अंग्रेजी साम्राज्य के दांत खट्टे करने वाले स्वतंत्रता सेनानी जमील जट आज अपने ही ज़िला अररिया में गुमनाम होकर रह गये हैं। अररिया जिले के सिमराहा मदारगंज के रहने वाले जमील जट को सीमांचल ने भुला दिया है। हालांकि, सरकार ने उनके योगदान को याद करते हुए फारबिसगंज प्रखंड परिसर में लगे शिलापट्ट में स्वतंत्रता सेनानियों की लिस्ट में सबसे पहला नाम जमील जट का ही रखा है, इसके बावजूद लोगों को उनके बारे में जानकारी नहीं है।
सौ साल से ज्यादा उम्र पार कर चुके जमील जट के रिश्तेदार मोहम्मद अलाउद्दीन बताते हैं कि जमील जट स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के आरोप में जब भागलपुर जेल में बंद थे, तब वह उनसे मिलने भागलपुर जेल जाया करते थे।
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रेल पटरी उखाड़ डाला था
जमील जाट के बारे में लोग बताते हैं कि उन्होंने हमेशा ब्रिटिश साम्राज्य का विरोध किया था। आन्दोलन के दौरान उन्होंने फारबिसगंज स्थित पोठिया में रेल पटरी को उखाड़ डाला था, जिसके बाद अंग्रेजों ने उनको जेल भेज दिया था। उस समय उनको 25 रुपये का जुर्माना लगा था।
सिमराहा पंचायत स्थित मदरगंज गांव में अब उनके पोते फीरोज आलम रहते हैं। फिरोज आलम ने एक बक्सा हमें दिखाया, जिसमें उनके मृत्यु प्रमाण पत्र, बैंक पासबुक, 26 जनवरी 1986 को पूर्णिया में हुए गणतंत्र दिवस समारोह में तत्कालीन जिलाधिकारी द्वारा परिजनों को भेजे गये निमंत्रण कार्ड थे।
मृत्यु प्रमाण पत्र
मृत्यु प्रमाण पत्र के अनुसार, जमील जट की मृत्यु 15 अक्टूबर 1983 को हुई थी। स्थानीय निवासी मोहम्मद बेचन ने बताया कि जमील जट के बारे में बड़ों से सुना है कि उन्होंने पोठिया में आन्दोलन में भाग लेने के दौरान रेल पटरी उखाड़ दी थी, जिसके बाद अंग्रेजों ने उन्हें जेल भेज दिया था।
हमने कुछ स्थानीय युवाओं से बात करने की कोशिश की लेकिन ऑन कैमरा बात करने के लिये वे तैयार नहीं हुए। जब हमने ऑफ कैमरा बात की तो उन्होंने बताया कि उन्हें जमील जाट के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं है। सच तो यह है कि सिर्फ युवा ही नहीं, बल्कि सीमांचल के लोग शायद ही जमील जट को जानते होंगे, जिन्होंने कभी अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे।
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