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नीति आयोग के एसडीजी इंडेक्स में बिहार सबसे पिछड़ा राज्य, इन क्षेत्रों में सबसे ख़राब प्रदर्शन

नीति आयोग की ताज़ा रिपोर्ट की मानें तो बिहार में भूख और कुपोषण गंभीर समस्याएँ हैं। भूख और कुपोषण ख़त्म करने संबंधी लक्ष्य में बिहार को सिर्फ 24 अंक मिले हैं, जो कि सभी राज्यों में सबसे कम है। बिहार में पाँच वर्ष से कम उम्र के 41% बच्चे कम वजन के हैं और 42.9% बच्चे कुपोषण के शिकार हैं।

Nawazish Purnea Reported By Nawazish Alam |
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niti aayog sdg report

नीति आयोग द्वारा जारी सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) इंडेक्स 2023-24 में बिहार सबसे फिसड्डी राज्य साबित हुआ है। इंडेक्स में 57 अंकों के साथ बिहार सबसे निचले पायदान पर है। हालांकि, पिछले साल की तुलना में बिहार को पांच अंकों का इज़ाफ़ा हुआ है। इंडेक्स में 79 अंकों के साथ केरल और उत्तराखंड शीर्ष पर हैं।


एसडीजी यानी सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स इंडेक्स, संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के आधार पर राज्यों में सतत विकास का आकलन करता है। कुल मिलाकर, इस साल भारत के एसडीजी स्कोर में भी 5 अंक का इज़ाफ़ा हुआ है। 2020-21 में भारत का एसडीजी स्कोर 66 था, जो 2023-24 में बढ़कर 71 हो गया है। भारत के एसडीजी स्कोर में सुधार गरीबी उन्मूलन, आर्थिक विकास और जलवायु परिवर्तन क्षेत्रों में प्रगति के कारण हुआ है।

एसडीजी इंडिया इंडेक्स, 1 से 100 के पैमाने पर 16 लक्ष्यों में हुई प्रगति का मूल्यांकन करता है। इनमें ग़रीबी उन्मूलन, भुखमरी ख़त्म करना, बेहतर स्वास्थ्य, क्वालिटी एजुकेशन, जेंडर इक्वालिटी, साफ़ पानी और आधुनिक ऊर्जा की उपलब्धता, बेहतर रोज़गार के अवसर, उद्योग और इनोवेशन को बढ़ावा, असमानता को कम करना और शहरों को सुरक्षित बनाना इत्यादि लक्ष्य शामिल हैं।


एसडीजी इंडेक्स में बिहार का प्रदर्शन राज्य की महत्वपूर्ण विकासात्मक चुनौतियों को उजागर करता है। विशेष क्षेत्रों में कुछ प्रगति के बावजूद बिहार स्वास्थ्य, शिक्षा, आर्थिक वृद्धि और बुनियादी ढांचे के प्रमुख इंडेक्स में कई राज्यों से पीछे है। नीति आयोग की मानें तो इस अंतर को पाटने के लिए, गरीबी उन्मूलन, बेहतर स्वास्थ्य सेवाएँ, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, मजबूत बुनियादी ढाँचा, और प्रभावी शासन पर केंद्रित व्यापक और लक्षित नीतियों की आवश्यकता है।

ग़रीबी उन्मूलन में सबसे ख़राब प्रदर्शन

बिहार में गरीबी का स्तर चिंताजनक है। सतत विकास लक्ष्यों के तहत ग़रीबी उन्मूलन लक्ष्य में बिहार को 100 में से 39 अंक मिले हैं, जो अन्य राज्यों की तुलना में सबसे कम है। बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) के अनुसार बिहार में गरीबी अनुपात 33.76% है। यह अन्य राज्यों से काफी अधिक है। उदाहरण के लिए, आंध्र प्रदेश में गरीबी अनुपात मात्र 6.06% और असम में 19.35% है।

बिहार में स्वास्थ्य योजनाओं या बीमा से कवर किए गए परिवारों का प्रतिशत केवल 17.4% है, जबकि आंध्र प्रदेश में यह 80.2% है। बिहार के उच्च गरीबी स्तर और कम बीमा कवरेज इसकी कमजोरियों को दर्शाते हैं और लक्षित गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों की आवश्यकता को उजागर करते हैं। बिहार में अभी भी 11.3 प्रतिशत परिवार कच्चे मकानों में रहते हैं।

