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बजट में घोषणा के बाद पूर्णिया में मखाना बोर्ड की स्थापना की मांग तेज़, ये है वजह

"मखाना का मुख्य केंद्र पूर्णिया, किशनगंज, अररिया, कटिहार ही है। दरभंगा, मधुबनी में 300-400 साल पुराना इतिहास है मखाना का, लेकिन अभी जल स्तर काफी कम हो गया है वहां।"

syed jaffer imam Reported By Syed Jaffer Imam |
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after the announcement in the budget, the demand for establishment of makhana board in purnia increases, this is the reason
मखाना का बीज (बाएं), बीज को फोड़ कर लावा निकालते फोड़ी (दाएँ) / फोटो: शाह फैसल

कभी जंगली फसल कहलाने वाला मखाना आज देश विदेश में ‘सुपर फ़ूड’ बन चुका है। पिछले कुछ वर्षों में भारत से विदेशी बाज़ार में मखाना की सप्लाई कई गुना बढ़ी है। इसे देखते हुए इस बार के केंद्रीय बजट में बिहार में मखाना बोर्ड की स्थापना की भी घोषणा हुई।


बजट भाषण में वित्तीय मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा, “इस योजना से जुड़े लोगों को फार्मर्स प्रोडूसर ऑर्गनिज़शन (FPOs) के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा और बोर्ड मखाना किसानों को प्रशिक्षण व सहयोग प्रदान करेगा। यह बोर्ड सुनिश्चित करेगा कि किसानों को सरकार की सभी योजनाओं का लाभ मिले।”

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देश में बिहार मखाना उत्पादन का ध्वजधारक है। 2020 में आई भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की रिपोर्ट के अनुसार, देश का 90% मखाना उत्पादन बिहार में होता है। 2020 में राज्य में करीब 10,000 टन मखाना का उत्पादन हुआ। वर्ष 2019-20 में भारत से विदेशों में 138 करोड़ रुपये के मखाने का निर्यात हुआ। इसमें अमेरिका (47.9 करोड़) और यूएई (15.5 करोड़) में सबसे अधिक मखाना भेजा गया।


मखाना उत्पादन में सीमांचल सबसे आगे

कोसी-सीमांचल क्षेत्र के जिलों में सबसे अधिक मखाने की खेती होती है। पिछले वर्षों में दरभंगा, मधुबनी, खगड़िया, सहरसा, मधेपुरा, सुपौल, किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार और अररिया जिलों में मखाना की खेती काफी प्रचलित हुई है। इनमें से पूर्णिया, कटिहार, दरभंगा और मधुबनी में राज्य के 80% मखाना की खेती होती है। पूर्णिया के भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय से मिले आंकड़ों के अनुसार, बिहार में 36,727 से अधिक हेक्टेयर भूमि पर मखाने की खेती होती है।

पूर्णिया के मखाना किसान चिन्मयानंद सिंह ने ‘मैं मीडिया’ से बातचीत में कहा कि पूर्णिया मखाना की खेती और बिक्री का बहुत बड़ा केंद्र है। यहां मखाना केंद्र बनने से मखाना किसानों और विक्रेताओं के लिए बहुत अच्छी खबर होगी। उन्होंने बताया कि पूर्णिया में हर वर्ष मिथिलांचल क्षेत्र से हज़ारों की तादाद में मखाना मज़दूर पूर्णिया आते हैं और छह महीने वहीं रह कर मखाना के उत्पादन में बड़ी भूमिका निभाते हैं।

आगे उन्होंने कहा, “मखाना का मुख्य केंद्र पूर्णिया, किशनगंज, अररिया, कटिहार ही है। दरभंगा, मधुबनी में 300-400 साल पुराना इतिहास है मखाना का, लेकिन अभी जल स्तर काफी कम हो गया है वहां। उनके यहां मखाना और धान कम हो रहा है और हमारे सीमांचल क्षेत्र में उत्पादन काफी अच्छा है। हमारे यहां ही बोर्ड का गठन होना चाहिए, मैं ये पुरज़ोर मांग करूंगा।”

