स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर नीति आयोग की ताज़ा रिपोर्ट से बिहार के स्वास्थ्य मंत्री व भाजपा नेता मंगल पांडेय नाराज चल रहे हैं।
उन्होंने नीति आयोग को स्वास्थ्य आंकड़े तैयार करने के तरीके में बदलाव की नसीहत दी है।
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उन्होंने कहा कि नीति आयोग को ये भी बताना चाहिए था कि साल 2005 से पहले बिहार में स्वास्थ्य क्षेत्र की क्या स्थिति थी।
2005 से उनका इशारा लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के कार्यकाल की तरफ था। साल 2005 के बिहार विधानसभा चुनाव में राजद की हार हुई थी और जदयू-भाजपा गठबंधन सत्ता में आया था, नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने थे।
मंगल पांडेय ने संवाददाताओं के सवालों के जवाब में कहा,
“नीति आयोग अपने तरीके से, अपने पैमाने से सोचता है। नीति आयोग को राज्य की जनता को ये बताना भी श्रेयस्कर होता कि साल 2005 से पहले बिहार में (स्वास्थ्य की) क्या स्थिति थी, क्या सुविधाएं मिलती थीं, अस्पतालों में कितनी दवाइयां मिलती थीं।”
उन्होंने आगे कहा,
“2005 से पहले डाक्टरों की, नर्सों की बहाली कितनी होती थी मरीजों को कितनी सुविधाएं मिलती थीं, ये सब भी नीति आयोग बताता, तो देश और राज्य की जनता को विकास को परखने में और सुविधा होती।”
गौरतलब हो कि नीति आयोग और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मिलकर जिला स्तर पर स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर एक रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जिलास्तर पर प्रति लाख आबादी पर बेड की उपलब्धता के मामले में बिहार सबसे आखिरी पायदान पर है। बिहार में एक लाख की आबादी पर सिर्फ़ 6 बेड उपलब्ध है। वहीं, राष्ट्रीय स्तर पर जिला अस्पतालों में प्रति एक लाख आबादी पर 24 बेड है।
इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड 2012 के मुताबिक, एक लाख आबादी पर कम से कम 22 बेड होने चाहिए, यानी कि बिहार जरूरत के अनुपात में बेड्स की उपलब्धता तीन गुना कम है।
नीति आयोग की रिपोर्ट को लेकर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने नीतीश सरकार पर हमला किया है।
उन्होंने ट्वीट कर कहा,
“16 वर्षों के थकाऊ परिश्रम के बूते बिहार को नीचे से नंबर-1 बनाने पर नीतीश जी को बधाई। 40 में से 39 लोकसभा MP और डबल इंजन सरकार का बिहार को अद्भुत फ़ायदा मिल रहा है। नीति आयोग की रिपोर्ट अनुसार देश के जिला अस्पतालों में सबसे कम बेड बिहार में हैं, 1 लाख की आबादी पर मात्र 6 बेड।”
यहां ये भी बता दें कि साल 2005 से बिहार में लगातार जदयू-भाजपा की सरकार बन रही है और हर बार स्वास्थ्य विभाग भाजपा के कोटे में रहा है। ऐसे में स्वास्थ्य को लेकर जारी आंकड़ों में बिहाल की बिगड़ रही छवि के लिए आलोचना के केंद्र में जदयू से ज्यादा भाजपा है।
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