पश्चिम बंगाल के शहर सिलीगुड़ी में परीक्षा देने गए बिहार के दो अभ्यर्थियों संग गाली-गलौज व मारपीट का मामला बिहार में बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है। वहीं बंगाल में भी इसे गंभीरता से लिया जा रहा है।
इस मामले में आरोपित ‘बांग्ला पक्खो’ (बांग्ला पक्ष) नामक संगठन के दार्जिलिंग जिला अध्यक्ष रजत भट्टाचार्य व सचिव गिरिधारी राय को पुलिस ने गिरफ्तार किया है पुलिस उन दोनों से गहन पूछताछ में जुट गई है। उनके खिलाफ बागडोगरा थाने में बीते गुरुवार को ही मामला (केस नंबर : 320/2024) दर्ज कर लिया गया था। उसी दिन उनका वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस ने उन्हें पहले हिरासत में लिया था और फिर गिरफ्तार किया था।
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उनके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता अधिनियम की धारा 329(4), 115(2), 204, 351(2) और 3(5) के तहत मुकदमा कायम किया गया है। ये धाराएं क्रमशः किसी को धमकाने या मानसिक रूप से प्रताड़ित करने के लिए उसके घर में घुसने, किसी के घर में घुसकर उस पर शारीरिक हमला करने या हिंसा करने, जानबूझ कर किसी को चोट पहुंचाने, अपना झूठा परिचय देकर अपने आपको फर्जी पदाधिकारी बताने, धमकी देकर व्यक्ति की सुरक्षा, प्रतिष्ठा, या संपत्ति को नुकसान पहुंचाने व किसी व्यक्ति को गंभीर चोट पहुंचाने व समूह के तौर पर अपराध करने के मामलों के लिए लगाई गई हैं।
क्या है पूरा मामला?
गत बुधवार 25 सितंबर को सोशल मीडिया के विभिन्न प्लैटफॉर्मों व्हाट्सऐप, फेसबुक व एक्स (टि्वटर) आदि पर एक वीडियो क्लिप वायरल होता है। उसमें यह दिखता है कि दो व्यक्ति एक कमरे में दाखिल होते हैं। वहां की बंद लाइट ऑन करते हुए वहां सो रहे दो-तीन युवकों को जगाते हैं। उनसे बांग्ला भाषा में पूछते हैं लेकिन जब उन युवकों में से एक जिसने अपना परिचय दानापुर के अंकित यादव के रूप में दिया, वह बांग्ला समझ पाने में असमर्थता जताता है तो वे लोग उससे व उसके साथी से हिंदी में बात करने लगते हैं।
वे उनसे पूछते हैं कि कहां से आए हो? वे कहते हैं कि बिहार से। बिहार से क्यों आए हो? परीक्षा देने, फीजिकल है हमारा, उसी की परीक्षा देने आए हैं। परीक्षा देने यहां क्यों आए? सिलीगुड़ी सेंटर पड़ गया, इसीलिए यहां आए हैं। सिलीगुड़ी सेंटर कैसे पड़ गया? तुम लोग तो बंगाल के हो नहीं, बिहार के हो, बंगाल का डोमिसाइल तो तुम्हारा है नहीं तो फिर सिलीगुड़ी अप्लाई कैसे किया? बंगाल का डोमिसाइल है तुम्हारा? दिखाओ, डॉक्यूमेंट दिखाओ? इस पर जब युवक ने इनकार कर दिया तो वे लोग उसे धकियाने लगे, गाली-गलौज की, खुद को पुलिस व आईबी का बताया और युवकों पर बिहार का होते हुए बंगाल का फर्जी दस्तावेज बनवा कर बंगाल के युवाओं के हिस्से की नौकरी हड़प लेने का आरोप लगा उन्हें जेल में डाल देने की धमकी दी।
फिर जब युवक गिड़गिड़ाने लगे और माफी मांगने लगे, यहां तक कहने लगे कि उन्हें जाने दीजिए, वे वापस चले जाएंगे और फिर कभी बंगाल नहीं आएंगे तो उन लोगों ने युवकों से कान पकड़ कर उठक-बैठक करवाई और फिर उन्हें यहां से सीधे अपने घर चले जाने की चेतावनी दी।
