शेहरून खातून जीवित हैं लेकिन सरकारी फाइलों में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया है, जिस कारण उन्हें विधवा पेंशन नहीं मिल रहा है। उनके सरकारी दफ्तरों के कई चक्कर लगाने के बावजूद सरकारी अमला ये मानने को तैयार नहीं कि वे अब भी जिंदा हैं।
कटिहार जिले के आजमनगर प्रखंड अंतर्गत मुकुरिया पंचायत के जितवारपुर गांव में रहने वाली शेहरून खातून का कोई बच्चा नहीं है और उनके पति कमीरूद्दीन की मृत्यु पांच वर्ष पहले हो चुकी है। वह अकेली जिंदगी एक ऐसे टूटे-फूटे व कच्चे मकान में गुज़ार रही हैं, जो घर नहीं कबाड़खाना लगता है, जिसमें टूटी-फूटी व इस्तेमाल में न आने वाली चीजें बेतरतीबी से रखी जाती हैं।
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घर की छत टूटी-फूटी, पुरानी व जंग लगी टीन की है और रसोई घर में एक चूल्हा है, जिसमें बरसात के दिनों में पानी घुस आता है। इस भीषण सर्दी में भी उनके पैरों में न तो चप्पल है और न ही शरीर पर कोई गर्म कपड़ा। उनके पास एक जोड़ी चप्पल है, जिसका इस्तेमाल वह कहीं बाहर जाने पर करती हैं।
वह बताती हैं कि 2019 में उनके पति की मृत्यु के बाद “इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना” के लिए आवेदन किया, तो लगभग दो साल बाद उनका नाम लाभुकों की सूची में शामिल हुआ और ₹400 प्रतिमाह पेंशन मिलना शुरू हुआ। लेकिन, एक वर्ष से अधिक समय से वह पेंशन बंद है। “हमको मृत बता कर लिस्ट से हमारा नाम हटा दिया गया है,” उन्होंने कहा।
आय का कोई साधन नहीं होने की वजह से उनके सामने भीख मांग कर खाने की नौबत आ गई है। वह भूख से नहीं मरना चाहती हैं, इसलिए लोक-लाज छोड़कर वह अक्सर सुबह आसपास के गांव में जाकर अनाज या पैसे मांग कर लाती हैं और किसी तरह अपने पेट की आग बुझाती हैं।
बैंक जाती हैं, निराश होकर लौटती हैं
‘मैं मीडिया’ से बात करते हुए शेहरून खातून ने बताया, “पति की मृत्यु के अब 5 वर्ष से ज्यादा हो चुके हैं लेकिन हमको विधवा पेंशन का लाभ एक साल ही मिल सका। इसके बाद पेंशन आना बंद हो गया।” मगर, फिर भी वह इस उम्मीद में बैंक जाती हैं कि शायद इस महीने पेंशन आई होगी, लेकिन हर बार उन्हें निराशा ही हाथ लगती है और वह बैरंग लौट आती हैं। “हम हर महीने बैंक जाते हैं, लेकिन खाली हाथ वापस आते हैं,” उन्होंने कहा।
वह बैंक अधिकारी के सामने सशरीर मौजूद रहती हैं, लेकिन बैंक अधिकारी उन्हें बताते हैं कि उनकी मृत्यु हो चुकी है, इसलिए पेंशन बंद हो गया है। बैंक अधिकारी की बातें उन्हें निराश कर देती हैं। वे दावा करती हैं कि वे जिंदा हैं, मगर कोई सुनवाई नहीं होती।
“हमें कहा गया कि पेंशन के लाभुकों की लिस्ट से हमारा नाम हटा दिया गया है क्योंकि हमारी मृत्यु हो चुकी है। ये पूरी तरह से ग़लत है, हम जिंदा हैं,” वह जोर देकर कहती हैं।
हालांकि, विधवा पेंशन के तौर पर हर महीने महज 400 रुपये मिलते हैं, जो महंगाई के इस दौर में किसी भी व्यक्ति के लिए ऊंट के मुंह में जीरा जैसा ही होता है, मगर फिर कुछ राहत मिल ही जाती है। शेहरून खातून के लिए भी 400 रुपये बड़ा आर्थिक संबल था।
