बिहार का किशनगंज विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस के बचे हुए चंद गढ़ों में से एक है। पिछले कुछ चुनावों में हुए उलटफेर के बावजूद पार्टी ने इस सीट पर अपनी पकड़ बनाए रखी है। 1951 से 2020 तक हुए 17 आम चुनावों और एक उपचुनाव में कांग्रेस को 12 बार जीत मिली है। इनमें से अधिकतर जीत का श्रेय किशनगंज के पूर्व विधायक और वर्तमान सांसद डॉ. मोहम्मद जावेद आज़ाद के परिवार को जाता है। डॉ. जावेद इस क्षेत्र से चार बार विधायक रह चुके हैं और 2019 व 2024 के लोकसभा चुनावों में भी उन्होंने इस विधानसभा क्षेत्र में बढ़त बनाए रखी — जो उनकी जीत का मुख्य आधार बना। उनके पिता स्व. मोहम्मद हुसैन आज़ाद 1962 से 1990 के बीच इस क्षेत्र से छह बार विधायक रहे और बिहार सरकार में मंत्री भी बने।
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किशनगंज विधानसभा क्षेत्र का इतिहास खंगालना टेढ़ी खीर है। इसकी एक वजह यह है कि समय के साथ इस क्षेत्र की सीमाओं में कई बड़े बदलाव हुए हैं। विकिपीडिया में दी गई जानकारियाँ भी अक्सर भ्रम पैदा कर सकती हैं। 2008 में हुए परिसीमन के बाद किशनगंज ज़िला तीन की बजाय चार विधानसभा क्षेत्रों — किशनगंज, ठाकुरगंज, बहादुरगंज और कोचाधामन — में बंट गया।
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पुराने किशनगंज विधानसभा क्षेत्र में किशनगंज नगर परिषद, किशनगंज ब्लॉक और कोचाधामन प्रखंड शामिल थे। इसलिए 2008 से पहले इस क्षेत्र की राजनीति कोचाधामन प्रखंड केंद्रित रही। परिसीमन के बाद बनाए गए कोचाधामन विधानसभा क्षेत्र में कोचाधामन प्रखंड और किशनगंज ब्लॉक की छह पंचायतें (गाछपाड़ा, चकला, दौला, पिछला, बेलवा और महीनगांव) शामिल हो गईं। वर्तमान किशनगंज विधानसभा क्षेत्र में किशनगंज नगर परिषद, पोठिया ब्लॉक और किशनगंज ब्लॉक की चार पंचायतें (मोतीहारा तालुका, सिंघिया कुलामनी, हालामाला और टेऊसा) शामिल हैं। राजनीति की धुरी अब बहुत हद तक पोठिया ब्लॉक पर केंद्रित हो चुकी है, जो पहले ठाकुरगंज विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा था।
1962 तक आज के किशनगंज ज़िले में केवल दो विधानसभा क्षेत्र थे — किशनगंज और बहादुरगंज।
1951 के विधानसभा चुनाव के समय पश्चिम बंगाल का इस्लामपुर सबडिवीजन भी बिहार का हिस्सा था। तब किशनगंज, बहादुरगंज, इस्लामपुर और करंदीघी — ये चारों बिहार में आते थे।
चुनाव वर्ष | विजेता | पार्टी | प्राप्त वोट | दूसरा स्थान | पार्टी | प्राप्त वोट | |
1 | 2020 | इजहारुल हुसैन | कांग्रेस | 61,078 | स्वीटी सिंह | भाजपा | 59,697 |
2 | 2019 उपचुनाव | कमरुल होदा | AIMIM | 70,469 | स्वीटी सिंह | भाजपा | 60,265 |
3 | 2015 | मोहम्मद जावेद | कांग्रेस | 66,522 | स्वीटी सिंह | भाजपा | 57,913 |
4 | 2010 | मोहम्मद जावेद | कांग्रेस | 38,867 | स्वीटी सिंह | भाजपा | 38,603 |
