें करीब 65% प्लांट्स के चालू होने का दावा किया गया है। आंकड़े बताते हैं कि बिहार के 38 ज़िलों में 14 प्लांट ऑपरेशनल हैं और 29 जगहों पर निर्माण कार्य चल रहा है।
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बायोगैस प्लांट मुख्यतः तीन तरह के डिज़ाइन में होते हैं। बिहार में फिक्स्ड-डोम स्टाइल को अपनाया जा रहा है।
सामुदायिक बायोगैस प्लांट
पटना ज़िले के धनरूआ प्रखंड अंतर्गत सोनमई पंचायत में मई 2023 से 60 क्यूबिक मीटर क्षमता वाला बायोगैस प्लांट चल रहा है। इसमें रोज़ाना 1500 Kg गोबर की खपत होती है, जिससे करीब 20-22 घरों में सुबह शाम दो-दो घंटे गैस की सप्लाई की जा रही है। गैस की सप्लाई प्लांट के आसपास के घरों में की जाती है, जबकि गोबर की आपूर्ति पूरे पंचायत के किसान करते हैं।
सोनमई की महिलाएं पहले गोबर का गोइठा या उपला बना कर बेचती थीं, जिसमें काफी शारीरिक परिश्रम लगता है। मगर, वे खुश हैं कि अब बिना किसी मेहनत के उनको गोबर के पैसे मिल रहे हैं।
गोबरधन योजना के तहत पशुपालकों से गोबर खरीदा जाता है। पहले, गोबर को एक इनलेट के जरिए बायोगैस प्लांट के डाइजेस्टर में डाला जाता है। यहां गोबर से गैस बनती है, जो बैलून शेड में इकट्ठा होती है। जो गैस बनती है, उसे पाइप के माध्यम से लोगों के घरों में चूल्हों तक पहुंचाया जाता है। चूल्हों में गैस की खपत को मापने के लिए मीटर का उपयोग किया जाता है। बायोगैस बनाने के बाद बचा हुआ गोबर खाद के रूप में आउटलेट में जमा हो जाता है, जिसे खेती के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। बायोगैस प्लांट की प्रक्रिया सरल है, लेकिन बिहार में अब भी इसके सामने कई चुनैतियाँ हैं। 3 अक्टूबर, 2024 को जब हम सोनमई गए, तो पता चला कि डाइजेस्टर में दरार आने से कई दिनों तक प्लांट बंद था। मरम्मत के बाद कुछ रोज पहले ही इसे वापस शुरू किया गया था।
इसी तरह 30 सितंबर, 2024 को जब हम सुपौल ज़िले की अमहा पंचायत गए, तो वहाँ का प्लांट बंद पड़ा था। यहां 80 क्यूबिक मीटर क्षमता वाला बायोगैस प्लांट अक्टूबर 2023 में बनाया गया है। इसमें रोज़ाना 2000 Kg गोबर की खपत से 31 घरों में गैस की सप्लाई की जा सकती है। लेकिन यहाँ गोबर की तय कीमत 50 पैसे प्रति किलो से किसान खुश नहीं हैं। हालांकि गोबरधन योजना के तहत सरकार ने न तो गोबर का रेट तय किया है, न उससे उत्पन्न होने वाले गैस की दर फिक्स की गयी है, ये निर्णय स्थनीय लोगों पर छोड़ दिया गया है। वहीं, किशनगंज जिले में प्लांट के लिए जमीन के चयन में कई अड़चनें आईं। हालामाला पंचायत में प्लांट बनाया गया है, लेकिन एक चहारदीवारी के इंतज़ार में प्लांट अब तक शुरू नहीं हो पाया है।
एलपीजी और बायोगैस के गुणों में अंतर होने के कारण, ये गैसें एक-दूसरे के स्थान पर उपयोग नहीं की जा सकतीं। बिना मॉडिफिकेशन के बायोगैस को एलपीजी चूल्हे में सही ढंग से नहीं जलाया जा सकता। बायोगैस चूल्हे को विशेष रूप से इसके कुशल और सुरक्षित उपयोग के लिए डिजाइन किया जाता है, जिससे धुंआ रहित दहन और ऊर्जा का उचित उपयोग सुनिश्चित हो सके।
आगे का रास्ता
फिलहाल इन प्लांट्स में केवल गोबर का इस्तेमाल किया जा रहा है, मगर, इसमें रसोई के बचे हुए खाने, फसल के अवशेष और बाजार के कचरे भी जोड़े जा सकते हैं। प्लांट से बायोगैस के अलावा अवशेष के रूप में ठोस व तरल जैविक खाद भी मिलता है, जिसकी मात्रा फिलहाल बहुत कम है।
जलवायु परिवर्तन के मामले में बिहार, देश के अति संवेदनशील राज्यों में शामिल है। राज्य का उत्तरी हिस्सा बाढ़ से प्रभावित रहता है, तो दक्षिणी हिस्सा सुखाड़ का दंश झेलता है। भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन संवेदनशीलता के मामले में शीर्ष 29 राज्यों में बिहार का रैंक छठवां है।
भारत में ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां एक-एक बायोगैस प्लांट से हज़ारों घरों में गैस की सप्लाई की जा रही है। बिहार में गोबर की कोई कमी नहीं है, इसलिए राज्य के लिए इस ओर कदम बढ़ाना कारगर हो सकता है।
संसद में एक सवाल के जवाब में 24 जुलाई, 2024 को नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री प्रह्लाद जोशी ने बताया कि जल शक्ति मंत्रालय के स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) फेज-2 के तहत गोबरधन योजना के अंतर्गत मॉडल सामुदायिक बायोगैस संयंत्रों की स्थापना के लिए प्रति जिले को ₹50.00 लाख तक की वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है। इसके अलावा, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय, और आवास और शहरी कार्य मंत्रालय भी विभिन्न योजनाओं के तहत प्रदेश में बायोगैस प्लांट स्थापित करवा रहे हैं।
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