किशनगंज जिले के सीमावर्ती क्षेत्रों में हाथियों को रोकने के लिए वन विभाग द्वारा लगाई गई एनिडर्स मशीन भी बेकार साबित होने लगी है।
किसानों ने बताया कि तंबाकू का बीज बाज़ार में उपलब्ध नहीं होता। इसे पौधे में मौजूद छोटे से फल से निकाला जाता है और काट कर सुखाया जाता है। फिर बीज तैयार होता है। बीज लगाने के एक महीने बाद तंबाकू की पली निकाल कर उनकी रोपाई की जाती है। कमोबेश तीन महीने के बाद फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
बिहार के अररिया जिला स्थित सिमराहा के किसान श्यामदेव ने बताया कि कटाई के बाद खेत में रखा धान बारिश के पानी में सड़ने लगा है। मक्के की रोपाई के लिए खेतों में दिया गया खाद भी बारिश के कारण खराब हो चुका है।
पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने बेमौसम बारिश से प्रभावित किसानों के लिए मुआवजे की मांग को लेकर मुख्य सचिव एच.के. द्विवेदी को पत्र लिखा था। इसके एक दिन बाद सीएम ने यह घोषणा की है।
चिन्मयानंद ने इस सीज़न करीब 1 हेक्टेयर ज़मीन में मूंगफली लगाई थी। उनके अनुसार एक हेक्टेयर ज़मीन पर खेती में करीब 12 से 13 हजार रुपये की लागत आती है। आम तौर पर 1 क्विंटल बीज लगाने पर 7 से 8 क्विंटल फसल की उपज होती है।
वोटर्स की संख्या कम होने के कारण ज्यादा प्रभाव वाले ऐसे-ऐसे लोग पैक्स चेयरमैन बन जाते हैं जो किसान से धान खरीदने के बजाय गाँव के पैकारों (स्थानीय व्यापारी) से धान खरीद कर मोटा मुनाफ़ा कमाने लगते हैं।
बिहार में मखाना का सबसे ज़्यादा उत्पादन आज सीमांचल के चार जिलों पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज और अररिया में हो रहा है। इसी को देखते हुए अगस्त 2020 में भारत सरकार ने 'मिथिला मखाना' को GI टैग दिया है।
पवित्र राय अपने गांव में ड्रैगन फ्रूट की खेती की शुरुआत करने वाले पहले किसान हैं। उन्होंने बताया कि उनकी सफलता को देख कर गांव और आसपास के और किसानों ने भी ड्रैगन फ्रूट उगाना शुरू किया है जिनकी वह मदद भी करते हैं।
जिले के सिमरी बख्तियारपुर प्रखंड स्थित पूर्वी कोसी तटबंध के अंदर बसे सकरा पहाड़पुर गांव के रहने वाले पप्पू कुमार के लिए बत्तख पालन ही उनकी कमाई का जरिया बन गया है। ग्रेजुएशन और इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद पप्पू कुमार ने नौकरी के बजाय अपना कारोबार करने की ठानी। पप्पू बताते हैं कि बत्तख पालन को लेकर उन्होंने यूट्यूब का सहारा लिया और इससे संबंधित तमाम जानकारी वहीं से हासिल की।
बारिश नहीं होने की वजह से किसानों को मजबूरी में पंपसेट लगाकर सिंचाई करनी पड़ रही है। पंपसेट द्वारा एक घंटे की सिंचाई की कीमत 150 रुपये है। एक छोटे खेत की सिंचाई करने में किसान को 3 से 4 घंटे का वक्त लग जाता है।
किसानों का कहना है कि बारिश नहीं होने की वजह से खेतों में पंप के सहारे सिंचाई करने से काफी लागत आ रही है। ऐसे में लागत अधिक होने से काफी नुकसान होने की आशंका है। किसानों ने कहा कि डीजल अनुदान उन्हें नहीं मिल रहा है। किसानों ने मांग की कि सिंचाई के लिए उन्हें बिजली और बिजली संचालित पंप मोटर उपलब्ध करवाया जाय।
वर्तमान परिस्थिति पर चाय उद्योग के जानकारों का कहना है कि उत्तर बंगाल के बाजारों में पैकेट-बंद चाय के बाजार में दक्षिण भारत की चाय ने धीरे-धीरे घुसपैठ कर ली है। 50, 100, 250, 500 ग्राम से लेकर एक किलो-दो किलो तक के पैकेट बना कर बेचने वाली कंपनियां पहले उत्तर बंगाल की बॉटलीफ फैक्ट्रियों द्वारा उत्पादित चाय खरीदती थीं। अब उन्होंने दक्षिण भारत से चाय की पत्तियां मंगाना शुरू कर दिया है।
मई से ही बारिश कम होने के चलते बहुत सारे जिलों में लक्ष्य से कम बिचरा डाला गया है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भागलपुर डिविजन, जिसमें भागलपुर और बांका जिले आते हैं, में लक्ष्य के मुकाबले सिर्फ 4 प्रतिशत बिचरा ही अब तक खेतों में डाला गया है।
सुरजापुरी आम में कीड़े पड़ने की एक बीमारी ने पहले इस आम की व्यावसायिक प्रतिष्ठा छीन ली। फल में लगातार कीड़े पड़ने के कारण एक समय बाद आम लोगों ने भी अपने पेड़ों को उजाड़ना शुरू कर दिया।
किशनगंज बिहार का एकलौता जिला है जहां चाय की खेती होती है। इसको मद्देनज़र रखते हुए बिहार के कृषि मंत्री कुमार सर्वजीत शुक्रवार को किशनगंज की चाय फैक्ट्री पहुंचे। कृषि मंत्री ने फरिंगोला स्थित चाय फैक्ट्री का जायज़ा लिया और चाय प्रसंस्करण की बारीकियों को जाना।