इससे पहले पोठिया ब्लॉक ठाकुरगंज विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा था | |||||||
5 | अक्टूबर 2005 | गोपाल कुमार अग्रवाल | SP | 38,592 | मोहम्मद जावेद | कांग्रेस | 32,483 |
6 | फरवरी 2005 | मोहम्मद जावेद | कांग्रेस | 27,560 | ताराचंद्र धानुका | SP | 27,381 |
7 | 2000 | मोहम्मद जावेद | कांग्रेस | 40,875 | ताराचंद्र धानुका | निर्दलीय | 34,165 |
8 | 1995 | सिकदंर सिंह | भाजपा | 34,691 | मोहम्मद जावेद | कांग्रेस | 26,739 |
9 | 1990 | मो. सुलेमान | जनता दल | 34,749 | मो. हुसैन आज़ाद | कांग्रेस | 19,445 |
10 | 1985 | मो. हुसैन आज़ाद | कांग्रेस | 44,882 | मो. सुलेमान | जनता पार्टी | 30,669 |
11 | 1980 | मो. हुसैन आज़ाद | कांग्रेस (I) | 30,073 | मो. सुलेमान | जनता पार्टी (JP) | 27,566 |
12 | 1977 | मो. सुलेमान | जनता पार्टी | 24,273 | मो. हुसैन आज़ाद | कांग्रेस | 22,943 |
13 | 1972 | मो. हुसैन आज़ाद | कांग्रेस | 21,519 | ताराचंद्र अग्रवाल | भारतीय जनसंघ | 9,339 |
14 | 1969 | मो. हुसैन आज़ाद | कांग्रेस | 19,256 | कार्तिक प्रसाद सिंह | लोकतांत्रिक कांग्रेस | 5,532 |
15 | 1967 | मो. हुसैन आज़ाद | कांग्रेस | 10,810 | जेड ए जाफरी | प्रजा सोशलिस्ट पार्टी | 7,806 |
इससे पहले पोठिया ब्लॉक किशनगंज विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा था | |||||||
16 | 1962 | मो. हुसैन आज़ाद | स्वतंत्रता | 10,793 | सैयद अब्दुल हयात | कांग्रेस | 6,203 |
17 | 1957 | सैयद अब्दुल हयात | कांग्रेस | 14,567 | अहमद हुसैन | प्रजा सोशलिस्ट पार्टी | 5,207 |
18 | 1952 | रौतमल अग्रवाल | कांग्रेस | 11,243 | सैयद अब्दुल हयात | निर्दलीय | 11,238 |
इस दौरान सैयद अब्दुल हयात यहाँ कांग्रेस के नेता थे। 1951 में निर्दलीय चुनाव लड़ते हुए कांग्रेस के रौतमल अग्रवाल से हार गए। 1957 में कांग्रेस ने उन्हें टिकट दिया और वे विधायक बने। 1962 में मात्र 26 वर्ष की उम्र में स्वतंत्रता पार्टी के मोहम्मद हुसैन आज़ाद ने उन्हें हराकर इस क्षेत्र में अपनी राजनीतिक शुरुआत की।
1967 में ठाकुरगंज विधानसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया और वहीं से मोहम्मद हुसैन आज़ाद ने कांग्रेस के टिकट पर जीत की शुरुआत की। 1967 से 1990 के बीच हुए सात चुनावों में वे पांच बार विजयी रहे। 1977 और 1990 में उन्हें जनता पार्टी/जनता दल के मोहम्मद सुलेमान से हार का सामना करना पड़ा। 26 मई 1991 में मात्र 55 साल की उम्र में हुसैन आज़ाद का इंतेक़ाल हो गया।
जावेद आज़ाद का चुनावी सफर
1995 में मोहम्मद हुसैन आज़ाद के बेटे मोहम्मद जावेद आज़ाद का सामना भाजपा के सिकंदर सिंह, जनता दल के मोहम्मद सुलेमान और सपा के चौधरी खलीकुज्जमा से हुआ। तीनों मुस्लिम उम्मीदवार जावेद, सुलेमान और चौधरी ने क्रमशः 26739, 20870 और 19440 वोट लाये। इस चौकोणीय मुक़ाबले में पहली बार भाजपा यहाँ से जीतने में कामयाब हुई। भाजपा के सिकंदर सिंह ने लगभग 8,000 वोटों से जीत हासिल की।
