By: तंज़ील आसिफ, उमेश कुमार राय और शाह फैसल
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की महात्वाकांक्षी परियोजना “हर घर नल का जल” में 53 करोड़ रुपए का ठेका डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद के परिवार व सहयोगियों मिलने के इंडियन एक्सप्रेस के खुलासे के बाद चर्चा की जाने लगी है कि संभवतः राजनीतिक कनेक्शन होने के चलते उक्त ठेकेदार को ठेके में अनैतिक तरीके से वरीयता दी गई होगी।
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लेकिन, इस शोर में ये सवाल गुम हो गये हैं कि आखिर जो काम हुआ है, वो कितना गुणवत्तापूर्ण है और क्या राजनीतिक पहुंच होने के चलते घटिया काम कर ठेकेदार ने पैसा बचा लिया है?
इन्हीं सवालों का जवाब तलाशने के लिए मैं मीडिया ने ग्राउंड पर जाकर पड़ताल की, तो पाया कि तारकिशोर प्रसाद के रिश्तेदार को मिले ठेके के तहत जो काम किया गया, उसमें कई तरह की खामियां हैं, काम की गुणवत्ता से समझौता किया गया है और “हर घर नल का जल” जो नारा सीएम नीतीश कुमार ने दिया था, उससे भी खिलवाड़ हुआ है।
इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में कटिहार ब्लॉक की भवाड़ा पंचायत का ज़िक्र किया है, इसलिए हम इसी पंचायत के वार्ड नंबर पांच में पहुंच गये।
भवाड़ा पंचायत में 29 सितंबर को पंचायत चुनाव है, इसलिए पंचायत में चुनाव की गहमागहमी है। लेकिन, इस गहमागहमी के बीच स्थानीय विधायक व उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद पर लगे आरोपों की चर्चा भी दबी जुबान की जा रही है। वार्ड नंबर पांच में शुक्रवार की दोपहर हमारी मुलाक़ात कुछ ग्रामीणों से हुई। इनमें से कई लोगों ने मैं मीडिया को बताया कि सरकारी फाइलों में इस वार्ड में नल जल का काम पूरा हो गया है, लेकिन उनके घर में नल अब तक नहीं लगा है।
पंचायत के उच्च माध्यमिक विद्यालय के नजदीक ही बीरेंद्र रविदास का घर है। बीरेंद्र बताते हैं-
“इस वार्ड के कम से कम 10 घरों में नल नहीं लगा है। लेकिन, जहां लगा है, वहां नियमित पानी नहीं आता है। और आता भी है, तो पानी पीने लायक नहीं होता है।”
किन घरों में अब तक नल नहीं लगा है, ये पूछने पर वे अंगुलियों पर नाम गिनाते हैं –
“बीरेंद्र, विष्णु, डोमी, हरी, गोरख, बंटी, बासुदेव, कपिल आदि लोगों के घरों में अब तक नल नहीं लगा है।”
हम थोड़ा आगे बढ़े, तो बिकेश कुमार दास का घर आ गया। बिकेश कुमार से भी हमारा यही सवाल था- क्या उनकी तरफ भी कई लोगों के घरों में नल नहीं लगा है? बिकेश हमें थोड़ा इंतजार करने को कहते हैं और खुद पड़ोसियों की पड़ताल पर निकल पड़ते हैं। जल्द ही वे वापस लौटकर हमें बताते हैं –
“6-7 घरों में नल नहीं लगा है। कहीं-कहीं नल टूट गया है। कुछ घरों में नल है भी, तो वहां पानी की रफ़्तार इतनी धीमी है कि एक बाल्टी पानी भरने में घंटों लग जाते हैं। इतने धीमे पानी का इंतजार करने से बेहतर है कि अदमी ट्यूबवेल से पानी भर ले।”
बीरेंद्र की तरह बिकेश ने भी वो नाम गिनाया, जिनके घर नल नहीं लगा है। वे कहते हैं,
“रमधीर लाल दास, सुधीर दास, प्रभु दास, टिंकू दास, रिंकू दास के घर नल नहीं लगा है। मेरे पिता का नाम सुनील दास है, हमारे घर में भी नल नहीं लगाया गया है।”
जिन क्षेत्रों में पानी आर्सेनिक, फ्लोराइड और आयरन से प्रदूषित है, वहां प्रदूषित पानी को परिशोधित कर लोगों को नल के जरिए देना है। कटिहार के इस हिस्से में भूगर्भ जल में आयरन की मात्रा सामान्य से बहुत अधिक है, लेकिन लोगों ने बताया कि जमीन के भीतर से पानी सीधे खींचकर दे दिया जा रहा है, जिसमें आयरन की मात्रा काफी ज्यादा होती है।
स्थानीय निवासी डब्लू शर्मा के घर योजना का नल लगा है, लेकिन उनका कहना है-
“दो महीने पहले नल लगा है, लेकिन पानी कभी कभी ही आता है। पाइप भी फट गया है।”
डब्लू के पड़ोस में पार्वती देवी का घर है। वे कहती हैं –
“एक घंटे में बाल्टी भरता है, पीला पीला (आयरन वाला) पानी आता है। अभी चापाकल का पानी ही इस्तेमाल करते हैं।”
वहीं, मुन्नी देवी का दावा है,
“जिस दिन नल लगा था, उसी दिन उनके सामने ही चेक करने में नल टूट गया। ठेकेदार को नया नल लगाने को बोले, लेकिन नहीं लगाया गया। अभी हमलोग चापाकल का पानी ही इस्तेमाल करते हैं।”
