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लॉकडाउन के बीच बिहार सरकार ने उर्दू के खिलाफ रच दी साजिश

बिहार सरकार के शिक्षा विभाग ने 15 मई 2020 को एक अधिसूचना जारी की, जिसमें माध्यमिक यानी हाई स्कूल में शिक्षकों के पदस्थापन का नया मानक तैयार किया गया है।

Tanzil Asif is founder and CEO of Main Media Reported By Tanzil Asif |
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बिहार सरकार के शिक्षा विभाग ने 15 मई 2020 को एक अधिसूचना जारी की, जिसमें माध्यमिक यानी हाई स्कूल में शिक्षकों के पदस्थापन का नया मानक तैयार किया गया है। इसके तहत अब हाई स्कूलों में छह शिक्षक और एक प्रधानाध्यापक होंगे। इसके अलावा जो अतिरिक्त शिक्षक होंगे उन्हें दूसरे स्कूलों में भेज दिया जाएगा।

 

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लेकिन ये छह शिक्षक किन-किन विषयों के होंगे ये जानना ज़रूरी है। नोटिफिकेशन के हिसाब से ये छह टीचर हिन्दी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान और द्वितीय भाषा के होंगे। सब्जेक्ट्स के नाम एक बार फिर से सुन लीजिये …हिन्दी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान और द्वितीय भाषा।

चार पेज के इस नोटिफिकेशन में मातृभाषा का कोई ज़िक्र नहीं है, तो क्या पहले मातृभाषा जैसा कोई सब्जेक्ट होता था? जवाब है हाँ!

 

इसी साल फरवरी में बिहार बोर्ड ने जो दसवीं का एग्जाम करवाया था उसकी डेट शीट यानी परीक्षा कार्यक्रम पर एक नज़र डालिये। साफ़ है कि बिहार बोर्ड के दसवीं में अब तक मातृभाषा एक compulsory subject था, जिसके अंदर हिंदी, उर्दू, बंगला और मैथिलि शामिल थे और एक सब्जेक्ट द्वितीय भाषा था। ऐसे छात्र जिन्होंने मातृभाषा में हिंदी नहीं ली, उन्हें द्वितीय भाषा में हिंदी लेना अनिवार्य था, बाकी लोग संस्कृत, अरबी, फ़ारसी और भजपुरी में से कोई एक द्वितीय भाषा को अपना सब्जेक्ट बना सकते थे। यानी हिंदी पढ़ना पहले भी अनिवार्य था, लेकिन उसका तरीका अलग था। लेकिन यहां मुद्दा हिंदी के अनिवार्य होने का नहीं है।

दरअसल, मुद्दा है पूरे नोटिफिकेशन में उर्दू का कोई ज़िक्र न होना, जबकि उर्दू बिहार की दूसरी official language यानी राज भाषा है और एक बड़ी आबादी की मातृभाषा भी है। नोटिफिकेशन 15 मई को आई और 2 जून को बक्सर से जागरण में इसको लेकर खबर छपी। लेकिन बिहार के हाई स्कूलों से मातृभाषा को हटाए जाने की बात पिछले कुछ दिनों से ही चर्चा में है।

 

तो सवाल ये है की क्या अब बिहार के हाई स्कूलों में उर्दू को मातृभाषा नहीं माना जाएगा? क्या उर्दू को अब दूसरी भाषा बना कर संस्कृत, अरबी, फ़ारसी और भोजपुरी की कतार में खड़ा कर दिया जाएगा? क्यूंकि किसी भी स्कूल में अब छह शिक्षक ही होंगे और उन में से ही एक दूसरी भाषा का शिक्षक होगा, तो सवाल भी है की वो टीचर आखिर किस भाषा का होगा?

National Education Policy जहाँ एक तरफ मातृभाषा पर फोकस्ड है, वहीं दूसरी तरफ बिहार सरकार का मातृभाषा को यूँ अनदेखी करना समझ से पड़े है।

इन तमाम सवालों को लेकर हमने सबसे पहले बिहार सरकार के शिक्षा विभाग के उप सचिव अरशद फ़िरोज़ साहब को फ़ोन किया, जिनका सिग्नेचर इस अधिसूचना पर था।

दुबारा फ़ोन करने पर भी जब उन्होंने कॉल receive नहीं किया तो फिर हमारे साथी उत्कर्ष सिंह इन सवालों को लेकर बिहार के शिक्षा मंत्री कृष्णनंदन वर्मा के पास गए।

शिक्षा मंत्री कृष्णनंदन वर्मा ने कैमरे पर कुछ भी कहने से इंकार कर दिया। हालांकि उन्होंने ये जानकारी जरूर दी कि उर्दू को सिलेबस से हटाया नहीं गया है बल्कि दूसरी भाषा की श्रेणी में रखा गया गया है। लेकिन वो ये नहीं बता पाए कि आखिर पाठ्यक्रम से मातृभाषा की श्रेणी को क्यों हटाया गया, उन्होंने ये भी नहीं बताया कि किन परिस्थितियों में राज्य की एक राजभाषा उर्दू को दूसरी भाषा की श्रेणी में रखा गया? न ही वो इस बात का जवाब दे पाए कि इन बातों का जिक्र अधिसूचना में क्यों नहीं किया गया?

शायर मंज़र भोपाली के शब्दों में कहें तो

मिरी मज़लूम उर्दू तेरी साँसों में घुटन क्यूँ है
तेरा लहजा महकता है तो लफ़्ज़ों में थकन क्यूँ है

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तंजील आसिफ एक मल्टीमीडिया पत्रकार-सह-उद्यमी हैं। वह 'मैं मीडिया' के संस्थापक और सीईओ हैं। समय-समय पर अन्य प्रकाशनों के लिए भी सीमांचल से ख़बरें लिखते रहे हैं। उनकी ख़बरें The Wire, The Quint, Outlook Magazine, Two Circles, the Milli Gazette आदि में छप चुकी हैं। तंज़ील एक Josh Talks स्पीकर, एक इंजीनियर और एक पार्ट टाइम कवि भी हैं। उन्होंने दिल्ली के भारतीय जन संचार संस्थान (IIMC) से मीडिया की पढ़ाई और जामिआ मिलिया इस्लामिआ से B.Tech की पढ़ाई की है।

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