बिहार में एक फरवरी से शुरू हुई इंटरमीडिएट की परीक्षा को लेकर सख्त नियम कई छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है। कुछ मिनट लेट होने पर परीक्षा केंद्र में छात्रों को इंट्री नहीं मिल रही है, जिस कारण छात्र परीक्षा नहीं दे पा रहे हैं।
किशनगंज के इंटर हाईस्कूल में एक फरवरी को दो छात्र देर से पहुंचे, तो उन्होंने परीक्षा नहीं देने दिया गया, जिससे उन्हें बैरंग लौट जाना पड़ा।
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उनमें से एक छात्र चंदन कुमार मंडल ने कहा, “हिन्दी की परीक्षा थी। मैं पांच मिनट लेट से पहुंचा था, लेकिन मुझे परीक्षा केंद्र में जाने नहीं दिया गया। मुझसे कहा गया कि नियम के अनुसार मैं परीक्षा नहीं दे पाऊंगा।” एक अन्य छात्र जिसे परीक्षा से वंचित होना पड़ा, वो आदिवासी समुदाय से आता है और उसका नाम इलियाजार लकड़ा है।
दोनों छात्रों ने परीक्षा केंद्र में तैनात मजिस्ट्रेट के हाथ पैर तक पकड़ लिये, लेकिन अंततः उन्हें इंट्री नहीं मिली।
स्थानीय एसडीएम ने शाहनवाज अहमद नियाजी ने साफ लहजे में कहा कि सभी छात्रों को समय से परीक्षा केंद्र पहुंचना होगा, तभी इंट्री मिल पाएगी। देर होने पर उन्हें अंदर नहीं जाने दिया जाएगा।
अकेले आरा में एक फरवरी को दर्जनों छात्र परीक्षा केंद्र में प्रवेश नहीं पा सके, क्योंकि वे कुछ मिनट लेट से परीक्षा केंद्र पर पहुंचे थे।
मीडिया रपटों के मुताबिक, पटना में भी इंटर की परीक्षा देने से लेट से पहुंचे एक छात्र को केंद्र में जाने नहीं दिया गया, तो उसने विधायक तक को फोन कर दिया, लेकिन फिर भी इंट्र नहीं मिली। इस तरह की खबरें कमोवेश हर जिले से आई हैं, जिसका मतलब है है कि सैकड़ों छात्र सिर्फ लेट होने की वजह से इस साल इंटर पास नहीं कर पायेंगे।
बिहार में कॉलेज शिक्षा में स्नातक की डिग्री लेने में 3 साल की जगह पांच-पांच साल लग जा रहा है, ऐसे में इस तरह कुछ मिनट देर होने पर परीक्षा की अनुमति नहीं मिलने से छात्र परेशान हैं क्योंकि उनका एक साल बर्बाद हो रहा है और इसके लिए वे जिम्मेदार भी नहीं हैं।
13.45 लाख छात्र दे रहे परीक्षा
इस बार लगभग 13.45 लाख छात्र-छात्राएं परीक्षा दे रहे हैं, जिनमें छात्रों की संख्या 6.97 लाख और छात्राओं की संख्या 6.48 लाख है। परीक्षा के लिए राज्यभर में 1471 परीक्षा केंद्र बनाये गये हैं।
परीक्षा को लेकर सभी परीक्षा केंद्र पर धारा 144 लगाई गई है। और सभी केंद्र सीसीटीवी कैमरों से लैस हैं। छात्र परीक्षा हॉल में मोबाइल लेकर नहीं जा सकते हैं। वहीं, कोरोना के चलते इस बार वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट भी अनिवार्य है। जो भी छात्र परीक्षा दे रहे हैं, उन्हें एडमिट कार्ड दूसरे दस्तावेज के साथ वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट भी ले जाना होगा, तभी वे परीक्षा दे पायेंगे।
शिक्षकों ने कहा – नियम अवैध और अमानवीय
उल्लेखनीय हो कि बिहार विद्यालय परीक्षा बोर्ड ने दो-तीन साल पहले नियम बना दिया है कि परीक्षा शुरू होने के बाद अगर कोई छात्र परीक्षा केंद्र पर पहुंचेगा, तो उसे परीक्षा नहीं देने दी जाएगी। इसके पीछे बोर्ड का तर्क है कि लेट से इंट्री मिलने पर पेपर लीक होने का खतरा हो सकता है, इसलिए ये नियम बनाया गया है।
हालांकि, शिक्षकों का कहना है कि ये नियम न केवल अवैध है बल्कि अमानवीय भी है।
एक शिक्षक ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, “एक छात्र परीक्षा देने आ रहा है, तो उसे देर होने की कई वजहें हो सकती हैं। हो सकता है कि उसके परिवार में कोई इमरजेंसी आ गई हो, या फिर वो ट्रैफिक में फंस गया हो। इन वजहों से अगर छात्र देर से पहुंचता है, तो इसमें छात्र की कोई गलती नहीं है।”
“कुछ मिनट लेट से पहुंचने पर परीक्षा नहीं देने देना न केवल अवैध है बल्कि ये अमानवीय है,” उक्त शिक्षक ने कहा।
एक अन्य शिक्षक बताते हैं, “दो-तीन साल पहले तक ऐसा नियम नहीं था। मैंने कई परीक्षाओं में गार्डिंग दी है। अगर कोई परीक्षार्थी देर से आता था, तो उसे एंट्री मिलती थी। जब से आनंद किशोर बिहार विद्यालय परीक्षा बोर्ड के चेयरमैन बने हैं, तब से ही ऐसे सख्त नियम अपनाये जा रहे हैं। छात्रों को तो जूते पहनकर परीक्षा देने की भी इजाजत नहीं है, लेकिन सर्दी अधिक होने के चलते इस नियम में ढील दी गई है,” उन्होंने कहा।
वे आगे कहते हैं, “पर्चा लीक होता है या परीक्षा में नकल होती है, उसे रोकना प्रशासन का काम है। अगर सरकार गोपनीयता बरतेगी, तो पर्चा लीक होने का सवाल ही नहीं है। नकल रोकने के लिए परीक्षा केंद्र में प्रवेश से पहले छात्रों की गहनता से जांच की जा सकती है, लेकिन परीक्षा केंद्र में जाने ही नहीं देना ये दर्शाता है कि प्रशासन लीक रोक पाने में पूरी तरह विफल है और न ही नकल ही रोक पा रहा है।”
माध्यमिक शिक्षक संघ ने इस सख्त नियम को लेकर हैरानी जताई।
शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष राकेश भारती ने कहा, “पहले तो ऐसा नियम नहीं था। परीक्षा शुरू होने के 20 मिनट बाद तक छात्रों को एंट्री मिलती थी। अगर अभी ऐसा नहीं हो रहा है, तो ये सरासर गलत है। ये छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है।”
उन्होंने कहा, बोर्ड को इस पर गंभीरता से सोचना चाहिए, ताकि छात्रों का भविष्य बर्बाद न हो।
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