वह कहती हैं, “विधवा पेंशन मिल रही थी, तो आसानी होती थी। पेंशन बंद होने के बाद अब मुझे आस-पड़ोस के गांव वालों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। आज सबेरे ही पड़ोस के गांव से 3 किलो चावल और कुछ मूढ़ी मांग कर ले आए हैं।”
“सुबह से मांगने के लिए निकले हैं, तो आज इतना मिला है,” निराश होकर शेहरून खातून कहती हैं।
अपनी कहानी सुनाते हुए वह सुबकने लगती हैं, आंखें डबडबा जाती हैं। आंखों से आंसू पोंछते हुए बताती है, “मेरे पास जमीन नहीं है। दूसरे की जमीन पर घर बनाकर रह रही हूं। अब सरकारी कार्यालयों का चक्कर लगाने की हिम्मत नहीं बची है। पढ़ी-लिखी नहीं होने के कारण गांव के वार्ड सदस्य के साथ कुछ महीने पहले बारसोई गई थी, लेकिन वहां भी कुछ नहीं हुआ।”
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना
“इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना” केंद्र सरकार के राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम का हिस्सा है, जिसका संचालन केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय करता है। मगर इस योजना के क्रियान्वयन की जिम्मेवारी राज्य सरकारों की है। बिहार में इस योजना के क्रियान्वयन की जिम्मेवारी समाज कल्याण विभाग पर है। इस योजना के तहत, गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) परिवारों की 40 से 79 वर्ष की आयु की विधवाओं को आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए मासिक पेंशन दी जाती है। योजना का उद्देश्य समाज के गरीब परिवारों की विधवाओं को वित्तीय सहायता प्रदान कर सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
इस स्कीम की राशि केंद्र सरकार, राज्य सरकारों को देती है और राज्य सरकारें लाभुकों के खाते में भेजती है। कई राज्य सरकारें विधवाओं को पेंशन के तौर पर मिलने वाली केंद्रीय राशि में अपनी तरफ से भी कुछ पैसे जोड़कर देती हैं। बिहार सरकार विधवाओं को अतिरिक्त 100 रुपये देती हैं जबकि केंद्र सरकार की तरफ से 300 रुपये दी जाती है।
इस तरह बिहार में बीपीएल श्रेणी में आने वाली विधवाओं को ₹400/- की मासिक पेंशन मिलती है। पेंशन राशि का भुगतान लाभार्थियों के बैंक अकाउंट पर प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) प्रक्रिया के तहत किया जाता है।
लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी का आदेश अनसुना
पेंशन बंद होने के बाद बीते 25 सितंबर 2024 को शेहरून खातून ने बिहार लोक शिकायत निवारण अधिनियम के तहत अनुमंडलीय लोक शिकायत निवारण अधिकारी (बारसोई) के समक्ष एक परिवाद दायर किया था। इसमें उन्होंने खुद को जीवित होने का साक्ष्य प्रस्तुत किया था।