लेकिन, साल 2000 के चुनाव में खेल पलट गया। कांग्रेस, निर्दलीय उम्मीदवार ताराचंद्र धानुका और भाजपा के सिकंदर सिंह के बीच हुए त्रिकोणीय मुक़ाबले में मोहम्मद जावेद 6710 वोटों से चुनाव जीत गए। फ़रवरी 2005 में जावेद और सपा के धानुका के बीच कांटे की टक्कर हुई। इस बार एनसीपी टिकट पर चुनाव लड़ रहे मो. नौशाद ने मुक़ाबले को त्रिकोणीय बना दिया दिया था। कांग्रेस की 179 वोटों से जीत हुई, वहीं तीसरे स्थान पर आये नौशाद मात्र 1427 वोटों से हारे। हंग असेंबली की वजह से कुछ महीनों बाद ही फिर से चुनाव हुए। इस बार सपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे ताराचंद्र धानुका के बेटे गोपाल अग्रवाल ने करीब छह हज़ार वोटों से जावेद को पराजित कर दिया। तीसरे स्थान पर आये लोजपा के नौशाद का वोट 26,133 से 26,883 पहुंचा।
2010 चुनाव से विधानसभा क्षेत्र अलग-अलग हुए तो नए उम्मीदवार मैदान में आये। इस बार कांग्रेस के जावेद का मुक़ाबला सिकंदर सिंह की पत्नी स्वीटी सिंह और राजद के तसीरुद्दीन से हुआ। एक बार फिर डॉ. जावेद मात्र 264 वोटों के मार्जिन से जीतने में सफल रहे। 2015 के चुनाव में AIMIM की एंट्री हुई, तो तसीरुद्दीन, पार्टी के उम्मीदवार बने। लेकिन राजद-जदयू-कांग्रेस महागठबंधन के सामने टिक नहीं पाए और 8,609 वोटों के अंतर से जावेद की जीत हुई।
2019 के लोकसभा चुनाव में जावेद सांसद बन गए, जिस वजह से किशनगंज विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव हुआ।
2019, 2020 और आगे
2019 में किशनगंज विधानसभा सीट पर उपचुनाव में टिकट के दावेदारों की फेहरिस्त में कांग्रेस के पुराने कार्यकर्ताओं की एक लंबी सूची थी, लेकिन कांग्रेस ने किसी कार्यकर्ता के बजाय मोहम्मद हुसैन आज़ाद की विधवा और डॉ जावेद आज़ाद की मां सईदा बानू को मैदान में उतारा, कांग्रेस के इस फैसले से किशनगंज विधानसभा की पूरी पार्टी बिखर गई।
पुराने कार्यकर्ता बगावत पर उतर आए, फलतः कांग्रेस उम्मीदवार अपनी ज़मानत तक नहीं बचा सकीं और AIMIM के कमरुल होदा रिकार्ड मतों से विजयी हुए। दूसरे नंबर पर बीजेपी की स्वीटी सिंह रहीं। कांग्रेस की करारी हार के बाद बागी कार्यकताओं को पार्टी ने छह वर्षों के लिए निष्कासित कर दिया। जब बात आई 2020 बिहार विधानसभा चुनाव की तो कांग्रेस ने पार्टी का ध्वस्त किला फतेह करने की जिम्मेदारी एक पुराने कार्यकर्ता इजहारूल हुसैन को दी।
इजहार पोठिया प्रखंड अंतर्गत दामलबाड़ी पंचायत निवासी हैं। पंचायत स्तरीय राजनीति में इनका परिवार दशकों से सक्रिय है। उनके पिता मोहम्मद मोइनुद्दीन 1968 से 1995 तक मुखिया रहे। साल 2006 से 2011 तक उनकी मां मुखिया रहीं।
उन्होंने भाजपा की स्वीटी सिंह को 1,381 वोटों से हरा कांग्रेस का क़िला वापस फतह कर लिया। इजहारुल हुसैन को 61,078 वोट मिले जबकि दूसरे स्थान पर रहीं स्वीटी सिंह ने 59,697 वोट प्राप्त किये। तीसरे स्थान पर रहे एआईएमआईएम के मोहम्मद कमरुल हुदा को 41,904 वोट मिले।
