Main Media

Seemanchal News, Kishanganj News, Katihar News, Araria News, Purnea News in Hindi

Support Us

बर्मा से आये लोगों ने सीमांचल में लाई मूंगफली क्रांति

Main Media Logo PNG Reported By Main Media Desk |
Published On :

अररिया: बर्मा से आये रिफ्यूजियों ने अररिया जिला सहित सीमांचल के किसानों को एक नई फसल उगाने की तरकीब देकर कृषि क्रांति ला दी है। इन रिफ्यूजियों के संपर्क में आकर यहां के किसान सफेद मूंगफली की खेती कर रहे हैं।

बता दें कि सन 1964 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने बर्मा से रिफ्यूजियों को लाकर अररिया में बसाया था। रिफ्यूजियों के आने के बाद खेती में कई बदलाव आए और कैश क्रॉप के रूप में वहां से आए किसानों ने यहां की बलुआही मिट्टी पर मूंगफली की खेती शुरू की थी।

Also Read Story

किशनगंज: तेज़ आंधी व बारिश से दर्जनों मक्का किसानों की फसल बर्बाद

नीतीश कुमार ने 1,028 अभ्यर्थियों को सौंपे नियुक्ति पत्र, कई योजनाओं की दी सौगात

किशनगंज के दिघलबैंक में हाथियों ने मचाया उत्पात, कच्चा मकान व फसलें क्षतिग्रस्त

“किसान बर्बाद हो रहा है, सरकार पर विश्वास कैसे करे”- सरकारी बीज लगाकर नुकसान उठाने वाले मक्का किसान निराश

धूप नहीं खिलने से एनिडर्स मशीन खराब, हाथियों का उत्पात शुरू

“यही हमारी जीविका है” – बिहार के इन गांवों में 90% किसान उगाते हैं तंबाकू

सीमांचल के जिलों में दिसंबर में बारिश, फसलों के नुकसान से किसान परेशान

चक्रवात मिचौंग : बंगाल की मुख्यमंत्री ने बेमौसम बारिश से प्रभावित किसानों के लिए मुआवजे की घोषणा की

बारिश में कमी देखते हुए धान की जगह मूंगफली उगा रहे पूर्णिया के किसान

आज अररिया सहित पूर्णिया, सुपौल, मधेपुरा जैसे जिलों में भी बड़े पैमाने पर मूंगफली की खेती शुरू हो गई है। मूंगफली की खेती कैश क्रॉप के रूप में किसानों के लिए एक वरदान साबित हो रही है। अब तो छोटे-छोटे किसान भी मूंगफली की खेती सफलतापूर्वक कर रहे हैं।


peanut field

फारबिसगंज के शुभंकरपुर में बसाया गया था

बर्मा से आए रिफ्यूजियों को फारबिसगंज अनुमंडल के शुभंकरपुर में बसाया गया था। ये इलाका तब पूर्णिया जिले में आता था। वहां से आये रिफ्यूजियों ने पहले तो अपने आप को यहां के परिवेश में ढाला, फिर खेती के नई किस्म को विकसित किया और मूंगफली की खेती शुरू कर दी। वहां के लोगों ने बताया कि इस इलाके में पहले पारंपरिक जूट व धान की ही खेती की जाती थी।

बर्मा से आए लोगों ने पहले यहां की मिट्टी को पहचाना, क्योंकि इस जगह पर बलुआही मिट्टी होने की वजह से दूसरी खेती नहीं के बराबर होती थी। इन लोगों ने प्रयोग के रूप में मूंगफली की खेती शुरू की, जो कामयाब हो गई। आज जिले में बड़े पैमाने पर मूंगफली की खेती कर किसान कमाई कर रहे हैं।

साल 1964 में आए थे रिफ्यूजी

बर्मा से आए लोगों में अशोक वर्मा, जयंत वर्मा, जितेंद्र कुमार वर्मा ने बताया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री ने सन् 1962 में रंगून से पानी के जहाज के रास्ते हम लोगों को मद्रास तक लाने का काम किया था। वहां से हम लोगों के काफिले को पूर्णिया पहुंचाया गया, जहां तकरीबन डेढ़ से 2 साल हम लोगों ने बिताए फिर सन 1964 में उस वक्त के पूर्णिया जिले के फारबिसगंज के शुभंकरपुर में हम लोगों को बसाया गया। कॉलोनी के रूप में रिफ्यूजियों को जमीन दी गई। उस समय सौ परिवार रंगून से अररिया आए थे। तब से ही उन लोगों ने सिर्फ मूंगफली की खेती पर ही जोर दिया और आज यह मूंगफली की खेती इस इलाके में बड़े पैमाने पर हो रही है।

a man standing in a peanut field

यहां के लोगों को मूंगफली की खेती में हो रहे फायदे को देखते हुए फारबिसगंज, अररिया, भरगामा, रानीगंज प्रखंड में भी मूंगफली की खेती शुरू कर दी गई। स्थानीय लोगों ने बताया कि आज सिर्फ शुभंकरपुर में ही 2 दर्जन से अधिक थ्रेसर लगे हैं, जहां मूंगफली को फोड़ा जाता है और उन्हें साफ किया जाता है। फिर यह मूंगफली बाजार में चली जाती है।