बजट में की गई घोषणा के अनुसार बिहार में मखाना के उत्पादन, प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन और विपणन को सुधारने के लिए एक मखाना बोर्ड स्थापित किया जाएगा। बोर्ड का काम मखाना किसानों को मार्गदर्शन और प्रशिक्षण सहायता देने के अलावा यह सुनिश्चित करना होगा कि उन्हें सभी सरकारी योजनाओं का लाभ मिले।

बता दें कि मिथिला मखाना को 2022 में जीआई टैग दिया गया था। 2023 में राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र को स्थापित किया गया। मखाना की खेती के लिए 20 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान और 50% से 90% सापेक्ष आर्द्रता आदर्श होते हैं। चिकनी दोमट मिट्टी और ऐसी जगहें, जहाँ की मिट्टी सालभर गीली रहती है, मखाना के लिए सबसे उपयुक्त होती हैं।

पूर्णिया: मखाना का विशाल बाज़ार

दरभंगा में पहले से ही एक राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र मौजूद था, हालांकि 2005 में इसका राष्ट्रीय दर्जा वापस ले लिया गया था। 2 वर्ष पहले इसे दोबारा राष्ट्रीय दर्जा प्राप्त हुआ, उसी दौरान पूर्णिया के कृषि महाविद्यालय में मखाना अनुसंधान कार्य की शुरुआत हुई।

अब पूर्णिया में मखाना बोर्ड को लाने की मांग तेज़ हो गई है। पूर्णिया के कृषि महाविद्यालय ने दरभंगा में प्रस्तावित मखाना बोर्ड व मखाना सेंटर ऑफ एक्सीलेंस को पूर्णिया में स्थापित करने की मांग की है।

पूर्णिया आज के समय मखाना के खरीदारों के लिए एक विशाल बाज़ार बन चुका है। पूर्णिया के भोला पासवान शास्त्री कृषि कॉलेज में मखाना अनुसंधान केंद्र मौजूद है। पूर्णिया में 6,549 हेक्टेयर में मखाना की खेती की जाती है जो राज्य में कटिहार (6,843 हेक्टेयर) के बाद सबसे अधिक है।

भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय ने मखाना सेंटर ऑफ एक्सीलेंस और मखाना बोर्ड की स्थापना के लिए औपचारिक रूप से अनुरोध किया है। कृषि कॉलेज की तरफ से लिखे गए पत्र में कहा गया कि भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय मखाना अनुसंधान में विशेष योगदान देने वाला संस्थान है। पत्र में दरभंगा में स्थित मखाना अनुसंधान केंद्र को जारी रखते हुए पूर्णिया में मखाना बोर्ड की स्थापना की मांग की गई है। इससे किसानों की आर्थिक स्थिति बेहतर होगी और प्रोसेसिंग इंडस्ट्री को बढ़ावा मिलेगा।

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पूर्णिया का भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय जहाँ मखाना की नई किस्म सबौर मखाना-1 को विकसित किया गया / फोटो: शाह फैसल

 

बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के कुलपति डॉ. दुनिया राम सिंह के अनुसार बिहार सरकार के चौथे कृषि रोडमैप (2023-28) में भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय, पूर्णियाँ में सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर मखाना स्थापित करने का प्रावधान है। विश्वविद्यालय ने इस मामले में इसकी विस्तृत परियोजना बिहार के कृषि विभाग के उद्यान निदेशक को सौंप दी है।

