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ऐसे हुई थी किशनगंज और अररिया की एक ही दिन स्थापना

बिहार के किशनगंज और अररिया जिले राज्य में अपना अलग जनसांख्यिकीय महत्व रखते हैं। 14 जनवरी को सीमांचल के ये जुड़वा जिले साथ में अपना स्थापना दिवस मनाते हैं।

syed jaffer imam Reported By Syed Jaffer Imam |
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district map of araria and kishanganj

बिहार के किशनगंज और अररिया जिले राज्य में अपना अलग जनसांख्यिकीय महत्व रखते हैं। 14 जनवरी को सीमांचल के ये जुड़वा जिले साथ में अपना स्थापना दिवस मनाते हैं। 14 जनवरी 1990 को किशनगंज और अररिया को पूर्णिया ज़िले से अलग कर पृथक ज़िले बनाये गये थे।


33 वर्ष बाद ये दोनों जिले फिलहाल पिछड़ेपन से जूझ रहे हैं। एक दूसरे के पड़ोसी किशनगंज और अररिया जिले अपने स्थापना दिवस के अलावा कई सामान्य समस्याओं और आपदाओं को भी साझा करते हैं। 2021 में आई नीति आयोग की राष्ट्रीय बहुआयामी रिपोर्ट ने बिहार को देश का सबसे ग़रीब राज्य बताया था। इसी रिपोर्ट में बिहार के 10 सबसे ग़रीब ज़िलों की लिस्ट जारी की गई थी जिसमें किशनगंज 64.75% ग़रीब आबादी के साथ सबसे ग़रीब जिले के तौर पर शीर्ष स्थान पर था वहीं, लिस्ट में दूसरा स्थान अररिया ने प्राप्त किया था जहां 64.65% ग़रीब आबादी पाई गई थी।

अररिया के जिला बनने की कहानी

अररिया एक ग्रामीण जिला है जहां 93% निवासी गांव में बसते हैं। 2008 में हुए सर्वे ने अररिया को देश के सबसे पिछड़े इलाकों में से एक बताया था। सर्वे में जिले के 92% ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा को पूरी तरह से ठप बताया गया था।


अररिया ज़िले का नाम अररिया कैसे पड़ा इसके पीछे एक रोचक किस्सा सुनाया जाता है। दरअसल उन्नीसवीं सदी में ईस्ट इंडिया कंपनी के उप-प्रभाग को संचालित करने वाले अधिकारी एलेक्जेंडर फोर्बेस का पूर्णिया जिले के जिस इलाके में आवास था उसे ‘रेजिडेंशियल एरिया’ कहते थे जिसे संक्षिप्त रूप से ‘आर एरिया’ बोला जाने लगा और धीरे धीरे ‘आर एरिया’ अररिया हो गया। एलेक्जेंडर फोर्बेस के नाम पर ही अररिया ज़िले के फॉरबिसगंज प्रखंड का नामकरण हुआ था।

2011 की जनगणना के अनुसार 1830 वर्ग किलोमीटर में फैले अररिया जिले की आबादी 28,11,569 है। जिले की साक्षरता दर 53.53% है। अररिया जिले की स्थापना का श्रेय अररिया में वकील रहे हंसराज प्रताप भगत को दिया जाता है। 1980 के दशक में अररिया को अलग जिला बनाने की मांग उठने लगी और इसके पीछे का कारण अररिया के कई इलाके पूर्णिया से 100 से 150 किलोमीटर दूरी पर होना था। सालों के प्रयासों के बाद 1990 को अररिया को जिला करार दिया गया हालांकि अब तक वहां डीएम आवास और कलेक्ट्रेट भी नहीं बन सका है।

कैसे बना किशनगंज जिला

किशनगंज जिला 1884 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। 2011 की जनगणना में जिले की कुल आबादी 1,690,400 बताई गई थी। 2021 में यूएन ने बिहार के कुछ ज़िलों की अनुमानित जनसंख्या के आंकड़े निकाले थे लेकिन उस फ़ेहरिस्त में किशनगंज शामिल नहीं था। किशनगंज की साक्षरता दर 57.04% है।

