कटिहार जिले के कदवा विधानसभा अंतर्गत प्रखंड मुख्यालय से 26 किलोमीटर दूर भेलागंज हाट से सटे दो खंडहरनुमा भवन मौजूद हैं। भवन की छत जगह जगह से टूट कर गिर चुकी है और दीवारों के प्लास्टर खत्म हो चुके हैं। यही नहीं, छत के ऊपर और दीवारों पर पीपल के पेड़ निकल आए हैं। भवन के अंदर फर्श पूरी तरह खत्म हो चुका है, जहां पत्थर, कचरा और गंदगी का अंबार लगा है। जर्जर हो चुके भवन के कई कमरे हैं, जिनके दरवाजों पर कार्यालय, शल्यकक्ष और ओपीडी धुंधले अक्षरों में लिखे हैं।
स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि यह भवन अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भेलागंज नाम से जाना जाता था, जहां लगभग 20 साल पहले सरकारी डॉक्टर लोगों का इलाज करते थे। इस अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में आसपास के कई गांवों के लोग इलाज कराने आते थे। बताया जाता है कि जब यहां के तत्कालीन डॉक्टर का ट्रांसफर हो गया और इसके बाद दोबारा यहां कभी कोई डॉक्टर नहीं आया।
बगल के ही गांव के निवासी और अस्पताल में साफ सफाई करने वाले भोला मलिक ने मैं मीडिया को बताया कि यह एक अस्पताल हुआ करता था, जहां पर सरकारी डॉक्टर बैठते थे और वह अस्पताल की साफ सफाई का काम करते थे।
मधाईपुर पंचायत के स्थानीय ग्रामीण सुबहान अली ने बताया कि यह एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ही था। यह अस्पताल कदवा प्रखंड के सीमावर्ती और बहुत ही पिछड़े क्षेत्र के ग्रामीणों के लिए बहुत लाभदायक था, अब यहां के लोगों को इलाज करने के लिए 22 से 26 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है।
वहीं खंडहर भवन के पास बैठे दिनेश पोद्दार ने बताया कि जब इस हॉस्पिटल का उद्घाटन होने जा रहा था तब यहां बहुत हर्षोल्लास था। यहां तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं थी तो उद्घाटन करने के लिए कई डॉक्टर कदमगाछी घाट से कई किलोमीटर पैदल चलकर यहां पहुंचे थे। लेकिन ऐन मौके पर उद्घाटन समारोह रुकवा दिया गया। कहा गया कि इस ज़मीन की रजिस्ट्री नहीं हुई है।
समाजसेवी इफ्तेखार आलम ने कहा कि यह बलरामपुर और कदवा विधानसभा का बॉर्डर है। इस वजह से यह बहुत ही पिछड़ा है। बगल से नदी बहती है। यहां इमरजेंसी के वक्त इलाज के लिए कोई अस्पताल नहीं है इसीलिए इसे जल्दी से शुरू करने से लोगों को सुविधा होगी।
इस मामले को लेकर जब हमने कदवा प्रखंड के चिकित्सा पदाधिकारी रवि कुमार से बात की, तो उन्होंने फोन पर कहा कि वह अस्पताल तो बना था, लेकिन भूदाता ने जमीन की रजिस्ट्री सरकार के नाम नहीं की थी इसलिए वहां सरकारी सेवा बहाल नहीं हो पाई। कुछ दिनों तक सरकारी डॉक्टर के बैठने की बात पर उन्होंने कहा कि समाज के आग्रह पर डॉक्टर वहां पर बैठते थे, लेकिन उन्हें परेशान किया गया। इसलिए दोबारा वहां कोई डॉक्टर नहीं गया। एक बार जब भूदाता के वंशजों से रजिस्ट्री के लिए बात की गई थी तो उन लोगो ने सरकारी नौकरी की शर्त रख दी इसी कारण अस्पताल का यह मामला अटक गया।
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जब हम अस्पताल के भूदाता के वंशजों को खोजने निकले तो उनके परिवार के एकमात्र सदस्य शांति देवी से मुलाकात हुई जो एक पुरानी और जर्जर हवेली में अकेले रहती हैं। शांति देवी के परिवार में अब कोई नहीं बचा है।
शांति देवी ने दावा किया कि वह भवन उनके पति पृथ्वी शाह ने खुद के पैसे से खुद की जमीन पर बनाकर सरकार को दान कर दिया था। लेकिन, पारिवारिक कलह के कारण रजिस्ट्री संभव नहीं हो पाई। उन्होंने कहा कि वह लिख कर देने के लिए तैयार हैं और उनकी आखिरी इच्छा है कि अस्पताल का नाम उनके पति पृथ्वी शाह के नाम पर हो और सरकार जल्द से वहां स्वास्थ्य सेवा बहाल करे।
सरकारी नौकरी की शर्त पर जमीन लिखने की बात पर उन्होंने कहा कि अगर सरकार नौकरी दे तो भी ठीक, न दे तो भी ठीक। लेकिन अस्पताल उनके पति के नाम पर ही हो।
वहीं पृथ्वी शाह के बड़े भाई मेघू शाह के नाती और उप मुखिया विश्वनाथ शाह ने कहा कि अगर अस्पताल का सरकारीकरण हो जाता है तो अच्छा है। जल्द से जल्द कर दिया जाए हम लोग तैयार हैं।
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