जिन लोगों ने युवकों पर धावा बोला था उनमें से ही किसी एक ने इस पूरे मामले का वीडियो बनाया और खुद ही वायरल किया। इस वीडियो के वायरल होते ही बिहारी समुदाय के लोग आक्रोशित हो उठे। एक के बाद एक अनेक लोगों ने इस वीडियो को सोशल मीडिया के विभिन्न प्लैटफार्मों पर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव, बंगाल पुलिस, बिहार पुलिस आदि को टैग करते हुए कड़ी कार्रवाई की मांग की।
एक्स हैंडल पर बिहार पुलिस ने भी इसे बंगाल सरकार व बंगाल पुलिस को टैग किया। यह सब देख पुलिस भी हरकत में आई और अगले दिन गुरुवार को ही दोनों आरोपित व्यक्तियों को गिरफ्तार कर लिया। उनके खिलाफ उपरोक्त मुकदमा दर्ज किया और शुक्रवार को उन्हें सिलीगुड़ी महकमा अदालत में पेश कर दोनों को पुलिस रिमांड पर दिए जाने की अर्जी लगाई। अदालत ने अर्जी स्वीकार करते हुए दोनों को दो दिनों की पुलिस रिमांड पर दे दी।
वैसे यह स्पष्ट हो गया है कि रजत भट्टाचार्य और गिरधारी राय दोनों ही पुलिस अथवा आईबी के नहीं हैं। वे ‘बांग्ला पक्खो’ (बांग्ला पक्ष) नामक एक संगठन से जुड़े हुए हैं। रजत भट्टाचार्य ‘बांग्ला पक्खो’ संगठन का दार्जिलिंग जिला अध्यक्ष और गिरधारी राय जिला सचिव है।
पहले भी भड़काया था?
उपरोक्त वीडियो वायरल होने से चंद घंटे पहले भी रजत भट्टाचार्य और गिरिधारी राय दोनों सिलीगुड़ी के निकट रानीडांगा स्थित सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) के सिलीगुड़ी फ्रंटियर मुख्यालय के सामने गए थे। वहां फीजिकल टेस्ट के लिए जुटे युवकों से बातचीत की थी।
उस दौरान अपने फेसबुक अकाउंट से लाइव आकर रजत भट्टाचार्य ने कहा था कि वे यहां एसएससी जीडी (स्टाफ सेलेक्शन कमीशन, जेनरल ड्यूटी) की परीक्षा में बंगाल के युवकों के हितों की रक्षा के लिए आए हैं। उन्होंने कुछ युवकों से उनका नाम-पता पूछा और फिर उन्हें यह भी कहा कि आप लोग बंगाल के हो निश्चिंत रहो। जो समझा कर गए थे उसका ध्यान रखना। कोई भी बिहार, यूपी, गुटखा का पता लगे या नजर आए तो तुरंत बताना।
उन्होंने वहां मौजूद स्थानीय कुछ लोगों से भी बातचीत की और उन्हें भी यही जिम्मेदारी दी कि बंगाल के युवकों को रहने के लिए कमरा वगैरह दिला देने में सहयोग करें और बाहरी, बिहार, यूपी, गुटखा का पता लगे या नजर आए तो तुरंत उन्हें सूचित करें। उस फेसबुक लाइव में रजत भट्टाचार्य ने कुछ युवकों की ओर इशारा करते हुए यह भी कहा कि ये लोग पश्चिम बंगाल भूमि के संतान हैं और इनकी नौकरी कुछ बाहरी, बिहार, गुटखा लोग खा ले रहे हैं। वे ऐसा होने नहीं देंगे।
फर्जीवाड़ा का लगाया आरोप
अदालत में पेशी के लिए ले जाए जाने के दौरान मीडिया को संबोधित करते हुए आरोपित रजत भट्टाचार्य ने कहा कि कुछ फर्जी परीक्षार्थियों के आने की सूचना उन्हें मिली थी। इसीलिए वे उनकी जांच करने गए थे। जिन दोनों से पूछताछ की उनके दस्तावेज भी फर्जी थे। रजत भट्टाचार्य ने यह भी कहा कि बंगाल की भूमि की संतानों की नौकरी किसी और को हड़पने नहीं देंगे। इसके विरुद्ध हमेशा लड़ते रहेंगे।