मखाना किसान चिन्मया नन्द सिंह ने पूर्णिया के भोला पासवान शास्त्री कृषि विद्यालय में सेंटर ऑफ़ एक्सेलेंस बनाने की मांग करते हुए कहा कि वहां के अनुसंधान प्रमुख डॉ अनिल कुमार ने सालों से मखाना के ऊपर काम किया है। पूर्णिया में मखाना उत्पादन भी काफी अधिक है और वहां का बाज़ार भी काफी विशाल है ऐसे में पूर्णिया में मखाना बोर्ड बनना सही कदम रहेगा। “आप मुंबई में भी बना लीजिये मखाना बोर्ड तो डॉ अनिल कुमार जैसे लोग को रखिये क्योंकि उन्होंने इस पर वाक़ई काम किया है। बोर्ड कहीं भी बन जाए लेकिन उसमें काम अच्छा होना चाहिए।”

आगे उन्होंने कहा कि पूर्णिया-कटिहार में मखाना की व्यापक खेती से पश्चिम बंगाल के मालदह, रायगंज और उत्तर दिनाजपुर जैसे जिलों में भी इस ‘सुपर फ़ूड’ का विस्तार हुआ है। “जैसे दरभंगा से कोसी को पार कर पूर्णिया में मखाना ने घर बनाया वैसे ही पूर्णिया को क्रॉस करके ये पश्चिम बंगाल की तरफ बढ़ रहा है,” मखाना किसान चिन्मया नन्द सिंह ने कहा।

मखाना अनुसंधान का केंद्र

पूर्णिया कृषि कॉलेज के पत्र में कहा गया कि 2012 से अब तक मखाना अनुसंधान के लिए 15 राष्ट्रीय परियोजनाएं चलाई गईं। इस दौरान मखाना की नई किस्म सबौर मखाना-1 को विकसित किया गया जिससे उत्पादन बढ़ा। सबौर मखाना-1 को मिथिलांचल, कोसी एवं सीमांचल जिलों के मखाना किसानों के बीच काफी लोकप्रिय बताया जाता है।

भोला पासवान शास्त्री कृषि कॉलेज का कहना है कि महाविद्यालय में स्थित मखाना अनुसंधान केंद्र, एक राज्य स्तरीय नोडल केंद्र है और मिथिला मखाना को जीआई टैग दिलाने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। मखाना को जीआई टैग मिलने से राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय बाज़ारों में मखाना एक ‘सुपर फ़ूड’ बनकर प्रचलित हुआ। इससे मखाना किसानों को पहले के मुकाबले अधिक आर्थिक लाभ हुआ।

हरदा बाजार (पूर्णिया) से मखाना के वैश्विक मूल्य निर्धारण का संचालन होता है। डी.एस. ग्रुप, हल्दीराम, बीकाजी, रिलायंस फ्रेश, शक्ति सुधा जैसी कंपनियों ने पूर्णिया में अपना खरीद केंद्र स्थापित किया है। 2012 में मखाना बीज का मूल्य ₹20-35/किलोग्राम था, जो 2024 में ₹200-400/किलोग्राम तक पहुंचा। पूर्णिया कृषि कॉलेज में 5,545 किसानों को प्रशिक्षण दिया गया और महिला सशक्तीकरण के लिए एफपीओ (FPO) मॉडल अपनाया गया।

पूर्णिया की हरदा मंडी में देश की सबसे बड़ी मखाना मंडी स्थित है। यहां देश भर की बड़ी बड़ी कंपनियों ने प्रोक्योरमेंट सेंटर खोल रखा है। इसमें डी.एस.ग्रुप हल्दीराम, बीकाजी, रिलायंस फ्रेश, अमेज़न फ्रेश और शक्ति सुधा जैसी बड़ी कंपनियों के नाम शामिल हैं। इस मंडी पर मखाना की कीमत तय की जाती है।

चिन्मया नन्द सिंह का मानना है कि मखाना की खेती में अभी विज्ञान को बहुत काम करने की आवश्यकता है। इसकी खेती में कुशल मज़दूरों की ज़रूरत पड़ती है। यह कला धीरे धीरे खत्म हो रही है। काम इतना कठिन होता है कि इसे करने वाले बहुत थोड़े से लोग बचे हैं। पूर्णिया में दरभंगा, मधुबनी से मखाना मज़दूर आते हैं। मखाना की पोपिंग काफी जटिल काम है। नई पीढ़ी में यह कला बहुत हद तक कम हो चुकी है।