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जानकार मानते हैं कि किशनगंज को पूर्णिया से अलग कर एक जिला बनाने की मुहिम 80 के दशक में शुरू हुई थी। किशनगंज नगर परिषद से वर्तमान वार्ड पार्षद कलीमदुद्दीन ने मैं मीडिया को बताया कि जब नवंबर 1989 में जब एमजे अकबर कांग्रेस के टिकट से किशनगंज के सांसद बनकर रूईधासा मैदान में भाषण देने आए थे, तो उन्होंने किशनगंज की जनता से पूछा कि उनकी क्या मांग है। जनता ने एकमत होकर कहा कि किशनगंज को जिला घोषित किया जाए। बताया जाता है कि उसके बाद किशनगंज को जिला बनाने की मुहिम में तेज़ी आई। किशनगंज और अररिया की स्थापना के समय कांग्रेस की सरकार थी और जगन्नाथ मिश्रा बिहार के मुख्यमंत्री थे।

ऐसी मान्यता है कि किशनगंज के नवाब फखरुद्दीन के जीवन काल में हिन्दू धर्म के एक संत किशनगंज पहुंचे थे। उस समय किशनगंज का नाम आलमगंज हुआ करता था। जब संत को यह पता लगा कि इस स्थान का नाम आलमगंज है और यहाँ से बहने वाली नदी का नाम रमज़ान है और जमींदार का नाम फखरुद्दीन है, तो उन्होंने शहर में रहने से इनकार कर दिया। इसके बाद नवाब फखरुद्दीन ने किशनगंज गुदरी से रमज़ान पुल तक के इलाके को कृष्णाकुंज नाम दिया, जो बाद में किशनगंज कहलाया और इस तरह आलमगंज किशनगंज में तब्दील हो गया।

वार्ड पार्षद मोहम्मद कलीमुद्दीन ने आगे बताया कि किशनगंज को जिला बनवाने के लिए शहर के नेताओं, व्यापारियों सहित कई लोगों ने लंबे समय तक संघर्ष किया और 14 जनवरी 1990 को किशनगंज को जिला करार दे दिया गया। “14 जनवरी 1990 के दिन किशनगंज को सजाया गया था। दीपावली की तरह जगह जगह पटाखे फूट रहे थे। पूरे शहर में बहुत हर्ष व उल्लास का माहौल था। जगह जगह सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित कराये गए थे। हालांकि अभी भी जिले में कई समस्याएं हैं। कुछ ऐसे अधिकारी दफ्तर है, जो पूर्ण रूप से नहीं चल रहे हैं। इन कमियों को जिला पदाधिकारी के संज्ञान में लाकर ठीक करने आवश्यकता है,” उन्होंने कहा।

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सैयद जाफ़र इमाम किशनगंज से तालुक़ रखते हैं। इन्होंने हिमालयन यूनिवर्सिटी से जन संचार एवं पत्रकारिता में ग्रैजूएशन करने के बाद जामिया मिलिया इस्लामिया से हिंदी पत्रकारिता (पीजी) की पढ़ाई की। 'मैं मीडिया' के लिए सीमांचल के खेल-कूद और ऐतिहासिक इतिवृत्त पर खबरें लिख रहे हैं। इससे पहले इन्होंने Opoyi, Scribblers India, Swantree Foundation, Public Vichar जैसे संस्थानों में काम किया है। इनकी पुस्तक "A Panic Attack on The Subway" जुलाई 2021 में प्रकाशित हुई थी। यह जाफ़र के तखल्लूस के साथ 'हिंदुस्तानी' भाषा में ग़ज़ल कहते हैं और समय मिलने पर इंटरनेट पर शॉर्ट फिल्में बनाना पसंद करते हैं।

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