सूत्रों की मानें तो रजत भट्टाचार्य व गिरिधारी राय की बदमाशी के खिलाफ उस मकान मालिक ने ही बागडोगरा थाने में शिकायत दर्ज करवाई है जिसके मकान में बिहार के दानापुर से आए दोनों युवक ठहरे थे। आरोप है कि पुलिस अधिकारी की धौंस जमा कर बिना अनुमति के ही रजत भट्टाचार्य व गिरिधारी राय उनके घर में घुसे। किरायेदारों का कमरा भी जबरन खुलवाया। खुद को पुलिस अधिकारी व आईबी का बता कर किराएदार युवकों के दस्तावेज मांगे और उसे नष्ट किया। फिर, दोनों युवकों को अपमानित किया व पीटा। उनकी प्रताड़ना से पीड़ित दोनों युवक वापस लौट गए। एसएसबी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार वे दोनों युवक शारीरिक परीक्षा में सम्मिलित भी नहीं हुए।
बिहारी समुदाय ने जताया रोष
इस पूरे मामले के विरुद्ध सिलीगुड़ी के बिहारी समुदाय के लोगों ने भी गहरा रोष जताया है। बिहारी सेवा समिति नामक संगठन ने सिलिगुड़ी पुलिस कमिश्नर को ज्ञापन देकर इस मामले की निंदा की है। इसके साथ ही इसमें संलिप्त लोगों के विरुद्ध गैर जमानती धाराओं के तहत कड़ी कार्रवाई के मांग की है।
बिहारी सेवा समिति के मनीष बारी ने कहा कि बांग्ला पक्खो जैसे संगठनों की वजह से बंगाल की छवि धूमिल हो गई है। सिलीगुड़ी पूर्वोत्तर भारत के प्रवेशद्वार और यहां के पर्यटन व्यवसाय एवं सद्भाव के लिए जाना जाता है। उस छवि को कुछ संगठन बिगाड़ने पर तुले हुए हैं। उनकी नकेल कसी जानी चाहिए। वैसे इस मामले में पुलिस प्रशासन ने जितनी तत्परता से आवश्यक कार्रवाई की है वह बहुत ही प्रशंसनीय है।
वहीं बिहारी कल्याण मंच नामक संगठन के सचिव बिपिन कुमार गुप्ता ने कहा कि इस तरह से सामाजिक समरसता और सद्भाव को बिगाड़ने का प्रयास चिंतनीय है। पहले ऐसा कुछ नहीं था। इधर दो-तीन वर्षों से इस तरह की चीजें देखी जा रही हैं। इन सब चीजों को शायद शुरू में नजरअंदाज किया गया। इसीलिए आज इस तरह की घटना हुई। हम सभी को सचेत व सजग रहना है। सिलीगुड़ी की ऐतिहासिक जो परंपरा रही है, जो सद्भाव की संस्कृति है वह बिगड़ने न पाए। इस पूरे मामले में प्रशासन द्वारा पूरी तत्परतापूर्ण तरीके से की गई कार्रवाई की जितनी प्रशंसा की जाए कम होगी।
और रंग न देने की अपील
बिहारी कल्याण मंच के अध्यक्ष अधिवक्ता अत्रिदेव शर्मा ने कहा कि यह एक विक्षिप्त घटना है जिसे अन्य रंग देने का प्रयास किया जा रहा है। ऐसा नहीं होना चाहिए। यहां ऐसा नहीं है कि बिहारी को जो जहां देखता है वहीं गाली-गलौज, मारपीट करने लगता है। यह एकदम विरल मामला है। इसे सामान्य व नियमित मामले के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। बंगाली बनाम बिहारी का रंग नहीं दिया जाना चाहिए। सिलीगुड़ी सद्भाव की संस्कृति वाला शहर है। यहां पहले कभी ऐसा नहीं हुआ। यह जो हुआ है इस पर भी पूरी तत्परता के साथ प्रशासन व पुलिस ने त्वरित कार्रवाई की है।
उन्होंने यह भी कहा कि यह मामला कुछ अलग है। जब हम लोगों ने इसका पता लगाया तो इसके दो पहलू सामने आए। एक यह कि वह परीक्षा पूरी तरह से बंगाल के मूल निवासियों के लिए ही थी। वे चाहे कोई भी हों बंगाली, बिहारी, मारवाड़ी, नेपाली कोई भी लेकिन वे मूल रूप से बंगाल के निवासी होने चाहिए। मगर पाया गया कि कुछ युवक बंगाल का दस्तावेज बनवा कर इसमें सम्मिलित होने आए थे। यह जैसा कि आरोप है। अगर ऐसा है तो यह जांच का विषय है।