टिकट के दावेदार
फिलहाल, कमरुल होदा राजद में शामिल हो चुके हैं और पार्टी के जिला अध्यक्ष हैं। बीते 2024 लोकसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार मोहम्मद जावेद के लिए प्रचार-प्रसार भी किया था। इसलिए महागठबंधन में वर्तमान विधायक इजहारुल हुसैन के साथ ही कमरुल होदा भी टिकट के प्रबल दावेदार के तौर पर उभरे हैं। हालांकि, इसकी गुंजाइश कम ही है कि कांग्रेस अपनी परंपरागत सीट राजद के कोटे में जाने देगी।
दूसरी तरफ पूर्व विधायक सिकंदर सिंह की पत्नी स्वीटी सिंह के लिए लगातार चार बार हार के बाद पांचवीं बार NDA का प्रत्याशी बनना चुनौतीपूर्ण होगा। किशनगंज, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. दिलीप जायसवाल की कर्मभूमि भी है। वो लगातार तीसरी बार पूर्णिया-अररिया-किशनगंज क्षेत्र के एमएलसी बने हैं, साथ ही शहर में उनका एमजीएम मेडिकल कॉलेज चल रहा है। ऐसे में वे किसी भी सूरत में यहाँ से NDA की वापसी करवाना चाहेंगे।
स्वीटी सिंह के अलावा, भाजपा खेमे से यहाँ कई नामों की चर्चा चल रही है। पूर्व जिला अध्यक्ष सुशांत गोप, पूर्व जिला परिषद सदस्य व जिला उपाध्यक्ष संजय उपाध्याय की मां सपना देवी, बिहार राज्य अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य एडवोकेट शिशिर दास और मुस्लिम समुदाय से अमानुल्ला जैसे नामों की चर्चा है।
राजबंशी समुदाय, जिनकी पड़ोस के पश्चिम बंगाल की राजनीति में अच्छी पकड़ है, वो भी NDA से टिकट की हिस्सेदारी मांगते रहे हैं। 2020 के चुनाव में टिकट नहीं मिलने पर राजबंशी नेता मोहन सिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़ कर 1419 वोट हासिल किया था, भाजपा लगभग इतने ही वोटों से चुनाव हारी थी।
वहीं उपचुनाव में जीत के बाद AIMIM भी इस सीट को वापस जीतने की तैयारी में लगी है। 2015 में पार्टी के प्रत्याशी रहे तसीरुद्दीन के बेटे एडवोकेट शम्स आगाज़ पार्टी से टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। उनका परिवार लंबे समय से जिला परिषद् क्षेत्र संख्या 14 का प्रतिनिधित्व करता रहा है।
पार्टी के जिला सचिव व वर्तमान विधायक इज़हारुल हुसैन के चचेरे भाई गुलाम मुक़्तदा भी टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। इज़हार और मुक़्तदा के परिवारों के बीच पंचायत स्तर की राजनीतिक लड़ाई पुरानी है। पिछले विधानसभा चुनाव के बाद मुक़्तदा के परिवार ने विधायक इज़हार की भाभी को मुखिया चुनाव में हराया है। साथ ही 2025 के पैक्स चुनाव में भो ऐसा ही परिणाम देखने को मिला।
इन दोनों के अलावा पार्टी के पूर्व जिला अध्यक्ष मो. इसहाक और हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉक्टर बरकतुल्लाह के नाम की भी चर्चा में है।
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