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पैक्स से अनाज खरीद में भारी गड़बड़ी, निजी व्यापारियों के सहारे किसान

बिहार में खरीफ सत्र 2022-23 के लिए एक नवंबर से उत्तर बिहार और 15 नवंबर से दक्षिण बिहार में धान की खरीद शुरू हो गई है।

shah faisal main media correspondent Reported By Shah Faisal | Kishanganj |
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बिहार सरकार ने वर्ष 2006 में मंडी व्यवस्था ख़त्म कर राज्य के किसानों के लिए पैक्स का सिस्टम लाया। पैक्स यानी कि प्राइमरी एग्रीकल्चर कोआपरेटिव सोसाइटी, बिहार में हर पांच साल में पंचायत स्तर पर पैक्स अध्यक्ष व सदस्यों का चुनाव होता है। अध्यक्ष पद का चुनाव जितने वाले शख़्स ही अगले पांच वर्षों तक किसानों की फसलों को सरकार द्वारा तय मूल्य पर खरीदता है। आपको बता दें कि बिहार सरकार पैक्स के माध्यम से मुख्य रूप से धान और गेहूं खरीदती है, जिसके लिए सरकार हर वर्ष एक निश्चित कीमत तय करती है।

क्या है तय कीमत?

बिहार में खरीफ सत्र 2022-23 के लिए एक नवंबर से उत्तर बिहार और 15 नवंबर से दक्षिण बिहार में धान की खरीद शुरू हो गई है। सरकार ने वर्ष 2022-23 के लिए ग्रेड ए धान की कीमत 2060 रुपये प्रति क्विंटल और सामान्य ग्रेड धान की कीमत 2040 रुपये प्रति क्विंटल तय की है। साथ ही बता दें कि सरकार ने सत्र 2022-23 में 45 लाख टन धान खरीद का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए 6636 पैक्स और व्यापार मंडलों की सहायता से धान की खरीददारी चल रही है।

बाहरी तौर पर ख़रीदारी के आंकड़ों को देखने पर मालूम पड़ता है कि बिहार सरकार ने मंडी व्यवस्था ख़त्म कर सही किया है, पैक्स के माध्यम से बिहार के किसानों के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव आ रहे हैं। बड़ी संख्या में बिहार के किसान MSP यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ ले पा रहे हैं।


जानकारी का अभाव

लेकिन, आंकड़ों की हकीक़त जमीन पर ढूंढने निकले, तो पूर्णिया जिला के जलालगढ़ में हमारी मुलकात अरुण कुमार यादव से हुई। अरुण कुमार चक नामक गाँव के रहने वाले हैं। उन्होंने बताया कि वह अपनी पंचायत के पैक्स अध्यक्ष को अपना धान बेचते हैं। कम धान देने वालों को नकद में पैसा मिल जाता है और ज्यादा धान देने वालों को कभी नकद तो कभी अकाउंट में पैसा आता है।

अरुण कुमार यादव ने बताया कि धान की कीमत कई बार नकद में दी जाती है। आपको बता दें कि पैक्स को धान देने वाले किसानों को उनके बैंक खाते में पैसे मिलते हैं। अरुण कुमार यादव के मामले को सुनने से साफ समझ आ रहा है कि पैक्स इनके साथ गड़बड़ तो कर रहा है, लेकिन उन्हें पता नहीं। पूर्णिया में अरुण कुमार से बात करने के बाद पैक्स का पोल खुलने लगा था। मामले को और बारीकी से समझने के लिए हमने किशनगंज जिले के कोचाधामन प्रखंड के किसान सनाउल्लाह से मुलाकात की। सनाउल्लाह नजरपुर पंचायत के रहने वाले हैं। वह बताते हैं कि पैक्स में धान बेचने के लिए हमारे पास उतना धान नहीं है, इसलिए कुछ ही मन धान बेचते हैं। आगे उन्होंने बताया कि सत्र 2021-22 में उन्होंने 15 सौ रुपए प्रति क्विंटल की दर से खुले बाज़ार में धान बेचा था, जबकि सरकार ने पिछले साल के लिए धान की कीमत 1940 रुपये प्रति क्विंटल तय की थी।

हमारी मुलाकात नजरपुर पंचायत के ही मो. अशरफ नामक किसान से हुई तो उन्होंने बताया कि वह तो छोटे किसान हैं, पैक्स मे बड़े बड़े किसान ही धान बेच सकते हैं।