वहीं दूसरा पहलू यह है कि जो लोग इसमें स्वयं आगे जाकर जांच पड़ताल करने लगे। उन्होंने खुद को ही एक तरह से अथॉरिटी घोषित कर दिया। ऐसा नहीं होना चाहिए था। यदि कुछ था भी तो उसके लिए आवश्यक कानूनी प्रक्रिया होती है। उसका पालन किया जाता है। पुलिस है, थाना है, शिकायत है, अदालत है। इन सारी प्रक्रियाओं के द्वारा ही चीजों को रखा जाना चाहिए था न कि कानून अपने हाथ में लेते हुए झूठ का सहारा लेकर खुद को आईबी व पुलिस का अधिकारी बता कर दबंगई करनी चाहिए थी। उन्होंने कहा, “यह जो कृत्य किया गया उससे सामाजिक व्यवस्था भी प्रभावित हो सकती थी। वह तो शुक्र है कि सिलीगुड़ी वासी हमेशा से आपस में मिलजुल कर रहते आए हैं, हैं और रहेंगे। इसीलिए यह मामला बिगड़ा नहीं। हमारी सबसे अपील है कि कृपया इसे कोई और रंग न दें।”
‘बांग्ला पक्खो’ के बिगड़े बोल
‘बांग्ला पक्खो’ (बांग्ला पक्ष) के संस्थापक अध्यक्ष गर्ग चटर्जी हैं। इस संगठन की स्थापना जनवरी 2018 में हुई थी और वर्तमान में इसकी शाखाएं पूरे राज्य में फैली हुई हैं। अक्सर यह आरोप भी लगाया जाता है कि इसे पश्चिम बंगाल की एक राजनीतिक पार्टी का मौन समर्थन प्राप्त है।
संगठन बीते दो-तीन वर्षों से बंगाली-गैर बंगाली, विशेष कर बंगाली-बिहारी और यूपी आदि मुद्दों को उकसाता आ रहा है। राज्य के विभिन्न इलाकों में इसके सदस्य बांग्लाभाषी-हिंदीभाषी आदि मतभेदों को लेकर धावा देते आए हैं और खुद ही उसका वीडियो बना कर अपने सोशल मीडिया प्लैटफॉर्मों के माध्यम से वायरल कर अपनी पीठ आप थपथपाते हुए सुर्खियों में रहने की कोशिश की है।
हालांकि, जमीनी स्तर पर इस संगठन को आम जनता का कोई खास समर्थन नहीं है। जो कुछेक लोग बतौर सदस्य इससे जुड़े हुए हैं वे ही इसका झंडा ढो रहे हैं। इस संगठन ने राज्य में ‘जय बांग्ला’ का भी नारा दिया है। पहले भी इस संगठन के द्वारा गैर बंगालियों विशेषकर हिंदी भाषियों के विरुद्ध पोस्टरबाजी भी की गई थी।
कहा गया था कि, ‘पाहाड़ थेके सोमुद्रो… भूमि पुत्रो, भूमि पुत्रो (पहाड़ से समुद्र.. भूमिपुत्र, भूमिपुत्र..)।’ बंगाल बंगालियों का है। बंगाल में सब कुछ में पहला हक बंगालियों को ही मिलना चाहिए। बंगाल में रहना है, तो बांग्ला-बांग्ला कहना होगा। आदि-आदि।
याद रहे कि गत वर्ष ही पश्चिम बंगाल राज्य सरकार द्वारा जो पश्चिम बंगाल लोक सेवा आयोग की लोक सेवा परीक्षाओं में 300 अंकों का बांग्ला भाषा का प्रश्न पत्र अनिवार्य करने की कवायद की गई थी उसे भी इस संगठन ने राजनीतिक तूल देने की बड़ी कोशिश की थी। तब जब वेस्ट बंगाल लिंग्विस्टिक माइनॉरिटीज एसोसिएशन ने यह शिकायत की कि, सरकार जो बांग्ला भाषा की अनिवार्यता करने जा रही है, उस पर पुनर्विचार किया जाए और पहले की ही भांति बांग्ला के साथ-साथ हिंदी, उर्दू व संथाली आदि भाषाओं के विकल्प को भी बरकरार रखा जाए। उस मांग पर ‘बांग्ला पक्खो’ बौखला उठा था और राज्य भर में जगह-जगह विरोध प्रदर्शन किया था।
‘बांग्ला पक्खो’ के संस्थापक अध्यक्ष गर्ग चटर्जी ने उपरोक्त कवायद को उनके संगठन के वर्षों के लगातार आंदोलन की जीत भी करार दिया था। वह बार-बार यह कहते आए हैं कि बंगाल में बांग्ला व बंगालियों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। बंगाल में सब कुछ में किसी भी बाहरी का नहीं बल्कि बंगालियों का ही पहला हक है, और हम इसे लेकर रहेंगे।
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