“जय बांग्ला… जय बांग्ला…”, “जय बांग्ला… जय बांग्ला…”, “पाहाड़ थेके सोमुद्रो… भूमि पुत्रो, भूमि पुत्रो…”। पश्चिम बंगाल राज्य में इन दिनों ये नारे जगह-जगह गूंज रहे हैं। “जय बांग्ला… जय बांग्ला…”, मतलब, बंगाल की जय हो, बंगाल की जय हो। ऐसे ही “पाहाड़ थेके सोमुद्रो… भूमि पुत्रो, भूमि पुत्रो…” यानी पहाड़ से समुद्र.. भूमिपुत्र, भूमिपुत्र…। आजकल पश्चिम बंगाल राज्य में चारों ओर इन्हीं नारों की गूंज है। एक नई बांग्ला लहर “जय बांग्ला” गूंज उठी है। यह गूंज एक संगठन ने उठाई है। उस संगठन का नाम है “बांग्ला पक्खो” यानी बांग्ला पक्ष।
इस संगठन ने राज्य में सर्वत्र “जय बांग्ला” की लहर पैदा कर दी है। जगह-जगह प्रदर्शन किए जा रहे हैं। गैर बंगालियों विशेषकर हिंदी भाषियों के विरुद्ध पोस्टरबाजी की जा रही है। उसके द्वारा कहा जा रहा है कि बंगाल बंगालियों का है। बंगाल में सबकुछ पर पहला हक बंगालियों को ही मिलना चाहिए। बंगाल में रहना है, तो बांग्ला-बांग्ला कहना होगा। आखिर, ऐसा क्यों हुआ कि हमेशा से ही, बिना किसी भेदभाव के, सबके साथ समानता भरा उदारवादी रवैया अपनाने वाला बंगाल अब बंगालियों तक ही सीमित रहने वाला रवैया अपनाने की ओर अग्रसर है?
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इसके पीछे यूं तो कई वजहें हैं, लेकिन, फिलहाल ताज़ातरीन वजह, भारत सरकार के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय अधीनस्थ, भाषाई अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के पूर्वी क्षेत्र के सहायक आयुक्त की ओर से पश्चिम बंगाल राज्य सरकार के मुख्य सचिव को लिखी गई एक चिट्ठी है। यह चिट्ठी बीती 25 मई को लिखी गई है। इसमें कहा गया है कि वेस्ट बंगाल लिंग्विस्टिक माइनॉरिटीज एसोसिएशन नामक एक संगठन के महासचिव ने केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय व उसके भाषाई अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के पूर्वी क्षेत्र के सहायक आयुक्त के कार्यालय के समक्ष जो शिकायत पत्र प्रस्तुत किया है, उसके निवारण हेतु तत्काल कार्रवाई की जाए और क्या कार्रवाई की गई, उस बाबत रिपोर्ट सीधे दिल्ली स्थित भारत सरकार के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय अधीनस्थ भाषाई अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ आयुक्त को प्रस्तुत की जाए।
अब सवाल उठता है कि आखिर वेस्ट बंगाल लिंग्विस्टिक माइनॉरिटीज एसोसिएशन ने ऐसी क्या शिकायत की है कि भारत सरकार के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय अधीनस्थ भाषाई अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के पूर्वी क्षेत्र के सहायक आयुक्त ने पश्चिम बंगाल राज्य सरकार के मुख्य सचिव से उसके निवारण हेतु आवश्यक कार्रवाई करने और उसकी रिपोर्ट केंद्रीय कार्यालय (दिल्ली) को देने को कहा है।
इस बाबत मिली जानकारी के अनुसार, वेस्ट बंगाल लिंग्विस्टिक माइनॉरिटीज एसोसिएशन ने यह शिकायत की है कि पश्चिम बंगाल राज्य सरकार जो पश्चिम बंगाल लोक सेवा आयोग की लोक सेवा परीक्षाओं में 300 अंकों का बांग्ला भाषा का प्रश्न पत्र अनिवार्य करने की कवायद कर रही है, उस पर पुनर्विचार किया जाए और पहले की ही भांति बांग्ला के साथ-साथ हिंदी, उर्दू व संथाली आदि भाषाओं के विकल्प को भी बरकरार रखा जाए। इसी मांग पर “बांग्ला पक्खो’ बौखला उठा है और जगह-जगह विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है। संगठन का कहना है कि पश्चिम बंगाल लोक सेवा आयोग की लोक सेवा प्रतियोगिता परीक्षाओं में यदि बांग्ला भाषा पत्र की अनिवार्यता रद्द हुई, तो फिर जोरदार आंदोलन होगा। बंगालियों ने बहुत सहा है अब और अन्याय नहीं सहा जाएगा।”
उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल राज्य सरकार के कार्मिक व प्रशासनिक सुधार विभाग की ओर से इसी साल 15 मार्च को लोक सेवा की प्रतियोगिता परीक्षाओं के संदर्भ में एक गैजेट जारी किया गया है। उसके तहत पश्चिम बंगाल लोक सेवा प्रतियोगिता परीक्षाओं में 300 अंकों का एक बांग्ला भाषा का लिखित पत्र अनिवार्य होने जा रहा है। हालांकि, उत्तर बंगाल के नेपाली भाषी अभ्यर्थियों के लिए यह अनिवार्य नहीं होगा और वे नेपाली भाषा में ही परीक्षा दे सकेंगे। 300 अंकों के इस अनिवार्य बांग्ला भाषा अथवा नेपाली भाषा पत्र में माध्यमिक अथवा समकक्ष स्तर के व्याकरण ज्ञान, अंग्रेजी से बांग्ला या नेपाली में अनुवाद, सार-संक्षेप, लघु निबंध लेखन आदि से संबंधित प्रश्न होंगे। वैसे यह पत्र क्वालिफाइंग मार्क्स के लिए ही होगा जिसमें कि 30 प्रतिशत अंक होते हैं।
मगर, फाइनल मेरिट लिस्ट पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। वैसे, यह भी है कि वर्ष 2023 की पश्चिम बंगाल लोक सेवा प्रतियोगिता परीक्षा पुराने परीक्षा पैटर्न के आधार पर ही होगी जिसमें कि बांग्ला, नेपाली भाषा के अलावा हिंदी, उर्दू व संथाली भाषा आदि का भी विकल्प है। हालांकि, अभी तक पश्चिम बंगाल लोक सेवा आयोग की ओर से इस बाबत कोई आधिकारिक अधिसूचना जारी नहीं की गई है। मगर, इस मुद्दे को लेकर माहौल गर्म हो उठा है और राजनीति भी जोर पकड़ने लगी है।
इस बाबत गैर बांग्ला व गैर नेपाली भाषी विशेषकर हिंदी, उर्दू व संथाली भाषी लोगों का कहना है कि यदि यह नया नियम लागू कर दिया जाता है तो फिर लोकसेवा से वे सभी वंचित हो जाएंगे, क्योंकि बांग्ला भाषा पत्र की अनिवार्यता उनके आड़े आ जाएगी।
इस मुद्दे को लेकर आसनसोल से भाजपा नेता जितेंद्र तिवारी ने आंदोलन छेड़ दिया है। इसके लिए उन्होंने अपने नेतृत्व में वेस्ट बंगाल लिंग्विस्टिक माइनॉरिटीज एसोसिएशन भी गठित किया है। याद रहे कि जितेंद्र तिवारी डेढ़-दो बरस पहले राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस के कद्दावर नेता थे। वह आसनसोल नगर पालिका के अध्यक्ष भी थे। मगर, अब वह भाजपा के खेमे में हैं। इधर, इस नए नियम के मुद्दे पर, जनवादी लेखक संघ व हिंदी भाषी समाज के अन्य कई संगठनों ने भी इसके विरुद्ध आवाज उठानी शुरू कर दी है।
वहीं, दूसरी ओर, “बांग्ला पक्खो” के अध्यक्ष गार्गा चटर्जी ने इसे उनके संगठन के वर्षों के लगातार आंदोलन की जीत करार दिया है।
उन्होंने यह सवाल भी उठाया है कि जब देश के अन्य भाषा-भाषी राज्यों में वहां की लोकसेवा परीक्षाओं में वहां की भाषाएं अनिवार्य हैं, तो फिर बंगाल में बांग्ला भाषा की अनिवार्यता क्यों नहीं रहेगी? इस पर क्यों सवाल उठाया जा रहा है? उनका कहना है, “बंगाल में बांग्ला व बंगालियों को प्राथमिकता मिलनी ही चाहिए। बंगाल में सबकुछ में किसी भी बाहरी का नहीं बल्कि बंगालियों का ही पहला हक है, और हम इसे लेकर रहेंगे।”
इस पूरे मामले पर शासन-प्रशासन रहस्यमयी रूप से चुप है।
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Garga is 3rd class human, a top racist..he doesnt represent Bangla culture. Bangla culture is beautiful while he calls all hindi speakers of the country with various derogatory words such as Gutkha, harami, Bimaru, idiot.
बंगाल को बरबाद बंगालियों ने ही किया है जो गैर बंगाली है वो आज भी इन बंगालियों से अधिक मेहनत करते हैं और आगे बढ़ते है, इनका ये ख्वाब कभी पूरा नहीं होने वाला है पहले इनको खुद बदलना होगा मेहनती बनना होगा, आधे से अधिक बंगालियों का रोजी रोटी उस गेरबंगली लोगो से चलता है, बंगाली हमेशा काम में फांकी मारने के चक्कर में रहता है। बंगाल की अर्थव्यवस्था को इसी बंगालियों ने बर्बाद किया है आज भी यही बंगाली एक महीने की तनखाव 5000 से भी कम में काम करते हैं 12 घंटा और भी बहुत बाते हैं इनकी कमियों के संबंध में।