“हम साफ-सुथरी छवि वाले और काबिल लोगों को राजनीति में लाएंगे।” शब्दों में थोड़ा बहुत हेर-फेर कर ये बातें पू्र्व चुनाव प्रबंधक व जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने न जाने कितनी दफा कही होंगी।
जन सुराज पार्टी के इंस्टाग्राम अकाउंट पर डाले गये एक वीडियो में भोजपुर जिले के तरारी विधानसभा क्षेत्र के उम्मीदवार का जिक्र करते हुए प्रशांत किशोर कहते हैं, “आपने कोई ऐसा उम्मीदवार देखा हो विधानसभा चुनाव में, तो हमको बताइए। हमने गांव-गांव जाकर लोगों को आश्वासन दिया है कि हर वो व्यक्ति जो चुनाव लड़ेगा, पार्टी में बड़ी भूमिका में आएगा, वह प्रशांत किशोर से काबिल व्यक्ति होगा, लोकल व्यक्ति होगा और वहां के लोगों द्वारा चुना गया होगा।”
Also Read Story
एक अन्य इंस्टाग्राम वीडियो में वह कहते हैं कि चारों सीटों पर चुने हुए सबसे बेहतर काबिल लोग चुनाव लड़ेंगे। वह कहते हैं, “पहली बार जनता देखेगी कि हमलोग विकल्प के अभाव की बात करते हैं कि राजनीति में अच्छा आदमी कहां है, कोई अच्छा उम्मीदवार कहां है। बिहार की जनता को विकल्प दिखेगा अच्छे लोग दिखेंगे, जो काबिल हैं, सही हैं।”
लेकिन, प्रशांत किशोर पिछले दो साल से साफ-सुथरी राजनीति करने और राजनीति में एक नया मानक से स्थापित करने की जो कसमें खा रहे हैं, क्या उन कसमों को व्यावहारिक तौर पर भी निभा रहे हैं?
बिहार में चार विधानसभा सीटों पर होने जा रहा उपचुनाव, एक तरह से जन सुराज पार्टी की चाल, चरित्र और चेहरे का लिटमस टेस्ट है।
लेकिन, हालिया घटनाक्रम से एक माह पहले अस्तित्व में आई इस पार्टी को लेकर कुछ चीजें साफ होती दिख रही हैं। मसलन चार में से दो सीटों पर उम्मीदवारों को बदल देना, इन उम्मीदवारों की शैक्षणिक योग्यता और उनकी पृष्ठभूमि देखकर साफ जाहिर होता है कि जमीन पर वह भी दूसरी राजनीतिक पार्टियों के ही नक्श-ए-कदम पर चल रही है।
दो सीटों पर उम्मीदवार बदले
पार्टी ने 19 अक्टूबर को गया जिले के बेलागंज विधानसभा क्षेत्र से प्रोफेसर खिलाफत हुसैन को टिकट दिया था। वह गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि से आते हैं और इलाके में उनकी पहचान एक शिक्षाविद की है। प्रशांत किशोर ने प्रो. खिलाफत हुसैन की उम्मीदवारी का ऐलान करते हुए कहा था, “जन सुराज मजबूत लोगों को नहीं चुनता, जन सुराज सही लोगों का चयन करता है। जन सुराज योग्यता के साथ साथ स्वच्छ छवि वाले, जनता के बीच रहे और बिहार को बेहतर बनाने का संकल्प रखने वालों को अपना उम्मीदवार बनाता है।”
लेकिन, चार दिन बाद ही पार्टी ने बेलागंज का अपना उम्मीदवार बदल दिया और मोहम्मद अमजद को टिकट दिया, जिन पर कई आपराधिक मामले दर्ज हैं।
मोहम्मद अमजद ने पहली बार फ़रवरी 2005 में लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा था। वहीं, अक्टूबर 2005 और 2010 के विधानसभा चुनाव में उन्हें जदयू ने टिकट दिया था, लेकिन वह हार गये थे। मोहम्मद अमजद ने हालांकि अपने आधिकारिक बयान में कहा कि वह खुद चुनाव लड़ना नहीं चाहते थे और उन्होंने ही प्रो. खिलाफत हुसैन को टिकट देने की सिफारिश की थी। मगर, सच तो यह है कि 19 अक्टूबर को उम्मीदवारों के चयन के लिए बेलागंज में पार्टी की बैठक बुलाई गई थी। बैठक के बाद प्रशांत किशोर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर प्रो. खिलाफत हुसैन को उम्मीदवार बनाने की घोषणा की, तो मोहम्मद अमजद गुट के समर्थन नाराज हो गये थे और उन्होंने जोरदार हंगामा कर दिया था।
एक सूत्र ने बताया कि प्रशांत किशोर के सामने उम्मीदवारों की जो सूची पेश की गई थी, उसमें पहला नाम मोहम्मद अमजद का ही था और वह चुनाव लड़ने को भी तैयार बैठे थे, लेकिन एक पढ़े लिखे व्यक्ति के तौर पर खिलाफत हुसैन का चेहरा ज्यादा वजनदार था, इसलिए प्रशांत किशोर ने उन्हें उम्मीदवार घोषित कर दिया, जिससे मोहम्मद अमजद के समर्थक नाराज हो गये। उक्त सूत्र का यह भी दावा है कि मोहम्मद अमजद ने अपने कुछ नाराज समर्थकों से सीधे कहा था कि जन सुराज पार्टी से अंततः उन्हें ही उम्मीदवार बनाया जाएगा और खिलाफत हुसैन के नाम की घोषणा केवल लोगों को ये बताने के लिए की गई है कि पार्टी ने पढ़े-लिखे व्यक्ति को तरजीह दी है।
