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कटिहार में ओवरलोडेड प्रतिबंधित जुगाड़ गाड़ी दुर्घटना ने चरमराई स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल दी

जुगाड़ गाड़ी पुरानी गाड़ियों के कबाड़ को मिलाकर बनाई जाती है। यह तीन पहियों और चार पहियों की भी होती है। ज्यादातर यह एक मामूली सा पंपसेट का इंजन ठेले में लगाकर तैयार किया जाता है। पुरानी मोटरसाइकिल और स्कूटर के पुर्जों को भी आपस में जोड़कर बनाया जाता है।

Aaquil Jawed Reported By Aaquil Jawed |
Published On :
accident of overloaded banned jugaad vehicle in katihar exposed the broken health system

कटिहार जिले के बलरामपुर प्रखंड अंतर्गत अझरैल गांव में आज मातम पसरा है। तीन लोगों को दफनाने के बाद चौथे जनाजे की तैयारी हो रही है। चिलचिलाती धूप में सैकड़ों लोग खड़े हैं। आसपास के नेताओं और समाजसेवियों की भीड़ लगी है।


दरअसल, एक दिन पहले यानी 12 अगस्त को कटिहार जिले की तेलता-बलरामपुर मुख्य सड़क पर एक ओवरलोडेड जुगाड़ गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी। इसके बाद गाड़ी में बैठे आठ व्यस्क लोगों और दो छोटी बच्चियों में से तीन लोगों की मृत्यु हो गई, वाहन चालक पवन कुमार सहित एक बच्ची का हाथ टूट गया, राजेश कुमार के सिर में गहरी चोट आई है। बाकी लोग बुरी तरह घायल हो गए, जिनका इलाज पूर्णिया स्थित अस्पताल में चल रहा है।

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दुर्घटना के बाद स्थानीय ग्रामीणों और पुलिस द्वारा सभी घायलों को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तेलता लाया गया था। डॉक्टर ने घायलों की स्थिति को देखते हुए उसे बड़े अस्पताल में रेफर कर दिया। लेकिन समय पर एंबुलेंस नहीं मिलने के कारण दो व्यक्ति की मौत हो गई।


धान लदी गाड़ी पर 10 लोग थे सवार

सभी ग्रामीण बलरामपुर प्रखंड के एक ही गांव के निवासी थे जो पश्चिम बंगाल के टुनीदिग्घी में धान बेचने जा रहे थे। पुलिस के मुताबिक, गाड़ी में लगभग 35-40 क्विंटल धान लदा था और उसके उपर किसान बैठे थे।

दुर्घटना में बुरी तरह से घायल गुलाम यासीन की जान तो बच गई लेकिन फिर भी आज उनके घर में मातम पसरा है। ‘मैं मीडिया’ से बात करते हुए गुलाम यासीन ने बताया, “बैलेंस बिगड़ जाने के कारण दुर्घटना हुई है। दुर्घटना के बारे में सूचना पाकर उनकी पत्नी अस्पताल पहुंची और मुझे जख्मी देखकर बेहोश हो गई, फिर उनकी मृत्यु हो गई। डॉक्टर ने मृत्यु का कारण हार्ट अटैक बताया,” उन्होंने कहा।

गुलाम यासीन के संबंधी मोहम्मद गयासुद्दीन बताते हैं कि अस्पताल में दो थानों की पुलिस मौजूद थी। घायलों को जल्द से जल्द इलाज की जरूरत थी लेकिन उन्हें बड़े अस्पताल ले जाने के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी। अस्पताल प्रशासन का कहना था कि एंबुलेंस तेल भरवाने गई है, दो घंटे इंतजार करने के बाद भी एंबुलेंस नहीं पहुंची। ऐसा अस्पताल होने का क्या फ़ायदा,” उन्होंने कहा।

a local health centre
घटना के कई घंटे बीत जाने के बाद भी एंबुलेंस नहीं पहुंची

वाजिल अंसारी एक भूमिहीन मजदूर थे, जो दूसरे के खेतों में अनाज उगाकर परिवार चलाया करते थे। वह जुगाड़ गाड़ी से पश्चिम बंगाल में धान बेचकर चावल लेने जा रहे थे। लेकिन गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई। उनकी बहू नाजरा खातून ने ‘मैं मीडिया’ को बताया कि “हम लोग सूचना पाकर अस्पताल पहुंचे तो डॉक्टर ने हमें बड़े अस्पताल में ले जाने के लिए कहा। लेकिन हमारे पास कोई साधन नहीं था।”

आगे उन्होंने अस्पताल प्रशासन और पुलिस पर आरोप लगाते हुए कहा, “हम लोग एंबुलेंस की मांग करते रहे लेकिन हमें सिर्फ आश्वासन दिया गया कि ‘एंबुलेंस तेल भरवाने गई है और अभी आ रही है।’ कई घंटे बीत जाने के बाद आखिरकार एंबुलेंस नहीं पहुंची। आनन-फानन में एक निजी वाहन किराए पर लेकर पूर्णिया चले गए, लेकिन वहां पहुंचने पर डॉक्टरों ने उसे मृत्यु घोषित कर दिया,” नाजरा खातुन ने कहा।

