[vc_row][vc_column][vc_column_text]बिहार चुनावों को लेकर चुनाव आयोग ने घोषणा कर दी है। 28 अक्टूबर से लेकर 10 नवंबर के बीच तीन फेज में चुनाव कराए जाएंगे। इस चुनाव को लेकर खास तैयारियां की गई हैं जिसके बारे में चुनाव आयोग ने बताया भी है। इस बार कोरोना काल है और बिहार का चुनाव इस काल का पहला सबसे बड़ा चुनाव है। चुनाव आयोग ने जैसी बातें फ्रेस कांफ्रेंस में बताई हैं लेकिन क्या बिहार की राजनीतिक पार्टियों का क्या? वो कितनी तैयार हैं? यह एक बड़ा सवाल सामने आ रहा है। क्यों कि पार्टियों के बीच कोई क्लेयरिटी की बातें सामने ही नहीं आई हैं ।
अभी तक बिहार के दोनों, सत्ता और विपक्ष के गठबंधनों की बात करें तो दोनों में सीट शेयरिंग का मामला सुलझा नही है। बात एनडीए की करें तो बिहार एनडीए की तीनों पार्टियों के बीच सीटों को लेकर अभी बात तक नहीं हुई है। 2019 के लोकसभा में जिस तरह से तीनों पार्टियां ने एक साथ आकर सीटों के बंटवारे को लेकर मीडिया को जानकारी दी थी, वैसा कुछ अभी तक नहीं दिखा है। एलजेपी सीटों के बंटवारे के मामले से संतुष्ट नहीं है। ललनटॉप को दिए एक इंटरव्यू में चिराग ने कहा था कि सीटों के बंटवारे को लेकर 2015 में ही एनडीए गठबंधन में बात हुई थी। इसमें तय था कि जीतनी लोगसभा की सीटें हैं उसमें गुना 6 सीटें विधानसभा के लिए होंगी। लेकिन जब 2017 में जदयू गठबंधन में आई तो बात हुई कि थोड़ा बहुत कम्प्रोमाइज सबको करना होगा। हालांकि 2019 लोकसभा में 6 लोकसभा सीट ओर 1 राज्यसभा की सीट देकर 7 का आंकड़ा पूरा किया गया।
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चिराग ने इस इंटरव्यू में सीटों को लेकर कहा था कि उनहोंने अपनी चिंता से बीजेपी नेतृत्व को अवगत कराया है लेकिन अभी इसपर कोई बात नहीं हुई है। वहीं बात जदयू की करें तो 2014 के लोकसाभा में उसने मात्र दो सीटें जीती थी। लेकिन 2019 आते आते परिस्थितियां बदल गईं और बीजेपी गठबंधन में वो बराबर की सीटों की हकदार बन गई। ऐसे में इस चुनाव में जदयू अपने आप को बराबर या बड़ा भाई बताने में जुटी है। इसी बात को लेकर एलजेपी और जदयू के बीच बन नहीं रही है। एलजेपी का कहना है कि जमीन पर अगर नीतीश के चेहरे के साथ उतरा गया तो नुकसान होगा।
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इस सब के बीच बीजेपी कहां है? जहां तक बात बीजेपी की करें तो प्रधानमंत्री मोदी से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा तक ने नीतीश को बिहार में नेता बता दिया है। बीजेपी के बड़े नेता भी नीतीश को ही कैष्टन बता रहे हैं। बीच में यह भी खबर आई थी कि बीजेपी ने एलजेपी को अल्टीमेटम दे दिया है कि वो 25 सीटों से ज्यादा उसे नहीं दे सकती। ऐसे में लगता तो यहीं है कि बीजेपी और जदयू का गठबंधन सीमेंटेड हो गया है और इसमें एलजेपी के लिए केवल दो आॅप्शन है या तो जितनी सीटें मिल रही हैं उसपर मान जाए या गठबंधन से बाहर हो जाए। लेकिन ऐसा भी कहा जा रहा है कि बीजेपी एलजेपी को जानबुझ कर बाहर कर रही है ताकि वो उसे एक बफर की तरह यूज कर सके, ताकि चुनाव के बाद की परिस्थितियों में वो उसे बफर की तरह यूज कर सके।
महागठबंधन में क्या हो रहा है?
बात महागठबंधन की करें तो यहां भी उठा पटक जारी है। महागठबंधन के दोनों बड़े दल कांग्रेस और राजद के बीच कोई खास बात नहीं हो सकी है। एक मीटिंग की बात सामने आ रही थी जिसमें कांग्रेस को 70 सीटें देने की बात थी लेकिन दोनों ओर से कोई सहमति नहीं बन सकी है। वहीं लेफ्ट की पार्टियों को क्या मिलेगा इसपर भी अभी कोई बात नहीं हुई है। यानि यहां मामला शुन्य पर है। वहीं महागठबंधन में दूसरी बड़ी टूट हो चुकी है। उपेन्द्र कुशवाहा भी बाहर जा चुके हैं।गौर करनेवाली बात यह है कि जाते जाते उन्होंने तेजस्वी के नेतृत्व पर सवाल खड़े कर दिए। यह सवाल ऐसा है जिसे लेकर कांग्रेस भी असहज है। कांग्रेस की ओर से भी अभी तेजस्वी को मुख्यमंत्री का चेहरा स्वीकार नहीं किया गया है। ऐसे में जब चुनाव की तारीखों का एलान हो चुका है तो बहुत कम समय बचा है जिसमें इन सभी को चुनाव के मद्देनजर फैसला लेना होगा।
क्या तीसरा मोर्चा बनेगा?
बात उपेन्द्र कुशवाहा की करें तो महागठबंधन से बाहर होने के बाद एनडीए खासतौर से बीजेपी की ओर से कोई ज्यादा भाव उन्हें नहीं मिला है। ऐसे में उनके पास चुनाव में अकेले लड़ने जैसी परिस्थिति है। वहीं अगर एलजेपी एनडीए गठबंधन से बाहर आती है तो दोनों के साथ आकर तीसरा मोर्चा बनाने की संभावना दिख रही है। लेकिन इसपर भी कुछ साफतौर पर कहा नहीं जा सकता।
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इन सभी परिस्थितियों में बिहार चुनाव की हालत हड़बड़ाहट वाली हो गई है। अब 5 दिनों में सभी पॉलिटिकल पार्टियों को यह फैसला लेना होगा कि चुनाव में किस तरह से उतरना है। ताजा खबर है कि कांग्रेस का सेन्ट्रल नेतृत्व बिहार पहुंच गया है और चुनाव के मद्देनज़र मामलों को सुलझाने में लग गई है।
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