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डायन के संदेह में हिंसा का शिकार होने वाली 97% महिलाएं दलित व पिछड़ी

आंकड़े बताते हैं कि हिंसा का शिकार होने वाली अधिकांश महिलाओं की उम्र 36 साल से अधिक है। आंकड़ों के अनुसार, 145 में से 118 महिलाओं की उम्र 36 साल से अधिक है और पीड़ितों में से 75 प्रतिशत महिलाएं शादीशुदा हैं।

Reported By Umesh Kumar Ray |
Published On :
97% of women who become victims of violence on suspicion of being witches are dalit and backward

पिछले साल 13 फरवरी की शाम मतिया देवी अपने घर के बाहर बैठी थी, तभी दो महिला समेत कुल पांच लोग उनके पास पहुंचे और उन पर डायन होने का आरोप लगाते हुए गालियां देनी शुरू कर दी।


उनमें से एक ने घोषणा की कि यह बुढ़िया डायन है और लोगों पर जादू-टोना चलाकर हमेशा परेशान किये रहती है। “इसका सिर मुंडवा कर उसमें चूना लगाकर गांव में घुमाया जाए,” गुट में शामिल एक व्यक्ति ने कहा।

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मतिया देवी, पुलिस थाने में दर्ज शिकायत में लिखती हैं, “सभी आरोपियों ने मेरे बाल पकड़ कर मुझे घर से खींचकर बाहर कर दिया और गुट में शामिल दोनों महिलाओं ने मारपीट शुरू कर दी। अन्य तीन लोग भी मारपीट में शामिल हो गये और बाल पकड़ कर मुझे गांव में घुमाने लगे।”


मतिया देवी ने शोर मचाया, तो गांव के लोग जुटे और उन्हें बचाया। उनका आरोप है कि आरोपियों ने उनके गले से जितमोहन (एक तरह का गहना) खींच लिया, जिसका बाजार मूल्य लगभग 55,000 रुपये है।

मतिया देवी, अन्य पिछड़ा वर्ग से आती हैं और आरोपी मुसहर समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जो अनुसूचित जाति में शामिल है।

डायन के संदेह में हिंसा का शिकार होने वाली मतिया देवी इकलौती महिला नहीं हैं।

इसी साल 29 जुलाई को अन्य पिछड़ा वर्ग से आने वाली कोसमी देवी के साथ भी ऐसी ही घटना हुई थी। डायन होने का आरोप लगाते हुए उनसे बेतरह मारपीट की गई और उनके गहने छीन लिये गये।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, 2020 में बिहार में डायन के संदेह में चार लोगों की हत्या कर दी गई थी। साल 2021 में भी इतने ही लोगों को डायन होने का आरोप लगाकर मार डाला गया था।

डायन होने का आरोप लगाकर महिलाओं पर हमला सीधा-सपाट मामला नहीं है। इसके पीछे कई सामाजिक और आर्थिक पहलू हैं।

75 फीसदी पीड़ित महिलाओं की उम्र 36 साल से ऊपर

गैर-सरकारी संगठन निरंतर ट्रस्ट ने बिहार की पीड़ित महिलाओं का अध्ययन कर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसमें पाया गया है कि डायन के संदेह में हिंसा का शिकार होने वाली महिलाओं में 97 प्रतिशत महिलाएं दलित व पिछड़े समाज से आती हैं।

संस्था ने राज्य के 10 जिलों के 118 गांवों में जाकर 145 पीड़िताओं से विस्तृत बातचीत की। अध्ययन के मुताबिक, पीड़ित 145 महिलाओं में से 82 महिलाएं अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और 51 महिलाएं अनुसूचित जाति की हैं।

आंकड़े बताते हैं कि हिंसा का शिकार होने वाली अधिकांश महिलाओं की उम्र 36 साल से अधिक है। आंकड़ों के अनुसार, 145 में से 118 महिलाओं की उम्र 36 साल से अधिक है और पीड़ितों में से 75 प्रतिशत महिलाएं शादीशुदा हैं।

निरंतर ट्रस्ट के अध्ययन में एक और दिलचस्प आंकड़ा सामने आया है जो बताता है कि हिंसा के पीछे की मानसिकता क्या है। आंकड़े बताते हैं कि डायन के संदेह में हिंसा का शिकार होने वाली महिलाओं में से 56 प्रतिशत महिलाएं परिवार का नेतृत्व कर रही थीं। यानी कि ये महिलाएं अपने परिवार के अहम फैसलों में अग्रणी भूमिका निभा रही थीं। इसका मतलब ये भी है कि पुरुष समाज, महिलाओं की नेतृत्वकर्ता की भूमिका बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है।