वाजिल अंसारी के तीन बेटे हैं जो प्रवासी मजदूर हैं, शादी लायक एक बेटी है। वाजिल की मौत के बाद उसकी पत्नी को बेटी की शादी की चिंता सता रही है।

“ऐसे अस्पताल को तो जला देना चाहिए”

सभी मृतकों के परिजनों ने अस्पताल पर लापरवाही का आरोप लगाया है। इस मामले में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तेलता के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी विकास कुमार ने इन आरोपों से खुद को अलग करते हुए कहा, “हमलोगों ने घायलों को फर्स्ट एड और जरूरी इंजेक्शन लगाने के बाद हायर सेंटर में रेफर कर दिया था। लेकिन मरीज एंबुलेंस का इंतजार कर रहे थे। एम्बुलेंस के संचालन की जिम्मेदारी मेरी नहीं है। इसके लिए अलग कर्मचारी है जो कटिहार और पटना के आदेशों का पालन करते हैं। इस स्वास्थ्य केंद्र में दो एंबुलेंस है जिसमें से दूसरी एम्बुलेंस एक महीने से खराब है।”

एंबुलेंस ड्राइवर संतोष कुमार ने बताया, “घटना के वक्त एंबुलेंस लेकर पश्चिम बंगाल में तेल भरवाने गए थे, और उसका भुगतान ऑनलाइन पटना से होता है और चिन्हित पैट्रोल पंप पर ही होता है। लेकिन उस दिन ढाई घंटे तक सर्वर खराब रहा, और पेमेंट नहीं हो पाया। इस वज़ह से आने में देर हुई।”

दुर्घटना में मरने वाले 55 वर्षीय मोहम्मद तहबुल काफी घायल हो गए थे। उनकी पत्नी खालिदा की मानसिक स्थिति पिछले 20 वर्षों से खराब है। वह अपने पति की अचानक मृत्यु से काफी घबराई हुई है। घर में आने जाने वालों का तांता लगा है, और वह घबराई हुई नजरों से सबको देख रही है।

मोहम्मद तहबुल की आर्थिक स्थिति काफी खराब है, वह दूसरे के खेतों में काम किया करते थे। कुछ अनाज बांट कर मिला जिसे वह बेचे जा रहे थे। लेकिन रास्ते में गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई।

मोहम्मद तहबुल की बेटी अस्पताल प्रशासन से काफी नाराज है। हमने जब उनसे बात करने की कोशिश की तो उन्होंने बताया कि अस्पताल में मेरे पिता का इलाज नहीं हुआ। अस्पताल वाले दूसरी जगह ले जाने कह रहे थे, लेकिन एम्बुलेंस नहीं थी। तीन घंटे तक एंबुलेंस का इंतजार करते रहे लेकिन एंबुलेंस नहीं पहुंची। मेरे पिता बार-बार किसी बड़े डॉक्टर के पास ले जाने बोल रहे थे, लेकिन हम लोग समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पाए और उनकी मृत्यु हो गई,” मृतक की बेटी ने कहा।

“ऐसे अस्पताल को तो जला देना चाहिए। जब किसी इंसान की जान ही नहीं बचा पाए तो अस्पताल का क्या फायदा। सरकार बंद कर दे यह अस्पताल,” उनकी बेटी ने कहा।

आर्थिक स्थिति ख़राब

इस सड़क दुर्घटना में सबसे पहले मोहम्मद मुस्लिम की मृत्यु हुई। उनके घर की आर्थिक स्थिति सबसे ज्यादा खराब है, घर में अब कोई कमाने वाला नहीं बचा। दो बेटियों की शादी हो चुकी है और नाबालिग बेटा पिता की मृत्यु से हताश है। सरकार की तरफ से इंदिरा आवास के लिए कुछ राशि मिली थी जिससे वह अपना घर बना रहा था।

दो साल से अधूरे घर के ऊपर टीन चढ़ा है, खिड़की और दरवाजे प्लास्टिक और बांस के बने हैं। उनकी पत्नी सवेरा खातून अपने पति की मौत से काफी हताश हो गई हैं। सवेरा खातून ने बताया कि वह बाकी किसानों के साथ जुगाड़ गाड़ी पर बैठकर पश्चिम बंगाल के टुनीदिग्घी अपनी बेटी के लिए किवाड़ खरीदने जा रहे थे। क्योंकि उनकी बेटी की आर्थिक स्थिति भी काफी खराब है। दामाद प्रवासी मजदूर हैं और घर में प्लास्टिक और बांस का किवाड़ बना कर रहते हैं।

अब सवेरा खातून की आंखों के सामने अंधेरा छा गया है, उसे अब खाने-पीने की चिंता सता रही है।

क्या है जुगाड़ गाड़ी?