जन सुराज पार्टी से जुड़े एक व्यक्ति ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, “मोहम्मद अमजद खुद ही चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन प्रशांत किशोर ने खिलाफत हुसैन को उम्मीदवार बनाने की घोषणा कर दी जिसके बाद उनके समर्थक नाराज हो गये थे।” उक्त व्यक्ति ने इस बात से इनकार किया कि केवल वाहवाही लूटने के लिए जन सुराज पार्टी ने खिलाफत हुसैन को टिकट दिया था। वह कहते हैं, “खिलाफत हुसैन की उम्र अधिक है। वह धुआंधार प्रचार कर पाने में शारीरिक तौर पर खुद को सक्षम नहीं पाते हैं, इसलिए उन्होंने खुद उम्मीदवारी छोड़ दी और मोहम्मद अमजद को टिकट देने की अपील की।”
इससे पहले 16 अक्टूबर को पार्टी ने भोजपुर जिले के तरारी विधानसभा क्षेत्र से सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल श्रीकृष्ण सिंह को टिकट देने का ऐलान किया था। इस मौके पर प्रशांत किशोर ने कहा था कि तरारी की पहचान अब तक बालू माफिया, भूमि माफिया और जातीय हिंसा के केंद्र के रूप में रही है लेकिन श्रीकृष्ण सिंह उसी तरारी के गांव से निकले बिहार के लाल हैं।
उन्होंने आगे कहा था, “जन सुराज की चुनौती है कि कोई भी पार्टी तरारी से श्रीकृष्ण सिंह से बेहतर उम्मीदवार घोषित करे। अन्य दल जाति या धर्म या बाहुबल या धनबल के आधार पर अपने उम्मीदवारों का चयन करते है, और जन सुराज अपने उम्मीदवारों का चयन उनकी योग्यता और क्षमता के आधार पर करता है।”
श्रीकृष्ण सिंह निश्चित तौर पर साफ-सुथरी छवि के व्यक्ति हैं, लेकिन वह राजनीति में नहीं रहे। वह नोएडा में एक व्यवस्थित जीवन जी रहे हैं। उनकी संतानें विदेशों में रहती हैं। पार्टी के लिए श्रीकृष्ण सिंह की उम्मीदवारी शर्मिंदगी का बायस तब बन गई जब पता चला कि वह तो बिहार के वोटर ही नहीं हैं, तो पार्टी ने उनका नाम तरारी क्षेत्र के वोटर लिस्ट में शामिल करने की लिखित अपील चुनाव आयोग से की लेकिन चूंकि अभी चुनाव आचार संहिता लागू है, तो ये न हो सका और पार्टी को अपना उम्मीदवार बदलना पड़ा।
जन सुराज पार्टी ने अब तरारी विधानसभा क्षेत्र से किरण सिंह को उम्मीदवार बनाया है, जो सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उनके पति धनबाद में काम करते हैं। किरण सिंह राजपूत जाति से आती हैं। श्रीकृष्ण सिंह, जिन्हें पार्टी ने सबसे पहले उम्मीदवार बनाया था, वह भी राजपूत जाति से ही आते हैं। एक स्थानीय पत्रकार बताते हैं, “राजपूत जाति के एक उम्मीदवार का टिकट काटकर दूसरे राजपूत उम्मीदवार को टिकट देना बताता है कि पार्टी यहां जातीय समीकरण बैठाना चाहती है वरना वह भूमिहार जाति से आने वाले घनश्याम राय को भी टिकट दे सकती थी, जो भाजपा को छोड़कर जन सुराज पार्टी में शामिल हुए हैं।”
वहीं, कैमूर की रामगढ़ विधानसभा सीट से जन सुराज पार्टी ने सुशील सिंह कुशवाहा को टिकट दिया है। वह पूर्व में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से जुड़े रहे हैं और साल 2019 का लोकसभा चुनाव उन्होंने बसपा के टिकट पर ही लड़ा था। सुशील सिंह कुशवाहा ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत भाजपा से की थी।
चार में से तीन पर आपराधिक मामले
उन्होंने कितनी ही बार आपराधिक वारदातों में नामजद नेताओं को खरी-खोटी सुनाई और इन नेताओं के बहाने ही आम वोटरों को भी आड़े हाथ लिया। मसलन की कैमूर के रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र में जनता को संबोधित करते हुए प्रशांत किशोर ने कहा, “रुपये लेकर वोट दीजिएगा, तो आपका मुखिया-नेता चोर नहीं तो क्या हरिश्चंद्र होगा।”