भूख और कुपोषण खत्म करने में भी फिसड्डी

नीति आयोग की ताज़ा रिपोर्ट की मानें तो बिहार में भूख और कुपोषण गंभीर समस्याएँ हैं। भूख और कुपोषण ख़त्म करने संबंधी लक्ष्य में बिहार को सिर्फ 24 अंक मिले हैं, जो कि सभी राज्यों में सबसे कम है। बिहार में पाँच वर्ष से कम उम्र के 41% बच्चे कम वजन के हैं और 42.9% बच्चे कुपोषण के शिकार हैं।

राज्य में 15-49 वर्ष की आयु की 63.1 प्रतिशत गर्भवती महिलाएँ एनीमिक (शरीर में ख़ून की कमी) हैं। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के तहत 100% कवरेज के बावजूद, उच्च कुपोषण दर खाद्य वितरण और पोषण कार्यक्रमों में प्रणालीगत समस्याओं को इंगित करती है।

स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने में औसत

बिहार स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने में 22वें स्थान पर है, जो कि अन्य लक्ष्यों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन माना जा सकता है। इस लक्ष्य में बिहार को 67 अंक प्राप्त हुए हैं। इस इंडेक्स में बिहार से ख़राब प्रदर्शन सिक्किम, नागालैंड, उत्तर प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों का है।

बिहार की मातृत्व मृत्यु दर प्रति एक लाख जन्मों पर 118 है। पाँच वर्ष से कम उम्र की बच्चों की मृत्यु दर प्रति हज़ार जन्मों पर 30 है। ये आंकड़े आंध्र प्रदेश के 45 मातृ मृत्यु दर और 27 बच्चों की मृत्यु दर की तुलना में बहुत चिंताजनक हैं।

बिहार की जीवन प्रत्याशा (लाइफ एक्सपैक्टेंसी) 69.5 है, जो कि अन्य राज्य के लगभग बराबर ही है। हालांकि, बिहार के स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचे और सेवा वितरण अभी भी अपर्याप्त हैं। बिहार में दस हज़ार की आबादी पर 14.47 हेल्थ वर्कर हैं, जो कि औसत से बहुत कम है।

क्वालिटी एजुकेशन में सुधार की आवश्यकता

बिहार में शिक्षा ऐसा क्षेत्र है, जिसमें महत्वपूर्ण सुधार की आवश्यकता है। इस लक्ष्य में बिहार को मात्र 32 अंक मिले हैं और यह सूची में सबसे निचले पायदान पर है।

राज्य में प्रारंमिक शिक्षा (कक्षा 1-8) में नामांकन दर 97% है, जो कि अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर है। लेकिन, माध्यमिक स्तर (कक्षा 9-10) में औसत वार्षिक ड्रॉपआउट दर 20.5% है। उच्च माध्यमिक शिक्षा में नामांकन अनुपात 35.9% है, जो दर्शाता है कि बड़ी संख्या में छात्र उच्च शिक्षा तक नहीं पहुँच पाते हैं।

जेंडर इक्वालिटी में औसत प्रदर्शन

जेंडर इक्वालिटी इंडेक्स में बिहार को 44 अंक मिले हैं, जो कि एक औसत प्रदर्शन है। इस इंडेक्स में बिहार ने असम, झारखंड, ओडिशा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों से बेहतर प्रदर्शन किया है। इंडेक्स में 74 अंकों के साथ नागालैंड टॉप पर है।

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बिहार में प्रति एक हज़ार पुरुषों पर 908 महिलाएं हैं। लेबर फोर्स में शामिल पुरुषों और महिलाओं का अनुपात 0.22 है, यानी प्रति एक सौ पुरुष पर 22 महिलाएं लेबर फोर्स में शामिल हैं। दोनों की आय में भी काफी गैप है। यह अनुपात 0.85 है यानी मज़दूरी के रूप में यदि पुरुषों को 100 रुपये मिलते हैं तो वहीं, महिलाओं को 85 रुपये मिलते हैं।

