अररिया: जिले के भरगामा प्रखंड स्थित एक मात्र महाविद्यालय अब खंडहर में तब्दील हो गया है। साथ ही, महाविद्यालय की जमीन पर भूदाता के परिजनों ने कब्जा कर रखा है। स्थानीय ग्रामीण इस महाविद्यालय को दोबारा चालू करने के लिए भूमि दाता से अनुरोध कर रहे हैं।
स्थानीय ग्रामीणों सौरभ कुमार, प्रदीप यादव, मुकेश यादव, खिखर यादव आदि ने बताया कि यह महाविद्यालय 1984 में शुरू हुआ था और कई वर्षों तक यहां पढ़ाई भी हुई, लोगों ने यहां से डिग्री हासिल कर नौकरियां भी कीं।
लेकिन, आहिस्ता-आहिस्ता इसकी देखरेख नहीं करने की वजह से अब यह महाविद्यालय खंडहर में तब्दील हो गया है। ग्रामीणों ने बताया कि इस महाविद्यालय के भूमि दाता मौजीलाल सिंह यादव ने 1984 में 7 एकड़ जमीन दान की थी। उद्देश्य था कि इस इलाके में उच्च शिक्षा की व्यवस्था हो और यह महाविद्यालय चला भी, लेकिन अब इसकी स्थिति बद से बदतर हो गई है।
1984 बना था काॅलेज
इस महाविद्यालय को पुनर्जीवित करने को लेकर भूदाता मौजीलाल सिंह यादव के पोते रेशम अभिषेक उर्फ बमबम यादव ने फारबिसगंज अनुमंडल पदाधिकारी को आवेदन देकर महाविद्यालय की जमीन को कब्ज़ा मुक्त कराने का अनुरोध किया है। दरअसल, भरगामा प्रखंड के सिरसिया हनुमानगंज स्थित शेखपुरा जगता जानेवाली सड़क के किनारे वर्ष 1984 में महाविद्यालय बनाया गया था। इस इलाके की बदहाल शिक्षा और गरीबी को देखकर इस महाविद्यालय के लिए लगभग 7 एकड़ जमीन स्वर्गीय मौजीलाल सिंह यादव ने दान की थी, जिसकी रजिस्ट्री बिहार के राज्यपाल के नाम की गई थी।
उस जमीन पर कॉलेज का निर्माण भी हुआ और कई वर्षों तक पढ़ाई भी हुई। कॉलेज की देखरेख की जिम्मेदारी मौजीलाल सिंह यादव के पुत्र प्रो.कमलेश्वरी प्रसाद सिंह के जिम्मे थी। कॉलेज अच्छी तरह से चल भी रहा था। लेकिन दुर्भाग्यवश 2007 में कमलेश्वरी प्रसाद सिंह का देहांत हो गया, तो उस महाविद्यालय की देखरेख करने वाला कोई नहीं रहा। इस कारण भूदाता के दूसरे पुत्रों ने महाविद्यालय की खाली पड़ी जमीन पर आहिस्ता आहिस्ता कब्ज़ा कर खेती शुरू कर दी। साथ ही महाविद्यालय के भवन को तोड़ दिया।
इसे दोबारा चालू कराने की कवायद स्वर्गीय मौजीलाल सिंह यादव के पोते रेशम अभिषेक ने शुरू की है। उनका कहना है कि इस महाविद्यालय के पास 7 एकड़ जमीन है। इस जमीन पर कॉलेज के साथ बीएड कॉलेज और नर्सिंग कॉलेज खोलने की योजना है। लेकिन, जब तक इसकी जमीन को कब्जामुक्त नहीं कराया जाएगा, तब तक यह संभव नहीं है। हालांकि, भरगामा अंचल अधिकारी ने इस दिशा में कार्य शुरू भी कर दिया है।
प्रशासन ने कहा- जमीन सरकार की
इस मामले में आवेदन के आधार पर फारबिसगंज एसडीओ ने भरगामा सीओ को जांच के आदेश दिए। तब सीओ ने स्थल पर जाकर वस्तुस्थिति का जायजा लेने के लिए राजश्व कर्मचारी को भेजा। स्थल जांच में सभी आरोप सही साबित हुए और राजश्व कर्मचारी रौनक कुमार ने बताया कि यह जमीन बिहार सरकार की है। अगर इसका कोई भी व्यक्ति उपयोग करता है, तो यह गैरकानूनी होगा। खाली पड़ी जमीन पर कब्ज़ा करने वालों ने मक्के की फसल को लगा रखा है। उस पर भी कर्मचारी ने रोक लगा दी है।