जुगाड़ गाड़ी पुरानी गाड़ियों के कबाड़ को मिलाकर बनाई जाती है। यह तीन पहियों और चार पहियों की भी होती है। ज्यादातर यह एक मामूली सा पंपसेट का इंजन ठेले में लगाकर तैयार किया जाता है। पुरानी मोटरसाइकिल और स्कूटर के पुर्जों को भी आपस में जोड़कर बनाया जाता है।

विकिपीडिया के अनुसार सर्वप्रथम इस जुगाड़ गाड़ी को बनाने वाले मुजफ्फरनगर के ग्राम काकड़ा के दो भाई राजकुमार तथा मांगेराम उपाध्याय थे जो सन 1985 में जुगाड़ को रोड पर सार्वजनिक चलाने के जुर्म में मांगेराम उपाध्याय मुजफ्फरनगर शहर कोतवाली में गिरफ्तार होकर जेल भी गए थे। उसके बाद सरकारी कागजों में इस गाड़ी का नाम जुगाड़ रख दिया गया।

अहम बात तो यह कि सड़क पर बेधड़क दौड़ते इन जुगाड़ गाड़ियों के चालकों को न तो किसी रजिस्ट्रेशन व टैक्स की चिंता होती है न तो पकड़े जाने का खौफ ही इनके चेहरे पर होता है। यहां तक कि ड्राइविंग लाइसेंस भी नहीं होता है।

बलरामपुर क्षेत्र से सटे बंगाल में मात्र 1 से डेढ़ लाख रुपए में एक बेहतरीन जुगाड़ गाड़ी मिल जाती है जो एक मिनी ट्रक के बराबर समान ढो सकती है।

a jugaad vehicle
बलरामपुर-तेलता सड़क पर खड़ी एक जुगाड़ गाड़ी

क्या कर रहा प्रशासन?

वैसे तो पटना हाईकोर्ट के एक आदेश के अनुसार 2017 से ही बिहार में जुगाड़ गाड़ी के परिचालन पर रोक है, लेकिन फिर भी सड़कों पर यह गाड़ी‌ चलती है। कटिहार पुलिस के एक अधिकारी ने नाम ना बताने की शर्त पर कहा कि पूरे जिले में और पूरे बिहार में इस तरह की गाड़ियां चलती हैं। इन गाड़ियों के स्वामी काफी गरीब तबके के लोग होते हैं, इसीलिए इन पर ज्यादा सख्ती नहीं की जाती है।

वहीं, इस मामले में बलरामपुर थाना प्रभारी प्रहलाद यादव ने ‘मैं मीडिया’ से फोन पर बात करते हुए कहा कि यह दुर्घटना जुगाड़ गाड़ी के अनबैलेंस हो जाने की वजह से हुई है। सूचना मिलने के 10 मिनट के अंदर पुलिस पहुंच गई थी और घायलों को अस्पताल पहुंचाया।

जुगाड़ गाड़ी के परिचालन पर उन्होंने कहा कि अक्सर हमलोग इसपर रोक-टोक करते हैं लेकिन आप सिर्फ एक विंग को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते। इसको लेकर अनुमंडल या जिला स्तर पर टीम बनाकर एक अभियान चलाने की जरूरत है, और जागरूकता फैलाने की जरूरत है।

एंबुलेंस के सवाल पर जिला एंबुलेंस मैनेजर कटिहार धीरज कुमार का कहना है कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तेलता की एक एंबुलेंस रिपेयरिंग के लिए गैराज में है और दूसरी उपलब्ध है। एंबुलेंस के फ्यूल सिस्टम के बारे में उन्होंने बताया कि ड्राइवर को एक कार्ड दिया जाता है जिससे वह पेट्रोल पंप में जाकर तेल भरता है। लेकिन 3 घंटे तक एंबुलेंस सुविधा न मिलने की बात पर धीरज का कहना है कि इतनी देर नहीं लगती है, इसके लिए अस्पताल में मौजूद एंबुलेंस मैनेजर बेहतर बता सकते हैं।

एंबुलेंस, अस्पताल प्रशासन के कंट्रोल में न होने की बात पर धीरज कुमार ने बताया कि ऐसा नहीं है। एंबुलेंस को अस्पताल के संरक्षण में ही चलाने के लिए दिया गया है। फिर आगे उन्होंने इस मामले को देखने की बात कही।

स्थानीय नेता तनवीर शम्शी ने बताया कि इस घटना में पूरी तरह से स्वास्थ्य विभाग की आपराधिक लापरवाही है। अगर समय पर एम्बुलेंस मिल जाती तो दो लोगों की जान बच सकती थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने जिला प्रशासन से इस मामले की जांच कर दोषी को सजा देने की मांग की है। साथ ही उन्होंने सरकार से हर प्रखंड में जरूरत के मुताबिक चिन्हित जगहों एंबुलेंस देने की मांग की।

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Aaquil Jawed is the founder of The Loudspeaker Group, known for organising Open Mic events and news related activities in Seemanchal area, primarily in Katihar district of Bihar. He writes on issues in and around his village.

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