अध्ययन रिपोर्ट कहती है, “सर्वे यह दिखाता है कि महिला नेतृत्व को समाज व परिवार द्वारा नकारा जाता है। एक प्रकार से यह पितृसत्ता की ही अभिव्यक्ति है।”

साल 2022 में गया जिले के पंचमह गांव की रहने वाली रीता देवी की डायन होने के संदेह में हत्या की वजह उनका अपने परिवार का नेतृत्वकर्ता होना था। रीता देवी के पति अर्जुन दास, जो इस घटना के बाद गांव छोड़ चुके हैं, कहते हैं, “मेरी पत्नी व्यावहारिक रूप से घर की मालकिन थी। वह हर चीज का ख्याल खुद रखती थी। वह बहुत तेज़ तर्रार थी। हमलावरों ने सोचा होगा कि अगर उन्होंने मेरी पत्नी का चरित्र नष्ट कर दिया तो हमारा परिवार खत्म हो जायेगा।”

“जाति, अशिक्षा, गरीबी आदि पहचान महिलाओं पर डायन प्रथा जनित हिंसा के मूल में हैं। इस मामले में पंचायत की ओर से सकारात्मक भूमिका का अभाव है। साथ ही महिलाओं को संरक्षण का कोई प्रयास, सरकार या पंचायत द्वारा नहीं के बराबर है,” अध्ययन रिपोर्ट कहती है।

डायन प्रथा के खिलाफ कानून 1999 से लागू

उल्लेखनीय हो कि बिहार देश का पहला राज्य है, जहां सबसे पहले डायन कुप्रथा के खिलाफ कानून लाया गया था। बिहार में 1999 में ही डायन-विरोधी कानून लागू कर दिया था। बाद में देश के अन्य राज्यों ने इसका अनुसरण किया। लेकिन जानकारों का कहना है कि कानून इतना कमजोर है कि इसका जमीनी स्तर पर बहुत कम या कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

एक्ट के अनुसार, किसी व्यक्ति को न केवल डायन घोषित करना अपराध है बल्कि ‘झाड़-फूंक’ या ‘टोटका’ के माध्यम से डायन कही जाने वाली महिला को शारीरिक या मानसिक नुकसान पहुंचाना या इसके लिए उकसाना भी एक आपराधिक कृत्य है। लेकिन इस कानून में सजा काफी हल्की है। इस अधिनियम के तहत सभी अपराधों के लिए तीन महीने से एक साल तक की जेल की सजा या 1,000 रुपये से 2,000 रुपये के बीच जुर्माना हो सकता है। हालांकि, इस अधिनियम में डायन हिंसा की शिकार महिलाओं के पुनर्वास के लिए कोई प्रावधान नहीं है।

जानकारों का मानना है कि डायन के संदेह में महिलाओं पर हिंसा करने वालों के खिलाफ हल्की सजा का प्रावधान है, जिस कारण लोगों में कानून का कोई भय नहीं रहता है और साथ ही इसके पीछे एक अहम वजह ये है कि थाने में एफआईआर दर्ज होने के बावजूद ठोस कार्रवाई नहीं हो रही है। और ऐसा तब है जब अधिकांश मामलों में लोक-लाज के भय से पीड़ित थाने तक पहुंचते ही नहीं हैं।

निरंतर ट्रस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, 145 मामलों के अध्ययन में पता चला कि इनमें से 100 मामलों में पीड़ितों ने बदनामी या अन्य वजहों से शिकायत नहीं की।

“शिकायत करने वाली 45 महिलाओं में से 28 महिलाओं की शिकायत पर कोई कार्यवाही नहीं हुई,” रिपोर्ट बताती है।

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Umesh Kumar Ray started journalism from Kolkata and later came to Patna via Delhi. He received a fellowship from National Foundation for India in 2019 to study the effects of climate change in the Sundarbans. He has bylines in Down To Earth, Newslaundry, The Wire, The Quint, Caravan, Newsclick, Outlook Magazine, Gaon Connection, Madhyamam, BOOMLive, India Spend, EPW etc.

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