झारखंड के गिरिडीह में स्थित पारसनाथ पहाड़ का विवाद बिहार के किशनगंज जिले तक पहुंच गया है। जैन समाज के लोग इसे जैन तीर्थ स्थल घोषित करने से खुश नजर आ रहे है, तो वहीं आदिवासी समुदाय के लोग उक्त पहाड़ पर बलि प्रथा को खत्म करने के विरोध में जन आंदोलन कर रहे हैं।
बुधवार को किशनगंज के अंबेडकर टाउन हॉल के समीप दर्जनों की संख्या में आदिवासी समुदाय के लोगों ने एक दिवसीय धरना दिया। किशनगंज के आदिवासी समुदाय के लोगों ने झारखंड के गिरिडीह में स्थित पारसनाथ पर्वत मरांग बुरू को पर्यटन स्थल घोषित कर उनकी आस्था के केंद्र को वापस करने की मांग की। साथ ही राष्ट्रपति के नाम जिला पदाधिकारी के हवाले से एक ज्ञापन सौंपा।
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सेंगल अभियान के बिहार प्रदेश अध्यक्ष व आदिवासी नेता विश्वनाथ टुड्डू ने कहा कि पूरी पारसनाथ पहाड़ियाँ शुरू से आदिवासियों की हैं। उन्होंने बताया कि जैन समुदाय के यहाँ आने से पहले इसे मारंग बुरु के नाम से जाना जाता था, जो बाद में पारसनाथ पर्वत रखा गया।
आगे उन्होंने कहा, “मरांग बुरु विश्व के आदिवासियों के लिए आस्था का केंद्र है। हालांकि जैन समुदाय के लोगों के लिए भी यह एक तीर्थ स्थल है जिससे हमें कोई दिक्कत नहीं है, हम उनके साथ मिलकर ही रहना चाहते हैं।”
धरना प्रदर्शन का कारण बताते हुए विश्वनाथ टुडू ने कहा कि झारखंड सरकार ने पांच जनवरी को मरांग बुरु को केवल जैन समुदाय का तीर्थ स्थल घोषित कर दिया और साथ ही पर्वत के दस किलोमीटर के दायरे में आदिवासियों की बलि प्रथा पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया। इसी के विरोध में धरना प्रदर्शन किया गया और परसनाथ पर्वत को आदिवासियों को वापस करने की मांग को लेकर ज्ञापन सौंपा गया।
दूसरी तरफ, जैन अनुयायी त्रिलोक चंद जैन ने कहा कि पारस नाथ पर्वत जैन आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है, चाहे वे दिगंबर हों या श्वेतांबर। ये जैनियों का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल भी है। हजारों वर्ष पूर्व इस पर्वत पर जैन धर्म के 20 तीर्थंकरों ने मोक्ष की प्राप्ति की है।
आगे उन्होंने बताया कि झारखंड सरकार इस क्षेत्र को पर्यटक स्थल घोषित करने जा रही थी, जिससे यहां की पवित्रता भंग होने का खतरा था, इसलिए जैन धर्म के लोगों ने इसका विरोध किया।
वह आगे कहते हैं, “क्योंकि सरकार ने अब इसको पर्यटक स्थल ना घोषित करने का फैसला किया है, तो अब जैन धर्म के लोगों को कोई दिक्कत नहीं है।”
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