उनके अनुसार, पोपिंग के लिए विकसित हुई आधुनिक मशीनें उतनी बेहतर नहीं हैं। मशीनों के मुकाबले मखाना मज़दूर कई गुना बेहतर काम करते हैं। भविष्य में मखाना मज़दूरों की कमी और बढ़ेगी। बेहतर मशीनरी के मखाना बीज में नए आविष्कारों की आवश्यकता है।

वह कहते हैं, “मखाना के ऐसे बीज विकसित करने होंगे जो आनुवंशिक रूप से संशोधित किया गया हो। मखाना की खेती में अभी सबसे अधिक परेशानी उसकी वीडिंग में आती है। इसमें चयनात्मक हर्बीसाइड (शाकनाशक) के आविष्कार की ज़रूरत है, यह उस स्तर की समस्या है। इसमें विज्ञान को काफी इन्वॉल्व करना होगा।”

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पूर्णिया के मखाना किसान चिन्मया नन्द सिंह / फोटो: शाह फैसल

क्या बोली राजनीतिक पार्टियां?

राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. जयंत जिज्ञासु ने ‘मैं मीडिया’ से बताया कि पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में दरभंगा में मखाना अनुसन्धान केंद्र खोला गया था जिसकी हालत अभी बहुत अच्छी नहीं है। केंद्र सरकार की यह घोषणा महज़ दिल बहलाने वाला है।

“मखाना से जुड़े किसानों को फायदा पहुंचाने की कोई मंशा नहीं है यह सिर्फ गाल बजाने जैसी बात है। दरभंगा में पहले से जो शोध केंद्र है उसकी हालत ठीक हो सकती थी लेकिन नहीं किया। 42 या 44 स्वीकृत पद हैं लेकिन पिछले बरस उनमें से केवल 10 कार्यरत थे,” आरजेडी प्रवक्ता जयंत ने कहा।

मखाना बोर्ड को पूर्णिया में स्थापित करने की मांग पर उन्होंने कहा कि बोर्ड कहीं भी बने, महत्वपूर्ण है कि उसमें काम हो। केंद्र सरकार ने बजट में बोर्ड को लेकर अधिक जानकारी नहीं दी है। “वो पूरा इलाका मखाना का तो है ही। दरभंगा हो, पूर्णिया हो या बिहार में कहीं हो, वो ठीक से संचालित हो सके, यही हमलोगों की इच्छा है। 2024 के बजट का भी कोई फॉलोअप नहीं है। यह सिर्फ कहने की बात है,” जयंत जिज्ञासु बोले।

वहीं, जन सुराज पार्टी के प्रवक्ता सैयद मसीहुद्दीन ने कहा कि केंद्रीय बजट में मखाना बोर्ड सहित जो घोषणाएं की गई हैं वे हवाई बातें हैं। मखाना बोर्ड से पहले बिहार में राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र भी मौजूद है लेकिन उससे क्षेत्र के किसानों को बहुत अधिक लाभ नहीं मिला है।

सैयद मसीहुद्दीन आगे कहते हैं, “मखाना को देश-विदेश में निर्यात के मामले में जिस तरह से होना चाहिए था, उस तरह से प्रभावकारी ढंग से कोई कार्रवाई नहीं हुई है। यह सरकार बोल तो बहुत कुछ देती है लेकिन उसका क्रियान्वयन नहीं करती है। सरकार ने पूर्णिया और भागलपुर एयरपोर्ट की घोषणा की, वो अभी तक हुआ नहीं। परिणाम के मामले में निराशाजनक स्थिति है।”