अनियमित पानी, आयरन युक्त पानी और पानी पहुंचने की धीमी रफ्तार का जवाब तलाशने हम जल मीनार के पास गए। इसी जल मीनार से वार्ड नंबर 1, 2 और 5 में पानी पहुंचता है। ये मीनार रोहित कुमार विश्वास के परिवार की ज़मीन पर बनाई गई है। हम ज्योंही जल मीनार के पास पहुंचे, पानी की सप्लाई चालू कर दी गई। रोहित हमें बताते हैं-
“यहां से वार्ड नंबर 1, 2 और 5 में पानी जाता है। सुबह 6 से 9 बजे, दोपहर में 2 से 4 बजे और फिर शाम को 4 से 6 बजे पानी की सप्लाई की जाती है।”
यहां पानी में कितना आयरन है, ये पीली पड़ चुकी पाइप से ही साफ जाहिर हो जाता है। एक लोटे में पानी भर कर रोहित कहते हैं, “ये पानी कल सुबह तक पीला हो जाएगा।”
पानी की क्लालिटी के बारे में पूछने पर रोहित बताते हैं-
“पानी में आयरन है, कहीं-कहीं पाइप फटा है, तो पानी के साथ कीचड़ भी आ जाता है। आयरन हटाने के लिए कुछ केमिकल पहले दिया गया था, लेकिन अभी नहीं है।”
पानी धीमे आने के बारे में पूछे जाने पर रोहित ने बताया कि प्रेशर मशीन लगाते ही पाइप निकल जाती है, इसलिए मशीन इस्तेमाल नहीं हो रही है। यानी कि यहां नल जल परियोजना में इंजीनियरिंग का दोष है।
सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि नल-जल के काम से सम्बंधित कोई सूचना पट्ट वार्ड में नहीं लगा है। यानी ठेकेदार के नाम से लेकर खर्च की जानकारी आमलोगों के लिए उपलब्ध नहीं है। इसका मतलब ये है कि अगर बाद में प्रोजेक्ट में कोई दोष निकल जाए या उसके रखरखाव की जरूरत ही पड़ जाए, तो ठेकेदार की शिनाख्त ही नहीं हो पाएगी।
लेकिन, वार्ड के स्थानीय लोगों को मालूम है कि यहां ठेकेदार कौन है। रोहित बताते हैं-
“इसका ठेकेदार प्रदीप भगत है। उन्हें ही हमने जल मीनार के लिए ज़मीन दी है, इसलिए देख-रेख करने का ज़िम्मा हमारे पास है। बनाने में कितना खर्चा आया उसकी जानकारी नहीं है, क्योंकि बोर्ड नहीं लगाया गया है।”
प्रदीप भगत रिश्ते में तारकिशोर प्रसाद का साला बताये जाते हैं। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदीप भगत और उनकी पत्नी किरण भगत दीपकिरण इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक हैं। इस कंपनी को भवाड़ा पंचायत के 9 वार्डों का काम मिला था।
यहां आपको बता दें कि जब भी सरकारी पैसों से विकास कार्य किए जाते हैं, तो काम शुरू करने से पहले विकास कार्य से जुड़ी जानकारी का बोर्ड लगाना जरूरी है, जिसे डीपीआर (डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) बोर्ड भी कहा जाता है। इससे आम आदमी को प्रोजेक्ट से संबंधित जानकारियां मिल जाती हैं। आमतौर पर ये सूचना बोर्ड घोटालों और अनियमितताओं पर अंकुश लगाने के लिए लगाया जाता है।
वार्ड नंबर 2 के निवासी दशरथ यादव हमसे कहते हैं-
“आप आये हैं, इसलिए पानी खोल दिया है। आपके जाने के बाद पहले जैसी हालत हो जाएगी।”
हमने इस मामले मे पीएचईडी के एक्जिक्यूटिव इंजीनियर नबी हसन से बात की, तो उन्होंने हर सवाल का जवाब यूं दिया, जैसे ये कोई बहुत बड़ी बात नहीं है। मसलन जब हमने पूछा कि वार्ड में नल-जल का काम पूरा हो गया, लेकिन कई लोगों के घर में नल नहीं लगा है, तो उन्होंने कहा-
“शुरू में बहुत सारे लोगों ने मना कर दिया था, इसलिए नहीं लगा और बाद वे नल की मांग करने लगे।”
वही, आयरन से प्रदूषित इलाके में परिशोधित पानी की सप्लाई नहीं होने के सवाल उन्होंने कहा-
“बैकवाशिंग नहीं हुई होगी, करवा दिया जाएगा।”
जब हमने उनसे पूछा कि प्रोजेक्ट स्थल पर डीपीआर बोर्ड नहीं लगा है, तो उन्होंने कहा-
“लगवाने के लिए कहा गया है, लेकिन वे लोग लगवा नहीं रहे हैं। लगवा दिया जाएगा।”
बहरहाल, घंटों वार्ड नंबर पांच में घूम कर अपनी आंखों से चीजों को देखने और दर्जनों लोगों से बातचीत करने के बाद हमने पाया कि सरकार को केवल ठेकेदारी में वरीयता राजनीतिक गठजोड़ के चलते मिली या नहीं, इसकी जांच के साथ साथ इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि काम गुणवत्तापूर्ण हुआ है या नहीं।
हमारे कैमरे ने जो देखा और जो बयान दर्ज किया, उससे साफ है कि नल-जल परियोजना के काम में घोर लापरवाही बरती गई है। वार्ड के लोगों से बातचीत कर हमने ये भी पाया कि नल-जल परियोजना जिस उद्देश्य को लेकर शुरू हुई थी, इस वार्ड में तो कम से वो उद्देश्य पूरा नहीं हो रहा है।
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