शीर्ष कंपनियों के मैनेजर और डायरेक्टर जैसे पदों पर प्रति हज़ार पुरुषों के मुक़ाबले सिर्फ 266 महिलाएं ही चयनित होती हैं। इसके अतिरिक्त 51.4 प्रतिशत महिलाओं के पास अपना मोबाइल फोन है।

साफ पानी की उपलब्धता में सबसे बेहतर

साफ पानी उपलब्ध कराने में बिहार का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन है। इसमें बिहार को तीसरा स्थान मिला है और इससे आगे सिर्फ दो राज्य हिमाचल प्रदेश और गोवा हैं। साफ पानी उपलब्ध कराने में बिहार को 98 अंक मिले हैं। वहीं, हिमाचल प्रदेश को 99 और गोवा को 100 अंक मिले हैं।

बिहार में 96.42 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को बेहतर सप्लाई पानी की उपलब्धता है। 99.96 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास पानी के बेहतर स्रोत उपलब्ध हैं।

लगभग 100 प्रतिशत परिवारों को शौचालय उपलब्ध करा दिया गया है। इसके अतिरिक्त 97.9 प्रतिशत स्कूलों में लड़कियों के लिये शौचालय की व्यवस्था है।

सीमित हैं रोज़गार के अवसर

बिहार की आर्थिक वृद्धि और यहां पर रोजगार के अवसर सीमित हैं। इस इंडेक्स में 54 अंकों के साथ बिहार सबसे निचले स्तर पर है। राज्य में जीडीपी की वार्षिक ग्रोथ 9.07 प्रतिशत और बेरोज़गारी दर 4.3 प्रतिशत है। हालांकि, 95.5 प्रतिशत लोगों के पास बैंक या डाकघर खाते हैं, लेकिन एक लाख आबादी पर सिर्फ 6 बैंक ही हैं। एक लाख की आबादी पर सिर्फ 7.15 लोगों के पास एटीएम उपलब्ध है।

उद्योग, इनोवेशन और इंफ्रास्टक्चर

बेहतर उद्योग लगाने और इनोवेशन को बढ़ावा देने के मामले में बिहार का प्रदर्शन संतोषजनक है। इस इंडेक्स में दर्जन भर राज्य बिहार से पीछे हैं। 53 अंकों के साथ बिहार 16वें नंबर पर है। हालांकि, इनोवेशन के क्षेत्र में बहुत अधिक ध्यान देने की ज़रूरत है। इंडिया इनोवेशन इंडेक्स में बिहार को मात्र 11.29 अंक मिले हैं, जो कि चिंताजनक हैं।

लगभग 100 प्रतिशत गांव या मुहल्ले में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत सड़क कनेक्टिविटी है। 91.9 प्रतिशत परिवारों के पास मोबाइल फोन उपलब्ध हैं। वहीं, राज्य के 96.08 प्रतिशत गांवों में 3G या 4G इंटरनेट सेवा उपलब्ध है।

असमानता को कम करने में फेल

बिहार असमानताओं को कम करने में भी दुश्वारियों का सामना कर रहा है। आय असमानता को मापने वाला गिनी गुणांक बिहार में 0.22 है, जो उच्च असमानता को दर्शाता है। बिहार में महिलाओं और हाशिए पर स्थित समुदायों की राजनीतिक और पेशेवर क्षेत्रों में प्रतिनिधित्व में सुधार की आवश्यकता है। प्रति 100 पुरुष के मुक़ाबले सिर्फ 31.5 महिलाओं का चयन प्रोफेश्नल और टेक्निकल पदों पर होता है।

पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी 52.02 प्रतिशत तथा विधानसभा और विधानपरिषद में एससी/एसटी की भागीदारी 16.46 प्रतिशत है। प्रति एक लाख की आबादी में 39.3 एससी और 10.9 एसटी लोगों के साथ अपराध की घटनाएं होती हैं।

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नवाजिश आलम को बिहार की राजनीति, शिक्षा जगत और इतिहास से संबधित खबरों में गहरी रूचि है। वह बिहार के रहने वाले हैं। उन्होंने नई दिल्ली स्थित जामिया मिल्लिया इस्लामिया के मास कम्यूनिकेशन तथा रिसर्च सेंटर से मास्टर्स इन कंवर्ज़ेन्ट जर्नलिज़्म और जामिया मिल्लिया से ही बैचलर इन मास मीडिया की पढ़ाई की है।

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