इससे पहले 14 सितंबर को जन सुराज विचार मंच की बैठक के बाद उन्होंने मीडिया के सामने कहा था कि समाज के प्रबुद्ध लोग अगर लोकतंत्र में भागीदार नहीं बनेंगे, तो मूर्ख लोग ही शासन करते रहेंगे।
हालांकि, संविधान ने किसी भी व्यक्ति के चुनाव लड़ने के लिए किसी तरह की न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता का प्रावधान नहीं किया है। यानी कि कोई भी व्यक्ति भले ही वह निरक्षर ही क्यों हो, चुनाव लड़ सकता है।
प्रबुद्ध लोगों को लोकतंत्र में भागीदार बनाने से प्रशांत किशोर का अर्थ ये था कि उनकी पार्टी इन मूल्यों को लेकर गंभीर है, लेकिन पार्टी ने जिन चार उम्मीदवारों को इस विधानसभा उपचुनाव में टिकट दिया है, उनमें से तीन उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं।
बेलागंज विधानसभा सीट से उम्मीदवार मोहम्मद अमजद पर हत्या की कोशिश करने, उगाही करने, दंगा फैलाने, हिंसा करने, शांति भंग करने, दवाइयों में मिलावट करने जैसी कुल पांच एफआईआर दर्ज हैं। इनमें से एक मामले में आरोप तय किये जा चुके हैं।
इसी तरह, इमामगंज सीट से पार्टी उम्मीदवार जितेंद्र पासवान के खिलाफ गया के बांकेबाजार थाने में अपहरण और चोरी के मामले दर्ज हैं।
रामगढ़ सीट से पार्टी कैंडिडेट सुशील सिंह कुशवाहा के खिलाफ भी हत्या की कोशिश, बंधक बनाने और चेक बाउंस होने पर नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138 के तहत मामले दर्ज हैं।
अधिकतम शिक्षा इंटर
प्रशांत किशोर अपने भाषणों में शैक्षणिक योग्यता को लेकर अक्सर सवाल करते हैं। खासकर राजद नेता और बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के नौवीं फेल होने को लेकर वह नियमित तौर पर कटाक्ष करते हैं, लेकिन उन्होंने जिन चार उम्मीदवारों को टिकट दिया है, उनकी शैक्षणिक योग्यता भी कुछ खास नहीं है।
गया जिले के इमामगंज विधानसभा क्षेत्र से जन सुराज पार्टी ने जितेंद्र पासवान को टिकट दिया है। जन सुराज पार्टी उन्हें शिशु रोग विशेषज्ञ चिकित्सक के रूप में प्रचार कर रही है, लेकिन दिलचस्प बात है कि उनके पास एमबीबीएस की डिग्री तक नहीं है। वह इंटरमीडिएट हैं और रूरल मेडिकल प्रैक्टिसनर (आरएमपी) हैं, जो एक या दो वर्ष का डिप्लोमा कोर्स होता है। जितेंद्र पासवान ने ‘मैं मीडिया’ को बताया, “मैं MBBS डॉक्टर नहीं हूं। मैंने आरएमपी का कोर्स किया है।”
इसी तरह, मोहम्मद अमजद स्थानीय स्कूल से महज माध्यमिक पास हैं। तरारी उम्मीदवार किरण देवी भी सिर्फ मैट्रिक उत्तीर्ण हैं। वहीं, रामगढ़ उम्मीदवार इंटरमीडिएट हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि राजनीति में उच्च आदर्श की बात करना अलग बात है, लेकिन जमीन पर आने पर समझौता करना ही होता है क्योंकि चुनावी जीत में कई फैक्टर काम करते हैं।
“राजनीति मूल तौर पर सत्ता संघर्ष है और सत्ता संघर्ष में जीतने के लिए आपको तमाम तरह के समझौते करने ही होंगे। हो सकता है कि प्रशांत किशोर की नीयत अच्छी हो, लेकिन सिर्फ अच्छी नीयत से चुनाव नहीं जीते जा सकते हैं। चुनाव जीतने में कई फैक्टरों की भूमिका होती है,” राजनीतिक विश्लेषक सुरूर अहमद कहते हैं।
उन्होंने नरेंद्र मोदी, लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार का उदाहरण देते हुए कहा, “लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार भी जब सत्ता के लिए संघर्ष कर रहे थे, तो उन्होंने नया बिहार बनाने और साफ-सुथरी राजनीति करने का वादा किया था, लेकिन उन्होंने बाहुबलियों को साथ लिया।” “नरेंद्र मोदी साल 2014 में जब प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे, तो उन्होंने राजनीति से परिवारवाद खत्म करने की बात कही थी, लेकिन आज भाजपा परिवारवाद को बढ़ावा दे रही है,” उन्होंने कहा।
सीमांचल की ज़मीनी ख़बरें सामने लाने में सहभागी बनें। ‘मैं मीडिया’ की सदस्यता लेने के लिए Support Us बटन पर क्लिक करें।