28 अक्टूबर 2024 को अनुमंडलीय लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी (बारसोई) मनीष कुमार झा ने परिवाद को समाप्त करते हुए कहा था कि प्रखंड विकास पदाधिकारी, आजमनगर परिवाद के लोक प्राधिकार हैं। इस परिवाद पर लोक प्राधिकार को नोटिस निर्गत किया गया है। पत्रांक- 1176, दिनांक 09-10-2024 में लोक प्राधिकार ने लिखा था कि शेहरून खातुन को लक्ष्मीबाई सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना अंतर्गत पेंशन मिल रही थी, लेकिन उसके पति कमीरूद्दीन का मृत्यु हो जाने के बाद उसका आधार कार्ड लिंक नहीं रहने के कारण परिवादी शेहरून का पेंशन बन्द हो गया, जिसको चालू कराने के लिए सहायक निदेशक सामाजिक सुरक्षा कोषांग कटिहार को ई-लाभार्थी पोर्टल पर लाभुक आधार रिलीज करने के लिए भेजा गया है।
पत्र में आगे लिखा गया कि लोक प्राधिकार के द्वारा दिये गये प्रतिवेदन से पता चलता है कि शिकायतकर्ता की शिकायत के समाधान के लिए लोक प्राधिकार की तरफ से प्रक्रिया पूरी कर ली गई है और आगे की कार्रवाई जिला व विभाग के स्तर से किया जाना है। लेकिन, जिला व विभाग स्तर से कोई कार्रवाई नहीं की गई और उनका मामला जस का तस अटका पड़ा है।
तमाम शिकायतों पर भी कार्रवाई नहीं
इस संबंध में बारसोई के जदयू नेता रोशन अग्रवाल ने बताया कि शेहरून खातून बहुत ही गरीब और बेसहारा महिला हैं, जिसका बिना भौतिक सत्यापन किये विधवा पेंशन बंद कर देना काफी निंदनीय है।
उन्होंने कहा, “अनुमंडलीय लोक शिकायत निवारण अधिकारी बारसोई के द्वारा पारित आदेश के बावजूद अब तक उनका पेंशन शुरू नहीं किया जाना ‘बिहार लोक शिकायत निवारण अधिनियम’ के विफल होने की संभावना को बताता है।” “इसको लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखकर मामले से अवगत भी कराया गया है,” उन्होंने कहा।
रोशन अग्रवाल ने आगे कहा कि सरकार ने जनहित के लिए ‘बिहार लोक शिकायत निवारण अधिनियम’ कानून बनाया है लेकिन यहां यह विफल होने जैसा प्रतीत हो रहा है, जिससे आम जनों में अविश्वास पैदा हो सकता है और अगर ऐसा होता है तो यह बहुत ही खेदजनक होगा।
स्थानीय वार्ड सदस्य मोहम्मद तंजील ने ‘मैं मीडिया’ से कहा, “वे बहुत ही लाचार महिला हैं। उनका पेंशन बंद होने के बाद इसे शुरू करवाने के लिए हमने काफी प्रयास किया। प्रखंड से लेकर जिले के अधिकारियों से मुलाकात की। बारसोई में शिकायत भी की, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही। कई महीनो से झोले में कागजात लेकर भटक रहे हैं,” उन्होंने कहा।
मोहम्मद तंजील ने आगे बताया कि बारसोई में शिकायत करने के बाद उन्हें ब्लॉक से किसी ने फोन कर पेंशन के लिए दोबारा आवेदन करने को कहा। लेकिन दोबारा आवेदन करने से बंद हुआ बकाया पैसा तो नहीं मिलेगा। सरकार को चाहिए कि जितने दिनों तक इनका पैसा नहीं मिला, वह भी जोड़कर दिया जाए, क्योंकि ये अधिकारियों की गलती है।
इस संबंध में मुख्यमंत्री कार्यालय को भी पत्र लिखा गया है और त्वरित कार्रवाई की गुजारिश की गई है। मुख्यमंत्री सचिवालय की तरफ से इस पत्र के जवाब में बताया गया है कि आवेदन की जांच कर कर आगे की कार्रवाई करने के लिए मुख्यमंत्री सचिवालय से ACS समाज कल्याण विभाग को भेज दिया गया है।
ACS समाज कल्याण विभाग ने ये आवेदन DSS निदेशालय को भेजा है।
अब देखना है कि ये फाइल दफ्तरों के चक्कर लगाते लगाते गुम हो जाती है या इस पर ठोस कार्रवाई होती है।
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