ग्रामीण महिलाओं को मिला है रोजगार

शुभंकरपुर के अश्वनी कुमार वर्मा ने बताया कि न सिर्फ बर्मा से आए लोगों ने ही खेती कर रोजगार पाया है बल्कि आसपास के ग्रामीण महिलाओं को भी मूंगफली की खेती ने रोजगार से जोड़ दिया है। उन्होंने बताया कि मूंगफली खेत में उपजाने से लेकर फोड़ने, उसकी सफाई करने तक में सैकड़ों महिला आज रोजगार से जुड़ी हुई हैं। इससे उन्हें अच्छी खासी आमदनी हो रही है।

peanut lying after processing

स्थानीय निवासी अश्विनी कुमार ने बताया कि इस खेती को बढ़ावा तो मिला लेकिन इसके लिए कोई उद्योग नहीं लगाया गया, जिस कारण छोटे किसानों को बड़ा लाभ नहीं मिल पाता है। ये छोटे किसान छोटी मंडी पूर्णिया के गुलाबबाग तक ही अपनी मूंगफली को पहुंचा पाते हैं। जबकि शुभंकरपुर के बड़े व्यापारी अपना माल कोलकाता, मद्रास यहां तक कि दिल्ली तक में बेच देते हैं। अश्विनी ने कहा कि अगर यहां इससे संबंधित कोई उद्योग लगा होता, तो निश्चित रूप से यह खेती और भी फैलती और सैकड़ों नहीं लाखों लोगों को रोजगार से जोड़ देती। लेकिन, सरकारी स्तर पर कोई बढ़ावा नहीं मिल पा रहा है इस खेती को।

बर्मीज साफ सफाई का रखते हैं ध्यान

फारबिसगंज अनुमंडल के शुभंकरपुर में अगर आप जाएंगे, तो उस कॉलोनी की खूबसूरती और सफाई को देखकर मन मुग्ध हो जाएगा। साफ सुथरी चमचमाती सड़कें हैं, कहीं गंदगी का कोई ठिकाना नहीं, सिर्फ हरियाली ही हरियाली इस कॉलोनी में नजर आती है। यहां के कई लोगों ने बताया कि इस साफ-सफाई और हरियाली को हम लोग ही मेंटेन करते हैं। किसी दूसरे के भरोसे हमारा गांव नहीं है। इसलिए इस गांव की खूबसूरती अलग नजर आती है। जहां भी आपको बड़ा सेड दिखें तो समझ लें कि उसके अंदर मूंगफली की प्रोसेसिंग हो रही है यानी मूंगफली की साफ-सफाई। इस मूंगफली की खेती ने शुभंकरपुर को एक नई पहचान दी है। आज लोग इस जगह को मूंगफली की खेती को लेकर ही पहचानते हैं।

verma colony shubhankarpur araria

शुभंकरपुर के लोगों का है वर्मा टाइटल

बर्मा से आये लोगों ने बताया कि उनके पूर्वज बिहार के आरा जिले के रहने वाले थे। उन्हें मजदूरी के लिए बर्मा की राजधानी रंगून ले जाया गया था। उस समय की केंद्र सरकार ने लोगों को रंगून में बसाया था। बिहार के होने के कारण उनकी भाषा भोजपुरी है। उन लोगों ने बताया कि यहां जितने भी लोग हैं सबका टाइटल वर्मा ही है। वे बताते हैं कि पहले उनका सरनेम कुछ और था। लेकिन वर्मा से आने के बाद जब उन्हें यहां बसाया गया तो इस इलाके को सब वर्मा कॉलोनी के नाम से पुकारने लगे और यहां बसे लोगों को बर्मीज कहते थे। इसलिए आहिस्ता-आहिस्ता यहां के सभी लोगों के नाम के पीछे बर्मा ही लग गया। शुभंकरपुर की कॉलोनी में जितने भी लोग रह रहे हैं, सभी का सरनेम वर्मा है।