अशरफ अकेले नहीं हैं, जो भ्रामक जानकारी का शिकार हैं। आप जहाँ कहीं भी किसी किसान से पैक्स से सम्बंधित बात करेंगे, तो आपको मालूम चलेगा कि ज्यादातर किसानों को ऐसा ही लगता है। यहाँ आपकी जानकारी को सही करने के लिए बता दें कि सरकार ने भले ही रैयत और गैर रैयत किसानों के लिए अधिकतम धान बेचने की सीमा तय कर दी है लेकिन यह तय नहीं किया गया है कि कम से कम कितना धान पैक्स को दिया जा सकता है. पैक्स के गड़बड़झाले का शिकार राकिब आलम भी पूरी तरह से अनजान हैं कि पिछले साल पैक्स वाले ने उन्हें हजारों रुपये का चूना लगा दिया था।

कोचाधामन के रहने वाले किसान राकिब आलम ने बताया कि उन्होंने पैक्स को धान दिया था, लेकिन पैक्स ने महज 1600 रुपए की दर से नकद रुपए दिए।

पैसा मिलने में देरी

किशनगंज जिले के ठाकुरगंज बर्चोंदी के लाल मोहम्मद लगभग 25 मन धान 13 सौ रुपए प्रति क्विंटल के भाव से खुले बाज़ार में बेच देते हैं। पैक्स को धान नहीं बेचने का कारण बताते हुए वह कहते हैं, “हम छोटे किसान हैं, धान काटकर मक्का और आलू लगाने की तैयारी में जुट जाते हैं। पैक्स को धान बेचने से दो महीने बाद पैसा आता है।” आगे उन्होंने बताया कि पैक्स को या तो बड़े किसान धान देते हैं या फिर पूंजी वाले स्थानीय व्यापारी।

किसानों के बीच भ्रामक जानकरियों का तूफ़ान देखने के बाद हमने किशनगंज जिले के एक ऐसे किसान से बात की, जो पिछले कई वर्षों से अपनी पंचायत के पैक्स में धान बेचते हैं। नाम जाहिर नहीं करने के शर्त पर उन्होंने पैक्स के माध्यम से हो रही लूट खसोट और धांधली के बारे में विस्तार से बताया।

क्या कहते हैं अधिकारी और पैक्स अध्यक्ष

पैक्स में धान बेचने के लिए किसान को क्या करना चाहिए, यह जानने के लिए हमने किशनगंज के जिला सहकारी पदाधिकारी से बात की।

तमाम चीजें जानने के बाद हमने किशनगंज जिले के पोठिया प्रखंड के कुछ पैक्स गोदामों का रुख किया, तो हमें ज्यादातर पैक्स गोदाम में ताले लगे मिले, हमने पोठिया प्रखंड क्षेत्र के एक पैक्स अध्यक्ष से बात की, तो उन्होंने बताया कि सरकार ने पेमेंट सिस्टम को इतना लचर बना दिया है कि 48 घंटे के अन्दर पेमेंट नहीं आता है, जिस कारण पैक्स अध्यक्ष पद के रूप में हम लोगों का नाम ख़राब हो रहा है।

धान बेचने वाले किसानों को समय पर पेमेंट करने के लिए प्रत्येक पैक्स को एक लॉट यानी लगभग 430 MT धान खरीदने के लिए एडवांस में लगभग 8 लाख रुपए का लोन दिया जाता है और जरूरत पड़ने पर दूसरे राउंड में पुनः लोन दिया जाता है। पैक्स इस लोन के सहारे धान की खरीदारी करते हैं, ख़रीदे गए धान को मिल में दिया जाता है। मिल चावल तैयार करती है और फिर यह चावल SFC को दिया जाता है। SFC को चावल सौंपने के बाद सरकार पैक्स को उनका कमीशन सहित कुछ राशि का भुगतान करती है। सरकार से प्राप्त पैसे से पैक्स अपना लोन चुकाती है. इस पूरी प्रक्रिया में कभी मिल वाले ओवरलोड के कारण पैक्स से धान लेने से इंकार कर देते हैं तो कभी SCF कागज के दांव पेच के कारण मिल में चावल अटकाए रखता है। इन सभी लेटलतीफियों के कारण बैंक द्वारा पैक्स को दिए गए लोन का ब्याज बढ़ता रहता है।

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Shah Faisal is using alternative media to bring attention to problems faced by people in rural Bihar. He is also a part of Change Chitra program run by Video Volunteers and US Embassy. ‘Open Defecation Failure’, a documentary made by Faisal’s team brought forth the harsh truth of Prime Minister Narendra Modi’s dream project – Swacch Bharat Mission.

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