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आंगनबाड़ी केन्द्रों में मनाया गया अन्नप्राशन दिवस

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आंगनबाड़ी केन्द्रों में मनाया गया अन्नप्राशन दिवस

बच्चों को बेहतर पोषण प्रदान कराने के उद्देश्य से पूर्णिया के सभी आंगनबाड़ी केन्द्रों में अन्नप्राशन दिवस मनाया गया। जिसमें 6 माह से ऊपर के बच्चों को अनुपूरक आहार का सेवन कराया गया। पोषक क्षेत्र के शिशुओं को खीर खिलाकर इसकी शुरुआत की गयी। साथ ही धात्री माताओं को भी पूरक पोषाहार के विषय में एवं साफ़ – सफाई के बारे में जानकारी दी गयी।

इसके अलावा महिलाओं को ठंड में बच्चों के विशेष देखभाल करने की भी जानकारी दी गई, और गर्भ के समय की खान-पान और परहेज के बारे में भी महिलाओं को विस्तार से बताया गया। जिला मुख्यालय की प्रभात कॉलोनी में केंद्र संख्या 02 केंद्र कोड 38 की सेविका किरण देवी ने महिलाओं को ठंड में बच्चों का विशेष ध्यान रखने की सलाह दी।

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उन्होंने बताया सर्दी के मौसम में बच्चों को निमोनिया का अधिक ख़तरा होता है। इसलिए इस मौसम में बच्चों को निमोनिया से बचाव पर अधिक ध्यान देने की जरूरत होती है। उन्होंने बताया निमोनिया से बचाव के लिए बच्चों को निःशुल्क पीसीवी का टीका लगाया जाता है। इसलिए आरोग्य दिवस पर होने वाले टीकाकरण में बच्चों को निमोनिया का टीका जरुर लगायें।


इस दौरान 6 माह से कम उम्र के बच्चों की माताओं को उनके विशेष तौर पर ख्याल रखने की सलाह दी गयी। ठंड में बच्चों को अपने सीने से लगाकर उन्हें गर्मी प्रदान करने की बात महिलाओं को बतायी गयी। साथ ही 6 माह से कम उम्र के बच्चों को केवल माँ का दूध देने पर बल दिया गया।

6 माह के बाद स्तनपान के साथ बच्चे को अनुपूरक आहार देने के विषय में जानकारी दी गयी। अनुपूरक आहार के प्रति बच्चों में रुझान बढ़ाने के लिए अनुपूरक आहार को स्वादिष्ट करने के संबंध में भी विस्तार से बताया गया। इस दौरान सेविका ने बताया 6 माह से 9 माह के शिशु को दिन भर में 200 ग्राम सुपाच्य मसला हुआ खाना, 9 से 12 माह में 300 ग्राम मसला हुआ ठोस खाना, 12 से 24 माह में 500 ग्राम तक खाना खिलाऐं। इसके अलावा अभिभावकों को बच्चों के दैनिक आहार में हरी पत्तीदार सब्जी और पीले नारंगी फल को शामिल करने की सलाह दी।

अन्नप्राशन दिवस क्या होता है?

शिशु के जन्म के पश्चात पहली बार शिशु को अन्न खिलाने की प्रक्रिया को अन्नप्राशन दिवस कहा जाता है। इस दिवस को पूजा-पाठ के साथ माता-पिता मानते हैं। अन्नप्राशन संस्कार शिशु के जन्म के छह माह के बाद किया जाता है। इससे पहले शिशु को अन्न पचाने की छमता नहीं होती है।

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