उद्योग लगाने के लिए सरकार दे रही अनुदान

मूंगफली की खेती को बढ़ावा देने के लिए जिला उद्योग विभाग क्या कर रहा है? यह जानकारी लेने के लिए विभाग के अधिकारियों से बात की तो उन्होंने कहा, “अभी तक छोटे या बड़े पैमाने पर किसी ने भी उद्योग के लिए खोज नहीं की है। अगर कोई यहां प्लांट लगाता है तो सरकार उसमें बड़ी सब्सिडी भी देगी और यह एक बड़े उद्योग के रूप में स्थापित भी होगा।” अधिकारियों ने बताया कि इस संबंध में अभी तक किसी ने भी यहां कोई आवेदन नहीं किया है, जिससे यह समझा जाए कि यहां के लोग इच्छुक हैं या नहीं। क्योंकि यह बड़ा प्लांट या उद्योग होगा और इसके लिए जानकारों और बड़े उद्योगपतियों को ही आगे आना होगा। तब मूंगफली की खेती के साथ-साथ एक बड़ी प्रोसेसिंग यूनिट भी यहां स्थापित होगी।

peanut processing plant

सफेद मूंगफली की दोगुनी है उपज

मूंगफली की खेती करने वाले बड़े किसान अश्विनी कुमार वर्मा ने बताया कि आज तकनीक विकसित कर सफेद मूंगफली की खेती की जा रही है, जिसकी उपज लाल मूंगफली के मुकाबले दोगुनी होती है। इससे किसानों को काफी लाभ मिल रहा है। सफेद मूंगफली के दानों में भी काफी वजन होता है। उन्होंने बताया कि इसकी सफल खेती के लिए हम लोगों ने पहले प्रायोगिक तौर पर छोटी-छोटी जगहों पर सफेद मूंगफली को लगाया था। इसका परिणाम काफी बेहतर निकला। आज यह मूंगफली 8 हजार से लेकर 9 हजार रुपये क्विंटल बिक रही है। जो इससे किसानों को भी फायदा हो रहा है और साथ उसकी प्रोसेसिंग में लोगों को रोजगार भी मिल रहा है। उन्होंने बताया कि अब मूंगफली की खेती हम लोग साल में दो बार कर रहे हैं।


सुपौल: सड़क के अभाव में थम जाती है नेपाली गांव की ज़िंदगी

सिलीगुड़ी में नैरोबी मक्खी का आतंक, किशनगंज में भी खतरा


सीमांचल की ज़मीनी ख़बरें सामने लाने में सहभागी बनें। ‘मैं मीडिया’ की सदस्यता लेने के लिए Support Us बटन पर क्लिक करें।

Support Us

Main Media is a hyper-local news platform covering the Seemanchal region, the four districts of Bihar – Kishanganj, Araria, Purnia, and Katihar. It is known for its deep-reported hyper-local reporting on systemic issues in Seemanchal, one of India’s most backward regions which is largely media dark.

Related News

ऑनलाइन अप्लाई कर ऐसे बन सकते हैं पैक्स सदस्य

‘मखाना का मारा हैं, हमलोग को होश थोड़े होगा’ – बिहार के किसानों का छलका दर्द

पश्चिम बंगाल: ड्रैगन फ्रूट की खेती कर सफलता की कहानी लिखते चौघरिया गांव के पवित्र राय

सहरसा: युवक ने आपदा को बनाया अवसर, बत्तख पाल कर रहे लाखों की कमाई

बारिश नहीं होने से सूख रहा धान, कर्ज ले सिंचाई कर रहे किसान

कम बारिश से किसान परेशान, नहीं मिल रहा डीजल अनुदान

उत्तर बंगाल के चाय उद्योग में हाहाकार

One thought on “बर्मा से आये लोगों ने सीमांचल में लाई मूंगफली क्रांति

  1. वैसे वर्मा वाले रिफ्यूजी किशनगंज के धुमनिया में भी बसाया गया था जो आज भी धुमनिया (आधा पुठिया ब्लॉक व आधा किशनगंज)) में है।

Leave a Reply to शहज़ाद अनवर राजा Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Latest Posts

Ground Report

सुपौल पुल हादसे पर ग्राउंड रिपोर्ट – ‘पलटू राम का पुल भी पलट रहा है’

बीपी मंडल के गांव के दलितों तक कब पहुंचेगा सामाजिक न्याय?

सुपौल: घूरन गांव में अचानक क्यों तेज हो गई है तबाही की आग?

क़र्ज़, जुआ या गरीबी: कटिहार में एक पिता ने अपने तीनों बच्चों को क्यों जला कर मार डाला

त्रिपुरा से सिलीगुड़ी आये शेर ‘अकबर’ और शेरनी ‘सीता’ की ‘जोड़ी’ पर विवाद, हाईकोर्ट पहुंचा विश्व हिंदू परिषद