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के प्रवक्ता आदिल हसन आज़ाद ने मखाना बोर्ड के गठन की घोषणा का स्वागत किया। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि सीमांचल को बजट में कुछ नहीं दिया गया। लंबे समय से सीमांचल में बड़ी परियोजनाएं अटकी हुई हैं जबकि आसपास के क्षेत्रों में खूब विकास किया गया है। आगे उन्होंने कहा कि सीमांचल के चार जिलों के साथ पश्चिम बंगाल के भी ज़िले हैं और यहां विकास होगा तो साथ साथ 10-12 जिलों को लाभ होगा।

“एक बोर्ड में दो ऑफिस भी बन सकता है। आप इस इलाके में भी दे दीजिये और उधर भी दे दीजिये। दोनों को बाँट दीजिये। यहां के लोगों ने भी अनुसंधान किया है। पूर्णिया, कटिहार में काफी अच्छी तादाद में मखाना की खेती होती है तो उम्मीद है कि सरकार इस पर सोचेगी। हमलोग सकारात्मक दृष्टिकोण से सरकार से गुज़ारिश कर रहे हैं कि लोगों के जज़्बात को समझे और इस इलाके की बेहतरी के लिए कुछ करे,” पूर्णिया में मखाना बोर्ड बनाने की मांग पर आदिल हसन ने कहा।

इस मामले में जनता दल यूनाइटेड के प्रवक्ता नीरज कुमार ने ‘मैं मीडिया’ से कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कृषि रोडमैप ने मखाना उत्पादन को नई दिशा दी है। मखाना किसानों को रोडमैप के तहत सुविधाएं मिलीं, खाद्य प्रसंस्करण के लिए काम हुआ, मखाना को जीआई टैग मिला और फिर केंद्र सरकार ने मखाना बोर्ड बनाया। आगे उन्होंने कहा कि मखाना बोर्ड के गठन से निर्यात और किसानों की आर्थिक स्थिति काफी बेहतर होगी। जो भी दिक्कतें होंगी उन्हें बोर्ड के द्वारा हल किया जाएगा।

सीमांचल में विपक्षी दलों द्वारा पूर्णिया में मखाना बोर्ड के गठन की मांग पर जदयू प्रवक्ता ने कहा, “मखाना बोर्ड का मुख्यालय कहां होगा यह उनको मांग करने का अधिकार है। यह निर्णय राज्य सरकार को नहीं, केंद्र सरकार को लेना है। 800 करोड़ का एपीजे अब्दुल कलाम कृषि कॉलेज सीमांचल में कृषि की संभावना को देख कर ही बनाया गया।”

वह आगे कहते हैं, “जिनको विकास नज़र नहीं आता, उनको कौन मदद करेगा। वहां एपीजे अब्दुल कलाम कृषि कॉलेज खुला तो समझ में नहीं आ रहा है, एयरपोर्ट का हो गया तो नहीं समझ में आ रहा है। विकास चाहे सीमांचल में हो या कहीं भी हो, कहीं कोई भेदभाव नहीं किया गया है।”

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सैयद जाफ़र इमाम किशनगंज से तालुक़ रखते हैं। इन्होंने हिमालयन यूनिवर्सिटी से जन संचार एवं पत्रकारिता में ग्रैजूएशन करने के बाद जामिया मिलिया इस्लामिया से हिंदी पत्रकारिता (पीजी) की पढ़ाई की। 'मैं मीडिया' के लिए सीमांचल के खेल-कूद और ऐतिहासिक इतिवृत्त पर खबरें लिख रहे हैं। इससे पहले इन्होंने Opoyi, Scribblers India, Swantree Foundation, Public Vichar जैसे संस्थानों में काम किया है। इनकी पुस्तक "A Panic Attack on The Subway" जुलाई 2021 में प्रकाशित हुई थी। यह जाफ़र के तखल्लूस के साथ 'हिंदुस्तानी' भाषा में ग़ज़ल कहते हैं और समय मिलने पर इंटरनेट पर शॉर्ट फिल्में बनाना पसंद करते हैं।

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