उन्होंने बताया कि अभी मक्के की फसल लगी हुई है। जिन किसी ने भी यहां फसल लगायी है उसे यहां आने के लिए कड़े तौर पर मना कर दिया गया है। कर्मचारी ने बताया कि अगर कोई आपत्ति है, तो कागजात के साथ कब्जाधारी को अंचल कार्यालय बुलाया गया है। लेकिन, फिलहाल किसी को भी इस जमीन पर जाने की मनाही है।
जमीन देने वाले के पुत्र ने क्या कहा
वहीं, आवेदक रेशम अभिषेक ने बताया, “पिता के मृत्यु के समय मैं छोटा था, इसलिए मुझे जानकारी नहीं थी। लेकिन अब हमारे साथ यहां के ग्रामीण भी चाहते हैं कि ये महाविद्यालय पुनर्जीवित हो। इसकी खास वजह है कि भरगामा प्रखंड में एक भी महाविद्यालय नहीं है।”
“यहां के बच्चों को पढ़ाई करने मधेपुरा, पूर्णियां, फारबिसगंज जाना पड़ता है, जो यहां के छात्रों के लिए काफी दूर है, अगर यह महाविद्यालय शुरू हो जाता है, तो काफी सुविधा होगी। इसलिए जल्द से जल्द इस महाविद्यालय की जमीन को कब्जामुक्त कराकर पुनर्जीवित किया जाए, ताकि इस कॉलेज के खुलने से इस क्षेत्र के छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए दूर जाना न हो,” उन्होंने कहा।
बता दें कि अररिया जिला मुख्यालय से तकरीबन 45 किलोमीटर दूर भरगामा प्रखंड के हनुमानगंज सिरसिया स्थित मौजीलाल सिंह व छेदीलाल सिंह महाविद्यालय उस वक्त बना था, जब अररिया के कई प्रखंडों में हाईस्कूल तक गिने चुने ही थे। इस कॉलेज के भूमि दाता स्वर्गीय मौजीलाल सिंह यादव ने एक बीड़ा उठाया था कि समाज में शिक्षा की ज्योत फैलाई जाए। उन्होंने 39 वर्ष पहले अपनी जमीन देकर यहां एक महाविद्यालय की स्थापना की। लेकिन, उसकी देखरेख नहीं होने के कारण यह कॉलेज बर्बाद हो गया।
क्या कहते हैं कब्जाधारी
कई वर्षों तक उनके पुत्र प्रो. कमलेश्वरी प्रसाद सिंह ने इस महाविद्यालय को आगे बढ़ाने के लिए बहुत कुछ किया था। लेकिन उनके आकस्मिक निधन और बच्चों के छोटे होने की वजह से इसकी देखरेख नहीं हो सकी और यह विद्यालय काल के गाल में समा गया।
लेकिन, जमीन की बढ़ती कीमत देखकर स्वर्गीय कमलेश प्रसाद के भाइयों ने इस जमीन पर कब्जा कर लिया और वह यहां खेती करने लगे।
उनका कहना है कि यह जमीन राज्यपाल के नाम रजिस्ट्री की गई है और इससे जुड़े दस्तावेज में एक एक कॉलम में यह भी दर्शाया गया है कि अगर यहां महाविद्यालय नहीं चलता है तो यह जमीन वापस भूदाता की हो जाएगी।
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हालांकि, मिली जानकारी के अनुसार, ऐसा नहीं है, क्योंकि जो जमीन सरकार को दान कर दी जाती है, वह सरकारी संपत्ति हो जाती है, और वह जमीन दोबारा भूदाता को नहीं मिल पाती है इसलिए इस पर कब्जा अवैध माना जाता है।
अगर उस जगह पर कॉलेज बन जाता है, तो इस इलाके के लोगों को काफी लाभ मिलेगा, क्योंकि एक बड़ी आबादी भरगामा प्रखंड रानीगंज और नरपतगंज के इलाके में रहती है जो अभी भी शिक्षा से वंचित है इसलिए इस महाविद्यालय को चालू करना जरूरी हो गया है।
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